रथयात्रा – प्राण प्रतिष्ठा विधि

रथयात्रा – प्राण प्रतिष्ठा विधि

प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व एक विशेष महत्वपूर्ण विधि रथयात्रा है। जब किसी मंदिर में नई प्रतिमा स्थापित करनी होती है तो उस प्रतिमा को मंदिर में स्थापित करने से पूर्व सम्बंधित गांव/नगर में भ्रमण कराया जाता है जिसे रथयात्रा कहते हैं। इस आलेख में हम रथयात्रा विधि को समझने से पहले रथयात्रा के उचित समय को समझेंगे। इस आलेख में रथयात्रा से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां दी गयी है।

रथयात्रा – प्राण प्रतिष्ठा विधि

  • देवविग्रहों की एक वार्षिक रथयात्रा भी होती है जिसमें सर्वप्रमुख जगन्नाथ पुरी (उड़ीसा) में भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा है जो आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को आरंभ होती है।
  • भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का समापन आषाढ़ शुक्ल दशमी तिथि को होता है।
  • रथ यात्रा में सबसे आगे ताल ध्वज पर श्री बलराम, उसके पीछे पद्म ध्वज रथ पर माता सुभद्रा और सुदर्शन चक्र होता है और अंत में नंदीघोष नाम के रथ गरुड ध्वज पर श्री जगन्नाथ जी होते हैं।
  • जब भी रथयात्रा बोला जाता है तो उसका मुख्य अभिप्राय भगवान गणनाथ की रथयात्रा ही होती है।
  • किन्तु जब प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर रथयात्रा बोला जाता है तो उसका तात्पर्य जिस देवप्रतिमा की प्राणप्रतिष्ठा होनी हो उनकी रथयात्रा होती है।
  • यहां हम प्राण प्रतिष्ठा में होने वाली रथयात्रा की शास्त्रीय विधियों को समझेंगे।
रथयात्रा - प्राण प्रतिष्ठा विधि
रथयात्रा – प्राण प्रतिष्ठा विधि

रथयात्रा कब करते हैं ?

रथयात्रा के संबंध में ये विशेष महत्वपूर्ण है कि इसके वास्तविक काल को पहले समझें। अन्यथा अनुचित काल में होने वाला रथयात्रा शास्त्र मर्यादा की विरुद्ध ही सिद्ध होती है।

  • सर्वप्रथम यदि प्रतिमा निर्माण कराया गया हो तो उसे मंडप तक लाने की भी एक विशेष विधि होती है।
  • यद्यपि ऐसा अत्यल्प ही होता है लेकिन उस स्थिति में शिल्पी के घर से मंडप तक देव प्रतिमा को लाना भी रथयात्रा ही होती है और वैसी स्थिति में ये भ्रम होना स्वाभाविक होता है कि उसे ही रथयात्रा समझ लिया जाय।
  • प्राणप्रतिष्ठा में रथयात्रा का जो मुख्य तात्पर्य है वो शिल्पीगृह से मंडप तक लाने वाली यात्रा से भिन्न होती है।
  • यद्यपि कुछ पद्धतियों में उसी यात्रा को रथयात्रा बताया जाय तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।

शिल्पीगृह से मंडप तक प्रतिमा आनयन के रथयात्रा होने का खण्डन

  • शिल्पीगृह से जब प्रतिमा को मंडप लाया जाता है तो उस समय नेत्र बंद रहता है। फिर बंद नेत्र प्रतिमा की यात्रा रथयात्रा संज्ञक कैसे हो सकती है ?
  • यदि शिल्पीगृह से मंडप तक प्रतिमा का लाया जाना ही रथयात्रा संज्ञक हो तो जिस प्रतिमा को बाजार से क्रय किया गया हो उसकी रथयात्रा कैसे सिद्ध होगी ?
  • अतः शिल्पीगृह से मंडप तक प्रतिमा आनयन रथयात्रा सिद्ध नहीं होता है।

इस प्रकार हमें यह ज्ञात होता है कि रथयात्रा जब भी होगी नेत्रोन्मीलन के बाद ही होगी, भले ही वह शिवलिङ्ग की रथयात्रा क्यों न हो ? क्योंकि नेत्रोन्मीलन शिवलिङ्ग में भी कर्तव्य है।

रथयात्रा कब करते हैं ?
रथयात्रा कब करते हैं ?

