ऋषि पंचमी व्रत पूजा विधि और कथा

भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी कहा जाता है और इस दिन ऋषि पंचमी व्रत किया जाता है। व्रत के लिये मध्याह्न व्यापिनी तिथि को ग्राह्य बताया गया है अर्थात् जिस दिन मध्याह्न काल में पंचमी तिथि हो उस दिन ऋषि पंचमी व्रत किया जाता है। ऋषि पंचमी व्रत का बहुत विशेष महत्व बताया गया है : वर्ष पर्यन्त रजस्वला स्त्रियों के द्वारा नियमभंग संबंधी दोषों का ऋषि पंचमी व्रत करने से मार्जन हो जाता है। इस आलेख में ऋषि पंचमी व्रत की पूजा विधि और कथा दी गई है।

भाद्र शुक्ल पंचमी को ऋषि पंचमी कहा जाता है। इस दिन व्रत पूर्वक अरुंधतिसहित सप्तर्षियों का पूजन करना चाहिये। पूजा करने के उपरांत कथा श्रवण करे और फिर विसर्जन दक्षिणा करे। इस व्रत का माहात्म्य चकित करने वाला है क्योंकि यह व्रत प्रायश्चित्तात्मक है। स्त्रियां जो रजस्वला संबंधी स्पर्शास्पर्श नियमादि का उल्लंघन करती हैं चाहे ज्ञात रूप से हो अथवा अज्ञात रूप से ऋषि पंचमी के प्रभाव से उस दोष का शमन हो जाता है।

वर्त्तमान युग में तो शहरों से कोई भी विषय आरंभ होता है और गांवों तक पहुंच जाता है। शहरों में विदेशों से आयातित होते हैं। विधर्मियों (पापियों/नास्तिकों) को सनातनियों का धर्मभंग होने से ही प्रसन्नता प्राप्त होती है और येन-केन-प्रकारेण सनातन के सभी नियमों का समापन करना चाहते हैं। अब तो शहरों की स्त्रियां (नई पीढ़ी) रजस्वला दोष को स्वीकार भी नहीं करना चाहती स्पर्शास्पर्श क्या खाक मानेगी ? वो २१वीं सदी में जीने वाली आधुनिक विचारों की होती है जो धर्म को तिलांजलि दे चुकी होती है।

यद्यपि दोषी वो स्वयं नहीं है पूरा समाज है। ऐसा षड्यंत्र दशकों से विधर्मियों (पापियों/नास्तिकों) द्वारा दशकों नहीं शताब्दियों से किया जा रहा है। वर्त्तमान में तो जितने प्रकार का भी डिस्प्ले हो कहीं भी शास्त्रोचित तथ्य नहीं बताया जाता है, कुछ अपवादों का त्याग करके। सबके-सब यदि थोड़ा-बहुत धार्मिक चर्चा करते भी हैं तो भी अधिकांशतः शास्त्रविरुद्ध गतिविधि ही करते हैं जैसे राशिफल बताने वाला “प्रपोजल मुहूर्त” और “प्यार का मुहूर्त” बताने लगा है।

इस संबंध में तो ऋषिपञ्चमी व्रत पूजा का ही एक ऐसा PDF फैलाया गया है जिसमें विस्तृत पूजा विधि दी गयी है, प्रणव का प्रयोग किया गया है, वेदमंत्रों का प्रयोग किया गया है। नाना प्रकार की वेदियां बनाकर दी गयी हैं, नान्दीश्राद्ध का कोई औचित्य नहीं है किन्तु मातृकापूजा वेदी बनाकर दी गयी है। अर्थात धर्म की चर्चा करने वाला भी ज्ञाताज्ञात कारणों से शस्त्रोल्लंघन ही करते दिखते हैं।

वर्त्तमान काल में रजस्वला संबंधी नियमों का पालन 0.01% गांवों में ही किया जाता है किन्तु हम उन गांवों की चर्चा नहीं करेंगे क्योंकि चर्चा में आने से उस गांव की समस्यायें बढ़ जायेंगी, षड्यंत्रकारी व्यक्ति/समूह वहां जा-जाकर लोगों का धर्म भ्रष्ट करने का षड्यंत्र करेंगे। कुल मिलाकर निष्कर्ष यह है कि रजस्वला संबंधी नियमों का पालन नगण्य स्त्रियां ही करती हैं। उस स्थिति में दोष उत्पन्न होता है जो जन्म-जन्मांतर तक पीड़ित करता है। ऋषि-पंचमी व्रत करने से रजस्वला काल में होने वाले नियमभंग, स्पर्शास्पर्श दोष का मार्जन होता है।

