श्राद्ध में क्या करना चाहिए – श्राद्ध की महत्वपूर्ण जानकारी

श्राद्ध में क्या करना चाहिए – श्राद्ध की महत्वपूर्ण जानकारी

श्राद्ध कर्मकांड का प्रमुख अंग हैं और अनेकानेक अवसरों पर अनेकानेक श्राद्ध करने की शास्त्रों में आज्ञा दी गयी है। यहां तक कि विभिन्न संस्कारों-पूजा-यज्ञादि में भी वृद्धि श्राद्ध कर्तव्य होता है। इस आलेख में किसी भी श्राद्ध के दिन कर्तव्य अर्थात क्या करना चाहिये उसकी विस्तृत जानकारी दी गयी है। इसमें श्राद्ध के दिन किये जाने वाले कार्यों को तीन भागों में विभाजित करके बताया गया है जिससे समझने में आसान है। साथ ही साथ शास्त्रों के प्रमाण भी दिये गये हैं जिससे विश्वनीयता में भी वृद्धि हो सके।

श्राद्ध में क्या करना चाहिए – श्राद्ध की महत्वपूर्ण जानकारी

श्राद्ध एक महत्वपूर्ण कर्म है जिसमें पितरों के प्रति अपने दायित्व का निर्वहन किया जाता है। श्राद्ध में सर्वाधिक आवश्यकता श्रद्धा की होती है यदि श्रद्धा न हो तो सोने के थाली आदि में 56 प्रकार का ब्राह्मण भोजन कराने पर भी नष्ट होगा या आसुरी होगा और यदि श्रद्धा है तो पत्ते पर सामान्य भोज्य देकर भी कराया गया ब्राह्मण भोजन पितरों के लिये विशेष तृप्तिकारक होगा अर्थात उत्तम श्राद्ध होता।

श्राद्ध के दिन श्राद्धकर्ता को सूर्योदय पूर्व जगकर नित्यकर्म करना चाहिये ज्ञात न हो तो कम-से-कम संक्षिप्त विधि ब्राह्मणों से ज्ञात कर लें। श्राद्ध के दिन दातुन का निषेध है अतः दातुन-ब्रस न करे –

श्राद्ध कर्ता अपना चित्त श्राद्ध में लगाकर रखे न कि अन्य व्यवस्था, मनोरंजन आदि अन्य कार्यों में।

श्राद्ध में क्या करना चाहिए
श्राद्ध में क्या करना चाहिए

श्राद्ध निमंत्रण

निमंत्रण स्वयं दे अथवा किसी पवित्र स्वजातीय व्यक्ति को प्रतिनिधि बनाकर भिजवाये। कुछ जगहों पर ऐसे लोग भी हैं जो स्वजातीय भोज (भइयारी) का निमंत्रण भी ब्राह्मणों के द्वारा भिजवाते हैं और अपने पितरों को नरक का भागी बनाते हैं। ब्राह्मणों की सदा सेवा करनी चाहिये और भूल से भी ब्राह्मणों से सेवा नहीं लेनी चाहिये। पुरोहित सेवावृत्ति नहीं करते फिर उनसे सेवा लेना निश्चय ही नरक का द्वार खोलना है।

ब्राह्मणों से सेवा लेने पर तो इंद्रपदप्राप्त व्यक्ति का भी पतन हो जाता है सामान्य मनुष्य की तो बात ही क्या है। जब महाराज नहुष इंद्र पद पर विराजमान हुये तो उन्होंने इंद्राणी शची रानी बनने का प्रस्ताव दिया था।

इन्द्राणी ने इस शर्त (इंद्र द्वारा बताने पर) के साथ प्रस्ताव स्वीकार किया कि यदि उत्तम ब्राह्मणों (सप्तर्षियों) द्वारा उठाये गए पालकी में बैठकर आवें तो मुझे प्राप्त कर सकते हैं और उसने अगस्त्य आदि उत्तम ब्राह्मणों (सप्तर्षियों) से उठाये गए पालकी में बैठा जिससे उसका पुण्य नष्ट हो गया और पतन हो गया एवं शची से विवाह भी नहीं कर पाया।

