हवन विधि – छन्दोग

हवन विधि – छन्दोग

ऑनलाइन वर्ल्ड में (गूगल, यूट्यूब आदि पर) हवन को एक सामान्य सी क्रिया समझाने का प्रयास किया गया है। यहां तक बताया गया है कि बिना पंडित के हवन कैसे करें और इसी से सिद्ध होता है कि इंटरनेट पर कर्मकाण्ड सम्बन्धी जो भी सामग्रियां उपलब्ध हैं वो मूर्खों द्वारा मात्र अपने स्वार्थ सिद्धि हेतु डाला गया है। उन लोगों का कर्मकांड से कोई संबंध ही नहीं है।

समाचार पत्रों और चैनलों पर कर्मकाण्ड/धर्म से सम्बंधित उपलब्ध सामग्रियां इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। समाचार पत्रों और चैनलों पर कर्मकाण्ड/धर्म से सम्बंधित ७५% से अधिक सामग्रियां अप्रमाणिक और भ्रामक ही होती है, लेकिन दिखती सबसे ऊपर हैं।

ये एक गंभीर विषय है कि गूगल और यूट्यूब आदि पर इतने भ्रामक सामग्री किसकी गलती से उपलब्ध हैं, इसकी जांच-परख क्यों नहीं की जाती है, संशोधन क्यों नहीं किया जाता है ?

हवन में ब्राह्मण की अनिवार्यता

  • बात जब देवताओं की पूजा का हो तो स्वयं किया जा सकता है मंत्रों की शुद्धि/अशुद्धि, विधि आदि से अधिक महत्व भाव का होता है।
  • किन्तु बात जब हवन, यज्ञ, श्राद्ध आदि की हो तो केवल भाव से स्वयं अर्थात बिना ब्राह्मण के नहीं किया जा सकता। इन सबकी विशेष विधि होती है जिसका पालन करके ही करना चाहिये और ब्राह्मण अनिवार्य होते हैं।
  • ब्राह्मण के सन्दर्भ में भी एक भ्रम फैलाया जा रहा है की जो कर्मकांड कराना सीख ले वो ब्राह्मण ये भी गलत है। जन्म से भी ब्राह्मण होना अनिवार्य होता है।

हवन विधि – छन्दोग

  1. पूर्वाङ्ग – पवित्रीकरणादि के उपरान्त पञ्चभूसंस्कार से पञ्चमहावारुणी होम तक की सभी क्रियायें पूर्वाङ्ग कहलाती है। सभी प्रकार के हवनों में पूर्वाङ्ग समान ही रहता है।
  2. मध्याङ्ग – पूजित देवी-देवता सहित मुख्य देवता का हवन मुख्य अंग होता है; जिसे समझने में सुविधा के लिये यहां मध्याङ्ग भी कहा गया है, जिसकी विधि, हविर्द्रव्य, मंत्र परिवर्तित होते रहते हैं।
  3. उत्तराङ्ग – मध्याङ्ग अर्थात मुख्य देवता का होम करने के बाद की शेष क्रियायें उत्तराङ्ग कहलाती है। सभी प्रकार के वैदिक हवन विधि में उत्तराङ्ग भी समान रहता है।

हवन प्रारम्भ करने से पूर्व की तैयारी :

  • हवन कुण्ड, वेदी या भूमि जहां भी हवन करना हो उसे गोमय से लीप ले।
  • हवन प्रारम्भ करने से पहले सभी आवश्यक वस्तुओं को यथास्थान रखे।
  • मुख्य हवि द्रव्य (शाकल्य आदि) बना ले।
  • ब्रह्मा की दक्षिणा हेतु पूर्णपात्र तैयार कर ले।
  • आहुति संख्या और द्रव्य के अनुसार ईंधन (गोयठा, लकड़ी आदि) की व्यवस्था कर ले।
  • जल पात्र में जल, पूजा थाली या किसी पत्ते पर तिल, अक्षत, चंदन, पुष्पादि पूजन द्रव्य ले ले।
  • धूप और दीप जला ले।
  • नैवेद्य सामग्री व्यवस्थित कर ले।

पवित्रीकरण से संकल्प तक की क्रिया विधि :

  • यजमान और यजमानपत्नी स्नानादि करके नया/अहत/शुद्ध वस्त्र (एकबार पहनकर उतारा गया वस्त्र भी धोने  के बाद ही शुद्ध होता है) धारण कर (यजमान पत्नी श्रृंगार आदि करके) बैठे।
  • यजमान त्रिकच्छ धोती धारण करे और यज्ञोपवीत, उपवस्त्र भी धारण करे। गौतम – स्नाने दाने जपे होमे देवे पित्र्ये च कर्मणि । वध्नीयान्नासुरीं कक्षां शेषकाले यथारुचि ॥ याज्ञवल्क्य – परिधानाद वहिः कक्षा निबद्धा चासुरी मता ॥ विश्वामित्र – यज्ञोपवीते द्वे धार्ये श्रौते स्मार्ते च कर्मणि । तृतीयमुत्तरीयार्थे वस्त्राभावे तदिष्यते ॥ 
  • वृद्धहारीत स्मृति – नाऽऽसनारूढपादस्तु : आसन पर बैठते समय  पहले पैर रखकर नहीं बैठना चाहिए।
  • सपत्नीक यजमान ग्रंथिबंधन : ब्राह्मण या सधवा स्त्री ग्रंथिबंधन करें : गणाधिपं नमस्कृत्य उमालक्ष्मीसरस्वतीम्‌। दंपत्योर्रक्षणार्थाय पटग्रंथि करोम्यहम्‌ ॥ श्रीदेव देव कुरुमंगलानि संतानवृद्धिकुरु संततञ्ञ। धनायुवृद्धिकुरुइष्टदेव मदग्रथिबंधे शुभदाभवन्‍न्तु ॥

आचमन : ॐ केशवाय नमः ॥ ॐ माधवाय नमः ॥ ॐ नारायणाय नमः ॥ मुख व हस्त मार्जन (२ बार) ॐ हृषिकेशाय नमः ॥

पवित्रीकरण : ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थाङ्गतोऽपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याऽभ्यन्तरः शुचि:॥  ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ॥ हाथ में गंगाजल/जल लेकर इस मंत्र से शरीर और सभी वस्तुओं  पर छिड़के । 

पवित्रीधारण : ॐ पवित्रेस्थो वैष्णव्यो सवितुर्वः प्रसवऽउत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः । तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुनेतच्छकेयम् ॥ इस मंत्र से पवित्रीधारण करे। 

आसनशुद्धि : ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता । त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ॥

शिखाबंधन : ॐ ब्रह्मवाक्य सहस्रेण शिववाक्य च । विष्णोर्नामसहस्रेण शिखाग्रन्थिं करोम्यहम् ॥ ॐ चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते । तिष्ठ देवि शिखाबद्धे तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे ॥ (यदि पहले से शिखा बंधी हो तो केवल स्पर्श करे)।

