दुर्गा सप्तशती पाठ अध्याय 8

दुर्गा सप्तशती पाठ अध्याय 8

चण्ड-मुण्ड का वध होने के पश्चात् शुम्भ-निशुम्भ असुरों की विशाल सेना लेकर देवी से युद्ध करने गया। युद्धभूमि में ही एक अन्य विशेष दैत्य जिसका नाम रक्तबीज था वो भी उपस्थित हुआ किन्तु अंततः काल का ग्रास बन गया। आठवें अध्याय में उवाचादि सहित कुल ६३ श्लोक हैं जिसमें से १ उवाच हैं, १ अर्द्धश्लोक और ६१ श्लोक हैं। प्रथम अध्याय से आठवें अध्याय पर्यन्त श्लोकों की कुल संख्या 502 होती है। इस आलेख में दुर्गा सप्तशती का रक्तबीज वध नामक अष्टम अध्याय दिया गया है।

दुर्गा सप्तशती पाठ अध्याय 8

रक्तबीज वध

॥ ध्यानम् ॥

श्री दुर्गा सप्तशती अष्टम अध्याय का सारांश :

  • विशाल सेना सहित चण्ड और मुण्ड के संहार को जानकर शुम्भ-निशुम्भ अत्यंत क्रोधित हुआ।
  • क्रोधित शुम्भ और निशुम्भ ने सम्पूर्ण सेना को युद्ध के लिये तैयार होने की आज्ञा दी।
  • उदायुध नामक छियासी असुर सेनापति, कम्बू नामक चौरासी सेनापति, कोटि वीर्य नामक पचास सेनापति, धौम्रकुल नाम के सौ सेनापति, कालक, दौहृद, मौर्य और कालकेय आदि के साथ विशाल सेना लेकर शुम्भ और निशुम्भ देवी से युद्ध करने आया।
  • देवी ने भयंकर धनुष टंकार किया और सिंह दहाड़ने लगा जो अत्यंत भयङ्कर था और सर्वत्र गूंज रहा था।
देव्यथर्वशीर्ष
दुर्गा सप्तशती पाठ
  • विशाल असुर सेना ने चारों ओर से देवी को घेर लिया तो देवी के शरीर में पहले से उपस्थित सभी देवताओं की शक्तियां भी युद्ध करने के लिये बाहर निकल आयी।
  • फिर अपरजिता देवी ने भगवान शङ्कर को दूत बनाकर शुम्भ-निशुम्भ के पास भेजा जिस कारण देवी का एक नाम शिवदूती हुआ।
  • भगवान शिव ने असुरों से कहा यदि कल्याण चाहते हो तो देवताओं को उनका राज्य सौंपकर पाताल चले जाओ अन्यथा प्राण गंवाओ।
  • संदेश सुनकर असुरों को और क्रोध आया एवं उन्होंने आक्रमण शुरू कर दिया।
  • देवी की शक्तियों और असुरों की सेना में भयङ्कर युद्ध होने लगा।
  • असुर सेना तीतर-बितर होकर भागने लगी तो रक्तबीज नामक असुर युद्धभूमि में उपस्थित हुआ।
दुर्गा सप्तशती
दुर्गा सप्तशती
  • युद्ध भूमि में रक्तबीज के रक्त गिरने से और बहुत सारे उसी के सामान असुर उत्पन्न होने लगे धीरे-धीरे पूरी पृथ्वी पर छा गए।
  • फिर चण्डिका ने काली से कहा मैं प्रहार करती हूँ और तुम इसका रक्तपान करती रहो।
  • ऐसा कहकर देवी रक्तबीज पर आक्रमण करने लगी और गिरने वाले रक्त को काली पीने लगी और अन्य असुरों का भक्षण करने लगी, जिससे कुछ समय बाद उसका शरीर रक्तहीन होकर निश्चेष्ट हो गया।
  • देवता हर्षित हो गये और मातृकायें रक्तपान करते हुये नाचने लगी।

ध्यातव्य : बलि प्रथा का विरोध करने वालों को स्मरण रखना चाहिये कि आसुरी तत्वों का विनाश भी आवश्यक होता है।

॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः सुशांतिर्भवतु सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु

आगे सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती के अनुगमन कड़ी दिये गये हैं जहां से अनुसरण पूर्वक कोई भी अध्याय पढ़ सकते है :

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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