ब्राह्मण सत्कार

यद्यपि वर्तमान में सपात्रक श्राद्ध नहीं होता है इसलिये जब निमंत्रित ब्राह्मण उपस्थित तो उनका व्यावहारिक सत्कार ही करे। उत्तम आसन पर बैठाकर पैर धोये। ब्राह्मण का पैर धोना पितरों के लिये प्रसन्नता प्रदायक होता है। प्रायः ऐसा समझा जाता है कि ब्राह्मण का काम होता है और ब्राह्मण अपना काम करने के लिये आते हैं। किन्तु वास्तविकता यह है कि ब्राह्मण की पूजा करके ब्राह्मण को भोजन, दान, दक्षिणा आदि देने के लिये श्राद्ध में आवश्यकता होती है।

श्राद्ध
श्राद्ध

पाक कर्म

उपरोक्त क्रियाओं के पश्चात् ही पाककर्म का आरम्भ करना चाहिये, क्योंकि श्राद्ध कर्म का आरम्भ पाक से ही माना जाता है। यदि अशुद्ध भूमि में पाक किया जाय तो वह पाक भी कर्म के योग्य नहीं होगा, यदि नित्यकर्म करने से पहले पाक किया जाता है तो भी वह अनधिकृत कर्म या स्वेच्छाचार ही सिद्ध होता है।

  • तत्पश्चात ही पाक का आरम्भ करे।
  • पाककर्ता अन्य व्यक्ति भी हो सकता है लेकिन यह ध्यान रखना आवश्यक है कि पाककर्ता वही व्यक्ति बने जो कर्त्ता के किसी अक्षमता वाली स्थिति में श्राद्धकर्म का अगला अधिकारी हो।
  • पाककर्ता भी कर्ता की ही भांति पूर्व दिन से ही श्राद्ध कर्म के नियमों का पालन करे।
  • यदि पाक आरंभ होने से पूर्व सपिण्डादि में किसी की मृत्यु हो जाये तो पाकारम्भ न करे क्योंकि सम्पूर्ण अशौच की प्राप्ति हो जाएगी।
  • यदि पाकारम्भ कर लिया गया हो और संकल्प न हुआ हो और सपिण्ड में किसी की मृत्यु हो जाये तो उस पाक से होने वाले श्राद्ध में अशौच प्रभावी नहीं होगा क्योंकि श्राद्ध का आरम्भ पाक ही कहा गया है।
  • चूंकि पाक से ही श्राद्ध का आरम्भ होता है इसलिये द्वादशाह के दिन भी पूर्वाह्न में कदापि पाकारम्भ न करे, कई संपन्न व्यक्ति 3-4 बजे ही भोज का आरम्भ करने के लिये पूर्वाह्न 6:00 am – 8:00 am में ही श्राद्ध भी आरम्भ करते हैं जो श्राद्धविधि के नियम का उल्लंघन है।
  • पाक-कर्म पत्नी भी कर सकती है। प्रेत श्राद्ध (एकादशाह-द्वादशाह में बहुत लोग जुटते हैं इस कारण पत्नी मर्यादा में रहकर श्राद्धस्थला पर नहीं जाती, लेकिन पार्वण, क्षयाह, महालय आदि श्राद्धों में पत्नियां पति का सहयोग करे। बिना पत्नी के पुरुष आधा ही माना जाता है।

श्राद्ध में तुलसी प्रयोग

श्राद्ध में तुलसी का उपयोग होता भी है और निषिद्ध भी है। तुलसी पौधे की छाया (निकटता) श्राद्ध के लिये प्रशस्त है लेकिन श्राद्ध में तुलसी पत्र का उपयोग अर्थात अर्चन, भोजन, पिण्ड आदि पर देना निषिद्ध है। अर्थात श्राद्ध स्थला में तुलसी लगाये, तुलसी की छाया में विष्णु पूजन कर सके तो करे। किन्तु श्राद्ध कर्म में अन्य किसी स्थान पर तुलसी का प्रयोग न करे।

तुलसी का प्रयोग होना श्राद्ध भोज के सन्दर्भ में भी विचारणीय है। श्राद्ध का भोजन करना चाहिये या नहीं इस विषय में अटपटा व्यवहार कर्मकांडी ब्राह्मणों द्वारा भी होते पाया जाता है। अधिकांशतः एकादशाह के भोज सामग्री में तुलसी नहीं छोड़ा जाता है किन्तु द्वादशाह के भोजन सामग्री में तुलसी दल छोड़ा जाता है। तुलसी दल छोड़ने का तात्पर्य यह हो जाता है कि वह अब श्राद्ध का भोज नहीं है प्रसाद हो गया। श्राद्ध का भोज तभी तक मान्य है जब तक भोज्य पदार्थों में तुलसी दल न छोड़ा जाय।

