किसी भी मंदिर में नई प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व मंदिर को भी संस्कृत किया जाता है जिसकी मुख्य क्रिया स्नान कराना है और इसी कर्म को प्रासाद स्नपन कहा जाता है। प्रसाद स्नपन की विस्तृत विधि होती है, प्रसाद स्नपन के लिये 81 कलश स्थापित करके उसमें विभिन्न द्रव्य दिये जाते हैं फिर उससे प्रसाद का स्नपन किया जाता है। इस आलेख में हम प्रासाद स्नपन की विधि और मंत्र दिये गये हैं।
प्रासाद स्नपन विधि
पवित्रीकरणादि करके त्रिकुशा, तिलजलादि संकल्प द्रव्य लेकर संकल्प करे :
प्रासाद स्नपन संकल्प : ॐ अद्य …………. अस्मिन्नूतनप्रासादे सकलदोषनिवृत्ति पूर्वकं प्रासादशुद्धयर्थं आचन्द्रतारकं प्रासादपुरुष सान्निध्यहेतवे सप्रासादप्रतिष्ठाङ्गभूतं स्नपनपूर्वकं प्रासादाधिवासनं करिष्ये॥
- फिर यदि प्रासाद में पर्याप्त स्थान हो तो प्रासाद में अन्यथा आगे की भूमि पर सर्वप्रथम अक्षत से 81 कोष्ठक बनाये।
- 10 रेखा पश्चिम से पूर्व और 10 रेखा दक्षिण से उत्तर करने से 81 कोष्ठक निर्मित होगा।
- पूर्वाग्र वाली 10 रेखायें दक्षिण से आरंभ करके उत्तर में समाप्त करे।
- उत्तराग्र वाली 10 रेखायें पश्चिम से आरंभ करके पूर्व में समाप्त करे।
- कोष्ठक का आकार या तो इतना बड़ा रखे कि प्रवेश किया जा सके या इतना छोटा रखे की कलशों के बीच मात्र 1 अंगुल का अंतर रहे।
- अधिकतर छोटे कलश की ही व्यवस्था की जाती है, जिसका व्यास 3-4 अंगुल मात्र होता है।
- 81 कोष्ठकों में 9-9 कोष्ठक (3*3) के 9 कोष्ठक समूह (नवक) बनेंगे।
- इस प्रकार अनेक रंगों के अक्षत से 3*3 कोष्ठकों के 9 पद वाले समूह (नवक) भी चिह्नित कर लें।
- सभी कोष्ठकों में सप्तधान्य का पुञ्ज बनायें।
मध्य पदों में कलश स्थापन :
81 कलशों में जल आदि द्रव्य देकर, वस्त्रावेष्टित कर लें, कुंकुमादि से अलंकृत कर लें।
कलश स्थापन मंत्र : ॐ महीद्यौः पृथिवी चन इमं यज्ञं मिमिक्षताम्। पिपृतान्नो भरीमभिः॥
विशिष्ट द्रव्य निक्षेप मंत्र : ॐ सोमाय वनस्पत्यन्तरगताय नमः॥
- मध्य के 9 पदों में (नवक) पूर्व से आरम्भ करके 9 कलश स्थापित करें – ॐ महीद्यौः ……। फिर मध्य कलश में निम्न पल्लव निक्षेप करे : उदुम्बर, अश्वत्थ, चम्पक, अशोक, पलाश, प्लक्ष, न्यग्रोध (वट), कदम्ब, आम्र, बिल्व और अर्जुन – ॐ सोमाय वनस्पत्यन्तरगताय नमः॥ शेष कलशों में गंधोदक दे।
- पूर्व के नवक में भी 9 कलश स्थापित करके मध्य कलश में निम्न द्रव्य दे : पद्मकाष्ठ, गोरोचन, दूर्वांकुर, दर्भपिञ्जलि, श्वेत (पीली) सरसों, श्वेत चंदन, जाती, और सेमार (शैवाल), मंत्र पूर्ववत। शेष कलशों में गंधोदक दे।
- फिर अग्निकोण के नवक में 9 कलश स्थापित करके मध्य कलश में निम्न द्रव्य दे : जौ, धान, तिल, सुवर्ण, रजत, समुद्रगामिनी नदी किनारे की मिट्टी और बिना भूमि पर गिरा गोमय। शेष कलशों में गंधोदक दे।
- दक्षिण के नवक में 9 कलश स्थापित करके मध्य कलश में निम्न द्रव्य दे : सहदेवी, विष्णुक्रांता, भृङ्गराज, महौषधी, शमी, शतावरी और सांवा। शेष कलशों में गंधोदक दे।
- नैऋत्यकोण के नवक में 9 कलश स्थापित करके मध्य कलश में निम्न द्रव्य दे : कदली, पूगीफल, नारियल, बिल्ब, नारंगी, मातुलिङ्ग (बिजौरा नीम्बू), बदरी और आंवला। शेष कलशों में गंधोदक दे।
- पुनः पश्चिम के नवक में ९ कलश स्थापित करके मध्य कलश में समंत्र निर्मित पञ्चगव्य दे। शेष में गंधोदक दे।
- पुनः वायव्यकोण के नवक में 9 कलश स्थापित करके मध्य कलश में निम्न द्रव्य दे : शमी, उदुम्बर, अश्वत्थ, न्यग्रोध और पलाश (छाल) शेष में गन्धोदक दे।