यदि शिखा न हो तो कुश का ग्रंथियुक्त शिखा दाहिने कान पर धारण करे। कात्यायन – सदोपवीतिना भाव्यं सदा  वद्धशिखेन च। विशिखो व्युपवीतश्च यत्करोति न तत्कृतः ॥

  • गोभिल गृह्यसूत्र – सुप्त्वा, भुक्त्वा, क्षुत्त्वा, स्नात्वा, पीत्वा विपरिधायच, रथ्यामाक्रम्य, श्मशानञ्चान्ततः पुनराचामेत् ॥  समुच्चय – होमे भोजनकाले च सन्ध्ययोरुभयोरपि । आचान्तः पुनराचामेद्वासोविपरिधाय च ॥
  • संग्रहकार – प्रत्ङ्मुखश्चेदाचामेत्पुनराचम्य शुध्यति । दक्षिणाभिमुखस्तद्वत्पुनः स्त्रानेन शुध्यति ॥ स्नानखादनपानेषु सकृदादौ द्विरन्ततः । जपे चाध्ययनारम्भे द्विरादौ सकृदन्ततः ॥ दाने प्रतिग्रहे होमे सन्ध्यात्रितयवन्दने । बलिकर्मणि चाचामेद्विरादौ सकृदन्ततः ॥

प्राणायाम : तीन बार प्राणायाम करे। अगस्त्य – प्राणायामैर्विना यद्यत्कृतं कर्म निरर्थकम् । अतो यत्नेन कर्तव्यः प्राणायामः शुभार्थिना ॥ त्वक् चर्ममांसरुधिरमेदोमज्जास्थिभिः कृताः । तथेन्द्रियकृता दोषा दह्यन्ते प्राणनिग्रहात् (अत्रि) । यथा पर्वतधातूनां दोषान्दहति पावकः । एवमन्त- र्गतं पापं प्राणायामेन दह्यते ॥ (म० नि० तं०)।

अक्षतारोपण – ॐ युञ्जन्ति ब्रघ्नमरुषं चरन्तं परितस्थुषः । रोचन्ते रोचनादिवि ॥

पंचगव्य निर्माण :

  • गोमूत्र – कांस्य या ताम्रपात्रे में गायत्री मंत्र से गोमूत्रम् दे ।
  • गोमय – ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् । ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥ इस मंत्र से गोमय (गोबर का रस) ॥
  • दुग्ध – ॐ आप्यायस्व समेतु ते विश्वतः सोमवृष्यं भवा व्वाजस्य सङ्गथे ॥ इस मंत्र से दुग्ध ॥
  • दधि – ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः । सुरभिनो मुखाकरत्प्रण आयूँ षि तारिषत् ॥  इस मंत्र से दधि ।
  • घृत – ॐ तेजोसि शुक्रमस्यऽमृतमसि धामनामासि प्रियं देवानामनाधृष्टं देवयजनमसि ॥ इस मंत्र से घृत॥
  • कुशोदक – ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेश्विनौ बाहुभ्यां पूष्णोर्हस्ताभ्याम् ॥ इस मंत्र से कुशोदक ।
  • ॐ आलोडयामि, प्रणव से यज्ञीयकाष्ठ के द्वारा प्रदक्षिणक्रम से मिलाये।  

पंचगव्य प्राशन : इस मंत्र से पञ्चगव्य प्राशन करे – ॐ यत्त्वगस्थिगतं पापं देहे तिष्ठति मामके । प्राशनात्पञ्चगव्यस्य दहत्यग्निरिवेन्धनम् ॥

आचमन : दो बार आचमन करे और मुख, हाथ का मार्जन करे।

भूतोत्सारण : ॐ अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूमिसंस्थिताः । ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया । अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशम् । सर्वेषामविरोधेन पूजीकर्म समारभेत् ॥  

रक्षाबंधन : ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः । तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥ फिर स्वस्तिवाचन करें।

यदि नित्यकर्म नहीं किये हों तो नित्यकर्म (संध्या/तर्पन/पञ्चदेवता व विष्णु पूजा) करके फिर जो पूजा/जपादि करना हो करें। यदि मुख्य संकल्प मे हवन समाहित नहीं किया गया हो तो त्रिकुशा, पान, सुपारी, तिल, अक्षत, फूल, चंदन, तुलसी, गंगाजल, द्रव्यादि हाथ में लेकर संकल्प करें –

संकल्प

संकल्प मंत्र : ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः। हरिर्हरिर्हरिः । ॐ स्वस्ति श्रीपुराणपुरुषोत्तम विष्णोराज्ञया  प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्मणो द्वितीये परार्धे एकपञ्चाशत्तमे वर्षे प्रथममासे प्रथमपक्षे प्रथमदिवसे अह्नो द्वितीये यामे तृतीये मुहूर्त्ते रथन्तरादि द्वात्रिंशत्कल्पानां मध्ये अष्टमे श्री श्वेतवाराहकल्पे स्वायम्भुवादि मन्वन्तराणां मध्ये सप्तमे वैवस्वत मन्वन्तरे कृत-त्रेता-द्वापर- कलिसंज्ञानां चतुर्युगानां मध्ये वर्तमाने अष्टाविंशतितमे कलियुगे तत्प्रथमचरणे तथा पञ्चाशत्कोटि योजन विस्तीर्ण भूमण्डलान्तर्गत सप्तद्वीप मध्यवर्तिनि जम्बूद्वीपे तत्रापि श्रीगङ्गादिसरिद्भिः पाविते परमपवित्रे भारतवर्षे आर्यावर्तान्तर्ग मिथिला-काशी-कुरुक्षेत्र- पुष्कर-प्रयागादि-नाना-तीर्थ-युक्त- कर्मभूमौ  मिथिलायां क्षेत्रे ………….. प्रान्ते ……….…. जनपदे तज्जनपदान्तर्गते ………..…. ग्रामे/(नगरे) श्रीभागीरथ्याः (निकटस्थ/प्रसिद्ध नदी)  …………. तटे  देवब्राह्मणानां सन्निधौ श्रीमन्नृपति

जल यात्रा विधि
संकल्प

वीरविक्रमादित्यसमयतो ……… संख्या परिमिते प्रवर्तमान संवत्सरे प्रभवादिषष्ठिसम्वत्सराणां मध्ये ….….. नामसम्वत्सरे, ……… अयने, ………. गोले, …….….ऋतौ, ….…….मासे ……….पक्षे, ……….. तिथौ, ………. वासरे, ……..…. लग्ने ……….. नक्षत्रे ……….. योगे ………… करणे ……….. राशिस्थिते श्रीसूर्ये …….. राशिस्थिते चन्द्रे ………… राशिस्थिते देवगुरौ, शेषेषु ग्रहेषु यथायथाराशि- स्थानस्थितेषु सत्सु एवं ग्रहगुण विशिष्टे  …….. गोत्रोत्पन्नः ………. शर्मासपनीकोऽहं श्री ………. देवता प्रीत्यर्थं प्रसन्नतासिद्ध्यर्थं  …………… कामनया ब्राह्मणद्वाराकृतस्य ………. संख्यात्मक ……….. मंत्रपुरश्चरणस्य साङ्गतासिद्ध्यर्थं तद्दशांश …….. संख्यया होमं अहं करिष्ये ॥

