मंगल शब्द का अर्थ तो शुभ होता है किन्तु ज्योतिष में जिस ग्रह का नाम मंगल है उसे अशुभ अर्थात पाप या क्रूर ग्रह कहा गया है। मंगल से संबंधित एक और विशेष दोष है जिसका विवाह और दाम्पत्य जीवन पर प्रभाव होता है उसका नाम है मंगली दोष। स्वभावतः मंगल क्रूर ग्रह ही कहा गया है किन्तु कुंडली में परिस्थितिवश शुभ भी हो सकता है। शुभत्व प्राप्ति हेतु पूजा-जप, हवन, स्तोत्र आदि किया जाता है। स्तोत्रों में देवताओं के 108 नाम अर्थात अष्टोत्तरशत नामों का भी विशेष होता है। यहां मंगल का अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र दिया गया है।
मंगल अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र – Mangal 108 names
ॐ महीसुतो महाभागो मंगलो मंगलप्रदः ।
महावीरो महाशूरो महाबलपराक्रमः ॥१॥
महारौद्रो महाभद्रो माननीयो दयाकरः ।
मानदोऽमर्षणः क्रूरः तापपापविवर्जितः ॥२॥
सुप्रतीपः सुताम्राक्षः सुब्रह्मण्यः सुखप्रदः ।
वक्रस्तम्भादिगमनो वरेण्यो वरदः सुखी ॥३॥
वीरभद्रो विरूपाक्षो विदूरस्थो विभावसुः ।
नक्षत्रचक्रसञ्चारी क्षत्रपः क्षात्रवर्जितः ॥४॥
क्षयवृद्धिविनिर्मुक्तः क्षमायुक्तो विचक्षणः ।
अक्षीणफलदः चक्षुर्गोचरष्षुभलक्षणः ॥५॥
वीतरागो वीतभयो विज्वरो विश्वकारणः ।
नक्षत्रराशिसञ्चारो नानाभयनिकृन्तनः ॥६॥
कमनीयो दयासारः कनत्कनकभूषणः ।
भयघ्नो भव्यफलदो भक्ताभयवरप्रदः ॥७॥
शत्रुहन्ता शमोपेतः शरणागतपोषकः ।
साहसः सद्गुणाध्यक्षः साधुः समरदुर्जयः ॥८॥
दुष्टदूरः शिष्टपूज्यः सर्वकष्टनिवारकः ।
दुश्चेष्टवारको दुःखभञ्जनो दुर्धरो हरिः ॥९॥
दुःस्वप्नहन्ता दुर्धर्षो दुष्टगर्वविमोचकः ।
भरद्वाजकुलोद्भूतो भूसुतो भव्यभूषणः ॥१०॥
रक्ताम्बरो रक्तवपुर्भक्तपालनतत्परः ।
चतुर्भुजो गदाधारी मेषवाहो मिताशनः ॥११॥
शक्तिशूलधरश्शक्तः शस्त्रविद्याविशारदः ।
तार्किकः तामसाधारः तपस्वी ताम्रलोचनः ॥१२॥
तप्तकाञ्चनसंकाशो रक्तकिञ्जल्कसन्निभः ।
गोत्राधिदेवो गोमध्यचरो गुणविभूषणः ॥१३॥
असृजंगारकोऽवन्तीदेशाधीशो जनार्दनः ।
सूर्ययाम्यप्रदेशस्थो यौवनो याम्यदिऽग्मुखः ॥१४॥
त्रिकोणमण्डलगतो त्रिदशाधिपसन्नुतः ।
शुचिः शुचिकरः शूरो शुचिवश्यः शुभावहः ॥१५॥
मेषवृश्चिकराशीशो मेधावी मितभाषणः ।
सुखप्रदः सुरूपाक्षः सर्वाभीष्टफलप्रदः ॥१६॥
॥ इति अङ्गारकाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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