रक्षोघ्न सूक्त नाम से यजुर्वेद, ऋग्वेद, अथर्ववेदों में ऋचायें पायी जाती है। यज्ञ-पूजा-अनुष्ठानों में मुख्यतः यजुर्वेद के मंत्रों का प्रयोग होता है इसलिये यजुर्वेदोक्त रक्षोघ्न सूक्त विशेष रूप से उपयोग किया जाता है। रक्षाविधान हेतु जिस वेदोक्त सूक्त का पाठ किया जाता है उसे रक्षोघ्न सूक्त कहते हैं। प्रत्येक कर्मकांड में रक्षाविधान आवश्यक होता है। इस आलेख में यजुर्वेदोक्त और ऋग्वेदोक्त रक्षोघ्न सूक्त दिया गया है।
रक्षोघ्न सूक्त – यजुर्वेदोक्त
शुक्ल यजुर्वेद संहिता के अध्याय १३ में ऋचा ९ से १३ तक का नाम रक्षोघ्न सूक्त है।
भ्रम :
कुछ लोगों को यह भ्रम होता है कि यह पितरों का मंत्र है या श्राद्ध में ही पढ़ा जाना चाहिये। क्योंकि प्रत्येक श्राद्ध में इसका पाठ किया जाता है। लेकिन यह भ्रम मात्र है। रक्षोघ्न सूक्त का पाठ यज्ञ-पूजा-अनुष्ठानों में भी होता है। रक्षोघ्न सूक्त मात्र श्राद्ध या पितरों का मंत्र समझना एक बड़ी भूल है।
भ्रम निवारण :
- श्राद्ध कर्म में जितनी बार रक्षोघ्नसूक्त का पाठ किया जाता है उससे अधिक पुरुषसूक्त और रुद्रसूक्त का पाठ किया जाता है। तो क्या पुरुषसूक्त और रुद्रसूक्त भी श्राद्ध के मंत्र हैं ?
- श्राद्ध में रक्षोग्न सूक्त से कई गुना अधिक गायत्री मंत्र का प्रयोग होता है तो क्या गायत्री मंत्र केवल श्राद्ध का मंत्र है ?
- श्राद्ध कर्म में रक्षोघ्नसूक्त से कई गुना अधिक मधुमती ऋचा (मधुव्वाता) का पाठ किया जाता है तो क्या मधुमती ऋचा मात्र श्राद्ध का या पितरों का मंत्र है ?
- श्राद्ध में रक्षोघ्न सूक्त से अधिक बार पवित्रीकरण मंत्र का प्रयोग होता है तो क्या पूजा-यज्ञ-अनुष्ठानों में पवित्रीकरण मंत्र का प्रयोग नहीं करना चाहिये ?

रक्षोघ्न सूक्त – रक्षोघ्न मंत्र
ॐ कृणुषव पाजः प्रसीतिं न पृथ्वीं याहि राजेवामावाँ२ इभेन।
तृश्विमनु प्रसीतिं द्रुणानो ऽस्ताऽसि विद्ध्य रक्षसस्तपिष्ठैः॥१॥
तव भ्रमास ऽआशुया पतन्त्यनु स्पृश धृषता शोशुचानः।
तपू ᳪ ष्यग्ने जुह्वा पत्ङ्गानसन्दितो विसृज विश्वगुल्काः ॥२॥
प्रति स्पशो विसृज तूर्णितमो भवा पायुर्विशो अस्या अदब्धः।
यो नो दूरे अघश ᳪ सो यो ऽअंत्यग्ने माकिष्टे व्यथिरादधर्षीत्॥३॥
उदग्ने तिष्ठ प्रत्यातनुष्वन्यमित्राँ ऽओषतात्तिग्महेते।
यो नो ऽअराति ᳪ समिधान चक्रे नीचा तं दक्ष्यतसं न शुष्कम्॥४॥
ऊर्ध्वो भव प्रतिविध्याध्यस्मदाविष्कृणुष्व दैव्यान्यग्ने।
अव स्थिरा तनुहि यातुजूनां जामिमजामिं प्र मृणीहि शत्रुन् ॥
अग्नेषट्वा तेजसा सादयामि॥५॥

॥ यजुर्वेद ॥ अध्याय १३ ॥ ऋचा ९-१३ ॥
उपयोगिता के आधार पर यहाँ ऋग्वेदोक्त रक्षोघ्न सूक्त भी दिया जा रहा है।