अप्रतिरथ सूक्त – Apratirath Suktam

अप्रतिरथ सूक्त – Apratirath Suktam

वेदों में इंद्र को महान पराक्रमी देवता बताया गया है। इंद्र की स्तुति से सम्बंधित अनेकों ऋचायें वेदों में मिलती है। इंद्र के लिये यजुर्वेद में एक विशेष सूक्त भी है जिसे अप्रतिरथ सूक्त कहा जाता है। रुद्राष्टाध्यायी में भी जो तृतीय अध्याय है वो अप्रतिरथ सूक्त ही है। इस आलेख में अप्रतिरथ सूक्त दिया गया है।

  • यजुर्वेद के सत्रहवें अध्याय में ऋचा ३३ से लेकर ४९ तक जो १७ ऋचायें हैं वो इंद्र की विशेष स्तुति है।
  • इंद्र की स्तुति वाली इस ऋचा का नाम अप्रतिरथ सूक्त है।
  • अर्थात वेद में मिलने वाला इंद्र स्तोत्र अप्रतिरथ सूक्त ही है।
  • रुद्राष्टाध्यायी में तीसरा अध्याय अप्रतिरथ सूक्त ही है।

अप्रतिरथ का अर्थ

  • अप्रति का तात्पर्य है जिसके समान दूसरा न हो, रथ योद्धा का पर्याय माना गया है।
  • अर्थात अप्रतिरथ का अर्थ है जिस योद्धा के समान दूसरा कोई योद्धा न हो।
  • इस सूक्त का भावात्मक पक्ष यह है कि यदि युद्ध/विवाद आदि में विजय प्रदायक है।
  • अप्रतिरथ सूक्त के देवता इन्द्र और ऋषि अप्रतिरथ हैं। ऋषि के नाम से भी इसको अप्रतिरथ सूक्त कहा गया है।
मंगल श्लोक पाठ
रुद्राष्टाध्यायी

॥ इति शुक्लयजुर्वेदीयअप्रतिरथसूक्तं सम्पूर्णम्॥ शुक्ल यजुर्वेद १७ /३३-४७

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