सभी पूजा अनुष्ठानों की भांति ही नवरात्र में भी हवन कर्तव्य होता है। हवन कर्मकांड का वो भाग है जिसमें देवता को आहुति रूपी भोजन प्रदान किया जाता है। हवन करने वाले को यह अनिवार्य रूप से ध्यान रखना चाहिये कि जो आहुति दी जा रही है उसे देवता अस्वीकार न करें। शारदीय नवरात्रि हो अथवा चैत्र नवरात्रि अथवा गुप्त नवरात्रि सबमें हवन की समान विधि ही होती है मात्र संकल्प में मास, वार के नाम का परिवर्तन किया जाता है, अन्य कोई अंतर नहीं होता। इस आलेख में नवरात्रि हवन विधि और मंत्र दिया गया है साथ ही डाउनलोड करने के लिये PDF भी दिया गया है।
नवरात्रि हवन विधि मंत्र PDF सहित : तिथि ९वीं
हवन किसी भी अनुष्ठान का वो भाग है जिसमें देवता को भोजन प्रदान किया जाता है। येन-केन-प्रकारेण आहुति प्रदान करने से देवता उसे स्वीकार नहीं करते और वह आसुरी संज्ञक हो जाता है। पूजा में जो भी वस्तुयें अर्पित की जाती है उसमें तनिक भी कमी नहीं आती अर्थात देवता वस्तु नहीं मात्र भाव को ग्रहण करते हैं। किन्तु हवन में मात्र श्रद्धा-भाव ही नहीं हवन के उपरांत जो शेष घृत-हविष्य आदि शेष बचता है उसके अतिरिक्त भी देवता ही ग्रहण करते हैं, यदि विधिपूर्वक किया जाये तो। देवता के निमित्त जो आहुति प्रदान की गयी उसे यदि देवता स्वीकार ही न करें तो वह निष्फल ही सिद्ध होता है।
हवन किसी भी अनुष्ठान का वो भाग है जिसमें देवता को भोजन प्रदान किया जाता है। येन-केन-प्रकारेण आहुति प्रदान करने से देवता उसे स्वीकार नहीं करते और वह आसुरी संज्ञक हो जाता है। पूजा में जो भी वस्तुयें अर्पित की जाती है उसमें तनिक भी कमी नहीं आती अर्थात देवता वस्तु नहीं मात्र भाव को ग्रहण करते हैं। किन्तु हवन में मात्र श्रद्धा-भाव ही नहीं हवन के उपरांत जो शेष घृत-हविष्य आदि शेष बचता है उसके अतिरिक्त भी देवता ही ग्रहण करते हैं, यदि विधिपूर्वक किया जाये तो। देवता के निमित्त जो आहुति प्रदान की गयी उसे यदि देवता स्वीकार ही न करें तो वह निष्फल ही सिद्ध होता है।
हवन में विधिपूर्वक कथन का तात्पर्य यही है कि विधिपूर्वक करे तो ही देवता स्वीकार करते हैं और यदि विधिपूर्वक न करे तो देवता स्वीकार ही नहीं करते। विज्ञ जनों के लिये इस तथ्य को ध्यान में रखना विशेष रूप से अनिवार्य है। इसके लिये हवन की सभी विधियों और मंत्रों का अध्ययन करना समझना अनिवार्य है। हवन के विषय में पर्याप्त जानकारी देने वाले अनेकों आलेख संपूर्ण कर्मकांड विधि पर प्रकाशित किया गया है। यहां उसका लिंक दिया गया है जिसमें हवन से संबंधित सभी आलेख देखे जा सकते हैं।
शारदीय नवरात्रि हवन विधि
चर्चा जब नवरात्र के हवन की होती है तो एक ही तथ्य ध्यान में आता है वो ये कि नवरात्रि का हवन नवमी को किया जाता है अथवा करना चाहिये, किन्तु यह मात्र एक भ्रम है। नवरात्रि हवन में सर्वोत्तम पक्ष यह है कि प्रतिदिन हवन करे, नवमी को पूर्णाहुति करे, मध्यम पक्ष यह है कि महासप्तमी, महाष्टमी और महानवमी तीन दिन हवन करे और नवमी को पूर्णाहुति करे। महानवमी मात्र को हवन करना तो अनिवार्य विकल्प मात्र है। नौ दिनों तक उपासना करके भोजन अंतिम दिन प्रदान करना अंतिम विकल्प ही कहा जा सकता है।
वास्तव में जितने दिन पूजा-अराधना करे देवता को आहुति के माध्यम से उतने दिन भोजन भी प्रदान करना चाहिये, कर्मकांड का यही सिद्धांत है। आर्थिक-सामाजिक-व्यावहारिक आदि अक्षमता की स्थिति में अंतिम दिन करना विकल्प है। बात जब भोजन की आती है तो यह स्पष्ट कर दिया गया है देवता वही ग्रहण करते हैं जो विधिपूर्वक देवता के निमित्त अग्नि में प्रदान किया जाता है। नैवेद्य में तो देवता भाव मात्र का ही भोग लगाते हैं।
