सप्त घृत मातृका पूजन विधि – सप्तमातृका | 7 mothers shloka

सप्त घृत मातृका पूजन विधि

षोडश मातृका पूजन के उपरांत सप्तघृत मातृका की पूजा और वसोर्द्धारा की जाती है। यद्यपि मिथिला में भित्ति, फलक आदि पर गोमय रक्षिका निर्मित करके ही षोडश मातृका पूजन करके श्री पूजन की पद्धति/परम्परा है। किन्तु कर्मकांड की विभिन्न पुस्तकों/पद्धतियों में सप्तघृत मातृका पूजा विधि और वसोर्द्धारा प्राप्त होती है। इस आलेख में सप्तघृत मातृका चक्र और पूजा विधि दी गयी है।

षोडश मातृका पूजन के बाद सप्त घृत मातृका की पूजा की जाती है। यहाँ सप्तघृत मातृका मंडल दिया गया है जो सिंदूर में घी मिलाकर बनायी जाती है। एवं इसे उर्ध्व स्थापित किया जाता है।

सप्त घृत मातृका नाम – श्री, लक्ष्मी, धृति, मेधा, स्वाहा, प्रज्ञा और सरस्वती इन सातों देवियों का पूजन सप्त घृत मातृका वेदी में किया जाता है। मातृका पूजन वामावर्त अर्थात अप्रदक्षिण या अपसव्य क्रम से करने की विधि है। नीचे के सातों बिंदुओं पर दक्षिण से आरम्भ करके उत्तर में समापन करना चाहिये।

वसोर्धारा - सप्तमातृका पूजन विधि
वसोर्धारा

ध्यातव्य

वर्त्तमान युग में स्वछंद विधि से कर्मकांड करने वाले यजमान और पंडितों की संख्या में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हो गयी है। इस कारण क्या विधि है, क्या क्रम है, क्या नियम है आदि किसी प्रकार का विचार किये बिना स्वेच्छाचार देखने को मिलता है। बहुधा आवश्यक न हो तो भी सभी पूजाओं में अनेकानेक वेदी निर्मित की जाती है और उसके साथ ही मातृका वेदियां भी बनाई जाती है। मातृका पूजन तो बहुत विस्तार से कर लिया जाता है किन्तु मातृका पूजा व वसोर्द्धारा जिस विधान का अंग है उस विधान का ही त्याग कर दिया जाता है।

प्रश्न : सप्तघृत मातृका का पूजन षोडश मातृका का पूजन करने के बाद ही क्यों करें ?
उत्तर : क्योंकि यही क्रम है और पद्धतियों में दिया गया है।

अनुत्तरित प्रश्न : फिर मातृका पूजन वृद्धि श्राद्ध का अंग है और वसोर्द्धारा के उपरांत वृद्धि श्राद्ध किया जाना चाहिये और पद्धतियों/शास्त्रों में विधान वर्णित है तो वृद्धिश्राद्ध/नान्दीमुख श्राद्ध क्यों नहीं किया जाता है ?

सप्तघृत मातृका पूजन मंत्र

१. श्री – ॐ मनसः काममाकूतिं वाचं सत्यमशीमहि । पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः॥ ॐ भूर्भुवः स्वः श्रिये इहागच्छ इह तिष्ठ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः नमः श्रियै नमः॥

२. लक्ष्मी – ॐ श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम्। इष्णन्निषाणामुं मऽइषाण सर्व्वलोकं मऽइषाण॥ ॐ भूर्भुवः स्वः लक्ष्मि इहागच्छ इह तिष्ठ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः लक्ष्म्यै नमः॥

३.धृति – ॐ भद्रं कर्ण्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्ष भिर्यजत्राः। स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा ᳪ सस्तनूभिर्व्य शेमहि देवहितं यदायुः॥ ॐ भूर्भुवः स्वः धृते इहागच्छ इह तिष्ठ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः धृत्यै नमः॥

४. मेधा – ॐ मेधां मे व्वरुणो ददातु मेधामग्निः प्रजापतिः। मेधामिन्द्रश्च्च व्वायुश्च मेधा धाता दधातु मे स्वाहा॥ ॐ भूर्भुवः स्वः मेधे इहागच्छ इह तिष्ठ॥ ॐ मेधायै नमः॥

५. स्वाहा – ॐ प्राणाय स्वाहा ऽपानाय स्वाहा व्यानाय स्वाहा चक्षुषे स्वाहा श्रोत्राय स्वाहा वाचे स्वाहा मनसे स्वाहा ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहे इहागच्छ इह तिष्ठ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहायै नमः॥

६. प्रज्ञा – ॐ आयङ्गौः पृश्निरक्रमीदसदन्न्मातरं पुरः पितरञ्च प्रयन्त्स्वः॥ ॐ भूर्भुवः स्वः प्रज्ञे इहागच्छ इह तिष्ठ ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः प्रज्ञायै नमः ॥

