भारतीय संस्कृति में तीर्थ यात्रा का प्रचलन था, लोग तीर्थ यात्रा तो भूलने लगे हैं और तीर्थयात्रा पर्यटन बनकर रह गयी है लेकिन जो अमर्यादित आचरण भारतीय संस्कृति में निषिद्ध होती थी अब वो घुसपैठ कर चुकी है। इसी में से एक है हनीमून। कोई भी नया व्यवहार जो विदेशों से आता है वह प्रथमतया महानगरों में आता है फिर नगरों में और तत्पश्चात् गांवों में भी पैठ करने लगता है। इसी परम्परा में एक विषय हनीमून है जो महानगरों से आगे बढकर नगरों में पहुंच गया है और गांवों के प्रवेशद्वार पर खड़ा है। इस आलेख में हम भारत में हनीमून के औचित्य का विचार करेंगे ।
क्या आप हनीमून का हिंदी अर्थ जानते हैं | हनीमून क्या होता है ?
ध्यातव्य : आलेख पढ़ने-समझने से पहले यह आवश्यक है कि भारतीयता को आत्मसात करें। एक भारतीय को उपरोक्त आलेख अक्षरशः सत्य लगेगा और एक विदेशी; जो जन्म से भारतीय हो तो हो किन्तु भावना से विदेशी हो; उसको भी तथ्य सही तो लगेंगे किन्तु अप्रिय लगेगा जबकि एक वास्तविक विदेशी को भी अप्रिय नहीं लगेगा।
“वास्तविक भारतीय वो नहीं है जिसनें भारत में जन्म लिया है, वास्तविक भारतीय वो है जिसके विचार भी भारतीय हैं, आलेख को समझने हेतु भारतीय विचार होना अनिवार्य है”
षड्यंत्र : भारत में सदियों से विदेशी आक्रांताओं ने शासन पर अपना अधिकार रखा परन्तु भारत की संस्कृति सुरक्षित रही क्योंकि प्रत्यक्ष प्रहार किया जाता था और तदनुसार भारतीय भी प्रतिरोध करते थे व अपनी संस्कृति को संरक्षित करने का कोई न कोई मार्ग ढूंढ ही लेते थे। परन्तु वर्त्तमान में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से प्रत्यक्ष प्रहार न करके षड्यंत्र करते हुये भारतीयों को भ्रमित करने का प्रयास किया जाने लगा है। दशकों से षड्यंत्र पूर्वक भारतीयों को अपनी संस्कृति से द्वेष और विदेशी संस्कृति से प्रेम करना सिखाया जा रहा है।
इसके कुछ प्रत्यक्ष प्रमाण भी हैं; जैसे होली पर जल संरक्षण की बात कौन करता है कोई न कोई भारतीय जो षड्यंत्र का शिकार हो जाता है वही करता है, दीपावली से एक महीने पहले प्रदूषण क्यों बढ़ जाता है और दीपावली के बाद प्रदुषण समाप्त क्यों हो जाता है, क्योंकि दीपावली उत्सव में विघ्न करना होता है, कौन चिल्लाने लगता है प्रदूषण-प्रदूषण-प्रदूषण ? भारतीय मीडिया ही तो चिल्लाती है, भारतीय न्यायपालिका ही तो कुछ न कुछ ऐसा आदेश करती है जिससे दीपावली का उत्सव बाधित होता है।
भारतीय संस्कृति माता-पिता का आज्ञाकारी होना सिखाता है, विदेशी संस्कृति अपना जीवन अपना तरीका कहकर भ्रमित करते हुये बच्चों को अपने माता-पिता, परिवार-समाज सबका विरोध करने वाला बना देता है। ये षड्यंत्र ही है। क्रिशमस मनाने के लिये भारतीयों को प्रेरित करते हैं और भारतीय मनाते भी हैं, कौन मनाते हैं जो भ्रमित हो जाते हैं वही मनाते हैं। जन्मदिन पर पूजा-हवन न करके केक काटना किसने सिखाया क्या भारतीयों ने नहीं अपना लिया है।
रामायण, पुराण, मनुस्मृति आदि गलत है, जला देना चाहिये और लेकिन अन्य सारे किताब पवित्र हैं पाक हैं ये कौन कर रहा है भारत में भारतीय ही तो कर रहे हैं। लेकिन मात्र स्वार्थवश नहीं कर रहे हैं, स्वार्थ के साथ-साथ भ्रमित भी हैं इसलिये करते हैं। भारत में भारतीय संस्कृति, भारतीय ग्रंथ, भारतीय परम्पराओं को साम्प्रदायिक कौन कहता है? भारतीय ही तो कहते हैं, क्यों कहते हैं? क्योंकि उनकी स्वार्थपूर्ति भी होती है और भ्रमित भी कर दिये गये हैं।
विवाह में मंत्र के बदले फिल्मी गीत गाकर फेरा कौन लगवा रहा है, बिना प्रतिष्ठित अग्नि में हवन के नाम पर अपद्रव्य (अपरीक्षित /मिलावटी घी आदि) की आहुति कौन दे रहा है, कौन दिला रहा है, कोई बोलता क्यों नहीं ? ये सब एक षड्यंत्र के कारण हो रहा है। आज के इस आलेख में एक विशेष षड्यंत्र की चर्चा की जा रही है जिसका नाम है भारतीयों पर हनीमून थोपना।
सर्वप्रथम तो हमें यह जानना आवश्यक है कि क्या हनीमून भारतीय संस्कृति का अंग है ?
