तुलसी विवाह विधि : Tulsi vivah vidhi

तुलसी विवाह विधि : Tulsi vivah vidhi

तुलसी विवाह की एक विशेष विधि है और पूर्व आलेख में इसकी शास्त्रोक्त विधि से संबंधित विस्तृत विश्लेषण किया गया है। तत्पश्चात विवाह के सभी मंत्रों और सम्पूर्ण विधान की बात आती है और इस आलेख में तुलसी विवाह की सम्पूर्ण विधि और मंत्र दिया गया है जो कि विशेष उपयोगी है। इसकी उपयोगिता इस कारण भी बढ़ जाती है कि अंतर्जाल पर शास्त्र-सम्मत विधि का सर्वथा अभाव देखा जा रहा है।

तुलसी विवाह विधि : Tulsi vivah vidhi

तुलसी विवाह से संबंधित पूर्व आलेख में यह स्पष्ट किया जा चुका है कि तुलसी विवाह में भी कन्या विवाह की भांति ही सभी विधियां होती है। साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया है कि जो वित्तीय रूप से सक्षम हो वही करे, जो सक्षम न हो उसे तुलसी विवाह का आडम्बर (प्रदर्शन मात्र) करने की आवश्यकता नहीं होती वो अन्य सामर्थ्यवान व्यक्तियों द्वारा किये जाने वाले तुलसी विवाह में प्रेरणा बनकर, देखकर भी पुण्य प्राप्त कर लेता है, किन्तु शास्त्र विरुद्ध आडम्बर करने से पुण्य का भाजन हो अथवा न हो शास्त्रोलन्घन का दोषी अवश्य बन जाता है।

अब हम अनेक पद्धतियों के आधार पर तुलसी विवाह की शास्त्रोक्त विधि और मंत्रों को भली-भांति समझेंगे। यह उन कर्मकांडियों के लिये भी उपयोगी होगा जो तुलसी विवाह की विशेष विधि ढूंढते हैं और उन श्रद्धालु भक्तों के लिये भी जो शास्त्रोक्त विधि के अनुसार भली-भांति तुलसी विवाह करना चाहते हैं।

वित्तानुसार अर्थात सामर्थ्यानुसार द्रव्यों से भी तुलसी विवाह संपन्न किया जा सकता है किन्तु इसका तात्पर्य यह भी नहीं की कुछ करे ही नहीं, ब्राह्मण को भी न रखे, हवन भी न करे, मंत्र प्रयोग भी न करे। वित्तानुसार का तात्पर्य दान सामग्री, वस्त्राभूषणादि के संदर्भ में है कि जिसे सामर्थ्य हो वो अधिकतम व्यवस्था करे और जिसे सामर्थ्य न्यूनता हो वो न्यून व्यवस्था करे।

उत्तम मंडप षोडशहस्त कहा गया है, मंडप को ध्वज-पताका-कदली स्तम्भादि से भी सुशोभित करे। मंडप के ईशानकोण में सर्वतोभद्र मंडल, पूर्व में ग्रहयाग (नवग्रह) मंडल, अग्निकोण में मातृका मंडल, नैर्ऋत्य कोण में वास्तु मंडल, वायव्य कोण में क्षेत्रपाल मंडल और मध्य में हवन कुण्ड अथवा हवन वेदी बनाये। मंडप पूजन, मंडप के तोरणद्वारों पर शंख-चक्र-गदा-पद्म की पूजा करके शुभमुहूर्त में पश्चिमद्वार से मंडप में प्रवेश करे।

पूजा विधि

फिर गणेशाम्बिका पूजन करके, सर्वप्रथम ग्रहयाग करे, ग्रह याग व नवग्रह शांति विधि एक ही है। ग्रह याग विधि की जानकारी पूर्व आलेख में प्रकाशित की गयी है : “ग्रहयाग विधि” ।

