प्रातः स्मरणीय मंगल श्लोकों के बारे में तो लोग जानते ही हैं किन्तु इसके अतिरिक्त भी अनेकों कल्याणकारी मंगल स्तोत्र हैं जिनमें से एक प्रमुख स्तोत्र है व्यासकृत मंगल स्तोत्र (mangal stotra) जिसे मनोरथाष्टक भी कहा जाता है अर्थात यह स्तोत्र मनोरथ सिद्ध करने वाला है। इस स्तोत्र को प्रतिदिन प्रातः काल पढ़ना मनोरथ सिद्धिकारक कहा गया है और इसी कारण इसका नाम मनोरथाष्टक भी है। यहां व्यासकृत मंगल स्तोत्र (mangal stotra) संस्कृत में दिया गया है।
कल्याणकारी मंगल स्तोत्र अथवा मनोरथाष्टकम् – kalyankari mangal stotra
गणाधिपो भानु-शशी-धरासुतो बुधो गुरुर्भार्गवसूर्यनन्दनाः ।
राहुश्च केतुश्च परं नवग्रहाः कुर्वन्तु वः पूर्णमनोरथं सदा ॥१॥
उपेन्द्र इन्द्रो वरुणो हुताशनस्त्रिविक्रमो भानुसखश्चतुर्भुजः ।
गन्धर्व-यक्षोरग-सिद्ध-चारणाः कुर्वन्तु वः पूर्णमनोरथं सदा ॥२॥
नलो दधीचिः सगरः पुरूरवा शाकुन्तलेयो भरतो धनञ्जयः ।
रामत्रयं वैन्यबली युधिष्ठिरः कुर्वन्तु वः पूर्णमनोरथं सदा ॥३॥
मनु-र्मरीचि-र्भृगु-दक्ष-नारदाः पाराशरो व्यास-वसिष्ठ-भार्गवाः ।
वाल्मीकि-कुम्भोद्भव-गर्ग-गौतमाः कुर्वन्तु वः पूर्णमनोरथं सदा ॥४॥
रम्भाशची सत्यवती च देवकी गौरी च लक्ष्मीश्च दितिश्च रुक्मिणी ।
कूर्मो गजेन्द्रः सचराऽचरा धरा कुर्वन्तु वः पूर्णमनोरथं सदा ॥५॥
गङ्गा च क्षिप्रा यमुना सरस्वती गोदावरी नेत्रवती च नर्मदा ।
सा चन्द्रभागा वरुणा त्वसी नदी कुर्वन्तु वः पूर्णमनोरथं सदा ॥६॥
तुङ्ग-प्रभासो गुरुचक्रपुष्करं गया विमुक्ता बदरी वटेश्वरः ।
केदार-पम्पासरसश्च नैमिषं कुर्वन्तु वः पूर्णमनोरथं सदा ॥७॥
शङ्खश्च दूर्वासित-पत्र-चामरं मणि प्रदीपो वररत्नकाञ्चनम् ।
सम्पूर्णकुम्भः सुहृतो हुताशनः कुर्वन्तु वः पूर्णमनोरथं सदा ॥८॥
प्रयाणकाले यदि वा सुमङ्गले प्रभातकाले च नृपाभिषेचने ।
धर्मार्थकामाय जयाय भाषित व्यासेन कुर्यात्तु मनोरथं हि तत् ॥९॥
॥ इति व्यासकृतं मङ्गलस्तोत्रं समाप्तम् ॥
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