हवन विधि

छन्दोग हवन विधि पञ्चभूसंस्कार विशेष नियम

  • छन्दोग हवन विधि में पञ्चभूसंस्कार के समय बांयां हाथ भूमि पर रखने का विधान है अतः पञ्चभूसंस्कार के समय अग्निस्थापन तक बांयां हाथ भूमि पर रखे और सभी क्रियायें एक ही हाथ से करें; अङ्गिरा – सव्यं भूमौ प्रतिष्ठाप्य प्रोल्लिखेद्दक्षिणेन तु । तावन्नोस्थापयेत्पाणिं यावदग्निं निधापयेत् ॥
  • छन्दोग हवन विधि पञ्चभूसंस्कार का उल्लेखन विधि भी अलग प्रकार से होता है। इसमें तीन की जगह पांच रेखायें विभिन्न देवताओं का विभिन्न रंगो में ध्यान करते हुये किया जाता है। इस विधि के लिये ज्ञाता विद्वान ब्राह्मण की विशेष रूप से आवश्यकता होती है। रेखा करने की विधि यथास्थान उल्लिखित किया गया है।
  • छन्दोगी होम में प्रणीता-प्रोक्षणी विहित व निषिद्ध दोनों है अतः यदि रखना हो तो आरम्भ में ही रख ले और जहां कहीं भी जल से सिक्त करना कहा गया है प्रणीतेदक से सिक्त करे, अग्नि के पर्युक्षण में प्रोक्षणी के जल का उपयोग करे । यदि न रखे तो जलपात्र के जल का ही उपयोग करे ।
  • छन्दोगी हवन में ब्रह्मा को आसन पर स्थापित करना भी एक जटिल विधि है। किन्तु यहाँ सरलता से बताया गया है।
  • छन्दोगी हवन में समिधाओं का भी विशेष प्रयोग होता है और उनकी माप भी अलग-अलग होती है – १ प्रादेश का ३ और २ प्रादेश का २०।

पूर्वाङ्ग

  • परिसमूह्य : ३ कुशाओं से स्थण्डिल या हस्तमात्र भूमि की सफाई करें। कुशाओं को ईशानकोण में (अरत्निप्रमाण) त्याग करे । 
  • उल्लेपन : गोबर से ३ बार लीपे।
  • उल्लिख्य : कुशामूल या फल या फूल से – १. पूर्वाग्र १२ अंगुल की रेखा पीतवर्ण पृथ्वी का ध्यान करते हुए। २. पूर्वाग्र की रेखा से सटी हुई पश्चिमदिशा में दक्षिण से उत्तराग्र २१ अंगुल की रेखा अग्निदेवता का रक्तवर्ण ध्यान करते हुए।  ३. पश्चिमरेखा से लगी हुयी पूर्वाग्र से ६ अंगुल उत्तर हटाकर प्रादेशप्रमाण पूर्वाग्र रेखा प्रजापति का कृष्णवर्ण ध्यान करते हुए। ४. पुनः ६ अंगुल हटाकर प्रादेशप्रमाण पूर्वाग्र इन्द्र का नीलवर्ण ध्यान करते हुए। ५. पुनः ६ अंगुल हटाकर पूर्वाग्र द्वादशांगुल रेखा सोम का शुक्लवर्ण ध्यान करते हुए।
  • उद्धृत्य : दक्षिणहस्त अनामिका व अंगुष्ठ से सभी रेखाओं से थोड़ा-थोड़ा मिट्टी लेकर ईशान में (अरत्निप्रमाण) त्याग करे।
  • अग्नानयन व क्रव्यदांश त्याग : कांस्यपात्र या हस्तनिर्मित मृण्मयपात्र में अन्य पात्र से ढंकी हुई अग्नि मंगाकर अग्निकोण में रखवाए । ऊपर का पात्र हटाकर अग्नि में जलती हुई तृण या कुशा दे :- प्रजापतिर्ऋषिस्त्रिष्टुप्  छन्दो ऽग्निर्देवता ऽग्निसंस्कारे विनियोगः । ॐ क्रव्यादमग्निं प्रहिणोमि दूरं यमराज्यं गच्छतु रिप्रवाहः ॥
  • अग्निस्थापन : दक्षिणहस्त से आत्माभिमुख अग्निस्थापन करे :– प्रजापतिर्ऋषिः बृहतीच्छन्दोबृहस्पतिर्देवताऽग्निस्थापने विनियोगः । ॐ भूर्भुवः स्वः॥ वामहस्त पृथ्वि से उठा ले। अग्नानयनपात्र में अक्षत-जल छिरके।
  • अग्निपूजन-उपस्थान : अग्नि को प्रज्वलित कर पूजा करे, नैवेद्य  वायव्यकोण में दे। पातित दक्षिणजानु घृताक्त प्रादेशमात्र १ समिधा चुपचाप (प्रजापति ध्यानपूर्वक) अग्नि में देकर स्तुति करे : ॐ इहैवायमितरो जातवेदा देवेभ्यो हव्यं वहतु प्रजानन् ॥

ब्रह्मावरण 

  • उत्तर दिशा में स्थित प्रत्यक्ष ब्रह्मा (विद्वान ब्राह्मण) ब्रह्मा का वरण वस्त्र, पान, सुपारी, द्रव्य, तिल, जलादि लेकर करे : ॐ अद्य कर्तव्य ……….. होम कर्मणि कृताकृतावेक्षणरूप ब्रह्मकर्मकर्तुं एभिः वरणीय वस्तुभिः ……….. गोत्रं ……….. शर्माणं ब्रह्मत्वेन त्वामहं वृणे॥
  • ब्रह्मा स्वीकार करके “वृत्तोस्मि” कहे पुनः यजमान “यथाविहितं कर्म कुरु” कहे और ब्रह्मा “करवाणि” कहे।
  • अथवा ५० कुशात्मक ब्रह्मा पक्ष में : ॐ अद्य अस्मिन् होम कर्मणि कृताकृतावेक्षणरूप कर्मकर्तुं त्वं मे ब्रह्मा भव कुशात्मक ब्रह्मा में प्रतिवचन नहीं होता। 

बह्मा का आसन : ब्रह्मावरण करके अग्नि की परिक्रमा (प्रदक्षिण क्रम से) करते हुये दक्षिण दिशा में ब्रह्मासन के पास अपने आसन पर पूर्वाभिमुख बैठे।

