कवच का तात्पर्य होता है वह आवरण जो सुरक्षा करती है। सुरक्षा हेतु जो जिस देवता की आराधना करता है उनका कवच स्तोत्र पाठ/धारण आदि करता है। महामृत्युंजय कवच का महत्व विशेष इस कारण से है कि महामृत्युंजय की आराधना ही मुख्य रूप से सुरक्षा (अपमृत्यु, रोग आदि से) किया जाता है। ऐसे में महामृत्युंजय अराधना में कवच स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिये। इस आलेख में महामृत्युंजय कवच हिन्दी अर्थ सहित दिया गया है। साथ ही डाउनलोड करने के लिये pdf भी दिया गया है जिसे डाउनलोड करके ऑफलाइन होने पर भी पढ़ा जा सकता है।
महामृत्युंजय कवच हिन्दी अर्थ सहित
- महामृत्युंजय कवच रुद्रयामल तंत्र में वर्णित है।
- महामृत्युंजय कवच का पाठ, श्रवण और यंत्र में धारण करने का विधान है।
- जो स्वयं पाठ नहीं कर सकते उनको किसी अन्य से पाठ कराकर आदरपूर्वक श्रवण करना चाहिये। श्रवण करने में भी पाठ के समान ही प्रभाव कहा गया है।
- महामृत्युञ्जय कवच का पाठ-श्रवण रूपी महामृत्युंजय की साधना करने से सभी प्रकार की विपत्तियां समाप्त होती है।
- महामृत्युंजय जप करने के बाद महामृत्युंजय कवच का भी पाठ करना चाहिये।
- कवच स्तोत्र से हवन का निषेध किया गया है।
भैरव उवाच
श्रृणुष्व परमेशानि कवचं मन्मुखोदितम् ।
महामृत्युञ्जयस्यास्य न देयं परमाद्भुतम् ॥
यं धृत्वा यं पठित्वा च श्रुत्वा च कवचोत्तमम् ।
त्रैलोक्याधिपतिर्भूत्वा सुखितोऽस्मि महेश्वरि ॥
तदेव वर्णयिष्यामि तव प्रीत्यावरानने ।
तथापि परमं तत्वं न दातव्यं दुरात्मने ॥
विनियोगः – अस्य श्री महामृत्युंजयकवचस्य भैरव ऋषिः । गायत्रीछन्दः श्रीमृत्युञ्जयरुद्रो महारुद्रो देवता | ॐ बीजं | जूं शक्तिः | सः कीलकम्। हौमिति तत्वं चतुर्वर्गसाधने विनियोगः॥
चंद्रमंडलमध्यस्थे रुद्रभाले विचिन्त्यते ।
तत्रस्थं चिन्तयेत् साध्यं मृत्युमाप्नोपि जीवति ॥
ॐ जूं सः हौं शिरः पातु देवो मृत्युञ्जयो मम् ।
ॐ श्रीं शिवो ललाटं च ॐ ह्रौं भ्रुवो सदाशिव: ॥
नीलकंठो वतान्नेत्रे कपर्दी मेवताऽछ्रुति।
त्रिलोचनोऽवतां गण्डौ नासां में त्रिपुरान्तकः ॥
मुखं पीयूषघटभृदोष्ठौ मे कृत्तिकाम्बरः ।
हनुं मे हाटकेशानो मुखं बटुकभैरवः ॥
कन्धरां कालमथनो गलं गणप्रियोऽवतु।
स्कन्धौ स्कन्दपिता पातु हस्तौ मे गिरिशोऽवतु ॥
नखान् मे गिरिजानाथः पायादङ्गुलि संयुतान् ।
स्तनौ तारापतिः पातु वक्षः पशुपतिर्मम ॥
कुक्षिं कुबेरवदनः पार्श्वौ मे मारशासनः ।
सर्वः पातु तथा नाभिं शूली पृष्ठं ममावतु ॥
शिश्नं मे शंकरः पातु गुह्यं गुह्यकवल्लभः ।
कटिं कालान्तकः पायादूरुमेऽन्धकघातनः ॥
जागरुकोऽवताज्जानू जंघे मे कालभैरवः ।
गुल्फो पायाज्जटाधारी पादौ मृत्युञ्जयोऽवतु ॥
पादादिमूर्द्धपर्यन्तमघोरः पातु मां सदा ।
शिरसः पादपर्यन्तं सद्योजातो ममावतु ॥
रक्षाहीनं नामहीनं वपुः पात्वऽमृतेश्वरः ।
