शुचिता या शुद्धता शरीर और आत्मा का शुद्धिकरण के लिए आवश्यक है। शौच की विधियों, दंतधावन के नियम और स्नान के प्रकार का वर्णन करते हुए शुद्धता की महत्ता को समझाया गया है। स्नान के बाद के महत्वपूर्ण नियमों का उल्लेख भी किया गया है। प्रातः स्मरण मंत्रादि पाठ के उपरांत शारीरिक शुद्धि अर्थात शुचिता का क्रम आता है। शारीरिक शुद्धि अर्थात शुचिता संबंधी जानकारी इस आलेख दी गयी है।
यहाँ शुचिता के महत्त्व एवं विधान के विषय में जानकारी दी गई है। शरीर और आत्मा की शुद्धता बनाए रखने के लिए शौच, दन्तधावन, स्नान जैसे विधियों का पालन करना आवश्यक है। इसमें दिशा, वस्त्र-यज्ञोपवीत एवं स्नान के नियम तथा महत्वपूर्ण विधियाँ सम्मिलित हैं। इससे स्पष्ट होता है कि शुचिता का पालन करना शारीरिक और आत्मिक शुद्धता के लिए कितना महत्वपूर्ण है।
शुचिता शब्द का अर्थ
शुचिता का अर्थ होता है शुद्धता का भाव अथवा शुद्ध अवस्था की प्राप्ति। नित्य कर्म में यह अत्यंत आवश्यक होता है। इसे दो भागों में बांटा जायेगा – शरीर का शुद्धिकरण और शरीरी (जीव) का शुद्धिकरण। शौच, दन्तधावन, स्नान आदि शरीर का शुद्धिकरण है एवं प्राणायाम, भगवद् स्मरण, जप आदि शरीर और शरीरी दोनों का।
मंगल श्लोकादि पाठ करके शौच, दंतधावन, स्नान, वस्त्र धारण आदि करे । यही शारीरिक शुद्धिकरण जिसे शुचिता भी कहा जा सकता है। शौच का तात्पर्य मूत्र-पुरीष उत्सर्जन करना भी । शोधन हेतु मृत्तिका प्रयोग भी अब नहीं के बराबर होता है। अब घर-घर शौचालय होने के कारण विशेष विधियों की चर्चा अपेक्षित नहीं है लेकिन कुछ विशेष नियमों की चर्चा करना आवश्यक है।