यदि नवग्रह मंडल की पूजा मात्र करनी हो तो “कलश स्थापन विधि” से कलश स्थापन करके नवग्रह मंडल की पूजा करे। ग्रहयाग में यदि नवग्रह मंडल की पूजा मात्र करनी हो तो नवग्रह मंडल पूजा विधि के अनुसार करे : नवग्रह मंडल पूजा विधि देखें। यदि और अधिक ब्राह्मणों को भी रखा गया है तो सबका वरण करके गणपति, नवग्रह, अष्टाक्षर आदि मंत्र जप कराये।

नवग्रह याग कहने से स्वस्तिवाचन, संकल्पादि सभी विधि को समझे, किन्तु मातृकापूजन व नान्दीमुख रहित विधि से। तुलसी विवाह में प्रथम कर्म नवग्रह याग ही वर्णित होने के कारण प्रथम नवग्रह पूजा ही उचित है। तत्पश्चात पुण्याहवाचन, मातृकापूजन, वसोर्धारा, आयुष्यमंत्र जप, “नान्दीमुख श्राद्ध“, आचार्यादिवरण, “दिग्बन्धन” पंचगव्यकरण आदि करे। तत्पश्चात सर्वतोभद्रादि मंडल की भी पूजा करे। ये सभी कर्म पूर्वदिन ही संपन्न करे अथवा तुलसी विवाह के दिन ही पूर्वाह्न में करे, क्योंकि नान्दीमुख श्राद्ध पूर्वाह्न में ही कर्तव्य है।

हरिद्रा लेपन

हरिद्रालेपन का तात्पर्य मात्र हरिद्रालेपन नहीं होता है, मुख्य तात्पर्य उद्वर्तन (उबटन) होता है। अतः हरिद्रा लेपन में सौभाग्वती स्त्रियां जैसे कन्या को उबटन लगाती है उसी प्रकार तुलसी को उबटन लगाये। गृहप्रांगण में काष्ठपीठ (पीढ़ी) पर बांस की डोली सहित तीन मास पूजित तुलसी को स्थापित करे। हल्दी, दधि, तेल, चंदन आदि से पूर्व निर्मित उद्वर्तन लेकर मंगलगान करते हुये सौभाग्यवती स्त्रियां हरिद्रालेपन की विधि सम्पन्न करके मंगल स्नान, मार्जन आदि विधि भी करे। तत्पश्चात युगल वस्त्र धारण करा दे।

वर और बारात

सायंकाल में आचार्य-ऋत्विक आदि सभी भगवान (गोपाल/शालिग्राम) को वरस्वरूप में सुसज्जीत कर पालकी पर स्थापित करके, वरयात्री की भांति गायन-वादन आदि करते हुये यजमान के घर लेकर आवें। यजमान स्वागत-सत्कार करे और मंडप में ले जाये। आचार्य विष्णुप्रतिमा/गोपालप्रतिमा/शालिग्राम जो भी वररूप में आये हों उन्हें सर्वतोभद्र मंडल पर स्थापित करें। वाग्दान विधि इससे पूर्व भी किया जा सकता है किन्तु वर (विष्णु) और वरयात्री के आगमन के पश्चात् भी किया जा सकता है।

वाग्दान

स्वस्तिवाचन, गणेशादि पूजन करके वाग्दान करे। पूर्वाभिमुख यजमान (दानकर्ता) वरपक्षीय आचार्य का वरण सामग्री लेकर अगले मंत्र से वरण करे : ॐ अद्य (यदि रात हो तो अस्यां रात्रौ) ………. गोत्रोत्पन्नः ……….. ऽहं तुलसीविवाहांगभूत वाग्दानकर्मणि कर्मकर्तुं एभिः वरणीय द्रव्यैः गोत्र प्रवरान्वित शर्माणं वरपक्षीयं ब्राह्मणं त्वां वृणे॥ वरणसामग्री वरपक्षीय आचार्य को प्रदान करके “कर्मकुरु” कहें प्रतिवचन में “करवाणि” कहें।

वाग्दान में वाग्दान सामग्री को कांस्य स्थाली (थाली/जाम) में रखकर सुन्दर वस्त्र से ग्रंथि युक्त कर (वस्त्र में बांधकर) उसपर इन्द्राणी का पूजन किया जाता है फिर वह सामग्री वाग्दान वाक्य पढ़कर प्रदान किया जाता है।

