कवचार्गलादि पाठ करने के उपरांत सप्तशती का पाठ किया जाता है, किन्तु उससे पहले और अंत में न्यास किया जाता है और साथ ही साथ पाठ आरंभ और समापन के उपरांत नवार्ण मंत्र भी जप करना चाहिये। नवार्ण मंत्र जप करने के लिये नवार्ण मंत्र न्यास भी करना चाहिये। इस आलेख में नवार्ण मंत्र न्यास विधि, माला पूजन विधि, ध्यान मंत्र, सप्तशती न्यास विधि दी गयी है। न्यास में सामान्यतः दो न्यास प्रमुख होते हैं करन्यास और हृदयादि न्यास। अतः इतना न्यास विशेष रूप से करनी चाहिये।
॥ अथ नवार्णजप विधिः॥
नवार्ण मंत्र के विषय में दो पक्ष हैं अर्थात नवार्ण मंत्र भी दो प्रकार के देखे जाते हैं :
- “ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” – यहां प्रणवरहित पक्ष का अवलंबन किया गया है।
- “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” – कई पुस्तकों में और अधिकतर गीताप्रेस की पुस्तक का प्रयोग होता है इस कारण सप्रणव प्रयोग होता है।
सप्रणव पक्ष का अवलंबन करने वाले सर्वत्र प्रणव प्रयोग करें। गुरुमुख से प्राप्त मंत्र का प्रयोग करें।
॥ विनियोग ॥
सर्वप्रथम हाथ में जल लेकर न्यास का विनियोग करे :
श्रीगणपतिर्जयति । ॐ अस्य श्रीनवार्णमन्त्रस्य ब्रह्मविष्णुरुद्रा ऋषयः, गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दांसि, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः, ऐं बीजम्, ह्रीं शक्तिः, क्लीं कीलकम्, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।
॥ ऋष्यादिन्यास ॥
नीचे लिखे न्यासवाक्यों में से एक-एक का उच्चारण करके दाहिने हाथ की अँगुलियों से क्रमशः सिर, मुख, हृदय, गुदा, दोनों, चरण और नाभि – इन अंगों का स्पर्श करें :
- ब्रह्मविष्णुरुद्रऋषिभ्यो नमः, शिरसि।
- गायत्र्युष्णिगनुष्टुप्छन्दोभ्यो नमः मुखे।
- महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताभ्यो नमः, हृदि।
- ऐं बीजाय नमः, गुह्ये। ह्रीं शक्तये नमः, पादयोः।
- क्लीं कीलकाय नमः, नाभौ।
- ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे – इस मूलमन्त्र से हाथों की शुद्धि करके करन्यास करें।
॥ करन्यास॥
करन्यास में सभी उंगलियों और करतल एवं करपृष्ठ का न्यास किया जाता है। अन्य सभी न्यासों में तो दाहिने हाथ की उंगलियों से निर्दिष्ट अङ्ग का स्पर्श करके न्यास किया जाता है किन्तु करन्यास में विधि अलग हो जाती है, जिसका निर्देश दिया गया है :
- ऐं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः। – दोनों हाथों के अंगूठे और तर्जनी को मिलायें।
- ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः। – पुनः दोनों हाथों के अंगूठे और तर्जनी को मिलायें।
- क्लीं मध्यमाभ्यां नमः। – दोनों हाथों के अंगूठे और मध्यमा को मिलायें।
- चामुण्डायै अनामिकाभ्यां नमः। – दोनों हाथों के अंगूठे और अनामिका को मिलायें।
- विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां नमः। – दोनों हाथों के अंगूठे और कनिष्ठा को मिलायें।
- ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। – पहले दोनों करतल को मिलाये फिर दोनों करपृष्ठ को मिलाये।

॥ हृदयादिन्यास ॥
हृदयादिन्यास के लिये दाहिने हाथ की पाँचों उंगुलियों से हृदय आदि अंगों का स्पर्श किया जाता है, कुछ लोग करतल से भी करते हैं :
- ऐं हृदयाय नमः। – दाहिने हाथ के पांचों उंगलियों को मिलाकर हृदय स्पर्श करे।
- ह्रीं शिरसे स्वाहा। – शिर स्पर्श करे।
- क्लीं शिखायै वषट्। – शिखा स्पर्श करे।
- चामुण्डायै कवचाय हुम्। – दोनों हाथों परस्पर दाहिने और बायीं बांहों का स्पर्श करे।
- विच्चे नेत्रत्रयाय वौषट्। – दाहिने हाथ की तर्जनी से दाहिना नेत्र, अनामिका से बांया नेत्र और मध्यमा से तृतीय नेत्र कल्पित करके मध्य मस्तक का स्पर्श करे।
- ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे अस्त्राय फट्। – दाहिने हाथ को शिर के ऊपर से घुमाकर ताली बजाये। कुछ लोग तर्जनी और मध्यमा दो उंगलियों से ही निर्देश करते हैं तो कुछ लोग अप्रदक्षिण क्रम का भी निर्देश करते हैं।
॥ अक्षरन्यास ॥
अग्रांकित मंत्रों से क्रमशः शिखा आदि का स्पर्श करें :
- ऐं नमः, शिखायाम्। – शिखा
- ह्रीं नमः, दक्षिणनेत्रे। – दाहिना नेत्र
- क्लीं नमः, वामनेत्रे। – बायां नेत्र
- चां नमः, दक्षिणकर्णे। – दाहिना कान
- मुं नमः, वामकर्णे। – बायां कान
- डां नमः, दक्षिणनासापुटे। – दाहिना नासिकापुट
- यैं नमः, वामनासापुटे। – बायां नासिकापुट
- विं नमः, मुखे। – मुख
- च्चें नमः, गुह्ये। – गुहा

॥ दिङ्न्यास ॥
दशों दिशाओं में चुटकी बजाये :
- ऐं प्राच्यै नमः। – पूर्व
- ऐं आग्नेय्यै नमः। – अग्निकोण
- ह्रीं दक्षिणायै नमः। – दक्षिण