गृह प्रवेश के नियम
ब्रह्मावरण 
  • ब्रह्मासन स्थान पर अञ्जलि में जल लेकर पूर्वाग्र धारा दे,
  • ब्रहासन के लिए पूर्वाग्र ३ कुशा बिछाये।
  • उठकर ब्रह्मासन से पूर्वदिशा में जाकर पश्चिमाभिमुख खड़ा हो जाये।
  • बांयें हाथ के अनामिका व अंगूठा से ब्रह्मासन के लिए दिये गये ३ कुशाओं में से १ कुशा उठाकर यह मंत्र पढ़ते हुये नैर्ऋत्यकोण में त्यागे : प्रजापतिर्ऋषिरग्निरद्देवता तृणनिरसने विनियोगः। ॐ निरस्तः परावसुः ॥
  • फिर प्रदक्षिणक्रम से ही अग्नि के पश्चिमभाग भाग में अपने आसन पर बैठकर आचमन करे या जलस्पर्श करे।
  • प्रत्यक्ष ब्रह्मा का दक्षिणहस्त ग्रहण कर (कुशात्मक बह्मा को उठाकर) प्रदक्षिण क्रम से दक्षिण ब्रह्मासन तक ले जाये, स्वयं पूर्वाभिमुख होकर इस मंत्र से बैठाये या स्थापित करे : प्रजापतिरृषिरग्निरद्देवता ब्रह्मोपवेसने विनियोगः। ॐ आवसोः सदनेसीद ॥ यदि प्रत्यक्ष ब्रह्मा हो तो “सीदामि” कहे।
  • अमंत्रक ब्रह्मापूजन करके ब्रह्मा के ऊपर ३ कुशा रखकर जल से सिक्त करे
  • फिर कुश को स्पर्श करके यह मंत्र पढ़े – प्रजापतिरृषिः गायत्रीच्छन्दो विष्णुर्द्देवता जपे विनियोगः। ॐ इदं विष्णुर्व्विचक्रमे त्रेधानिदधेपदं समूढ़मस्य पांसुले ॥
  • पुनः अप्रदक्षिणक्रम से अग्नि के पश्चिम आकर आसन पर बैठे।

परिस्तरण : फिर त्रिकुशा से क्रमशः द्वारा उत्तर, पूर्व व दक्षिण में झाड़ूवत् सफाई करे :

  1. उत्तर – कौत्सऋर्षिजगतीच्छन्दोऽग्निर्देवता पृष्ठस्य षडहस्य षष्ठेऽहन्यग्निमारुते शस्ते परिसमूहने विनियोगः । ॐ इमं स्तोममर्हते जातवेदसे रथमिव सम्महेगा मनीषया । भद्रा हि नः प्रमतिरस्य संसद्यग्ने सख्ये मारिषामा वयन्तव ॥१॥
  2. पूर्व – ॐ भरामेध्मंकृणवामाहवींषिते चितयन्तःपर्वणा पर्वणा वयं। जीवातवे प्रतरां साधया धियोऽग्ने सख्ये मारिषामा वयन्तव ॥२॥
  3. दक्षिण – ॐ शकेम त्वा समिधं साधया धियस्ते देवा हविरदन्त्याहुतं । त्वमादित्याँ२ । आवहताँ२ । ह्युश्मस्यग्ने सख्ये मारिषामा वयन्तव ॥३॥
  4. फिर 12 – 20 कुशायें लेकर प्रथम कुशा पूर्वदिशा में उत्तराग्र, द्वितीय कुशा दक्षिण दिशा में पूर्वाग्र, तृतीयकुशा पश्चिम दिशा में दक्षिणाग्र, चतुर्थ कुशा उत्तर दिशा में पश्चिमाग्र इस क्रम से दे कि प्रत्येक कुशा का मूल अगली कुशा के अग्रभाग के नीचे हो।
  5. अंतिम कुशा के मूल को प्रथमकुशा के अग्रभाग के नीचे प्रविष्ट करें।
  6. इसी क्रम से ३ या ५ बार परिस्तरण करें।
  7. कुशाभाव हो तो काश-दूर्वादि विकल्प भले ही ग्रहण करे, परन्तु न्यूनतम ३ बार अवश्य करें।

फिर २ प्रादेश माप का २० समिधा जो दोनों छोड़ पर और मध्य में तीन जगह से घृताक्त हो मौन भाव से प्रजापति का ध्यान करते हुए अग्नि में दे।

  • फिर आज्यपात्र में उत्तराग्र पवित्रि रखकर उसपर घृत डाले (गिराये) ।
  • घी की मात्रा इतनी रखे कि पवित्री पूरा नहीं डूबे और निकाला जा सके।
  • फिर बांये गट्टे पर दांये गट्टे को रखकर अर्थात् हाथों को क्रमविपरीत करके दोनों हाथों द्वारा अंगूठा-अनामिका उंगलियों से पवित्री को पकड़ कर मस्तक पर पवित्रि द्वारा घृतप्रक्षेप करे – प्रजापतिर्ऋषिराज्यं देवता आज्योत्पवने विनियोगः । ॐ देवस्त्वा सवितोत्पुनात्वच्छिद्रेण पवित्रेण वसोः सूर्यस्य रश्मिभिः
  • फिर २ बार बिना मंत्र के छिड़के ।
  • फिर पवित्री को जल से सिक्त करके अग्नि में प्रक्षेप कर दे ।
  • तदनन्तर घृतपात्र को जल से सिक्त करके ३ बार अग्नि के उत्तरभाग में चढाकर उतारे ।
  • फिर स्रुवा को दाहिने हाथ में लेकर ३ बार तप्त करे (अग्नि पर तपाये),
  • फिर बांये हाथ में लेकर दांये हाथ से सम्मार्जन कुश लेकर अग्रभाग से स्रुवा के ऊपरी भाग का मूल से अग्रपर्यंत और कुशा के मूल से स्रुवा के पृष्ठभाग का अग्र से मूलपर्यंत सम्मार्जन करके जल से सिक्त करे।
  • स्रुवा को पुनः ३ बार अग्नि पर तप्त करके (तपाकर) दक्षिण की ओर कुशाओं पर रखे।
  • स्रुचि के लिए भी स्रुवावत् विधि संपन्न करना चाहिए। स्रुचि को स्रुव के उत्तर भाग में रखना चाहिए।

प्रसेचन

  1. पातितदक्षिणजानु अंजलि में जल लेकर अग्नि के दक्षिणभाग में पूर्वाभिमुख पूर्वाग्र जलधारा दे : प्रजापतिर्ऋषिरदितिर्देवता उदकाञ्जलिप्रसेचने विनियोगः, ॐ अदिते अनुमन्यस्व
  2. पुनः जल लेकर अग्नि के पश्चिम में उत्तराभिमुख हो उत्तराग्र जलधारा दे : प्रजापतिर्ऋषिरनुमतिर्देवता उदकाञ्जलिप्रसेचने विनियोगः, ॐ अनुमते अनुमन्यस्व॥
  3. पुनः जल लेकर अग्नि के उत्तरभाग में पूर्वाभिमुख पूर्वाग्र जलधारा दे : प्रजापतिर्ऋषिः सरस्वती देवतोदकाञ्जलिप्रसेचने विनियोगः, ॐ सरस्वत्यनुमन्यस्व
कर्मकांड विधि
पूजा करना

विरूपाक्ष जप

तदनन्तर चुक्कुमाली होकर कुश, फूल, सुपारी सहित १ प्रादेशप्रमाण समिधा दोनों हाथों से पकड़े, बांयीमुट्ठी नीचे और दांयी मुट्ठी ऊपर हो, मूलभाग बांयी मुट्ठी की ओर और अग्रभाग दांयी मुट्ठी की ओर हो । विरूपाक्ष मंत्र का जाप करे (पढे) :