इन्द्राणी पूजा

तत्पश्चात वाग्दान की स्थालि (कांस्य थाली/जाम) में चावल (धान) का पुञ्ज बनाकर उसपर पांच हरिद्रागांठ-पुंगीफल-यज्ञोपवीत-पान-द्रव्य आदि रखकर सुंदर वस्त्र से आच्छादित कर दे अथवा सुन्दर वस्त्र में रखकर पांच ग्रंथि देकर स्थाली में रखकर जलपूर्ण कलश पर रखें। फिर उस पर सदासौभाग्यवती इन्द्राणी की पूजा करे।

  • ध्यान – इन्द्राणीमिन्द्रगृहिणीं सदासौभाग्यवर्द्धिनीम् । ध्यायामि मनसादेवीं कन्या सौभाग्य हेतवे ॥
  • आवाहन – ॐ अदित्यैरास्नासीन्द्राण्याऽउष्णीषः पूषासि धर्मायदीष्व ॥ आगच्छागच्छ कल्याणि देवेन्द्रप्राणवल्लभे । यावत्पूजां करिष्यामि तावत्वं सुस्थिराभव ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः इन्द्राणीहागच्छ इह तिष्ठ ॥
  • फिर “ईं इन्द्राण्यै नमः” मंत्र से पाद्यादि अर्पण करके पूजा करे।
  • फिर गोत्रोच्चारण करें।
  • आचार्य पढ़ें : पाणिग्रहे पर्वतराजपुत्र्याः पादाम्बुजं पाणिसरोरुहाभ्यां। आश्मानमारोपयतः स्मारेर्मन्दस्मितं मंगलमातनोतु ॥

वाग्दान वाक्य

संकल्प : ॐ अद्य ………… तुलसी विवाहांगभूत वाग्दानं करिष्ये ॥

तत्पश्चात दानकर्ता जिस स्थाली में वाग्दान सामग्री पर इंद्राणी की पूजा की गयी वह हाथों में लेकर अगले मंत्र से वाग्दान करे : व्याघ्रपदगोत्रोत्पन्नाय वैयाघ्रपदगार्ग्यवशिष्ठेति त्रिप्रवराय, देवमीढ़वर्मणः प्रपौत्राय, सूरसेनवर्मणः पौत्राय, वसुदेववर्मणः पुत्राय, अनेककोटिब्रह्माण्डनायकाय श्रीकृष्णाय (गोपालाय, श्रीधराय) वराय, आलंबायनदेवलगौतमेति त्रिप्रवरां, विश्वकर्मणः प्रपौत्रीं, प्रजापतेः पौत्रीं, ईश्वरस्यपुत्रीं तुलसींकन्यां ज्योतिर्विदादिष्टे सुमहूर्ते दास्ये॥

वाग्दान सामग्री वरपक्षीय आचार्य को प्रदान करके दानकर्ता प्रार्थना करे : ॐ वाचावृंदा मयादत्ता आत्मार्थस्वीकृता त्वया। वृंदावलोकनविधौ निश्चितत्वं सुखाभव ॥ तत्पश्चात ब्राह्मणगण स्वस्तिवाचन करें।

वरार्चन – धूल्यर्क विधि

संकल्प : ॐ अद्य ………… ममात्मनः सर्वविविधपापप्रशमनपूर्वकं पुत्रपौत्राद्यनविच्छिन्नसन्तति स्थिरलक्ष्मी कीर्तिलाभ शत्रुपराजय द्वारा सदभीष्ट सिद्धयर्थं श्रीमहाविष्णुप्रीत्यर्थं तुलसीविवाहं करिष्ये ॥

विशेष ध्यातव्य : यदि देवोत्थान एकादशी को तुलसी विवाह किया जा रहा हो तो यह आवश्यक हो जाता है कि प्रथम देवोत्थान पूजन करके भगवान विष्णु का प्रबोधन करे। तत्पश्चात आगे की विधियां सम्पादित करे। देवोत्थान एकादशी के दिन ही तुलसी विवाह करे यह आवश्यक नहीं है यदि द्वादशी, त्रयोदशी, पूर्णिमा आदि अथवा अन्य शुभ मुहूर्तों में तुलसीविवाह कर रहे हों तो भगवान विष्णु का प्रबोधन नहीं होगा।