हवन करने के विशेष नियम
- हवन करने हेतु तडाग आदि लौह पात्रों का प्रयोग नहीं करे।
- हवन हेतु वेदी बनाये, यदि कुंड बनाना हो तो शास्त्रोक्त प्रमाणानुसार ही बनाये मनमर्जी से नहीं।
- हवन में शुद्ध घृत का ही प्रयोग करे, शुद्ध घी की व्यवस्था नवरात्र आरंभ होने से पूर्व ही करे।
- हवन में प्रयुक्त होने वाले तिल-जौ आदि को पूर्व दिनों में ही स्वच्छ करके धो-सूखा ले।
- बिना पंचभूसंस्कार किये अविधि प्रज्वलित की गयी अग्नि हवन करने के योग्य नहीं होती।
- बिना ब्रह्मा के भी हवन नहीं किया जाता है अतः हवन आरंभ करने से पूर्व ब्रह्मा स्थापन अवश्य करे।
- आज्याहुति हेतु किसी भी लकड़ी, पत्ते, चम्मच आदि का प्रयोग न करे, हस्तप्रमाण स्रुव के अग्र भाग में छिद्र होता है।
- यदि दुर्गा सप्तशती से हवन करना हो तो मात्र 13 अध्याय का होम होता है, कवच आदि स्तोत्रों का नहीं।
- आहुति देते समय सावधान और सजग रहते हुये ध्यान पूर्वक आहुति दे, किसी प्रकार की कोई बात-चीत, हंसी आदि न करे।
- आहुति संख्या में न्यूनाधिक न हो इसका विशेष ध्यान रखे।
- स्विष्टकृद्धोम हवन की अग्नि में पकाये हुये पायस से ही करे, अन्य अग्नि में पकाये पायस से नहीं।
- हवन-अनुष्ठान-यज्ञादि में शेष सामग्री पर आचार्य का ही अधिकार होता है अतः शेष सामग्री आचार्य को ही प्रदान करे।
वेदी निर्माण कर, हवन की सभी सामग्रियां व्यवस्थित करके हवन करने बैठे। पवित्रीकरणादि करके सर्वप्रथम त्रिकुशा, तिल, जल, द्रव्यादि लेकर संकल्प करे :
संकल्प मंत्र : ॐ अद्य आश्विने.मासे शुक्ले पक्षे नवम्यां तिथौ, ………. वासरे, गोत्रोत्पन्नः ………. शर्माऽहं श्री दुर्गायाः प्रीत्यर्थं कृतस्य नवरात्र महोत्सव साङ्गतासिद्ध्यर्थं …….. संख्यया होमं अहं करिष्ये ॥
- तत्पश्चात पंचभूसंस्कार करके अग्नि स्थापित करे।
- फिर ब्रह्मा स्थापन करे।
- तत्पश्चात परिस्तरण, प्रणीता स्थापन, प्रोक्षणी स्थापन आदि पूर्वाङ्ग क्रिया हवन विधि में बताई विधि के अनुसार करे : हवन विधि देखें।
- फिर प्रधान हवन नवार्ण मंत्र अथवा ॐ जयंती आदि मंत्रों से अथवा दुर्गा सप्तशती से करे।
- ततपश्चात पुनः उत्तर क्रिया हवन विधि के अनुसार करे।
छन्दोगियों की हवन विधि भिन्न होती है छन्दोगी हवन विधि देखने के लिये यहां क्लिक करें : छन्दोगी हवन विधि
पंचभूसंस्कार : परिसमूह्य, उपलिप्य, उल्लिख्य, उद्धृत्य, अभ्युक्ष्य। पंचभूसंस्कार रहित भूमि में हवन की अग्नि का स्थापन नहीं होता। हवन की सभी क्रियाओं को तीन भागों में बांटकर समझा जाता है : पूर्वांग, मध्यांग और उत्तरांग।
पूर्वांग होम की क्रियायें हैं : पंचभूसंस्कार, अग्निस्थापन, ब्रह्मा स्थापन, प्रणीता-स्थापन, परिस्तरण, आसादन, पवित्रिनिर्माण, प्रोक्षणी स्थापन, प्रोक्षणी, आज्य व स्रुव संस्कार, उपयमन कुशा ग्रहण करके समिधा प्रक्षेप, पर्युक्षण। ये पूर्व क्रियायें हैं जो मुख्य आहूति देने से पहले किये जाते हैं। इतनी क्रियाओं के उपरांत ही अग्नि में जो आज्य/हविष्य दिया जाता है उसे देवता स्वीकार करते हैं, अन्यथा नहीं। एक भी क्रिया/संस्कार के लोप करने का तात्पर्य होता है देवता के अयोग्य। सभी क्रियाओं की विस्तृत जानकारी के लिये पढ़ें : हवन विधि पूर्वाङ्ग व उत्तराङ्ग – पारस्कर गृह्यसूत्र के अनुसार
मध्यांग या प्रधानांग : मध्यांग या प्रधानांग में वाराहुति से आरंभ करके नवग्रहादि पूजित देवता का हवन करते हुये प्रधान देवता को कर्म के अनुसार अपेक्षित आहुति प्रदान की जाती है। पश्चात् पुनः महाव्याहृति होम तक किया जाता है। हवन का प्रधानांग होने के कारण मात्र इसी भाग को हवन समझने का भ्रम उत्पन्न होता है अन्य शेष विधियों का लोप कर दिया जाता है। किन्तु पूर्वांग से रहित होने पर मध्याङ्ग का कोई आधार ही नहीं होता।