इसका स्पष्ट उत्तर है नहीं यह भारतीय संस्कृति का अंग नहीं है। यह विदेशी संस्कृति है। भारतीय संस्कृति और विदेशी संस्कृतियों में दाम्पत्य जीवन के संदर्भ में कई अंतर हैं जिनमें सबसे महत्वपूर्ण दो अंतर इस प्रकार हैं :
काल के संबंध में : भारतीय संस्कृति विवाह को जन्म-जन्मांतर का सम्बन्ध मानता है न कि क्षणिक। अर्थात यदि कुछ विशेष शास्त्रोक्त दुर्गुण न हो तो त्याग नहीं किया जा सकता। सम्बन्ध विच्छेद सम्बन्धी कोई चर्चा भारतीय संस्कृति में नहीं है। किन्तु अधर्मियों ने इसके लिये भी प्रयास किये हैं।
अधर्मियों की गतिविधि कुछ इस प्रकार से होती है सिनेमा और धारवाहिक आदि के माध्यम से विकृत करने का प्रयास करना, फिर उसके अन्य अंग भी अनेक प्रकार से यथा समाचार चैनलों, लेखों आदि के माध्यम से समर्थन और प्रचार-प्रसार करना। और इसका प्रमाण है कुछ सिनेमा और धारावाहिकों में विवाह का विच्छेद सिद्ध करने की नई परंपरा का आरम्भ करने के लिये विपरीत क्रम से सप्तपदी आदि करके तलाक की अवधारणा को सृजित करने का प्रयास करना।
इस प्रकार का कुकृत्य करने वालों को दण्डित करने की आवश्यकता है किन्तु एक दशक पूर्व तक उनकी विचारधारा का पोषण करने वाली ही सरकार भी बनती रही, न्यायपालिका में भी उसी विचारधारा के समर्थक और पोषक तत्वों की पैठ है तो फिर दण्डित कौन करे और कैसे करे ?
अब जबकि वर्त्तमान सरकार भारतीय संस्कृति के संरक्षक होने की घोषणा करती है तो उससे ये आशा-अपेक्षा की जा सकती है कि इस सम्बन्ध में कुछ विशेष विधान करे जिससे भारतीय संस्कृति को विकृत करने की चेष्टा करने वाले दण्ड के पात्र हो सकें।
इसी कड़ी में एक विदेशी परम्परा जिसे हनीमून कहा जाता है, विवाहित जोड़े वासना पूर्ति के लिये एक विशेष प्रक्रिया अपनाते हैं क्योंकि उनकी संस्कृति में विवाह क्षणिक सम्बन्ध होता है पता नहीं कब टूट जाये। उसकी संस्कृति में विवाह का महत्व नहीं साथ रहने का, वासना पूर्ति का महत्व होता है। जबकि भारतीय संस्कृति में विवाह का महत्व होता है साथ रहें या न रहें। भगवान श्रीराम ने सीता का परित्याग कर भी दिया किन्तु विवाह नामक संस्था का अंत नहीं हुआ।
उद्देश्य का अंतर : विवाह के सन्दर्भ में भारतीय संस्कृति धर्म, अर्थ और काम तीन पुरुषार्थ की सिद्धि, पूर्णत्व प्राप्ति, पुत्र प्राप्ति आदि मुख्य उद्देश्य होता है वासना पूर्ति नहीं। इसके विपरीत विदेशी संस्कृति में दो जोड़े के मिलन का मुख्य उद्देश्य वासनापूर्ति होता है, संतान प्राप्ति भी गौण उद्देश्य ही होता है, पूर्णत्व, पुरुषार्थ आदि की तो कोई चर्चा ही नहीं की जा सकती।
इस प्रकार इस मुख्य दो अंतर के कारण से विदेशी संस्कृति में दो नये जोड़े को हनीमून की परम्परा से दाम्पत्य काल की वृद्धि अर्थात दाम्पत्य जीवन में स्थायित्व का मार्ग ढूंढा जाता है।
भारतीय संस्कृति में विवाह होने के बाद स्थायित्व का कोई अभाव नहीं होता इसे एक जन्ममात्र के लिये ही नहीं जन्म-जन्मांतर तक का स्थायित्व प्राप्त है फिर भारतीय संस्कृति में किसी अतिरिक्त स्थायित्व की अपेक्षा ही नहीं होती और हनीमून परम्परा की कोई आवश्यकता नहीं होती। पुनः भारतीय संस्कृति में विवाह का मुख्य उद्देश्य वासना की तृप्ति मात्र नहीं है। पुरुषार्थत्रय में भी धर्म और अर्थ के बाद काम आता है और काम का अर्थ भी मात्र वासना नहीं होता। अतः भारतीय संस्कृति में हनीमून की कोई आवश्यकता नहीं सिद्ध होती।