पूर्वे बलविकरणो दक्षिणे कालशासनः ॥
पश्चिमे पार्वतीनाथो ह्युत्तरे मां मनोन्मनः ।
ऐशान्यामीश्वरः पायादाग्नेय्यामग्निलोचनः ॥
नैर्ऋत्यां शम्भुरव्यान्मां वायव्यां वायुवाहनः ।
उर्ध्वे बलप्रमथनः पाताले परमेश्वरः॥
दशदिक्षु सदा पातु महामृत्युञ्जयश्च माम्।
रणे राजकुले द्यूते विषमे प्राणसंशये ॥
पायादों जूं महारुद्रो देवदेवो दशाक्षरः।
प्रभाते पातु मां ब्रह्मा मध्याह्ने भैरवोऽवतु ॥
सायं सर्वेश्वरः पातु निशायां नित्यचेतनः ।
अर्द्धरात्रे महादेवो निशान्ते मां महोदयः ॥
सर्वदा सर्वतः पातु ॐ जूं सः हौं मृत्युञ्जयः।
इतीदं कवचं पुण्यं त्रिषु लोकेषु दुर्लभम् ॥
सर्वमन्त्रमयं गुह्यं सर्वतन्त्रेषु गोपितम् ।
पुण्यं पुण्यप्रदं दिव्यं देवदेवाधिदैवतम्॥
य इदं च पठेन्मन्त्रं कवचं वाचयेत्ततः ।
तस्य हस्ते महादेवि त्र्यंबकस्याष्टसिद्धयः॥
रणे धृत्वा चरेद्युद्धं हत्वा शत्रुञ्जयं लभेत् ।
जपं कृत्वा गृहे देवि सम्प्राप्स्यति सुखं पुनः॥
महाभये महारोगे महामारी भये तथा।
दुर्भिक्षे शत्रुसंहारे पठेत्कवचमादरात् ॥
सर्वंतत् प्रशमंयाति मृत्युंजय प्रसादतः ॥
धनंपुत्रान् सुखंलक्ष्मीमारोग्यंसर्वसम्पदः।
प्राप्नोतिसाधकाः सद्यो देविसत्यं न संशयः ॥
इतीदं कवचं पुण्यं महामृत्युञ्जययस्य तु।
गोप्यंसिद्धिप्रदंगुह्यं गोपनीयंस्वयोनिवत्॥
॥ इतिरुद्रयामलेतन्त्रेदेवीरहस्येमृत्यञ्जयपंचांगेमृत्युंजयकवचंसंपूर्णम् ॥
महामृत्युंजय कवच हिन्दी में
भैरव करते हैं; हे परमेश्वरि सुनो परम अद्भुत महामृत्युंजय कवच हृदय में धारण करने योग्य और मुख से पाठ करने योग्य है इस परम गोपनीय कवच को हर किसी को नहीं देना चाहिए । हे महेश्वरी इस कवच को धारण करना अथवा पाठ करने और सुनने से भी त्रैलोक्य में प्राणि सुखी हो जाता है। हे वरानने; आपकी प्रीति के लिए ही मैं इसको कहूंगा। यह परम तत्व है फिर भी किसी भी दुष्ट को इसको प्रदान किसी को प्रदान नहीं करना चाहिये।
विनियोग : इस महामृत्युंजय कवच के भैरव ऋषि है गायत्री छंद महामृत्युंजय रूद्र महादेव देवता हैं। ॐ बीजं जूं शक्ति सः कीलकं हों तत्व अपमृत्यु रोग आदि चतुर्वर्ग साधन में, इस प्रकार महामृत्युंजय कवच पाठ में विनियोग है।
रुद्र के मस्तकमध्य में चंद्रमा स्थित है, इस रूप का ध्यान करके जो साधक इस महामृत्युंजय कवच का पाठ करते हैं उनकी मृत्यु निश्चित होने पर भी वह जीवित रहते हैं दीर्घायु होते हैं।
ॐ जूं सः ह्रौं रूप से देव मृत्युंजय मेरे सिर की रक्षा करें । ॐ श्रीं शिव ललाट की रक्षा, सदाशिव भ्रू की रक्षा करें॥
नीलकंठ मेरे नेत्रों की, कपिल जी मेरे कानों की रक्षा करें। त्रिलोचन भगवान मेरे कंठ की, त्रिपुरांतक नासिका की रक्षा करें।
पीयूषघट मुख की, कृत्तिकाम्बर ओष्ठ की रक्षा करें, हाटकेशान मेरी ठोडी की रक्षा तथा मुख की रक्षा बटुक भैरव करें।