- उत्तर के नवक में 9 कलश स्थापित करके मध्य कलश में निम्न द्रव्य दे : सहदेवी, शतावरी, शंखपुष्पी, वच, वला, कुमारी, गुडूची और व्याघ्री (कंटकारी)। शेष में गंधोदक दे।
- ईशानकोण के नवक में 9 कलश स्थापित करके मध्य कलश में सप्तमृत्तिका दे। शेष में गन्धोदक दे।
कलश अभिमंत्रण : श्रीसूक्त और देवता के मूल मंत्रों से कलशों को अभिमंत्रित करे।
त्रिसूत्र्यावेष्टन : फिर त्रिसूत्री से प्रासाद का वेष्टन करे।
पञ्चगव्य प्रोक्षण : फिर प्रासाद के भीतर, बाहर, नीचे, ऊपर सर्वत्र पञ्चगव्य प्रोक्षण करे –
- ॐ आपोहिष्ठा मयोभुवस्तान ऽऊर्जेदधातन । महेरणाय चक्षसे ॥
- योवः शिव तमोरसस्तस्य भाजयतेहनः । उशतीरिवमातरः ॥
- तस्मा ऽअरं गमाम वो यस्य क्षयाय जिन्वथ । आपो जनयथा च नः ॥
वल्मीकमृदा लेपन : फिर प्रासाद में वल्मीक मृदा का लेप करे (प्रासादभूमि को लीपे) – ॐ मूर्धानं दिवोऽअरतिं पृथिव्या वैश्वानरमृतऽआजातमग्निम् । कवि ᳪ सम्राजमतिथिञ्जनानामासान्ना पात्रं जनयन्त देवाः ॥ वर्त्तमान में प्रासाद पूर्ण पक्की व कीमती पत्थरों से बनाये जाते हैं तो प्रतीकात्मक विधि हेतु भी पूर्व ही अग्निकोण में आकाश पद को रिक्त रखे ताकि कम से कम उतने को भी लीपा जा सके और वास्तु स्थापन का गड्ढा भी किया जा सके।
प्रासाद स्नपन
तत्पश्चात 9 नवकों के मध्य कलशों से प्रासाद स्नपन करे, सर्वप्रथम मध्य नवक के मध्य कलश से फिर पूर्व, अग्निकोण, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर और ईशान नवकों के मध्य कलश से प्रासाद स्नपन करे । यहां प्रतिष्ठामौक्तिक में वर्णित विधि का अनुसरण किया गया है। अन्य प्रतिष्ठा पद्धतियों में क्रम का अंतर देखा जाता है।
- मध्य कलश (मध्य नवक) : ॐ नमोऽस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु येऽअन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः ॥
- मध्य कलश (पूर्व नवक) : ॐ ॐ विष्णोरराटमसि विष्णोः श्नप्त्रेस्त्थो विष्णोः स्यूरसि विष्णोर्ध्रुवोऽसि वैष्णवमसि विष्णवे त्वा ॥
- मध्य कलश (आग्नेय नवक) : ॐ सोम ᳪ राजानमवसे ऽग्निमन्वारभामहे। आदित्यं विष्णु ᳪ सूर्यं ब्रह्माणश्च बृहस्पति ᳪ स्वाहा ॥
- मध्य कलश (याम्य नवक) : ॐ विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतो बाहुरुत विश्वतस्पात् । सं बाहुभ्यां धमति संपतत्रैर्द्यावाभूमी जनयन्देव एकः॥
- मध्य कलश (रक्ष नवक) : ॐ याफलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणी। बृहस्पति प्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व ᳪ हस:॥
- मध्य कलश (पश्चिम नवक) : ॐ पयः पृथिव्यां पय ऽओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयोधाः। पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम्।।
- मध्य कलश (वायव्य नवक) : ॐ यज्ञा यज्ञा वो अग्नये गिरा गिरा च दक्षसे । प्र प्र वयममृतम्जातवेदसम्प्रियम्मित्रन्न श ᳪ सिषम् ॥
- मध्य कलश (उत्तर नवक) : ॐ ह ᳪ स: शुचिषद्वसु रन्तरिक्षसद्धोता वेदिषदतिथिर्दुरोणसत् । नृषद्वर सद्दत सद्व्योम सदब्जा गोजा ऋतजाऽअद्रिजा ऋतं बृहत् ॥
- मध्य कलश (ईशान नवक) : ॐ समुद्राय त्वा वातायस्वाहा सरिराय त्वावाताय स्वाहा । अनाघृष्याय त्वा वाताय स्वाहा प्रतिधृष्याय त्वा वाताय स्वाहा ॥ अवस्यवेत्वावाताय स्वाहा शिमिदायत्वावाताय स्वाहा ॥
इसी प्रकार मध्य नवक से आरम्भ करके ईशान नवक तक के पूर्वादि आठ कलशों से प्रसाद स्नपन करे : मध्य नवक – पूर्व कलश, पूर्व नवक – पूर्व कलश, अग्नि …… .