हनीमून का हिंदी अर्थ – honeymoon meaning in hindi
ऊपर हमनें ये समझा कि हनीमून भारतीय संस्कृति का अंग है या नहीं और भारतीय जीवन की आवश्यकता है या नहीं और निष्कर्ष ये निकला कि हनीमून न ही भारतीय संस्कृति का अंग हैं और न ही भारतीय जीवन की आवश्यकता। अब हम हनीमून का अर्थ समझने का प्रयास करेंगे। हनीमून संस्कृत या हिन्दी का शब्द नहीं है तथापि चूंकि षड्यंत्र पूर्वक भारतीय संस्कृति में हनीमून को थोपने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है इसलिये हमें इसके अर्थ को भी भारतीय भाषा के अनुसार समझने का प्रयास करना चाहिये।
हनीमून का संधि विच्छेद करने पर इस प्रकार होगा : हनीम् + ऊन
हनीमून का इस प्रकार भी विच्छेद किया जा सकता है – हन् + ईम् + ऊन तथापि इससे भी उसी प्रकार आगे बढ़ा जा सकता है। हनीम् से भी हन् धातु का ही ग्रहण किया जायेगा।
- हन् अर्थात मारना, वध या हत्या करना इत्यादि।
- ऊन अर्थात निर्धारित से कम। जैसे ऊनविंशति = 20 से कम अर्थात 19, ऊनपञ्चाशत = 50 से कम अर्थात 49
यद्यपि हनीमून शब्द न तो संस्कृत का है और न ही संस्कृत से अर्थ का विचार करना अपेक्षित है किन्तु तब तक जब तक कि भारतीय संस्कृति में हनीमून को समाहित करने का प्रयास न किया जाय। चूंकि ऐसा प्रयास किया जा रहा है और महानगरों से निकलकर नगर से आगे बढ़ते हुये गांव में भी प्रवेशोत्सुक है इसलिये इसका अर्थ भी भारतीय भाषा में समझना आवश्यक हो जाता है।
ये अलग बात है कि संस्कृत को भारत की राष्ट्रभाषा नहीं बनाया गया। हिन्दी को बनाया गया और विवाद का कारण बना। संस्कृत दक्षिण से उत्तर और पश्चिम से पूर्व सर्वत्र व्यापक है। इसलिये राष्ट्रभाषा संस्कृत को ही बनाया जाना चाहिये था किन्तु दुर्भावनाग्रस्त लोग सत्ता को अपने नियंत्रण में ले चुके थे अतः ऐसा नहीं किया गया।
ऊपर किये गये विच्छेद से हनीं अर्थात हन् और ऊन की प्राप्ति होती है जिसका अर्थ एक ही हो सकता है हत्या/वध/मारने से कम। अर्थात मारने से थोड़ा कम प्रयास किया जाना। चूंकि हनीमून का अर्थ मारने से थोड़ा कम प्रयास किया जाना सिद्ध होता है अतः ऐसा कुकृत्य करने के बारे में कोई नवदम्पत्ति सोच भी कैसे सकता है।
स्नानंसचैलं तिलमिश्रकर्म प्रेतानुयानं कलशप्रदानम्। अपूर्वतीर्थामरदर्शनंच विवर्जयेन्मंगलतोब्दमेकम् ॥ – विवाह के बाद इतने धार्मिक कार्यों का भी निषेध प्राप्त होता है फिर वासना का नग्नप्रदर्शन वाला कर्म थोड़े न प्रशस्त हो सकता है। भारतीय संस्कृति में हनीमून जैसे किसी अमर्यादित आचरण की कल्पना भी नहीं की गयी है, क्योंकि भारतीय संस्कृति में विवाह वासनापूर्ति मात्र के लिये नहीं किया जाता है।
सार्थकता की सिद्धि : आप समाचारों में निरंतर पति ने की पत्नी की हत्या, पत्नी ने की पति की हत्या सुनते होंगे। यहां ध्यान देने की बात ये है कि इस प्रकार के काण्ड महानगरों में अत्यधिक होती है जहां हनीमून का अधिक प्रचार-प्रसार है। उससे कम नगरों में जहाँ प्रचार-प्रसार भी कम हुआ है और गाँवों में जहां अभी हनीमून का प्रवेश नहीं हुआ है नगण्य मात्रा में होती है।