प्रबोधन देवोत्थान एकादशी का विधान है। प्रबोधन हेतु देखें : “देवोत्थान एकादशी पूजा विधि”

देवोत्थान एकादशी पूजा

तुलसिविवाह विधि में विवाहाचार की भी आज्ञा प्रदान की गयी है और इस कारण यदि परिछन आदि करना हो तो परिछन आदि विधि भी विवाहवत संपन्न करे तत्पश्चात वरार्चन करे।

वरार्चन हेतु यजमान पूर्वाभिमुख बैठे। पवित्रीकरणादि विधि यदि आवश्यक हो तो करे यदि निरंतरता हो और पुनः पवित्रीकरण की आवश्यकता न हो तो न करे। भगवान विष्णु प्रतिमा (कृष्णप्रतिमा/शालिग्राम) जो भी हों उन्हें एक नये काष्ठपीठ (पीढ़ी) पर जो सजायी हुयी हो अष्टदल आदि बनाया हो उत्तराभिमुख स्थापित करे और इस स्थापन काल में ही “ॐ साधुभवानास्तामर्चयिष्यामो भवन्तम्” कहे।

अथवा इस मंत्र से स्थापित करे : “ॐ नमो भगवते केशवाय नमोऽस्मिन्पीठे आस्तामर्चयिष्यामो भवन्तम्”

प्रतिवचन : तुलसी विवाह में “प्रतिगृह्णामि” का प्रतिवचन सर्वत्र वरपक्षीय आचार्य प्रदान करें।

विष्टर – 1

  • 25-25 कुशाओं अथवा अन्य विकल्प का 2 विष्टर बना ले। अन्य व्यक्ति (ब्राह्मण) तीन बार कहे – ॐ विष्टरो विष्टरो विष्टरः॥
  • दानकर्त्ता एक विष्टर लेकर भगवान के आसन (पीढ़ी) के नीचे रखे – ॐ त्वँ सोम प्रचिकितो मनीषा त्वँ रजिष्ठमनु नेषि पन्थाम् । तव प्रणीती पितरो नऽ इन्दो देवेषु रत्नमभजन्त धीराः ॥ ॐ नारायणाय नमः विष्टरः प्रतिगृह्यताम्॥

पाद्य

  • फिर दानकर्ता पाद्यपात्र में किञ्चित उष्णजल दे। अन्यव्यक्ति (ब्राह्मण) कहे – ॐ पाद्यं पाद्यं पाद्यं ॥
  • दानकर्ता भगवान को दो बार पाद्य अर्पित करे : ॐ ये तीर्थानि प्रचरन्ति सृकाहस्ता निषङ्गिणः। तेषाᳪ सहस्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि॥ ॐ माधवाय नमः पाद्यं प्रतिगृह्यताम्॥

विष्टर 2 – तत्पश्चात पूर्वोक्त विधि-मंत्र से पुनः एक और विष्टर प्रदान करे।

अर्घ

  • अर्घ्यपात्र (शङ्ख) में जल, गंधपुष्पाक्षत, तिल, जौ, दूर्वा, दूध-दही, बदरी आदि देकर अर्घ्य निर्माण करे।
  • अन्य व्यक्ति (ब्राह्मण) कहें – ॐ अर्घो अर्घो अर्घः॥
  • दानकर्ता अर्घ्यपात्र लेकर अगला मंत्र पढ़े और भगवान को दे : ॐ ये व्वृक्षेषु शष्पिञ्जरा नीलग्ग्रीवा व्विलोहिताः। तेषा ᳪ सहस्रयोजनेऽवधन्न्वानि तन्न्मसि ॥ ॐ गोविन्दाय नमः अर्घः प्रतिगृह्यताम्॥

आचमन

  • पुनः अन्य व्यक्ति (ब्राह्मण) कहे – ॐ आचमनीयं, आचमनीयं, आचमनीयं ॥
  • दानकर्ता आचमनपात्र लेकर अगले मंत्र से भगवान को आचमन अर्पित करे – ॐ आचमनीयं प्रतिगृह्यताम् ॥