- फिर शुद्धोदक से स्नपन करके सूत्र या वस्त्र से वेष्टित करे। देवता संबंधी सूक्त/मंत्र का जप करते हुये देवरूप का भाव करे। प्रासाद को पताकादि से सुशोभित करे।
- फिर प्रासाद की गन्धादि से पूजा करे : ॐ प्रासादपुरुषाय नमः।
- अधिवासन : ॐ ह्रीं सर्वदेवमयाचिन्त्य सर्वरत्नोज्वलाकृते । यावत्चन्द्रश्च सूर्यश्च तावदत्र स्थिरो भव ॥ (देवता संबंधी अन्य मंत्र भी पढ़े) रक्षोघ्नमंत्र से सर्षत डालें ।
- फिर प्रासाद के आगे विष्णु गायत्री से चार गायों का दोहन करे।
- रुद्र गायत्री से चरु निर्माण करके देवता को निवेदित करे। कुछ पद्धतियों में चरुहोम भी निर्देश किया गया है।
- उसी चरु से द्वादश (12) ब्राह्मण भोजन कराये।
ब्राह्मणभोजन के विषय में विशेष ध्यातव्य : यह प्रासादशुद्धि ब्राह्मण भोजन प्रासाद में स्थानाभाव हो तभी प्रासाद से बाहर कराये, यदि स्थानाभाव न हो तो प्रासाद में ही ब्राह्मणभोजन कराये। यज्ञकाल में ब्राह्मण के प्रति मानवबुद्धि कदापि न रखे देवबुद्धि ही रखे। मानवबुद्धि रखने वालों के मन में प्रासाद के उच्छिष्ट होने की शङ्का उत्पन्न हो सकती है। लेकिन ब्राह्मण में देवबुद्धि रखने वालों के मन में यह शङ्का उत्पन्न नहीं होगी।
ब्राह्मणभोजन प्रासाद के शुद्धिकरण का ही अङ्ग है अतः निर्धारित समय पर ही अनिवार्य रूप से करे न कि कर्मान्त में।
देवता को भोजन कराने का दो ही तरीका है : ब्राह्मण भोजन और हवन और हवन की अपेक्षा ब्राह्मणभोजन अधिक तृप्तिकारक होता है।
फिर चारों गाय आचार्य को दान कर दे ।
फिर बाहर निकलकर प्रासाद को देवरूप मानते हुये प्रार्थना करें –
- पादौ पादशिलास्तस्य जङघा पादोर्ध्वमुच्यते । गर्भश्चैवोदरं ज्ञेयं कटिश्च कटिमेखला ॥
- स्तम्भाश्च बाहवो ज्ञेया घण्टा जिह्वा प्रकीर्तिता। दीप: प्राणोऽस्य विज्ञेयो अपानो जलनिर्गम: ॥
- ब्रम्हस्थानं यदेतच्च तन्नाभि: परिकीर्तिता । हृत्पद्मं पिण्डिका ज्ञेया प्रतिमा पुरुष: स्मृत: ॥
- पादचारस्त्वहंकारो ज्योतिस्तच्चक्षुरुच्यते । तदूर्ध्वं प्रकृतिस्तस्य प्रतिमात्मा स्मृतो बुधैः ॥
- नलकुम्भादधोद्वारं तस्य प्रजननं स्मृतम् । शुकनासा भवेन्नासा गवाक्ष: कर्ण उच्यते ॥
- कपोतपाली: स्कंऽधोस्य ग्रीवा चामलसारिका । कलशस्तु शिरो ज्ञेयं मज्जाक्षिप्त रसादिकं ॥
- मेदश्चैव सुधां विद्यात् प्रलेपो मांसमुच्यते । अस्थीनि च शिलास्तस्य स्नायु: कीलादिकः स्मृतः ॥
- चक्षुषी शिखरास्तस्य ध्वजा: केशा: प्रकीर्तिता: । एवं पुरुषरुपं तं ध्यात्वा च मनसा सुधी: ॥
- जगत्या सह प्रासाद संध्यायां स्थापयेत्ततः। प्रासादं पूजयेत् पश्चात् गन्धपुष्प ध्वजादिभि: ॥
- सूत्रेण वेष्टयेद्देवं वासांसि परिकल्पयेत्। प्रासादमेवमभ्यर्च्य वाहनं चाग्रमंडपे ॥
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।