कंधरों की रक्षा कालमथन करें, गले की रक्षा गणप्रिय करें। दोनों कंधों की रक्षा स्कंदपिता करें, दोनों हाथों की रक्षा गिरीश करें।
पैरों की अंगुलियों और नाखून की रक्षा गिरिजा नाथ करें, स्तनों की तारापति रक्षा करें, वक्ष की पशुपति रक्षा करें।
कुक्षी की रक्षा कुबेरवरद पसलियों की रक्षा मारशासन करें, सर्व मेरी नाभि की रक्षा करें पीठ की रक्षा शूली करें।
गुप्तांग की रक्षा शंकर जी करें गुह्य की गुह्यकवल्लभ रक्षा करें, कमर की कालांतक रक्षा करें, अंधकारि भगवान मेरे ऊरू की रक्षा करें।
जागरुक मेरी जानू (घुटनो ) की, काल भैरव जंघा की रक्षा करें, मेरे गुल्फ की रक्षा जटाधारी करें और पैरों की रक्षा मृत्युंजय करें।
अघोर भगवान मेरे पैरों से लेकर सिर तक की रक्षा करें फिर सिर से लेकर पैरों तक की रक्षा सद्योजात भगवान करें।
अन्य रक्षाहीन जिनका नाम नहीं लिया गया उन अंगों की रक्षा अमृतेश्वर भगवान करें पूर्व में बलविकर्ण दक्षिण में काल शासन रक्षा करें।
पश्चिम में पार्वतीनाथ और उत्तर में मनोन्मन तथा ईशान में ईश्वर, अग्नि कोण में अग्निलोचन, नैऋत्य में शम्भु और मेरे वायुकोण में वायुवाहन ऊपर की ओर बलप्रमथन तथा पाताल की ओर परमेश्वर रक्षा करें।
महामृत्युंजय मेरी दसो दिशाओं में, युद्ध क्षेत्र में, राजाओं से राजकुल में, जुए में, विषम परिस्थितियों में, तथा प्राण संकट के समय मेरी रक्षा करें।
ॐ जूं महारुद्र देव देव दशाक्षर रक्षा करें, प्रभात काल में मेरी रक्षा ब्रह्मा जी करें मध्याह्न काल में भैरव देवता मेरी रक्षा करें।
सायंकाल में सर्वेश्वर रक्षा करें, निशाकाल में नित्यचेतन रक्षा करें। अर्द्धरात्रि में महादेव रक्षा करें और रात्र्यंत में महोदय।
सर्वदा सभी दिशाओं में ॐ जूं सः हौं मृत्युञ्जय रक्षा करें यह महामृत्युंजय कवच तो तीनों लोकों में पुण्यप्रद है।
यह सर्वमन्त्रमय है गुप्त है, सभी तंत्रों में भी गुप्त है। देवों के भी देवाधिदेव का यह कवच स्तोत्र यही पुण्य है, पुण्यप्रद है।
इस प्रकार भाव रखते हुये जो पाठ करता है अथवा श्रवण करता है हे महादेवी त्र्यम्बक की कृपा अष्टसिद्धियां भी उसके हाथ में ही रहती है।
जो इसका जप पूर्वक कवच को धारण करके रणभूमि में जाता है वह शत्रुंजय होता है अर्थात अपने सभी शत्रुओं को समाप्त करके गृह में सुख प्राप्त करता है।
महाभय, महारोग, महामारी का भय होने पर, दुर्भिक्ष में अथवा शत्रु से पीड़ित हों; आदर पूर्वक कवच का पाठ करने पर मृत्युंजय भगवान की कृपा से सभी का निवारण हो जाता है।
धन, पुत्र, सुख, लक्ष्मी, आरोग्य और भी सभी प्रकार की सम्पदायें मृत्युंजय के साधक प्राप्त करते हैं, हे देवी इसमें कोई संशय नहीं है।
महामृत्युञ्जय का यह पुण्य कवच परम गोपनीय है, सिद्धिप्रदायक है। इस कवच को अपनी योनि की तरह गुप्त रखना चाहिए गुप्त रखना चाहिए।
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