श्राद्ध का भोजन करना चाहिए या नहीं शास्त्र क्या कहता है

श्राद्ध का आरम्भ

नान्दीमुख श्राद्ध के लिये प्रातः काल या जातकांग होने पर रात्रि काल में भी करने की आज्ञा है। किन्तु एकोद्दिष्ट-पार्वण आदि श्राद्ध के लिये मध्याह्न और अपराह्न की ही आज्ञा है, प्रातः काल या पूर्वाह्न की नहीं।

  • अत्यावश्यक होने पर पूर्वाह्न में श्राद्ध की पूर्व व्यवस्था करके सङ्गव काल में आरम्भ किया जा सकता है। और यह स्थिति मात्र द्वादशाह को ही उत्पन्न होती है जब 14 मासिक श्राद्ध और सपिण्डन में 5 श्राद्ध करना होता है।
  • वो ब्राह्मण भी निंदा के पात्र हैं जो किसी भी कारण से शास्त्र विधि का परित्याग करके प्रातः काल द्वादशाह दिन का श्राद्ध आरम्भ कराते हैं।
  • श्राद्ध की तैयारी या व्यवस्था करना यजमान का कार्य होता है। यजमान सही से व्यवस्थित नहीं कर सकता अथवा समय अधिक व्यतीत होगा इसलिये समय की बचत हो ऐसा सोचकर ब्राह्मण स्वयं व्यवस्थित करते हैं।
  • किन्तु इसके अतिरिक्त यजमान ब्राह्मण से अन्य कोई कार्य न कराये। बहुत जगह यजमान का आसन तक भी ब्राह्मण ही लगाते हैं और यजमान आकर निर्लज्ज की तरह बैठ भी जाता है। ये यजमान और ब्राह्मण दोनों की अज्ञानता है।
  • यजमान और ब्राह्मण दोनों को एक बात अच्छी तरह समझने की आवश्यकता है कि ब्राह्मण को सेवा लेने के लिये आमंत्रित नहीं किया जाता अपितु ब्राह्मण की ही सेवा करने के लिये आमंत्रित किया जाता है।
  • ब्राह्मण से अधिकतम श्राद्ध की तैयारी मात्र ही करने दे, कल्याण चाहने वाला यजमान वो भी न कराये ब्राह्मण से दिशा-निर्देश मात्र ले, और व्यवस्थित करने के लिये बंधु-बांधवों का सहयोग ले।
  • ब्राह्मण के लिये यजमान स्वयं सुन्दर और स्वयं के आसन से ऊँचा आसन लगाये। ब्राह्मण से अपना आसन लगवाने वाला यजमान तो उल्टी गङ्गा बहाते हुये पितरों और स्वयं के लिये नरक का द्वार ही खोलता है।
  • शास्त्रों में बताई गयी विधि के अनुसार उचित काल में श्राद्ध का आरम्भ करे।
  • यद्यपि श्राद्ध की त्रयोदश क्रियायें बताई गयी है किन्तु वो सपात्रक श्राद्ध विषयक हैं अपात्रक श्राद्ध में 10-11 क्रियायें ही की जा सकती है। तदनुसार बताई गई या अपने देश में प्रचलित विधि से श्राद्ध करे।

भोजन

श्राद्धकर्ता और भोक्ता दोनों के लिये 1 बार ही भोजन करने का विधान है। श्राद्ध के दिन श्राद्ध करने वाले और भोजन करने वालों के लिये दुबारा भोजन करने का निषेध है इसलिये श्राद्धकर्ता उत्तम से उत्तम भोजन प्रबंध करके भरपेट भोजन कराना सुनिश्चित करे।

  • पुनर्मोजनमध्वानंभाराध्ययनमैथुनम् ॥ संध्यां प्रतिग्रहंहोमं श्राद्धभोक्ता ऽष्टवर्जयेत् ॥ – यम (पृथ्वीचंद्रोय) : श्राद्ध भोक्ता अर्थात् श्राद्ध का भोजन करने वाला ये 8 कार्य न करे – दुबारा भोजन, यात्रा, भार उठाना, अध्ययन, मैथुन, संध्या, प्रतिग्रह और होम ।
  • श्राद्धकर्ताचभोक्ताचपुनर्मुक्तिंचवर्जयेत् ॥ – वराह का वचन : श्राद्धकर्ता और भोक्ता दोनों पुनर्भोजन न करे।
  • पुनर्भोजनमध्वानंभारमायास मैथुनम् । श्राद्धकृच्छ्राद्धभुक्‌चैव सर्वमेतद्विवजेर्यत् ॥ – बृहस्पति : श्राद्धकर्ता और भोक्ता दोनों पुनर्भोजन, यात्रा, भार, परिश्रम, मैथुन से वर्जना करे ।

