पितृ सूक्त

पितृ सूक्त

जिस तरह से विभिन्न देवताओं के सूक्त होते हैं उसी तरह पितरों के लिये भी विभिन्न वेदों में सूक्त हैं जिसे पितृसूक्त कहा जाता है। जिसमें से अन्य सभी सूक्तों की तरह ही शुक्ल यजुर्वेदोक्त पितृसूक्त ही मुख्य रूप से प्रयुक्त होता है। सभी प्रकार के श्राद्धों में पितृसूक्त का विशेष प्रयोग होता है। पितृसूक्त पितरों की प्रसन्नता और कृपाप्राप्ति के लिये पढ़ा जाता है, किन्तु पितृसूक्त का पाठ आवश्यकता पड़ने पर ही करना चाहिये। यहां यजुर्वेदोक्त और ऋग्वेदोक्त दोनों पितृसूक्त दिये गये हैं जो विशेष लाभकारी है।

किन्तु इसके संबंध में एक आश्चर्यजनक तथ्य ये है की यदि आप अंतर्जाल पर पितृसूक्त ढूंढते हैं तो अधिकांशतः ऋग्वेदोक्त पितृसूक्त ही उपलब्ध होते हैं। कदाचित शुक्लयजुर्वेदोक्त पितृसूक्त दिखे भी तो वो अशुद्ध होता है और सब एक-दूसरे की अशुद्ध प्रति ही प्रस्तुत करते हैं।

क्योंकि ये सभी दशकों अनधिकृत रूप से जनमानस को भ्रमित करने का कुप्रयास करते रहे हैं इसलिये यह स्थिति देखी जा रही है। यहाँ शुक्ल यजुर्वेदोक्त (माध्यन्दिन शाखीय) पितृ सूक्त शुद्ध करके देने का प्रयास किया गया है।

पितृसूक्त
पितृसूक्त

शुक्ल यजुर्वेदोक्त पितृसूक्त

शुक्ल यजुर्वेदोक्त (माध्यन्दिन शाखीय) पितृ सूक्त में ३ ऋचायें हैं जो उन्नीसवें अध्याय की ४९, ५० और ५१ वीं है।

पितृ सूक्त पाठ विधि

  • पितृ सूक्त जब-कभी भी नहीं पढ़ना चाहिये।
  • जिस समय पितृतर्पण-श्राद्ध कर रहे हों तभी पितृसूक्त का पाठ करना चाहिये।
  • हमेशा पवित्र तन और मन से ही पितृ सूक्त का पाठ करना चाहिये।
  • पितृ सूक्त का पाठ दक्षिणाभिमुख होकर करना चाहिये।

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पितृ सूक्त पाठ विधि
  • पितृ सूक्त का पाठ करने से पितरों को विशेष तृप्ति प्राप्त होती है।
  • कुण्डली में यदि पितृ दोष हो तो पितृसूक्त का पाठ लाभकारी होता है।
  • पितरों की प्रसन्नता से धन, संपत्ति, वंश आदि की वृद्धि होती है।
  • पितरों की प्रसन्नता से संकटों का निस्तारण होता है।

उदीरतामवर ऽउत्परास ऽउन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः ।
असुं य ऽईयुरवृका ऽऋतज्ञास्ते नोऽवन्तु पितरो हवेषु ॥

अंगिरसो नः पितरो नवग्वा ऽअथर्वाणो भृगवः सोम्यासः।
तेषां वय ᳪ सुमतौ यज्ञियानामपि भद्रे सौमनसे स्याम॥

ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासोऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः ।
तेभिर्यमः स ऽ रराणो हवी ᳪ ष्युशन्नुशद्भिः प्रतिकाममत्तु ॥

॥ इति शुक्लयजुर्वेदोक्तपितृसूक्तं संपूर्णं ॥

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