मधुपर्क

  • फिर अन्य व्यक्ति (ब्राह्मण) कहें – ॐ मधुपर्को मधुपर्को मधुपर्कः ॥
  • दानकर्ता मधुपर्क पात्र (कांस्यपात्र में दधि, मधु, घृत देकर अन्य कांस्य पात्र से ढंककर) ले और अगले मंत्र से भगवान को प्रदान करे – ॐ मधुव्वाता ऋतायते मधुक्षरन्ति सिन्धवः माध्वीर्न: सन्त्वोषधिः मधुनक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव ᳪ रजः मधुद्यौरस्तु नः पिता मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमां२ अस्तु सूर्यः माध्वीर्गावो भवन्तुनः ॥ ॐ मधु मधु मधु ॥ ॐ मधुसूदनाय नमः मधुपर्कः प्रतिगृह्यताम् ॥

वरवरण

तत्पश्चात तिलक विधान से शय्यादि जो-जो वस्तु प्रदान करने के लिये लाया गया हो सभी वस्तुयें भगवान के निकट रखे। युगल वस्त्र, यज्ञोपवीत, कटिसूत्र, पान, सुपारी, गंधपुष्पाक्षत, द्रव्याभूषण लेकर अगले मंत्र को पढ़कर अर्पित करे :

  • ॐ व्वसोः पवित्रमसि शतधारं व्वसोः पवित्रमसि सहस्रधारम् । देवस्त्वा सविता पुनातु व्वसोः पवित्रेण शतधारेण सुप्वा कामधुक्षः ॥
  • ॐ अद्येत्यादि …….. ऽहं करिष्यमाण तुलसीविवाहकर्मणि, व्याघ्रपदगोत्रस्य, वैय्याघ्रपदगार्ग्यवसिष्ठेति त्रिप्रवरस्य, देवमीढवर्मणः प्रपौत्रं, शूरसेन वर्मणः पुत्रं, गोपालं तुलस्यार्थिनं, एभिः कटकालंकरणादि शय्यासन भांडाविद्रव्यैस्त्वां वृणे ॥
  • वृणोमि” प्रतिवचन वरपक्षीय आचार्य प्रदान करें।

तत्पश्चात भगवान की प्रार्थना करे :

ॐ अशुन्यं शयनं नित्यमशून्यामुन्नतिंश्रियम् । सौभाग्यं देहिमेनित्यं शय्यादानेन केशव ॥
यानिकानि च पापानि, अद्यावधि कृतानि च। ताम्रादि पात्रदानेन तानि नश्यन्तु केशव ॥

कंकण बंधन : शिष्टाचारवश दध्यक्षतदूर्वादि से कंकण बनाकर भगवान विष्णु व तुलसी दोनों को बांधे।

॥ अथ तुलसीविवाहपद्धतिः ॥

वरपक्षीयाचार्य वस्त्रादि धारण करके हवन विधि के अनुसार पंचभूसंस्कार पूर्वक अग्निस्थापन करे।

तदनंदर यजमान कन्या रूप में विभूषित तुलसी को पालकी पर स्थापित करके मंडप में लाये और सर्वतोभद्र मंडल पर बांस की टोकरी सहित स्थापित करे। स्त्रियां मंगलगान करती रहें। तुलसी व भगवान के मध्य में एक वस्त्र का पट (आवरण/परदा) पहले से लगाकर रखे ।

तदनंदर यजमान पूर्वाभिमुख बैठे, पत्नी को दांयें, भाई-पुत्रादि को बांयें बैठाकर तुलसी को (टोकड़ी सहित) कोड़े (गोद) में बिठाकर श्रीसूक्त अथवा पुरुषसूक्त से पूजन करे।

प्रार्थना : तुलसि श्रीसखि सौम्ये पापहारिणि पुण्यदे। नमस्ते नारदनुते नारायणमतः प्रिये ॥