विनियोग : परमेष्ठिऋषी रुद्ररूपोऽग्निर्देवता विरुपाक्षजपे विनियोगः ॥

तदुत्तर कुश ईशानकोण में त्याग कर फल-फूल आदि ब्रह्मा को दे और समिधा को घृताक्त करके प्रजापति का ध्यान करते हुये अग्नि में प्रक्षेप करे। तदुत्तर स्रुवा से अग्नि में ४ आज्याहुति प्रदान करे :

महाव्याहृति होम :

  1. प्रजापति ऋषिर्गायत्रीच्छन्दोऽग्निर्देवता व्याहृतिहोमे विनियोगः। ॐ भूः स्वाहा ॥१॥
  2. प्रजापतिर्ऋषिरुष्णिक् छन्दो वायुर्देवता व्याहृतिहोमे विनियोगः। ॐ भुवः स्वाहा ॥२॥
  3. प्रजापतिर्ऋषिरनुष्टुप्छन्दः सवितादेवता व्याहृतिहोमे विनियोगः। ॐ स्वः स्वहा ॥३॥
  4. प्रजापतिर्ॠषिः बृहतीच्छन्दोबृहस्पतिर्देवता महाव्याहृति होमे विनियोगः। ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहा ॥४॥

पञ्चमहावारुणी होम :

  1. त्वन्नोऽअग्ने इति वामदेवऋषिस्त्रिष्टुप्छन्दोऽग्नीवरुणौ देवते आज्य होमे विनियोगः। ॐ त्वन्नोऽअग्ने वरुणस्य विद्वान् देवस्य हेडो अवयासि सीष्ठाः । यजिष्ठो वह्नितमः शोशुचानो विश्वा द्वेषां सि प्रमुमुग्ध्यस्मत् स्वाहा, इदमग्मीवरुणाभ्याम् ॥
  2. सत्वन्नोऽअग्ने इति वामदेवऋषिस्त्रिष्टुप्छन्दोऽग्नीवरुणौ देवते आज्यहोमे विनियोगः। ॐ स त्वन्नो अग्नेऽवमो भवोती नेदिष्ठो अस्या उषसो व्युष्टौ। अवयक्ष्व नो वरुणं रराणो वीहि मृडीकं सुहवो न एधि स्वाहा, इदमग्नीवरुणाभ्याम् ॥
  3. अयाश्चाग्न इति प्रजापतिर्ॠषिःपङ्क्तिश्छन्दोऽग्निर्देवता आज्यहोमे विनियोगः। ॐ अयाश्चाग्नेऽस्य नभिशस्तिपाश्च सत्यमित्त्वमया असि । अया नो यज्ज्ञं वहास्ययानो धेहि भेषजं स्वाहा, इदमग्नये॥
  4. ये ते शतमिति शुनःशेपऋषिस्त्रिष्टुप्छन्दो वरुणो देवता आज्यहोमे विनियोगः। ॐ ये ते शतँवरुण ये सहस्रं यज्ञियाः पाशा वितता महान्तः। तेभिर्न्नो अद्य सवितोत विष्णुर्विश्वे मुञ्चन्तु मरुतः स्वर्काः स्वाहा, इदं वरुणायसवित्रेविष्णवेविश्वेभ्योदेवेभ्यो मरुद्भ्यःस्वर्केभ्यः॥
  5. उदुत्तममिति शुनःशेपऋषिस्त्रिष्टुप्छन्दो वरुणो देवता आज्य होमे विनियोगः। ॐ उदुत्तमँव्वरुण पाशमस्मदवाधमं विमध्यमं श्रथाय । अथाव्वयमादित्यव्रते तवानागसो अदितये स्याम स्वाहा, इदं वरुणाय॥

मध्याङ्ग

तदुत्तर अन्वारब्ध (ब्रह्मा से कुशात्मक संबंध) के बिना स्थापित-पूजित देवताओं की, जप किये गए मंत्र की आदि शाकल्यादि अन्य होम द्रव्य हो तो उससे अन्यथा आज्य से ही आहूति दे।

सर्वप्रथम गणपति की आहुति दे : ॐ गं गणपतये स्वाहा, इदं गणपतये ॥ (अथवा गणानांत्वा से)

यदि आज्याहुति करे तो प्रोक्षणी में शेष प्रक्षेप करे, अन्यथा नहीं। केवल पाठ मात्र करे। वेदी देवताओं के होम का आरम्भ नवग्रहवेदी से करे।

नवग्रह होम :

  1. सूर्य (समिधा अर्क) – ॐ उदुत्यञ्जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः । दृशे विश्वाय सूर्यम् स्वाहा, इदं सूर्याय॥
  2. चन्द्र (समिधा पलाश) – ॐ सन्ते पयांसि समयन्तुवाजाः संवृष्ण्यान्यभिमातिषाहः आप्यायमानो अमृताय सोम दिवि श्रवांस्युत्तमानिधिष्व स्वाहा, इदं चन्द्रमसे॥
  3. मङ्गल (समिधा खैर) – ॐ अग्निर्मूर्द्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम् । अपां रेतांसि जिन्वति स्वाहा, इदं कुजाय॥
  4. बुध (समिधा अपामार्ग) – ॐ अग्ने विवश्वदुषसश्चित्रां राध्नो अमर्त्य आदाशुषे । जातवेदो वहात्वमद्या देवो उषर्बुधः स्वाहा, इदं बुधाय॥
  5. बृहस्पति (समिधा पीपल) – ॐ बृहस्पते परिदीयारथेन रक्षोहामित्राँ अपबाधमानः प्रभञ्जत्सेना: प्रमृणो युधाजयन्नस्माकं मेध्यविता रथानाम् स्वाहा, इदं गुरवे॥
  6. शुक्र (समिधा गूलर) – ॐ शुक्रन्ते अन्यद्यजन्ते अन्यद्विषुरूपे अहनी द्यौरिवासि विश्वाहि माया । अवासि स्वधावन् भद्रा ते पूषन्निह रातिरस्तु स्वाहा, इदं शुक्राय॥
  7. शनि (समिधा शमी) – ॐ शन्नो देवीरभिष्टये शन्नो भवन्तु पीतये संयोरभिस्रवन्तु नः स्वाहा, इदं शनये॥
  8. राहु (समिधा दूर्वा) – ॐ कयानचित्र आभुवदूती सदावृधः सखा। कया शचिष्ठ्या वृता स्वाहा, इदं राहवे॥
  9. केतु (समिधा कुशा) – ॐ केतु कण्वन्न केतवे पेशोमर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथाः स्वाहा, इदं केतुभ्यः ॥

नवग्रह होम के बाद मण्डल देवताओं अधिदेवता-प्रत्याधदेवता-दशदिक्पालादि का के नाम मंत्र दिया जा रहा है, जिसमें वाजसनेयी-छन्दोग भेद नहीं होगा।