ऋषि पंचमी व्रत निर्णय

  • ऋषि पंचमी व्रत के लिये मध्याह्न व्यापिनी पंचमी को ग्राह्य बताया गया है।
  • यदि दोनों दिन मध्याह्न व्यापिनी पंचमी हो तो दूसरे दिन को ग्राह्य बताया गया है,
  • अर्थात यदि दोनों में से किसी दिन भी मध्याह्न व्यापिनी पंचमी उपलब्ध न हो तो भी दूसरा दिन ग्रहण करना चाहिये।

ऋषि पंचमी 2024

  • 2024 में भाद्र शुक्ल पंचमी 7 सितम्बर शनिवार संध्या 5:37 बजे आरंभ होती है।
  • 8 सितंबर रविवार को रात्रि 7:58 तक भाद्र शुक्ल पंचमी तिथि है।
  • इस कारण मध्याह्न व्यापिनी पंचमी 8 सितम्बर 2024, रविवार को प्राप्त होती है।

मध्याह्न व्यापिनी भाद्र शुक्ल पंचमी रविवार, 8 सितंबर 2024 को होने के कारण इसी दिन ऋषि पंचमी व्रत है।

पूजा विधि

व्रत के दिन यदि जलाशय में स्नान कर सके तो उत्तम है अन्यथा घर में ही स्नान करे। स्नानादि के उपरांत नित्यकर्म करे। स्त्रियों के लिये नित्यकर्म का तात्पर्य षड्देवता पूजन होता है। षड्देवता पूजन का तात्पर्य यह है कि सधवा स्त्रियां पंचदेवता और गौरी की पूजा करे एवं विधवा पंचदेवता व विष्णु की पूजा करे।

तत्पश्चात पूजा स्थान पर जाकर पवित्रीकरणादि करके त्रिकुशा-तिल-जल-द्रव्यादि लेकर संकल्प करे :

संकल्प

ध्यान

आवाहन

पुष्पाक्षत लेकर अरुंधती सहि सप्तर्षियो का आवाहन करे :

जल – पाद्य

अर्घ्य

आचमन

  • स्नान : इदं स्नानीयं जलं नमोऽरुन्धतीसहितसप्तर्षिभ्यो नमः ॥
  • पंचामृत : इदं पंचामृतस्नानं नमोऽरुन्धतीसहितसप्तर्षिभ्यो नमः ॥
  • शुद्धोदक : इदं शुद्धोदकस्नानं नमोऽरुन्धतीसहितसप्तर्षिभ्यो नमः ॥
  • वस्त्र : इदं पीतवस्त्रं बृहस्पतिदैवतं नमोऽरुन्धतीसहितसप्तर्षिभ्यो नमः ॥
  • यज्ञोपवीत : इदं यज्ञोपवीतं बृहस्पतिदैवतं नमोऽरुन्धतीसहितसप्तर्षिभ्यो नमः ॥
  • आचमन : इदमाचमनीयं नमोऽरुन्धतीसहितसप्तर्षिभ्यो नमः ॥
  • गंध (चंदन) : इदं गन्धं नमोऽरुन्धतीसहितसप्तर्षिभ्यो नमः ॥
  • पुष्प : एतानि पुष्पाणि नमोऽरुन्धतीसहितसप्तर्षिभ्यो नमः ॥
  • तुलसी : एतानि तुलसीपत्राणि नमोऽरुन्धतीसहितसप्तर्षिभ्यो नमः ॥
  • अक्षत : इदं अक्षतं नमोऽरुन्धतीसहितसप्तर्षिभ्यो नमः ॥
  • धूप : एष धूपः नमोऽरुन्धतीसहितसप्तर्षिभ्यो नमः ॥
  • दीप : एष दीपः नमोऽरुन्धतीसहितसप्तर्षिभ्यो नमः ॥
  • नैवेद्य : इदं नैवेद्यं नमोऽरुन्धतीसहितसप्तर्षिभ्यो नमः ॥
  • जल : इदमाचमनीयं पुनराचमनीयं नमोऽरुन्धतीसहितसप्तर्षिभ्यो नमः ॥
  • पुष्पांजलि : एष पुष्पांजलिः नमोऽरुन्धतीसहितसप्तर्षिभ्यो नमः ॥

॥ इति श्रीहेमाद्रौ ब्रह्माण्डे ऋषिपञ्चमीव्रतकथा समाप्ता ॥

नीराजन

पुष्पांजलि

प्रदक्षिणा

प्रार्थना

विसर्जन

दक्षिणा

प्रतिवचन : ॐ स्वस्ति॥

॥ इति श्रीऋषिपञ्चमीपूजा समाप्ता ॥

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

Leave a Reply