७. सरस्वती – ॐ पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवति। यज्ञं व्यष्टुधियावसुः ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः सरस्वति इहागच्छ इह तिष्ठ॥ ॐ सरस्वत्यै नमः ॥

प्राण-प्रतिष्ठा निम्नलिखित मंत्र द्वारा :-

ॐ मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तन्नोत्वरिष्टं यज्ञ ᳪ समिमं दधातु। विश्वेदेवा स इह मादयंतामों३ प्रतिष्ठ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः श्रियादि सप्तघृतमातरः इहागच्छत इह तिष्ठत॥

सप्तघृत मातृका पूजन मंत्र – ॐ भूर्भुवः स्वः श्रियादि सप्तघृतमातृभ्यो नमः ॥

पूजा मंत्र

  • जल : एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि ॐ भूर्भुवः स्वः श्रियादि सप्तघृतमातृभ्यो नमः ॥
  • गंध (चंदन) : इदं गन्धं ॐ भूर्भुवः स्वः श्रियादि सप्तघृतमातृभ्यो नमः ॥
  • सिंदूर : इदं सिन्दूरं ॐ भूर्भुवः स्वः श्रियादि सप्तघृतमातृभ्यो नमः ॥
  • पुष्प : इदं पुष्पं ॐ भूर्भुवः स्वः श्रियादि सप्तघृतमातृभ्यो नमः ॥
  • अक्षत : इदं अक्षतं ॐ भूर्भुवः स्वः श्रियादि सप्तघृतमातृभ्यो नमः ॥
  • धूप : एष धूपः ॐ भूर्भुवः स्वः श्रियादि सप्तघृतमातृभ्यो नमः ॥
  • दीप : एष दीपः ॐ भूर्भुवः स्वः श्रियादि सप्तघृतमातृभ्यो नमः ॥
  • नैवेद्य : इदं नैवेद्यं ॐ भूर्भुवः स्वः श्रियादि सप्तघृतमातृभ्यो नमः ॥
  • जल : इदमाचमनीयं पुनराचमनीयं ॐ भूर्भुवः स्वः श्रियादि सप्तघृतमातृभ्यो नमः ॥

प्रार्थना – ॐ यदङ्गत्वेन भो देव्यः पूजिता विधिमार्गतः। कुर्वन्तु कार्यमखिलं निर्विघ्नेन क्रतूद्भवम्॥

वसोर्द्धारा

वाजसनेयी वसोर्द्धारा मंत्र – ॐ व्वसोः पवित्रमसि शतधारं व्वसोः पवित्रमसि सहस्रधारम् । देवस्त्वा सविता पुनातु व्वसोः पवित्रेण शतधारेण सुप्वा ॥ विभक्त धाराओं के मध्य में गुड़ द्वारा (फलादि से ग्रहण करके) एकीकरण – ॐ कामधुक्षः ॥

छन्दोगी वसोर्द्धारा मंत्र – ॐ एतमुत्यं मदच्युतं शतधारं वृषभं दिवो दुहं विश्वावसूनी बिभ्रतं। सहस्रधारं वृषभं पयोदुहं प्रियं देवाय जन्मने। ऋतेन य ऋत जातो विवावृधे राजा जातो देवऋतं बृहत्॥

आयुष्यमन्त्रपाठ

ॐ यदायुष्यं चिरं देवाः सप्तकल्पान्तजीविषु । ददुस्तेनायुषा युक्ता जीवेम शरदः शतम् ॥
दीर्घा नागा नगा नद्योऽनन्ताः सप्तार्णवा दिशः । अनन्तेनायुषा तेन जीवेम शरदः शतम् ॥
सत्यानि पश्चभूतानि विनाशरहितानि च । अविनाश्यायुषा तद्वज्जीवेम शरदः शतम् ॥
ॐ आयुष्यं व्वर्चस्य ᳪ रायस्पोषमौद्भिदम् । इद ᳪ हिरण्य व्वर्च्चस्व ज्जैत्रायाविशता द्रुमाम् ॥
ॐ न तद्द्रक्षा ᳪ सि न पिशाचास्तरन्न्ति देवानामोजः प्रथमज ᳪ ह्येतत् ।
यो विभर्त्ति दाक्षायणः हिरण्ण्य स देवेषु कृणुते दीर्घमायुः स मनुष्येषु कृणुते दीर्घमायुः ॥

सप्त घृत मातृका पूजन विधि अनुसार संपन्न करने के बाद नान्दीमुख श्राद्ध करना चाहिये। नान्दीमुख श्राद्ध को आभ्युदयिक श्राद्ध अथवा वृद्धि श्राद्ध भी कहा जाता है। मातृका पूजन (षोडश और सप्तघृत मातृका) वास्तव में वृद्धिश्राद्ध का पूर्वाङ्ग होने के कारण ही कर्तव्य होता है।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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