- ह्रीं नैर्ऋत्यै नमः। – नैर्ऋत्यकोण
- क्लीं प्रतीच्यै नमः। – पश्चिम
- क्लीं वायव्यै नमः। – वायव्यकोण
- चामुण्डायै उदीच्यै नमः। – उत्तर
- चामुण्डायै ऐशान्यै नमः। – ईशानकोण
- ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ऊर्ध्वायै नमः। – ऊपर
- ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे भूम्यै नमः। – नीचे
॥ ध्यानम् ॥
फिर पुष्पादि लेकर देवी का ध्यान करे :
खड्गं चक्रगदेषुचापपरिघाञ्छूलं भुशुण्डीं शिरः
शङ्खं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम्।
नीलाश्मद्युतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकां
यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम्॥१॥
ॐ अक्षस्रक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनुष्कुण्डिकां
दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम्।
शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां
सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम्॥२॥
ॐ घण्टाशूलहलानि शङ्खमुसले चक्रं धनुः सायकं
हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम्।
गौरीदेहसमुद्भवां त्रिजगतामाधारभूतां महा
पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम्॥३॥
माला की पूजा
फिर “ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः” इस मन्त्र से माला की पूजा करके प्रार्थना करें –
ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणि। चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव ॥
इस मंत्र से माला को दाहिने हाथ में ग्रहण करे :
ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृह्णामि दक्षिणेकरे। जपकाले च सिद्ध्यर्थं प्रसीद मम सिद्धये ॥
ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्वमन्त्रार्थसाधिनि
साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा ॥
इसके बाद “ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” इस मन्त्र का १०८ बार जप करें और-
फिर इस श्लोक को पढ़कर देवी के वामहस्त में जप निवेदन करें।
ॐ गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादान्महेश्वरि ॥
॥ सप्तशतीन्यास ॥
तदनन्तर सप्तशती के विनियोग, न्यास और ध्यान करने चाहिये। न्यास की विधि (स्पर्श करना) पूर्ववत् है-
॥ विनियोग ॥
प्रथममध्यमोत्तरचरित्राणां ब्रह्मविष्णुरुद्रा ऋषयः, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः, गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दांसि, नन्दाशाकम्भरीभीमाः शक्तयः, रक्तदन्तिकादुर्गाभ्रामर्यो बीजानि, अग्निवायुसूर्यास्तत्त्वानि, ऋग्यजुःसामवेदा ध्यानानि, सकलकामनासिद्धये श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।
॥ करन्यास ॥
ॐ खड्गिनी शूलिनी घोरा गदिनी चक्रिणी तथा। शङ्खिनी चापिनी बाणभुशुण्डीपरिघायुधा॥
अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके। घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्यानिःस्वनेन च॥
तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ प्राच्यां रक्ष प्रतीच्यां च चण्डिके रक्ष दक्षिणे। भ्रामणेनात्मशूलस्य उत्तरस्यां तथेश्वरि॥
मध्यमाभ्यां नमः।
ॐ सौम्यानि यानि रूपाणि त्रैलोक्ये विचरन्ति ते। यानि चात्यर्थघोराणि तै रक्षास्मांस्तथा भुवम्॥
अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ खड्गशूलगदादीनि यानि चास्त्राणि तेऽम्बिके। करपल्लवसङ्गीनि तैरस्मान् रक्ष सर्वतः॥
कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते। भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥
करतलकरपृष्ठाभ्यां।
॥ हृदयादिन्यास ॥
- ॐ खड्गिनी शूलिनी घोरा ० – हृदयाय नमः।
- ॐ शूलेन पाहि नो देवि ० – शिरसे स्वाहा।
- ॐ प्राच्यां रक्ष प्रतीच्यां च ० – शिखायै वषट्।
- ॐ सौम्यानि यानि रूपाणि ० – कवचाय हुम्।
- ॐ खड्गशूलगदादीनि ० – नेत्रत्रयाय वौषट्।
- ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे ० – अस्त्राय फट्।
॥ ध्यान ॥
ॐ विद्युद्दामसमप्रभां मृगपतिस्कन्धस्थितां भीषणां
कन्याभिः करवालखेटविलसद्धस्ताभिरासेविताम्।
हस्तैश्चक्रगदासिखेटविशिखांश्चापं गुणं तर्जनीं
बिभ्राणामनलात्मिकां शशिधरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे॥
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ सुशांतिर्भवतु ॥ सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु ॥
आगे सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती के अनुगमन कड़ी दिये गये हैं जहां से अनुसरण पूर्वक कोई भी अध्याय पढ़ सकते है :
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।