जितिया अर्थात जीवित्पुत्रिका व्रत सर्वाधिक कठिन व्रतों में गिना जाता है। संतान और सौभाग्य की कामना से सभी स्त्रियां यह व्रत करती हैं। जितिया व्रत के दिन यदि सूर्योदय से पहले सप्तमी रहे तो रात्र्यंत में विशिष्ट भोजन भी किया जाता है और ताम्बूल भक्षण भी किया जाता है। प्रदोषकाल में जीमूतवाहन की पूजा की जाती है। जितिया की पूजा विधि भी विशेष है जिसकी जानकारी आवश्यक है और सामान्य जनों को यह जानकारी नहीं दी जाती है। इस आलेख में जितिया पूजा विधि बताई गयी है।
जीवित्पुत्रिका व्रत पूजा विधि और मंत्र
किसी भी पूजा से पहले उस पूजा की विशेष तैयारी करनी परती है। जितिया व्रत में पूजा करने के लिये कई विशेष व्यवस्था करनी पड़ती है अतः प्रथमतया पूजा की तैयारी के बारे में जानना आवश्यक हो जाता है।
जीवित्पुत्रिका पूजा की तैयारी
जिस दिन जीवित्पुत्रिका व्रत हो उसी दिन प्रदोषकाल में पूजा की जाती है। पूजा करने के लिये विशेष तैयारी भी करनी पड़ती है। नित्यकर्म करने के बाद प्रदोषकाल में पूजा की तैयारी इस प्रकार करें :
- गोबर से मंडल करके आंगन में गड्ढा करके पानी भर ले अर्थात कल्पित पुष्करिणी/तालाब बनाये।
- वहीं एक किनारे पर पाकर का एक वृक्ष लगाये।
- गोबर और मिट्टी से एक चिल्ली (पक्षी) बनाकर उस पाकर के वृक्ष की डाली पर बैठाये।
- वृक्ष के नीचे ही एक कोटर (बिल) बनाकर उसमें शृगाली बनाकर रखे।
- फिर वहीं पर अष्टदल निर्माण करके एक सुंदर-सुसज्जित कलश स्थापित करे।
- कुशाओं से जीमूतवाहन की प्रतिमा बनाकर कलश पर रखे।
- पूजा स्थल को नाना प्रकार का पताका आदि से सजा ले।
पूजा करने के लिये जल-अक्षत-चंदन-पुष्प-माला आदि व्यवस्थित कर ले। धूप-दीप जला ले, नैवेद्य लगा ले। नैवेद्य में पुरी-पक्वान्नादि के साथ तालफल (तार) भी अर्पित करने का विधान है और सात डाला में पीले वस्त्र से ढंककर अर्पित करें, डाला के स्थान पर बांस के पत्ते का भी उपयोग किया जाता है।
पवित्रिकरण करके त्रिकुशा-तिल-जल-द्रव्यादि लेकर संकल्प करे :
संकल्प : नमोऽस्यां रात्रौ आश्विनमासीय कृष्णपक्षीय अष्टम्यांतिथौ ………… गोत्रायाः मम …………. देव्याः सकल पुत्र पौत्रादिचिरजीवित्व सकल सुख सौभाग्याऽवैधव्य गोधनधान्यादि समृद्धिकामनया श्रीजीमूतवाहन पूजनमहङ्करिष्ये ॥
अक्षत लेकर कुश की जीमूतवाहन प्रतिमा पर जीमूतवाहन की प्रतिष्ठा करे : नमः श्रीजीमूतवाहन इहागच्छ इह सुप्रतिष्ठितो भव ॥
आवाहन : नमो देवेश भक्तिसुलभ सर्वावरणसंयुत । यावत्त्वां पूजयिष्यामि तावत्त्वं सुस्थिरो भव ॥
पुष्पासन : कार्तस्वरमयं दिव्यं नानागुणसमन्वितम् । अनेकशक्तिसंयुक्तमासनं प्रतिगृह्यताम् ॥ इदं पुष्पासनं श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
पाद्य : यद्भक्तिलेशसम्पर्कात् परमानन्दसम्भवः । तस्मै ते चरणाब्जाय पाद्यं देवाय कल्पये॥ इदं पाद्यम् श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
अर्घ्य : तापत्रयहरं दिव्यं परमानन्दलक्षणम् । तापत्रयविनिर्मुक्त्यै तवार्घ्यं कल्पयाम्यहम् ॥ इदमर्घ्यम् श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
आचमन : कर्पूरवासितं तोयं मन्दाकिन्याः समाहृतम् । आचम्यतां दयानाथ मया दत्तं हि भक्तितः ॥ इदमाचमनीयम् श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
स्नान : गङ्गा च यमुना चैव नर्मदा च सरस्वती । कृष्णा च गोमती वेणी क्षिप्रा सिन्धुस्तथैव च ॥ तापी पयोष्णी रेवा च ताभ्यः स्नानार्थमाहृतम् । तोयमेतत् सुखस्पर्शं स्नानीयं प्रतिगृह्यताम् ॥ इदं स्नानीयं जलम् श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
पञ्चामृत : पयो दधि घृतं चैव मघुशर्करयाऽन्वितम् । पञ्चामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ इदं पञ्चामृतम् श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
