पितृपक्ष कब है 2024, तर्पण-श्राद्ध

पितृपक्ष कब है 2024

पितरों से धन-संपत्ति प्राप्त हो अथवा न हो तो भी पुत्रादि के लिये पित्रादि का तर्पण-श्राद्ध आदि करना कर्तव्य होता है उत्तरदायित्व होता है। धन-संपत्ति के साथ उत्तरदायित्व तब मिलता है जब पुत्र न हो और अन्य व्यक्ति धन ग्रहण करे तो तर्पण-श्राद्ध आदि का उत्तरदायित्व उसका होता है। तर्पण तो नित्यकर्म है और इसे नित्य श्राद्ध भी कहा जाता है। तर्पण द्वारा पितरों को प्रतिदिन जल दिया जाता है। इसी प्रकार अमावास्या आदि पर्वों पर मासिक श्राद्ध करने से मास पर्यन्त पितरों की तृप्ति होती है। बात जब पितृपक्ष की आती है तो पितृपक्ष में किये जाने वाले श्राद्ध से वर्षपर्यन्त तृप्ति होती है। इस आलेख में पितृपक्ष कब है 2024 के बारे में जानकारी दी गयी है।

पितृपक्ष कब है 2024, तर्पण-श्राद्ध

नित्यश्राद्ध (तर्पण) द्वारा पितरों को प्रतिदिन जल दिया जाता है। अमावास्या को किये जाने वाले पार्वण श्राद्ध से पितरों की मास पर्यन्त तृप्ति होती है और इसी कड़ी में पितृपक्ष का विशेष महत्व हो जाता है क्योंकि पितृपक्ष में किये गये श्राद्ध से वर्षपर्यंत की तृप्ति होती है।

इस विधान का ही एक दुष्परिणाम भी दिख रहा है जो मानव का बौद्धिक क्षरण है। जैसे अमावास्या श्राद्ध करने से मास पर्यन्त की तृप्ति होती है तो अमावास्या श्राद्ध करो नित्यश्राद्ध का त्याग कर दो। पुनः पितृपक्ष में श्राद्ध करने से वर्षपर्यंत की तृप्ति होती है तो पितृपक्ष में श्राद्ध करो और वर्षपर्यंत नित्यश्राद्ध व पार्वण (अमावास्या) श्राद्ध का त्याग कर दो। गया श्राद्ध कर लो और पितृपक्ष के श्राद्ध का भी त्याग कर दो।

श्राद्ध से संबंधित अनेकानेक महत्वपूर्ण जानकारी इस आलेख में दी गई है ….

  • अमावास्या श्राद्ध करने से मास पर्यन्त पितरों की तृप्ति होती है किन्तु इससे नित्य श्राद्ध (तर्पण) का निषेध सिद्ध नहीं होता।
  • पितृपक्ष में होने वाले श्राद्ध से वर्षपर्यंत की तृप्ति होती है किन्तु इससे अमावास्यादि पार्वण व नित्यश्राद्ध का निषेध नहीं होता।
  • गयाश्राद्ध का अपार माहात्म्य है और अक्षयतृप्ति होती है किन्तु इससे पितृपक्षीय श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध या नित्यश्राद्ध का निषेध नहीं होता।
  • मात्र बद्रीविशाल क्षेत्र (ब्रह्मकपाल) में श्राद्ध करने के उपरांत पुनः अन्यत्र पिण्डदान करने का निषेध है लेकिन उसमें भी पिंडरहित श्राद्ध का निषेध नहीं होता। सनत्कुमारसंहिता में यह वचन आया है :

शिरः कपालं यत्रैतत्पपात ब्रह्मणः शिरः। तत्रैव बदरीक्षेत्रे पिण्डं दातुं प्रभुः पुमान् ॥
मोहाद् गयायां दद्याद्यः स पितृन् पातयेत् स्वकान्। लभते च ततः शापं नारदैतन्मयोदितं ॥

यद्यपि इसमें भी गयाश्राद्ध का ही निषेध देखने को मिलता है, तथापि बहुत सारे विद्वान इस पर भी असहमति रखते हैं कि गयाश्राद्ध का निषेध होता ही है। लेकिन बहुमत से यही स्वीकृत किया गया है कि ब्रह्मकपाल क्षेत्र में श्राद्ध करने के उपरांत पिंडदान निषिद्ध हो जाता है किन्तु पिंडरहित श्राद्ध का नहीं।

अस्तु निष्कर्षतः यही कहा जा सकता है कि गया श्राद्ध करने के उपरांत जो धारणा बन गयी है कि पितृपक्ष में श्राद्ध का निषेध हो जाता है वह भ्रम मात्र है, प्रामाणिक नहीं। एवं इस भ्रम का कारण यही है कि गया श्राद्ध करने से अक्षयतृप्ति होने के कारण पुनः श्राद्ध करने का क्या लाभ क्योंकि तदुपरांत तो आवश्यकता ही नहीं होती है, अर्थात किया गया श्राद्ध व्यर्थ होता है। यहां पर इस पुत्र के उत्तरदायित्व को ही अस्वीकार कर दिया जाता है।

यदि वास्तव में निषेध होता तो एक बार पुत्र ने अपने पितरों का श्राद्ध गया/ब्रह्मकपाल में कर दिया तो पुनः शेष मात्र वो ही बचता है और उसका पुत्र जब गया/ब्रह्मकपाल आदि जाये तो पिता मात्र का करे, पितामहादि का एक बार हो जाने से निषिद्ध हो जाना चाहिये। फिर जिसने गया/ब्रह्मकपाल आदि में जाकर अपने पितरों का श्राद्ध कर दिया उन पितरों के लिये तो सर्वत्र पिंड का निषेध हो गया। पुनः जब गया/ब्रह्मकपाल आदि जाने वाले का श्राद्ध होगा तो उसके लिये पिंड/श्राद्ध की आवश्यकता होगी, किन्तु उससे ऊपर के पितामहादि का पिंड यदि निषिद्ध हो जाता तो फिर सपिंडीकरण श्राद्ध कैसे होगा ?

