जब देवी ने शुम्भ-निशुम्भ के दूत सुग्रीव को प्रतिज्ञा वाली बात कहकर वापस भेज दिया था तो क्रुद्ध होकर शुम्भ-निशुम्भ ने सेनापति धूम्रलोचन सेनाओं के साथ जाकर बाल पकड़कर घसीटते हुये लाने के लिये कहा। 60000 सेनाओं के साथ जाकर जब धूम्रलोचन देवी के पास गया तो देवी ने हुंकार मात्र से ही उसका वध कर दिया और सेनाओं को सिंह ने मार दिया। छठे अध्याय में उवाचादि सहित कुल २४ श्लोक हैं जिनमें से ४ उवाच और २० श्लोक हैं। इस आलेख में दुर्गा सप्तशती का छठा अध्याय दिया गया है।
॥ षष्ठोऽध्याय ॥
॥ ध्यानम् ॥
ॐ नागाधीश्वरविष्टरां फणिफणोत्तंसोरुरत्नावली-
भास्वद्देहलतां दिवाकरनिभां नेत्रत्रयोद्भासिताम्।
मालाकुम्भकपालनीरजकरां चन्द्रार्धचूडां परां
सर्वज्ञेश्वरभैरवाङ्कनिलयां पद्मावतीं चिन्तये॥
“ॐ” ऋषिरुवाच ॥१॥
इत्याकर्ण्य वचो देव्याः स दूतोऽमर्षपूरितः।
समाचष्ट समागम्य दैत्यराजाय विस्तरात्॥२॥
तस्य दूतस्य तद्वाक्यमाकर्ण्यासुरराट् ततः।
सक्रोधः प्राह दैत्यानामधिपं धूम्रलोचनम्.॥३॥
हे धूम्रलोचनाशु त्वं स्वसैन्यपरिवारितः।
तामानय बलाद् दुष्टां केशाकर्षणविह्वलाम्॥४॥
तत्परित्राणदः कश्चिद्यदि वोत्तिष्ठतेऽपरः।
स हन्तव्योऽमरो वापि यक्षो गन्धर्व एव वा॥५॥
ऋषिरुवाच ॥६॥
तेनाज्ञप्तस्ततः शीघ्रं स दैत्यो धूम्रलोचनः।
वृतः षष्ट्या सहस्राणा-मसुराणां द्रुतं ययौ॥७॥
स दृष्ट्वा तां ततो देवीं तुहिनाचलसंस्थिताम्।
जगादोच्चैः प्रयाहीति मूलं शुम्भनिशुम्भयोः॥८॥
न चेत्प्रीत्याद्य भवती मद्भर्तारमुपैष्यति।
ततो बलान्नयाम्येष केशाकर्षणविह्वलाम्.॥९॥
देव्युवाच ॥१०॥
दैत्येश्वरेण प्रहितो बलवान् बलसंवृतः।
बलान्नयसि मामेवं ततः किं ते करोम्यहम्॥११॥
ऋषिरुवाच ॥१२॥
इत्युक्तः सोऽभ्यधावत्तामसुरो धूम्रलोचनः।
हुंकारेणैव तं भस्म सा चकाराम्बिका ततः॥१३॥
अथ क्रुद्धं महासैन्यमसुराणां तथाम्बिका।
ववर्ष सायकैस्तीक्ष्णैस्तथा शक्तिपरश्वधैः॥१४॥
ततो धुतसटः कोपात्कृत्वा नादं सुभैरवम्।
पपातासुरसेनायां सिंहो देव्याः स्ववाहनः॥१५॥
कांश्चित् करप्रहारेण दैत्यानास्येन चापरान्।
आक्रम्य चाधरेणान्यान् स जघान महासुरान्॥१६॥
केषांचित्पाटयामास नखैः कोष्ठानि केसरी।
तथा तलप्रहारेण शिरांसि कृतवान् पृथक्.॥१७॥
विच्छिन्नबाहुशिरसः कृतास्तेन तथापरे।
पपौ च रुधिरं कोष्ठादन्येषां धुतकेसरः॥१८॥
क्षणेन तद्बलं सर्वं क्षयं नीतं महात्मना।
तेन केसरिणा देव्या वाहनेनातिकोपिना॥१९॥
श्रुत्वा तमसुरं देव्या निहतं धूम्रलोचनम्।
बलं च क्षयितं कृत्स्नं देवीकेसरिणा ततः॥२०॥
चुकोप दैत्याधिपतिः शुम्भः प्रस्फुरिताधरः।
आज्ञापयामास च तौ चण्डमुण्डौ महासुरौ॥२१॥
हे चण्ड हे मुण्ड बलैर्बहुभिः परिवारितौ।
तत्र गच्छत गत्वा च सा समानीयतां लघु॥२२॥
केशेष्वाकृष्य बद्ध्वा वा यदि वः संशयो युधि।
तदाशेषायुधैः सर्वैरसुरैर्विनिहन्यताम्॥२३॥
तस्यां हतायां दुष्टायां सिंहे च विनिपातिते।
शीघ्रमागम्यतां बद्ध्वा गृहीत्वा तामथाम्बिकाम्॥ॐ॥२४॥
॥ इतिश्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये धूम्रलोचनवधो नाम षष्ठोऽध्यायः ॥
छठे अध्याय कथा का सारांश :
- सुग्रीव नामक दूत से देवी की प्रतिज्ञा वाली संदेश सुनकर शुम्भ और निशुम्भ अत्यंत क्रोधित हुआ।
- सेनापति धूम्रलोचन को सैनिकों के साथ जाकर केशों को पकड़कर घसीटते हुये लाने की आज्ञा के साथ ही यह भी कहा कि यदि देवता आदि कोई भी रोके तो उसकी हत्या कर देना।
- धूम्रलोचन 60000 सैनिकों के साथ देवी के पास आया और देवी को स्वेच्छा से चलने के लिये कहा।
- देवी के मना करने पर कहने लगा कि यदि स्वेच्छा से नहीं चलोगी तो केशों को पकड़कर घसीटते हुये ले चलूंगा।
- ऐसा कहकर धूम्रलोचन देवी की और लपका।
- देवी ने हुंकार मात्र से ही धूम्रलोचन को भस्म कर दिया।
- उसकी विशाल सेना फिर भी युद्ध करने लगी।
- देवी का वाहन सिंह भी उन असुरों पर टूट पड़ा और तुरंत ही सारी सेना समाप्त हो गई।
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ सुशांतिर्भवतु ॥ सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु ॥
आगे सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती के अनुगमन कड़ी दिये गये हैं जहां से अनुसरण पूर्वक कोई भी अध्याय पढ़ सकते है :
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