दुर्गा सप्तशती पाठ अध्याय 5

दुर्गा सप्तशती पाठ अध्याय 5

उत्तर चरित्र का आरंभ पंचम अध्याय से होता है। पंचम अध्याय में पुनः दो बलवान असुर शुम्भ और निशुम्भ का प्रसंग है जिसने देवताओं को परास्त कर दिया था और सर्वत्र अपना अधिकार स्थापित कर लिया था। उसके बाद देवताओं को स्मृति हुयी की पूर्व में देवी ने महिषासुर वध के उपरांत प्रसन्न होकर वरदान दिया था, तो देवताओं ने देवी की स्तुति किया। पंचम अध्याय में उवाचादि सहित कुल श्लोक १२९ हैं जिसमें से ९ उवाच हैं, ६६ त्रिपाद हैं और श्लोक ५४ हैं। प्रथम अध्याय से पंचम अध्याय तक कुल श्लोक 388 होते हैं। यहां पंचम अध्याय दिया गया है।

उत्तर चरित्र के ऋषि रुद्र, देवता महासरस्वती, छन्द अनुष्टुप् शक्ति भीमा, बीज भ्रामरी, तत्व सूर्य और स्वरूप सामवेद है।

देवताओं द्वारा देवी की स्तुति, चण्ड-मुण्ड के मुख से अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना।

॥ विनियोगः ॥

॥ ध्यानम् ॥

पंचम अध्याय कथा का सारांश :

  • पूर्व काल में शुम्भ और निशुम्भ नामक दो असुर बहुत बलशाली थे जिन्होंने सभी देवताओं को भी परास्त करके उनके पदों पर अधिकार कर लिया।
  • दुःखी देवताओं को महिषासुर की घटना का स्मरण हुआ और देवी अपराजिता का दिया वरदान भी याद आया।
  • सभी देवताओं ने ये विचार करके कि देवी अपराजिता ने हमें सभी संकटों से रक्षा का वर दिया है हिमालय पर जाकर देवी की स्तुति करने लगे।
  • उसी समय देवी पार्वती गङ्गा स्नान करने आयी। देवताओं की स्तुति सुनकर देवी पार्वती के शरीर से शिवा बाहर निकली, जिनको कौशिकी नाम से जाना गया।
  • शिवा के बाहर आने से पार्वती का रंग काला हो गया और उनका नाम कालिका देवी हो गया।
दुर्गा सप्तशती पाठ
दुर्गा सप्तशती पाठ
  • शुम्भ निशुम्भ के दूत चण्ड-मुण्ड देवताओं का पीछा करते हुये जब हिमालय पर आये तो उन्होंने माता अम्बिका के दिव्य स्वरूप को देखा और शुम्भ निशुम्भ के पास जाकर उसने बताया कि वो सुन्दर देवी शुम्भ निशुम्भ के पास होना चाहिये।
  • उसने शुम्भ निशुम्भ को समझाया कि आपके पास सभी दुर्लभ रत्न हैं तो स्त्रियों में दुर्लभ रत्न भी आपके पास ही होना चाहिये – एवं दैत्येन्द्र रत्‍नानि समस्तान्याहृतानि ते।स्त्रीरत्‍नमेषा कल्याणी त्वया कस्मान्न गृह्यते॥
  • फिर शुम्भ निशुम्भ ने बलशाली सुग्रीव को अपना दूत बनाकर भेजा।
  • सुग्रीव ने अपराजिता देवी के पास जाकर शुम्भ-निशुम्भ का महिमागान करते हुये देवी शुम्भ-निशुम्भ के वरण करने का प्रस्ताव दिया।
  • देवी ने कहा तुम्हारी बातें सही है किन्तु मेरी पुरानी प्रतिज्ञा है कि जो मुझे परास्त करेगा वही मेरा भर्ता बनेगा।
  • इस पर सुग्रीव ने समझाया कि शुम्भ निशुम्भ ने देवताओं को भी परास्त कर दिया है आप तो एक स्त्री मात्र हो। यदि सम्मान से न गयी तो बाद में बाल से घसीटते हुये शुम्भ-निशुम्भ ले जायेंगे जिससे भारी अपमानित होओगी।
  • इस पर देवी ने पुनः कहा कि तुम्हारा कथन सत्य है, हमनें बलशाली शुम्भ-निशुम्भ के बारे में जाने बिना ही ऐसी प्रतिज्ञा कर ली है तो अब करें क्या। जाकर शुम्भ-निशुम्भ को मेरी प्रतिज्ञा बता दो फिर वो जैसा उचित समझे करे।

॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः सुशांतिर्भवतु सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु

आगे सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती के अनुगमन कड़ी दिये गये हैं जहां से अनुसरण पूर्वक कोई भी अध्याय पढ़ सकते है :

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

Leave a Reply