दुबारा भोजन का निषेध होने से भी यही सिद्ध होता है की श्राद्ध का भोज 2 – 3 बजे दिन में ही आरम्भ करना उचित नहीं है। जिसे 2 – 3 बजे ही कराया जायेगा क्या उसे रात में भूख नहीं लगेगी ? भूख लगने पर भी क्या वह दुबारा भोजन नहीं करेगा ?

श्राद्ध करने ब्राह्मण भोजन करायें। ब्राह्मण भोजन कराने के बाद ही श्राद्धकर्ता भोजन करे, ब्राह्मण के साथ नहीं। द्वादशाह श्राद्ध में प्रायः भोजन के संबंध में कुछ जगहों पर 3 तरह की बातें (विशेषकर ब्राह्मणों में) देखी जाती है :

  1. श्राद्धकर्ता को एक बार ब्राह्मणों के साथ भोजन कराया जाता है जो कि कराना ही नहीं चाहिये और
  2. दूसरी बार पुनः भात आदि घरेलू भोजन कराया जाता है, दो बार भोजन भी नहीं करना चाहिये।
  3. और तीसरी बात यह है कि प्राङ्गण में जब ब्राह्मणभोजन कराया जा रहा होता है तो संख्या विचार करते हुये कई सम्बन्धियों को ब्राह्मणों के साथ ही भोजन कराया जाता है। जब विद्वान ब्राह्मणों को भोजन कर रहें हों तो उनके साथ मात्र ब्राह्मण को ही भोजन कराये अन्य किसी को भी नहीं ।

ब्राह्मण भोजन के सम्बन्ध में एक अन्य विशेष महत्वपूर्ण बात जो की विचार करने योग्य है वह ये कि जब ब्राह्मण को भोजन कराये तो ब्राह्मणी के लिये भी प्रदान करे।

अर्द्धभोजन और वृद्ध गाय देना निषिद्ध कहा गया है। अर्द्धभोजन का क्या तात्पर्य है ? कोई भी भोजन कराने वाला अर्द्धभोजन किसी को भी नहीं कराता, यद्यपि मिथिला में पूर्णभोजन कराने का एक विशेष तरीका भी है जो अन्यत्र कहीं नहीं देखा जाता फिर भी पूर्ण होना भी किसी प्रकार सुनिश्चित नहीं किया जा सकता। और यदि कोई भूखा रह भी गया तो अर्द्ध कैसे सिद्ध हो सकता है ये कैसे सुनिश्चित होगा की वह आधा ही भूखा है।

पुरुष की अर्धांगिनी स्त्री (पत्नी) को यदि भोजन नहीं दिया गया तो वह अर्द्धभोजन होता है, अर्थात यदि ब्राह्मण ने भरपूर भोजन किया हो किन्तु ब्राह्मणी के लिये उसे प्रदान नहीं किया गया तो वह सुनिश्चित रूप से अर्द्धभोजन ही सिद्ध होगा, किञ्चित भी न्यूनाधिक नहीं माना जायेगा। एकमात्र इसी प्रकार से अर्द्धभोजन सुनिश्चित होता है अन्य किसी भी प्रकार से नहीं।

इस तथ्य के प्रमाणस्वरूप एक उत्तम उदाहरण : मंडन मिश्र और शंकराचार्य के बीच हुई शास्त्रार्थ की जानकारी सभी को है। मंडन मिश्र जब शास्त्रार्थ में पराजित हो गये तो उनकी पत्नी भारती ने कहा ये अर्द्धपराजय है क्योंकि मैं उनकी अर्द्धांगिनी हूँ, जब तक मुझे पराजित नहीं करते तब तक आप विजयी नहीं सिद्ध हो सकते और शंकराचार्य ने भी इसे सही मानकर स्वीकार किया।

श्राद्ध कर्म और विधि से सम्बंधित महत्वपूर्ण आलेख जो श्राद्ध सीखने हेतु उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं :

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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