अधिदेवता होम

ॐ ईश्वराय स्वाहा, इदं ईश्वराय। ॐ उमायै स्वाहा, इदं उमायै। ॐ स्कन्दाय स्वाहा, इदं स्कन्दाय। ॐ विष्णवे स्वाहा, इदं विष्णवे । ॐ ब्रह्मणे स्वाहा, इदं ब्रह्मणे (मानसिक)। ॐ इन्द्राय स्वाहा, इदं इन्द्राय । ॐ यमाय स्वाहा, इदं यमाय । ॐ कालाय स्वाहा, इदं कालाय। ॐ चित्रगुप्ताय स्वाहा, इदं चित्रगुप्ताय।

प्रत्यधिदेवता होम

ॐ अग्नये स्वाहा, इदं अग्नये। ॐ अद्भ्यो स्वाहा, इदं अद्भ्यः। ॐ पृथिव्यै स्वाहा, इदं पृथिव्यै। ॐ विष्णवे स्वाहा, इदं विष्णवे। ॐ इन्द्राय स्वाहा, इदं इन्द्राय। ॐ इन्द्राण्यै स्वाहा, इदं इन्द्राण्यै। ॐ प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये । ॐ सर्पेभ्यो स्वाहा, इदं सर्पेभ्यः। ॐ ब्रह्मणे स्वाहा, इदं ब्रह्मणे (मानसिक)।

पञ्चलोकपाल होम

ॐ गणपतये स्वाहा, इदं गणपतये । ॐ दुर्गायै स्वाहा, इदं दुर्गायै। ॐ वायवे स्वाहा, इदं वायवे। ॐ आकाशाय स्वाहा, इदं आकाशाय। ॐ अश्विभ्यां स्वाहा, इदं अश्विभ्यां।

दशदिक्पाल होम

ॐ इन्द्राय स्वाहा, इदं इन्द्राय। ॐ अग्नये स्वाहा, इदं अग्नये। ॐ यमाय स्वाहा, इदं यमाय। ॐ निर्ऋतये स्वाहा, इदं निर्ऋतये। ॐ वरुणाय स्वाहा, इदं वरुणाय। ॐ वायवे स्वाहा, इदं वायवे। ॐ सोमाय स्वाहा, इदं सोमाय। ॐ ईश्वराय स्वाहा, इदं ईश्वराय। ॐ ब्रह्मणे स्वाहा, इदं ब्रह्मणे (मानसिक)। ॐ अनन्ताय स्वाहा, इदं अनन्ताय।

नवग्रहमण्डल होम के पश्चात् यदि अन्य मण्डल हो तो उन सभी मण्डल देवताओं का भी होम करना चाहिए। पूजनादि में तो एकतंत्र उपयोग किया जा सकता है परन्तु होम में नहीं करना चाहिए। समयाभाव होने पर नाममंत्र से ही करे। नाममंत्र से होम के समय छन्दोग और वाजसनेयी दोनों में समान ही रहेगा, वैदिक ऋचाएँ अलग-अलग होती है।

फिर प्रधान देवता का उचित (संकल्पित) संख्या में होम करे। उचित संख्या का तात्पर्य ये है कि संकल्पित संख्या से न तो कम आहुति दे न ही अधिक दे। आहुति संख्या में न्यूनाधिक्यता दोनों ही निषिद्ध किया गया है।

उत्तराङ्ग

  1. प्रजापति ऋषिर्गायत्रीच्छन्दोऽग्निर्देवता व्याहृतिहोमे विनियोगः। ॐ भूः स्वाहा ॥१॥
  2. प्रजापतिर्ऋषिरुष्णिक् छन्दो वायुर्देवता व्याहृतिहोमे विनियोगः। ॐ भुवः स्वाहा ॥२॥
  3. प्रजापतिर्ऋषिरनुष्टुप्छन्दः सवितादेवता व्याहृतिहोमे विनियोगः। ॐ स्वः स्वहा ॥३॥
  4. प्रजापतिर्ॠषिः बृहतीच्छन्दोबृहस्पतिर्देवता महाव्याहृति होमे विनियोगः। ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहा ॥४॥

स्विष्टकृद्धोम :

यदि केवल आज्य से होम किया गया हो, अन्य हविर्द्रव्य (शाकल्य, चरु आदि) से होम नहीं किया गया हो तो प्रायश्चित होम या वाराहुति के बाद और बलि दान से पहले करें। स्विष्टकृद्धोम से पहले ब्रह्मा से पुनः अन्वारब्ध (कुशा द्वारा सम्पर्क) कर ले।

स्विष्टकृद्धोम : ॐ अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा, इदं अग्नयेस्विष्टकृते

महाव्याहृति होम :

  1. प्रजापति ऋषिर्गायत्रीच्छन्दोऽग्निर्देवता व्याहृतिहोमे विनियोगः। ॐ भूः स्वाहा ॥१॥
  2. प्रजापतिर्ऋषिरुष्णिक् छन्दो वायुर्देवता व्याहृतिहोमे विनियोगः। ॐ भुवः स्वाहा ॥२॥
  3. प्रजापतिर्ऋषिरनुष्टुप्छन्दः सवितादेवता व्याहृतिहोमे विनियोगः। ॐ स्वः स्वहा ॥३॥
  4. प्रजापतिर्ॠषिः बृहतीच्छन्दोबृहस्पतिर्देवता महाव्याहृति होमे विनियोगः। ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहा ॥४॥

पञ्चमहावारुणी होम :

  1. त्वन्नोऽअग्ने इति वामदेवऋषिस्त्रिष्टुप्छन्दोऽग्नीवरुणौ देवते आज्य होमे विनियोगः। ॐ त्वन्नोऽअग्ने वरुणस्य विद्वान् देवस्य हेडो अवयासि सीष्ठाः । यजिष्ठो वह्नितमः शोशुचानो विश्वा द्वेषां सि प्रमुमुग्ध्यस्मत् स्वाहा, इदमग्मीवरुणाभ्याम् ॥
  2. सत्वन्नोऽअग्ने इति वामदेवऋषिस्त्रिष्टुप्छन्दोऽग्नीवरुणौ देवते आज्यहोमे विनियोगः। ॐ स त्वन्नो अग्नेऽवमो भवोती नेदिष्ठो अस्या उषसो व्युष्टौ। अवयक्ष्व नो वरुणं रराणो वीहि मृडीकं सुहवो न एधि स्वाहा, इदमग्नीवरुणाभ्याम् ॥
  3. अयाश्चाग्न इति प्रजापतिर्ॠषिःपङ्क्तिश्छन्दोऽग्निर्देवता आज्यहोमे विनियोगः। ॐ अयाश्चाग्नेऽस्य नभिशस्तिपाश्च सत्यमित्त्वमया असि । अया नो यज्ज्ञं वहास्ययानो धेहि भेषजं स्वाहा, इदमग्नये॥
  4. ये ते शतमिति शुनः शेपऋषिस्त्रिष्टुप्छन्दो वरुणो देवता आज्यहोमे विनियोगः। ॐ ये ते शतँवरुण ये सहस्रं यज्ञियाः पाशा वितता महान्तः। तेभिर्न्नो अद्य सवितोत विष्णुर्विश्वे मुञ्चन्तु मरुतः स्वर्काः स्वाहा, इदं वरुणायसवित्रेविष्णवेविश्वेभ्योदेवेभ्यो मरुद्भ्यःस्वर्केभ्यः॥
  5. उदुत्तममिति शुनःशेपऋषिस्त्रिष्टुप्छन्दो वरुणो देवता आज्य होमे विनियोगः। ॐ उदुत्तमँव्वरुण पाशमस्मदवाधमं विमध्यमं श्रथाय । अथाव्वयमादित्यव्रते तवानागसो अदितये स्याम स्वाहा, इदं वरुणाय॥