यद्यपि यह किसी सर्वेक्षण का परिणाम नहीं है परन्तु कोरी कल्पना भी कहना सही नहीं होगा। भारत सरकार (कार्यपलिका और विधायिका) को चाहिये कि भारतीय संस्कृति पर होने वाले इन आघातों की रोकथाम के लिये सार्थक प्रयास करे, न्यायपालिका का उल्लेख नहीं करने का कारण यह है कि न्यायपालिका तो उनके संरक्षक की भूमिका में है।
इसके प्रमाण भी हैं लिव एण्ड रिलेशनशिप का विषय हो अथवा समलैंगिक विवाह का न्यायपालिका की कार्य-विचारधारा-टिपण्णी-आदेश आदि का अवलोकन करने से यही सिद्ध होता है कि न्यायपालिका में जो व्यक्ति बैठे हुये हैं उन्हें भी भारतीय संस्कृति से द्वेष है और विदेशी संस्कृति से प्रेम। यहां पर ऐसा नहीं समझा जाना चाहिये कि मैं ऐसा कह रहा हूं, यह समझना चाहिये कि उनके व्यवहार से यह प्रकट होता है।
अब जब हनीमून जिसकी संस्कृति का भाग है उसके लिये honeymoon का अर्थ इस प्रकार किया जाता है : Honey अर्थात मधु और Moon अर्थात चन्द्रमा। इस प्रकार मधु से मधुरता और चन्द्रमा से रात का ग्रहण किया जायेगा यद्यपि शीतलता को भी ग्रहण किया जा सकता है, तो Honeymoon का अर्थ होता है रात के समय परस्पर मधुर व्यवहार करना अर्थात रतिक्रिया। इस प्रकार से ही कहीं दूर जाकर जहां अनेकों प्रकार के विघ्न संभावित हों स्वछंदता का प्रदर्शन करना भारतीय संस्कृति के विपरीत व्यवहार सिद्ध होता है। भारतीय संस्कृति में रतिक्रिया हेतु भी मर्यादा का स्थापन किया गया है।
पाठकों के प्रति : जो लोग कर्मकाण्ड विधि के आलेख पढ़ते हैं उन्हें यह ज्ञात होना चाहिये कि जब भारत के सिने जगत, विभिन्न चैनलों और यहां तक कि न्यायपालिका में भी भारतीय संस्कृति के विरोधी ही स्थापित हैं जो भारतीय संस्कृति का क्षरण और विदेशी संस्कृति का पोषण-संरक्षण-प्रचार-प्रसार करते हैं तो गूगल की क्या बात करें। गूगल तो विदेशी है ही। कर्मकाण्ड विधि पर इतने महत्वपूर्ण तथ्य दिये जाते हैं किन्तु गूगल नहीं चाहता की सही भारतीय तथ्य भारतीयों तक पहुंचे अतः रिच घटाकर अवरोध उत्पन्न करने का प्रयास करना कोई अप्रत्याशित बात नहीं है।
ऐसी स्थिति में पाठकों का ही दायित्व बनता है कि कर्मकाण्ड विधि के जो महत्वपूर्ण आलेख हैं, जो भारतीयों को जानना आवश्यक है उन आलेखों को विभिन्न सामजिक संचार माध्यमों (व्हाटसप, फेसबुक आदि) पर साझा करें ताकि जानकारी अधिकतम लोगों को प्राप्त हो सके।
सारांश : इस आलेख का सारांश ये है कि भारतीयों को अपनी संस्कृति और विदेशी संस्कृति में अंतर समझना चाहिये। अपनी संस्कृति की जो परम्परायें हैं उनका पालन करना चाहिये। विदेशी संस्कृति का भी विदेशियों के लिये उतना ही महत्व है परन्तु षड्यंत्र करके किसी अन्य पर थोपना सही नहीं कहा जा सकता। विदेशी संस्कृति भारतीय संस्कृति के विरुद्ध है और यदि भारतीय षड्यंत्र का शिकार होते रहे तो उनकी अपनी संस्कृति सुरक्षित नहीं रहेगी। अपनी संस्कृति की सुरक्षा के लिये भारतीयों को विदेशी संस्कृति अंगीकार करने से बचना चाहिये।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।