जिसने गया/ब्रह्मकपालादि क्षेत्र में जाकर अपने पितरों का श्राद्ध कर लिये उस कर्त्ता के अतिरिक्त अन्य पितरों का पार्वण आदि तो निषिद्ध हो जाना चाहिये। अतः निषेध वचन की अनुपलब्धता व पुनः श्राद्ध/पिण्डदान की आवश्यकता सिद्ध होती है अतः यह भ्रम मात्र ही सिद्ध होता है।

पितृपक्ष

अब हम मुख्य विषय पितृपक्ष 2024 पर आते हैं और आरंभ से समापन तक का निर्णय देखते हैं :

ब्रह्मपुराण : आश्विने कृष्णपक्षे तु श्राद्धं देयं दिने दिने । त्रिभागहीनपक्षं वा त्रिभागं त्वर्धमेव वा ॥

मनु : कृष्णपक्षे दशम्यादौ वर्जयित्वा चतुर्दशीम् । श्राद्धे प्रशस्तास्तिथयो यथैता न तथेतराः ॥

पुनः : आषाढीमवधि कृत्वा यः स्यात् पक्षस्तु पञ्चमः । तत्र श्राद्धं प्रकुर्वीत कन्यां गच्छतु वा न वा ॥

हेमाद्री : आषाढ्याः पञ्चमे पक्षे कन्यासंस्थे दिवाकरे । यो वै श्राद्धं नरः कुर्यादेकस्मिन्नपि वासरे । तस्य संवत्सरे यावत् सन्तृप्ताः पितरो ध्रुवम् ॥

या तिथिर्यस्य मासस्य मृताहे तु प्रवर्तते । सा तिथिः पितृपक्षे तु पूजनीया प्रयत्नतः ॥

उपरोक्त सभी प्रमाणों से आश्विन मास का कृष्ण पक्ष पितृपक्ष कहलाता है। यद्यपि कुछ प्रमाणों में षोडश दिन की चर्चा भी मिलती है जिसमें भाद्र शुक्ल पूर्णिमा से लेकर आश्विन कृष्ण अमावास्या तक तो कुछ में आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तक सोलह दिन की गणना की जाती है। किन्तु पितृपक्ष के रूप में आश्विन कृष्ण पक्ष को ही स्वीकार किया गया है। कन्या के सूर्य की भी महत्ता बताई गयी है किन्तु यह भी कहा गया है कि सूर्य कन्या का हो अथवा न भी हो आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन श्राद्ध करे-ही-करे।

अशक्तों के लिये कुछ छूट की भी व्यवस्था है, त्रिभागहीन अर्थात 10 दिन अथवा अर्द्ध अर्थात 8 दिन (प्रतिपदा से अष्टमी पर्यन्त) करे। अत्यंत अशक्त के लिये एक दिन भी करने की बात कही गयी है। एक दिन भी करे यह कहने का तात्पर्य अनिवार्यता सिद्ध करता है न कि एक ही दिन करे ऐसी आज्ञा देता है।

  1. अशौच होना, स्वास्थ्य संबंधी समस्या, वृद्धावस्था, धनाभाव आदि कारणों से यदि पूरे पक्ष न कर सके तो त्रिभागहीन अर्थात 10 दिन (दशमी पर्यन्त) करे।
  2. यदि त्रिभागहीन (10) दिन में भी असमर्थता हो तो अर्द्धपक्ष करे अर्थात अष्टमी पर्यन्त करे।
  3. यदि अर्द्धपक्ष (अष्टमी पर्यन्त) करने में भी असमर्थता या विघ्न-बाधा उपस्थित हो जाये तो भी एक दिन अवश्य ही करे।

पितृपक्ष 2024

  • दृक पञ्चाङ्गानुसार 18 सितंबर 2024 बुधवार को भाद्र शुक्ल पूर्णिमा प्रातः 8:04 बजे तक है।
  • तत्पश्चात आश्विन शुक्ल प्रतिपदा रात्र्यंत 4:19 बजे तक है अर्थात प्रतिपदा का क्षय हो रहा है।
  • यद्यपि अदृश्य पंचांगों में प्रतिपदा क्षय नहीं है और 19 सितंबर गुरुवार को 1 दण्ड के लगभग प्रतिपदा प्राप्त होता है तथापि अदृश्य पंचागों में भी पितृपक्षीय तर्पण-श्राद्ध का आरंभ 19 सितंबर बुधवार से ही दिया गया है।
  • दृकपंचांगों से तो 18 सितंबर 2024 बुधवार को ही पितृपक्षीय तर्पण-श्राद्ध का आरंभ सिद्ध होता ही है।

पितृपक्ष आरंभ : अतः 2024 में पितृपक्षीय तर्पण-श्राद्ध का आरंभ 18 सितंबर 2024 बुधवार से ही होगा।

दृकपंचांगों में आश्विन कृष्ण अमावास्या 2 अक्टूबर बुधवार को मध्यरात्रि 12:18 बजे तक है और अदृश्य पंचांगों में लगभग संध्या साढ़े 5 बजे तक है।

अतः 2024 में पितृपक्षीय तर्पण-श्राद्धादि आश्विन कृष्ण अमावास्या 2 अक्टूबर बुधवार तक होगा।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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