बलिदान :

 इसी प्रकार नवग्रहादिकों को भी बलि प्रदान करे।

पर्युक्षण

फिर अञ्जलि में जल लेकर अग्नि को चारों ओर से पूर्व की भांति यज्ञीय वस्तुओं सहित जलधारा के साथ वेष्टित करे (घेरे) : प्रजापतिर्ऋषिस्त्रिष्टुप्छन्दः सविता देवता अग्निपर्युक्षणे विनियोगः, ॐ देवसवितः प्रसुव यज्ञं प्रसुव यज्ञपतिं भगाय। दिव्यो गन्धर्वः केतपूः । केतन्नः पुनातु वाचस्पतिर्वाचन्नः स्वदतु ॥

प्रसेचन :

पातितदक्षिणजानु अञ्जलि में जल लेकर ३ बार क्रमशः दक्षिण, पश्चिम और उत्तर की ओर जलधारा दे –

  • दक्षिणभाग में पूर्वाभिमुख पूर्वाग्र जलधारा दे : प्रजापतिर्ऋषिरदितिर्देवता उदकाञ्जलिप्रसेचने विनियोगः, ॐ अदिते अन्वमंस्थाः ॥
  • अग्नि के पश्चिमभाग में उत्तराभिमुख हो उत्तराग्र जलधारा दे : प्रजापतिर्ऋषिरनुमतिर्देवता उदकाञ्जलिप्रसेचने विनियोगः, ॐ अनुमते अन्वमंस्थाः ॥
  • अग्नि के उत्तरभाग में पूर्वाभिमुख पूर्वाग्र जलधारा दे : प्रजापतिर्ऋषिः सरस्वती देवतोदकाञ्जलिप्रसेचने विनियोगः, ॐ सरस्वत्यन्वमंस्थाः ॥

दर्भजूटिका होम :

  • परिस्तरण वाले सभी कुशाओं को पूर्वकृत परिस्तरणक्रम से ही उठाकर सबको सही तरीके से मोड़कर छोटी सी गट्ठर (पुल्ली) बनाकर ३ बार घी में भिंगोए – प्रजापतिर्ऋषिर्वायो देवता दर्भतृणाभ्यञ्जने विनियोगः । ॐ अक्तं रिहाणाव्यन्तु वयः ॥
  • पुनः जल से सिक्त करके इस मंत्र से अग्नि में त्याग करे : प्रजापतिर्ऋऋषिरनुष्टुप्छन्दो रुद्रो देवता दर्भजूटिका होमे विनियोगः । ॐ यः पशूनामधिपती रुद्रस्तं तिचरो वृषा पशूनस्माकं मा हिंसीरेतदस्तु हुतं तव स्वाहा ॥

वसोर्धारा : पुनः स्रुचि से घृत की अविच्छन्न धारा अग्नि में इस मंत्र से करे – ॐ वसुभ्यः स्वाहा ॥

अग्निप्रार्थना : ॐ श्रद्धां मेधां यशः प्रज्ञां विद्यां पुष्टिं श्रियं बलम् । तेज आयुष्यमारोग्यं देहि मे हव्यवाहन ॥१॥ भो भो अग्ने ! महाशक्ते सर्वकर्मप्रसाधन । कर्मान्तरेऽपि सम्प्राप्ते सान्निध्यं कुरु सर्वदा ॥

भस्म धारण

स्रुव के पृष्ठभाग में ईशान कोण से भस्म ग्रहण कर जल से सिक्त करके क्रमशः हृदय, दक्षिणबाहु, वामबाहु और ललाट पर लगाए –

  1. ॐ त्र्यायुषम्जमदग्नेः (हृदय में) ।
  2. ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषं (दक्षिण बाहु पर) ।
  3. ॐ अगस्त्यस्य त्र्यायुषं (वामबाहु में) ।
  4. ॐ यद्देवानां त्र्यायुषं तन्मेऽअस्तु त्र्यायुषं (ललाट में) यदि किसी अन्य को लगाये तो ॐ यद्देवानाम्त्र्यायुषं तन्मे ऽअस्तु त्र्यायुषं को ॐ यद्देवानाम्त्र्यायुषं तत्तेऽअस्तु त्र्यायुषं पढ़े।

संसव प्राशन : यदि प्रोक्षणी रखा गया हो तो प्रोक्षणी में प्रक्षिप्त आज्याहुति अवशेष का अनामिका और अंगुष्ठ से प्राशन करे – ॐ यस्माद्यज्ञपुरोडाशाद्यज्वानो ब्रह्मरूपिणः । तं संस्रवपुरोडाशं प्राश्नामि सुखपुण्यदम् ॥ फिर २ आचमन कर ले ।

ब्रह्मा दक्षिणा (पूर्णपात्र) : ॐ अद्य कृतैतत् ……. होमकर्मणि कृताकृतावेक्षणरूप ब्रह्मकर्मप्रतिष्ठार्थमिदं पूर्णपात्रं प्रजापति दैवतम् ….. गोत्राय …… शर्मणे ब्राह्मणाय ब्रह्मणे दक्षिणां तुभ्यमहं सम्प्रददे ॥

  • ब्रह्मा को पूर्णपात्र प्रदान करे,
  • ब्रह्मा ॐ स्वस्ति कहकर ग्रहण करे ।
  • फिर दाहिना हाथ पकरकर ब्रह्मा को प्रदक्षिणक्रम से उठाए ।
  • यदि कुशात्मक ब्रह्मा हों तो यह मंत्र पढे – ॐ अद्य कृतैतत् …..… होमकर्मणि कृताऽकृताऽवेक्षणरूप ब्रह्मकर्मप्रतिष्ठार्थमिदं पूर्णपात्रं प्रजापतिदैवतं ब्रह्मणे दक्षिणा नमः ॥
  • पूर्णपात्र दक्षिणा देकर कुशात्मक ब्रह्मा की ग्रंथि खोल दे ।

यदि प्रणीता रखा गया हो तो प्रणीताविमोक करे :

प्रणीता को अपने आगे अग्नि के पश्चिमभाग में रखकर पवित्री-उपयमन कुशादि धारणपूर्वक इस मंत्र द्वारा सिर को सिक्त करे – ॐ सुमित्रिया न आप ओषधयः सन्तु ॐ आपः शिवाः शिवतमा: शान्ताः शान्ततमास्तास्ते कृण्वन्तु भेषजम् ॥ फिर इस मंत्र से प्रणीता को पश्चिम (नैर्ऋत्य) या ईशानकोण में न्युब्ज कर केवल जल गिराए, प्रणीता को पृथ्वी पर उल्टा न रखे केवल जल गिराकर सीधा ही रखे ।