रथयात्रा का मुख्यकाल निर्धारण

रथयात्रा काल के संबंध में प्रतिष्ठा ग्रंथों से विशेष निर्देश प्राप्त नहीं होता। लेकिन वर्तमान काल में प्राण प्रतिष्ठा में रथयात्रा एक महत्वपूर्ण अंग बन गया है जिस कारण रथयात्रा के लिये वास्तविक काल निर्धारण अपेक्षित है।

शिल्पी गृह से प्रतिमा याग मंडप जाये, पुनः स्नपन मंडप जाये, स्नपन के बाद जलाधिवास हेतु जलाशय या निर्धारित मंडप में जाये। लेकिन प्रत्येक यात्रा रथ या पालकी में ही होगी। यहाँ पर प्रतिष्ठा ग्रन्थकर्ताओं का मत जलाशय तक जाने की यात्रा, अथवा जलाशय से पुनः याग मंडप तक की यात्रा अथवा स्नपन मंडप से जलाधिवास मंडप की यात्रा रथयात्रा बताया गया है, लेकिन स्पष्टता का अभाव है।

इन सभी यात्राओं में कोई भी प्रामाणिक रूप से रथयात्रा सिद्ध नहीं होती। यदि प्रामाणिक रूप से सिद्ध न हो रही है तो तर्कसंगत सिद्धि की आवश्यकता प्रतीत होती है।

यदि विधिवत प्रतिमा निर्माण कराई जाय, सभी प्रकार के मण्डप बनाये जाते हैं और जलाधिवास हेतु जलाशय का निर्धारण किया जाता है तो प्रतिष्ठा मयूख का मत विशेष तर्कसंगत प्रतीत होता है कि स्नपन मंडप से जलाशय तक की यात्रा रथयात्रा मानी जाय। किन्तु ये तो इस व्यवहार से खण्डित हो जाता है कि जलाशय में जलाधिवास की औसत ०.०००१% भी है या नहीं कहा नहीं जा सकता। जब ये यात्रा ही नहीं होती तो इसे रथयात्रा कैसे स्वीकार किया जाय।

रथयात्रा
रथयात्रा

वर्तमान काल में तो १ याग मण्डप बनना भी कठिन होता जा रहा है। फिर अन्य मंडप बनने की बात तो अपवादस्वरूप माना जायेगा। राम लला की प्राण प्रतिष्ठा में विधिवत प्रतिमा निर्माण किया गया लेकिन विधिवत प्रतिमा निर्माण भी तो लगभग समाप्त ही हो गयी है, प्रतिमा निर्माण मात्र उस स्थिति में किया जाता है जब प्रतिमा बहुत बड़ी हो और निर्धारित स्थल पर ही निर्माण की जा रही हो, अन्य प्रतिमाएं बाजार से बनी-बनायी पूर्व से नेत्र खुली हुई क्रय की जाती है। फिर न तो अन्य किसी प्रकार की यात्रा होती ही नहीं तो रथयात्रा किसे माना जाय।

यदि बड़ी प्रतिमा बनाई जा रही हो जो निर्धारित स्थल पर ही पूर्व से स्थिर है उसके अतिरिक्त अन्य परिस्थितियों में जब याग मण्डप में स्नपन, अधिवासन आदि किये जाते हों अथवा बिना याग मंडप के भी मंदिर पर ही कोई भाग निर्धारित करके किया जाता हो तो भी एक यात्रा शेष रहती है।

ऐसी स्थिति में भी जो एक यात्रा शेष रहती है वो है याग मण्डप से प्रासाद की यात्रा। और विचार करने पर भी अन्य परिस्थितियों के लिये भी यही यात्रा रथयात्रा तर्कोचित प्रतीत होती है। इस यात्रा में प्रतिमा का न्यास हो चुका होता है मात्र प्राण-प्रतिष्ठा शेष रहती है। रथयात्रा के दो पक्ष ग्रहण किये जा सकते हैं –

  1. या तो असंस्कारित प्रतिमा (जिसका नेत्रोन्मीलन भी न हुआ हो) बंद आंखों वाली रथयात्रा करे।
  2. या फिर यदि संस्कार आरम्भ हो गया हो तो समस्त संस्कार संपन्न होने के बाद ही गर्भगृह में प्रविष्ट करने से पूर्व जो कि याग मण्डप से प्रासाद की यात्रा है उसे रथयात्रा मानें।
रथयात्रा विधि
रथयात्रा विधि

इसके मध्य की यात्राओं को रथयात्रा मानें यह यथोचित प्रतीत नहीं होता। इस कारण कर्मकाण्ड विधि का ऐसा मत है कि जब याग मण्डप से प्रासाद की रथयात्रा हो उसी को रथयात्रा मानी जाय और उसी समय नगर भ्रमण किया जाय।

  • प्रतिमा को जब मंदिर में प्रवेश कराया जाता है उस समय भी रथ की सवारी अपक्षित होती है।
  • उसी काल में याग मण्डप से बाहर निकलने के बाद प्रदक्षिण क्रम से नगर भ्रमण कराके तब मंदिर की भी परिक्रमा करके प्रवेश कराये।
  • देवता की कृपा चाहने वाला प्राण-प्रतिष्ठा में किसी प्रकार की शीघ्रता न करे। यथोचित विधि से न्यूनतम ३ दिन में की जा सकती है।
  • एक दिन में संपन्न होने वाली प्राण-प्रतिष्ठा के लिये सम्पूर्ण विधि संभव नहीं होती, लेकिन बहुत क्रियाओं को संक्षिप्त करके एक दिन में भी किया जाता है।

यथाशीघ्र रथयात्रा विधि प्रकाशित करके उसका लिंक भी यहां उपलब्ध कर दिया जायेगा। यदि आज आपको रथयात्रा का लिंक न मिले तो कृपया अगले दिन पुनः पधारें।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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