शुद्धोदक : नदीनां चैव सरसां मयानीतं जलं शुभम् । अनेन त्वं कुरु स्नानं मन्त्रैर्वारुणकैः शुभैः ॥ इदं शुद्धोदकम् श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
स्नानाङ्गमाचमन : स्नानाङ्गमाचमनीयम् श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
वस्त्र : तन्तुसन्तानसंयुक्तं कलाकौशेयकल्पितम् । पीतवस्त्रयुगं देव कृपया प्रतिगृह्यताम् ॥ इमे पीतवस्त्रे बृहस्पतिदैवते श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
वस्त्राङ्गमाचमन : वस्त्राङ्गमाचमनीयम् श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
यज्ञोपवीत : यस्य शक्तित्रयेणेदं सम्प्रोक्तं सचराचरम् । यज्ञरूपाय तस्मै ते यज्ञसूत्रं प्रकल्पये ॥ इमे यज्ञोपवीते बृहस्पतिदैवते श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
यज्ञोपवीताङ्गमाचमनीयम् श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
चन्दन : श्रीखण्डचन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम् । आघ्रेयः सर्वदेवानां प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ इदं श्रीखण्डचन्दनम् श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
अक्षत : अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकुमाक्ताः सुशोभनाः । मया निवेदिता भक्त्या तान् गृहाण सुरेश्वर ॥ इदमक्षतं श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
पुष्प : सुगन्धीनि सुपुष्पाणि देशकालोद्भवानि च। मयानीतानि पूजार्थं प्रीत्या स्वीकुरु तानि मे ॥ एतानि पुष्पाणि श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
माला : नानापुष्पविचित्राढ्यां पुष्पमालां सुशोभनाम् । प्रयच्छामि च हे देव गृहाण पुरुषोत्तम् ॥ इदं पुष्पमाल्यम् श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
तुलसीपत्र : तुलसीं हेमरूपां च रत्नरूपां च मञ्जरीम् । भवमोक्षप्रदां तुभ्यमर्पयामि हरिप्रियाम् ॥ एतानि तुलसीपत्राणि श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
दूर्वा : एतानि दूर्वादलानि श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
धूप : वनस्पतिरसो दिव्यो गन्धाढ्यः सुमनोहरः । आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥ एष धूपः श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
दीप : आज्यं सद्वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया । दीपं गृहाण हे देव त्रैलोक्यतिमिरापहं ॥ एष दीपः श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
नैवेद्य : अन्न चतुर्विधं स्वादु रसैः षड्भिः समन्वितम् । मया निवेदितं देव नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥ एनानि नानाविधफल शष्कुली पोलिका तालफलयुत पीतवस्त्राच्छादित सप्तडल्लकानि नमो श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥ एतानि वंशप्रत्राणि नमो श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
आचमन : सर्वपापहारं दिव्यं गाङ्गेयं निर्मलं जलम् । आचमनीयं मया दत्तं गृहाण पुरुषोत्तम । इदमाचमनीयम् श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
ताम्बूल : पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम् । कर्पूरादिसमायुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥ इदं ताम्बूलम् श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
भूषणार्थ द्रव्य : काञ्चनं रजतोपेतं नानारत्नसमन्वितम् । भूषणार्थं मया दत्तं गृहाण लोकपूजित ॥ इदं भूषणार्थं द्रव्यम् श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
पुष्पाञ्जलि : अभीष्टसिद्धिदं मे देहि शरणागतवत्सल । भक्त्या समर्पये तुभ्यं सर्वमावरणार्चनम् ॥ एष पुष्पाञ्जलिः श्रीजीमूतवाहनाय नमः ॥
अङ्गदेवता पूजन
चिह्लि पूजन
- अक्षत : इदमक्षतं नमः चिह्लि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- जल : एतानि पाद्यादीनि एषोऽर्घ्यः नमो चिह्ल्यै नमः ॥
- गंध : इदमनुलेपनम् नमो चिह्ल्यै नमः ॥