जैसे शरीर का तात्पर्य मात्र उदर-हृदय (मध्य भाग) नहीं होता अपितु अधोभाग (कमर से नीचे) और उर्ध्वभाग (गले से ऊपर) भी होता है और सभी मिलकर ही पूर्ण शरीर होता है। अधोभाग से रहित व्यक्ति भी जीवित नहीं रह सकता और उर्ध्वभाग रहित व्यक्ति भी जीवित नहीं रह सकता। उसी प्रकार मध्यांग या प्रधानांग के लिये यह अनिवार्य है कि पूर्वांग और उत्तरांग भी हो।
नवरात्रि हवन की मुख्य आहुति सम्पूर्ण दुर्गासप्तशती से भी दी जाती है, जिसमें 700 आहुति होती है। यदि सप्तशती से आहुति न दी जाय तो अनेक मंत्र हैं जिससे आहुति दी जाती है जैसे :

- नवार्णमंत्र : ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥
- ॐ अम्बे अम्बिके अम्बालिके न मा नयति कश्चन। ससस्त्यस्वकः सुभद्रिकाङ्काम्पीलवासिनीम्॥
- ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते॥
- ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:। नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्मताम्॥
उत्तरांग : हवन के उत्तरांग में पूजा, पाक, स्विष्टकृत्, नवाहुति, बलि, पूर्णाहुति, (वसोर्धारा, त्र्यायुष्करण, संसवप्राशन, पूर्णपात्र दक्षिणा, प्रणीतान्युब्जीकरण, बर्हिहोम) श्रेयोद्दान, दान, अभिषेक, विसर्जन, (दक्षिणा) इत्यादि कहा गया है। स्विष्टकृद्धोम के बारे में प्रायः जानकारी का अभाव होने से या तो किया ही नहीं जाता है अथवा यदि किया भी जाता है तो अन्य अग्नियों पर पकाया हुआ पायस आदि से कर लिया जाता है। स्विष्टकृद्धोम उसी पायस से किया जाना चाहिये जो हवन की अग्नि पर पकाई गयी हो। हवन में किसी भी प्रकार की न्यूनाधिकता दोष निवारण हेतु व अनेक दिनों वाले हवन में पर्युषित दोष निवारण हेतु किया जाता है।
प्रायः हवनों में प्रोक्षणी पात्र का अभाव होता है तो फिर बिना हुतशेष त्याग के ही हवन हो सकता है, एवं संसवप्राशन नहीं हो सकता। इसी प्रकार प्रणीता पात्र का अभाव होने से न्युब्जीकरण किसका होगा। इसी प्रकार आज्यस्थाली के अभाव में छायापात्र कैसे दान हो सकता है, एवं पूर्णपात्र के अभाव में ब्रह्मा को दक्षिणा क्या दी जायेगी ? अर्थात ये सभी कर्म तो अभाव के कारण लोप होते हैं। बड़े स्तर पर किये जाने वाले महोत्सव में अर्थाभाव के कारण ऐसा होता है ये स्वीकार्य नहीं हो सकता, क्योंकि वहां अनेकों अलग-अलग व्यवस्था के लिये लाखों व्यय किया जाता है फिर मुख्य कर्म के लिये क्यों नहीं किया जा सकता ?
चैत्र नवरात्रि हवन विधि
चैत्र मास के नवरात्र हवन में मात्र संकल्प वाक्य में थोड़ा मास और पक्ष का परिवर्तन होगा। अन्य समस्त विधि और मंत्र समान ही रहेंगे।
संकल्प मंत्र : ॐ अद्य चैत्रे.मासे शुक्ले पक्षे नवम्यां तिथौ, ………. वासरे, गोत्रोत्पन्नः ………. शर्माऽहं श्री दुर्गायाः प्रीत्यर्थं कृतस्य नवरात्र महोत्सव साङ्गतासिद्ध्यर्थं …….. संख्यया होमं अहं करिष्ये ॥
निष्कर्ष : उपरोक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि नवरात्रि हवन विधि कहने से हवन विधि से अतिरिक्त कोई अन्य विधि सिद्ध नहीं होती, तथापि नवरात्र महोत्सव में किये जाने के कारण उसे नवरात्रि हवन कहा जाता है। नवरात्रि हवन में सामान्य हवन से जो अंतर होता है वह मात्र संकल्प में और प्रधान देवता के मंत्र में ही होता है अन्य कोई परिवर्तन नहीं होता है।
छागबलि, कूष्माण्ड बलि, कुमारी कन्या पूजन विधि आदि अन्य आलेख में प्रस्तुत किया गया है।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।