उपनयन संस्कार विधि – वाजसनेयी

उपनयन संस्कार विधि – वाजसनेयी

उपनयन संस्कार की विशेष जानकारी हेतु पूर्व में आलेख प्रकाशित किया गया है। इस आलेख में उपनयन करने के लिये हवन और संस्कार करने की पूर्ण विधि व मंत्र दिया गया है जिसे विभिन्न पद्धतियों का अवलोकन करते हुए तदनुसार सुगम करने का भी प्रयास किया गया है जिससे विशेष उपयोगी सिद्ध हो सके । इस आलेख में वाजसनेयी उपनयन संस्कार विधि दी गयी है छन्दोगी उपनयन विधि अन्य आलेख में दी गयी है।

उपनयन संस्कार विधि – वाजसनेयी

उपनयन विधि के संबंध में पूर्वचर्चा हो चुकी है अतः पुनः विषय-विस्तार अनपेक्षित समझता हूं। तथापि नान्दीश्राद्ध के विषय में सूक्ष्मतथ्य की आवश्यकता है। वो ये है कि प्रायः उपनयन के दिन ही नान्दीश्राद्ध करना समझते हैं। नान्दीश्राद्ध उपनयन में 6 दिन पूर्व करना चाहिये और तत्पश्चात उपनयन सम्बन्धी मंडप आदि कर्म करे। अर्थात आरम्भकर्म के लिये नान्दीश्राद्ध सभी कर्मों से प्रथम करे।

आचार्य मंडप में पश्चिम द्वार से प्रवेश करे, बरुआ को अपने दाहिने बैठाये। पवित्रीकरणादि विधि के अनुसार करके उपनयन संस्कार करे। उपनयन संस्कार की विधि आगे दी गयी है :

उपनयन संस्कार विधि - वाजसनेयी
उपनयन संस्कार विधि – वाजसनेयी

पारस्करगृह्यसूत्र : ब्राह्मणान्भोजयेत्तं च पर्युप्तशिरसमलंकृतमानयन्ति – ब्राह्मणों (ब्राह्मणां बहुवचन से न्यूनतम 3 ब्राह्मण की सिद्धि) को भोजन कराकर; अर्थात प्रथमतया मण्डप में ब्राह्मणों को भोजन कराये। तत्पश्चात पर्युप्तशिर (केशयुक्त) समलङ्कृतं (माला आदि से अलङ्कृत) आनयन्ति अर्थात आचार्य बरुआ को लेकर मण्डप आवे।

प्रयोजन : लाने का प्रयोजन ब्रह्मचर्याश्रम में प्रवेश है। ब्रह्मचर्याश्रम में प्रवेश से भविष्य के ब्रह्मचारी कर्तव्य का भी बोध स्पष्ट होता है।

मंडप के पश्चिम भाग में पूर्वाभिमुख बरुआ के साथ पवित्रीकरणादि करके प्रथमतया पञ्चभूसंस्कारपूर्वक अग्नि स्थापन करे :

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