- सिन्दूर : इदं सिन्दूराभरणम् नमो चिह्ल्यै नमः ॥
- अक्षत : इदमक्षतम् नमो चिह्ल्यै नमः ॥
- पुष्प : इदं पुष्पम् नमो चिह्ल्यै नमः ॥
- जल : एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बूलयथाभागनैवेद्यादीनि नमो चिह्ल्यै नमः ॥
- पुष्पांजलि : एष पुष्पाञ्जलिः नमो चिह्ल्यै नमः ॥
शृगालि पूजन
- अक्षत : इदमक्षतं नमः शृगालि इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- जल : एतानि पाद्यादीनि एषोऽर्घ्यः नमो शृगाल्यै नमः ॥
- गंध : इदमनुलेपनम् नमो शृगाल्यै नमः ॥
- सिन्दूर : इदं सिन्दूराभरणम् नमो शृगाल्यै नमः ॥
- अक्षत : इदमक्षतम् नमो शृगाल्यै नमः ॥
- पुष्प : इदं पुष्पम् नमो शृगाल्यै नमः ॥
- जल : एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बूलयथाभागनैवेद्यादीनि नमो शृगाल्यै नमः ॥
- पुष्पांजलि : एष पुष्पाञ्जलिः नमो शृगाल्यै नमः ॥
पर्कटीवृक्ष पूजन
- अक्षत : इदमक्षतं नमः पर्कटीवृक्ष इहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- जल : एतानि पाद्यादीनि एषोऽर्घ्यः नमो पर्कटीवृक्षाय नमः ॥
- गंध : इदमनुलेपनम् नमो पर्कटीवृक्षाय नमः ॥
- अक्षत : इदमक्षतम् नमो पर्कटीवृक्षाय नमः ॥
- पुष्प : इदं पुष्पम् नमो पर्कटीवृक्षाय नमः ॥
- जल : एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बूलयथाभागनैवेद्यादीनि नमो पर्कटीवृक्षाय नमः ॥
- पुष्पांजलि : एष पुष्पाञ्जलिः नमो पर्कटीवृक्षाय नमः ॥
बाहूट्टार पूजन
- अक्षत : इदमक्षतं नमः पर्कटीवृक्ष बाहूट्टार इह तिष्ठ ॥
- जल : एतानि पाद्यादीनि एषोऽर्घ्यः नमो बाहूट्टाराय नमः ॥
- गंध : इदमनुलेपनम् नमो बाहूट्टाराय नमः ॥
- अक्षत : इदमक्षतम् नमो बाहूट्टाराय नमः ॥
- पुष्प : इदं पुष्पम् नमो बाहूट्टाराय नमः ॥
- जल : एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बूलयथाभागनैवेद्यादीनि नमो बाहूट्टाराय नमः ॥
- पुष्पांजलि : एष पुष्पाञ्जलिः नमो बाहूट्टाराय नमः ॥
मरुस्थल पूजन
- अक्षत : इदमक्षतं नमः पर्कटीवृक्ष मरुस्थल इह तिष्ठ ॥
- जल : एतानि पाद्यादीनि एषोऽर्घ्यः नमो मरुस्थलाय नमः ॥
- गंध : इदमनुलेपनम् नमो मरुस्थलाय नमः ॥
- अक्षत : इदमक्षतम् नमो मरुस्थलाय नमः ॥
- पुष्प : इदं पुष्पम् नमो मरुस्थलाय नमः ॥
- जल : एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बूलयथाभागनैवेद्यादीनि नमो मरुस्थलाय नमः ॥
- पुष्पांजलि : एष पुष्पाञ्जलिः नमो मरुस्थलाय नमः ॥
पूजा करने के उपरांत जीमूतवाहन व्रत कथा श्रवण करे। कथा श्रवण करने के उपरांत आरती, प्रार्थनादि करके विसर्जन करे :
आरती : चन्द्रादित्यौ च धरणी विद्युदग्निस्तथैव च । त्वमेव सर्वज्योतींषि आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम् ॥ इदमार्तिक्यं श्रीजीमूतवाहनादिसर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः ॥
प्रार्थना : देवदेव जगन्नाथ भक्तानां कार्यकारक । त्वत्प्रसादमहं याचे शीघ्रं कार्यप्रदो भव ॥ यद्भक्त्या देवदेवेश मया व्रतमिदं कृतम्। न्यूनं वाऽथ क्रियाहीनं परिपूर्ण तदस्तु मे ॥
प्रदक्षिणा : यानि कानि च पापानि ब्रह्महत्यासमानि च । तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिण पदे पदे ॥
विसर्जन : यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम् । इष्टकामप्रसिद्धधर्थं पुनरागमनाय च ॥ नमः श्रीजीमूतवाहनादिपूजितदेवताः पूजिताः स्थ क्षमध्वं स्वस्थानं गच्छत ॥
दक्षिणा : त्रिकुशा-तिल-जल-दक्षिणाद्रव्य लेकर दक्षिणा करे : नमोऽद्य कृतैतत् श्रीजीमूतवाहनपूजन तत्कथाश्रवण कर्म प्रतिष्ठार्थमेतावद् द्रव्यमूल्यकहिरण्यमग्निदैवतं यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहं ददे ॥ दक्षिणा करके ब्राह्मण को प्रदान करे।
॥ इति श्रीजीमूतवाहनपूजनविधिः ॥
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
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