तर्पण-मार्जन : फिर हवन का दशांश तर्पण और तर्पण का दशांश मार्जन करे –

  • तर्पण : ॐ साङ्गं सपरिवारं (महामृत्युञ्जयं/विष्णु/शिवं देवतानुसार) तर्पयामि ॥
  • मार्जन : ॐ मार्जयामि ॥ सिर का मार्जन करे।

श्रेयोदान : पूर्वाभिमुख यजमान को उत्तराभिमुख आचार्य फलादि पूर्वक श्रेयोदान दे : ॐ भवन्नियोगेन मया श्री ……… देव प्रीत्यर्थं कृतो होमस्तदुपन्नं यच्छ्रेयस्तत् तुभ्यमहं सम्प्रददे तेन श्रेयसा त्वं श्रेयोवान् भव॥

दक्षिणा : ॐ अद्य कृतैतत् होमं प्रतिष्ठार्थं एतावद्द्रव्यमूल्यक हिरण्यं अग्निदैवतं यथानामगोत्रायब्राह्मणाय दक्षिणां दातुमहमुत्सृजे ॥

दान : आचार्य को यजमान यथासम्भव दान दे। न्यूनतम छायापात्र दान करे। छायापात्र दान विधि अलग से दिया गया है।

छायापात्र दान विधि

तिलपुञ्ज पर छायापात्र (कांस्यपात्र) स्थापित करके गोघृत (द्रवित) भरे फिर उसमें मुखावलोकन करे – ॐ आज्यं सुराणामाहारमाज्यं पापहरं परम् । आज्यमध्ये मुखं दृष्ट्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥ घृतं नाशयते व्याधि घृतञ्च हरते रुजम् । घृतं तेजोऽधिकरणं घृतमायुः प्रवर्द्धते ॥ इस प्रकार मुखावलोकन करके स्वर्ण या पञ्चरत्न प्रक्षेप करे ।

  • छायापात्र पर ३ बार पुष्पाक्षत छिड़के – ॐ छायापात्राय नमः ॥३॥ 
  • फिर ३ बार उत्तराग्र कुशा (त्रिकुशा) पर छिड़के – ॐ ब्राह्मणाय नमः ।।३।। जल से सिक्त करे।
  • तिल-जल लेकर उत्सर्ग करे – ॐ अद्य …….. गोत्रोत्पन्नः ……… शर्माऽहं आयुरारोग्यप्राप्त्यर्थं श्री …….. देवताप्रीत्यर्थं च इदं स्वछायावलोकितंघृतपूरितंकांस्यपात्रं चन्द्रप्रजापतिबृहस्पति दैवतं यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय अहं ददे॥ पूर्वपूजित त्रिकुशा पर छोड़ दे ।
  • दक्षिणा – ॐ अद्य कृतैतच्छायापात्र दान प्रतिष्ठार्थं एतावद्द्रव्यमूल्यकहिरण्यं अग्निदैवतं यथानामगोत्रायब्राह्मणाय दक्षिणां दातुमहमुत्सृजे ॥

विसर्जन : आरती, पुष्पांजलि, क्षमाप्रार्थना आदि करके आवाहित देवताओं का विसर्जन करे।

अभिषेक

  • अभिषेक मंत्र – ॐ आपो हिष्ठामयो भुवस्तान ऊर्जे दधातन महेरणाय चक्षसे । यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेह नः । उशतीरिव मातरः । तस्मा अरङ्गमाम वो यस्य क्षयाय जिन्वथ । आपो जनयथा चनः ॥ ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि व्वरुणस्य स्कम्भसर्जनीस्थो वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमासीद ॥ ॐ पुनन्तु मा देवजनाः पुनन्तु मनसा घियः पुनन्तु विश्वा भूतानि जातवेदः पुनीहि माम् ॥ ॐ पयः पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयोधाः । पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् ॥ ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेश्विनोर्बाहुभ्याम्पूष्णोर्हस्ताम्याम् । सरस्वत्यै वाचो यन्तु यन्त्रिये दधामि बृहस्पतेष्ट्वा साम्राज्येनाभिषिञ्चामि ॥ ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष ᳪ शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिर्वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व ᳪ शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥
  • ॐ सुरास्त्वामभषिञ्चन्तु ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः । वासुदेवो जगन्नाथस्तथा सङ्कर्षणो विभुः ॥ प्रद्युम्नश्चानिरुद्धश्च भवन्तु विजयाय ते । आखण्डलोऽग्निर्भगवान् यमो वै निर्ऋतिस्तथा ॥ वरुणः पवनश्चैव धनाध्यक्षस्तथा विभुः । ब्रह्मणा सहिताः सर्वे दिक्पालाः पान्तु ते सदा ॥ कीर्तिर्लक्ष्मीर्धृतिर्मेधा पुष्टिः श्रद्धा क्रिया मतिः। बुद्धिर्लज्जावपुः शान्तिस्तुष्टिः कान्तिश्चमातरः॥एतास्त्वामभिषिञ्चन्तु देवपत्न्यः समागताः । आदित्यश्चन्द्रमा भौमो बुधजीवसितार्कजाः ॥ ग्रहास्त्वामभिषिञ्चन्तु राहुः केतुश्च तर्पिताः । देवदानवगन्धर्वा यक्षराक्षसपन्नगाः ॥ ऋषयो मनवो गावो देवमातर एव च । देवपत्न्यो द्रुमा नागा दैत्याश्चाप्सरसां तथा ॥ अस्त्राणि सर्वशस्त्राणि राजानो वाहनानि च । औषधानि च रत्नानि कालस्यावयवाश्च ये ॥ सरितः सागराः शैलास्तीर्थानि जलदा नदाः । एते त्वामभिषिञ्चन्तु धर्मकामार्थसिद्धये ॥ आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवा मरुद्गणाः । अभिषिञ्चन्तु ते सर्वे धर्मकामार्थसिद्धये ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः। सुशान्तिर्भवतु । सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु ॥
  • क्षमाप्रार्थना – मया यत्कृतं (यज्ञं/होमं/जपं) तत्कालहीनं भक्तिहीनं श्रद्धाहीनं द्रव्यहीनं च भवतां ब्राह्मणानां वचनात् श्रीसूर्याद्यावाहितदेवता प्रसादाच्च सर्वविधे परिपूर्णतास्तु इतिभवन्तोन्नुवन्तु ॥ अस्तु परिपूर्णता ॥
  • विष्णु स्मरण : ॐ यस्य स्मृत्याचनामोक्त्यातप पूजाक्रियादिषु ॥ न्यूनं संपूर्णतांयातिसद्योवदेतमच्युतं ॥ अज्ञानाद्वा यदि वा मोहाद् प्रच्यवेत्ताऽध्वरेषु यत् । स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्णं स्यादिति श्रुतिः ॥

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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