  • तदनन्तर यजमान द्वारा पूर्वप्रदत्त वस्त्रद्वय लेकर आचार्य अगले मंत्र से प्रदान करे : ॐ युवासुवासाः परिवीत आगात् स उश्रेयान् भवति जायमानः । तन्धीरासः कवयः उन्नयन्ति स्वाध्यो मनसा देवयन्तः ॥
  • फिर आभूषण/सौभाग्यद्रव्यादि प्रदान करें : ॐ सौभाग्य जनकं दिव्यं रक्षासूत्रेण वेष्टितम् । सौभाग्यमस्तुतेदेवि जीवत्वं विष्णुवल्लभे ॥
  • इस प्रकार वस्त्र अर्पित करके सौभाग्यसूत्रादि (मंगलसूत्र) बांधे (पहनाये)
  • तदनन्तर तुलसी की प्राणप्रतिष्ठा करे : ॐ मनो जूतिर्ज्जुषतामाज्ज्यस्य बृहस्पतिर्य्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं य्यज्ञᳪ समिमं दधातु। विश्वे देवासऽइह मादयन्तामों३ प्रतिष्ठ ॥ ॐ भूर्भुवस्वस्तुलस्या इहजीवः इहह्माणाः सन्तु सुप्रतिष्ठिता वरदाभवन्तु ॥
  • तत्पश्चात गोपाल और तुलसी को परस्पर समंजन कराये (एक दूसरे का दर्शन कराये) : ॐ समञ्जन्तु विश्वेदेवाः समापो हृदयानि नौ । सम्मातरिश्वा सन्धाता समुदेष्ट्री दधातु नौ ॥ परस्पर समंजन हेतु अंतरपट (परदे) को हटा दे।
  • फिर प्रार्थना करे : ॐ शङ्खचूडे हतेयेन तुलसी छलमोहिता। सत्वं निरीक्ष्य तुलसीं प्रसन्नोऽस्तु सदाहरे ॥

तत्पश्चात मंगलाष्टक, विष्णु स्तोत्रादि का पाठ करें।

वृन्दाण्येतपनतनया नीर वा नीर कुंजे, गुञ्जन्मञ्जुभ्रमर पटली काकली केलिभाजि ।
आभीराणां मधुर मुरली नादसम्मोहितानां, मध्ये क्रीडन्नयतु नियतं नन्दगोपालवालः

वृन्दा वृंदावनी देवी नन्दिनी विश्वपावनी। सदाऽवतु महा दिव्या तुलसी कृष्णजीवनी ॥

गोत्राध्याय

जिस प्रकार कन्यादान करते समय शंख में गंधपुष्पाक्षतदूर्वादि लेकर वर के हाथ में कन्या का हाथ देकर गोत्रोच्चारण किया जाता है। उसी प्रकार तुलसी विवाह में सभी सामग्रियां (शंख में जल, सुवर्ण, पुष्प, बदरीपत्र, तिल आदि) लेकर तुलसी की डाली का भगवान के हाथ से स्पर्श कराते हुये गोत्रोच्चारण करे :

ॐ अद्य …….. मम जन्म प्रभृत्युपार्जितकायिक वाचिक मानसिक त्रिविध पाप क्षयपूर्वक समस्त पितृणां निरतिशयानन्द ब्रह्मलोकावाप्त्यादि कन्यादानफल पुत्रपौत्राद्यनवच्छिन्न संततिलक्ष्मीप्राप्त्यादि तुलाकल्पोक्त फलसिद्धि चैकविंशति पुरुषोद्धरण वैकुंठभुवनगमन तत्रत्यविपुल भोगोपभुक्त्यनन्तरं विष्णुसायुज्यता प्राप्त्यर्थं श्रीपरमेश्वरप्रीतये व्याघ्रपद्गोत्रस्य वैय्याघ्रपदगार्ग्यवसिष्ठेति त्रिप्रवरस्य देवमीढवर्मणः प्रपौत्राय, व्याघ्रपद्गोत्रस्य वैय्याघ्रपदगार्ग्यवसिष्ठेति त्रिप्रवरस्य शूरसेन वर्मणः पौत्राय, व्याघ्रपद्गोत्रस्य वैय्याघ्रपदगार्ग्यवसिष्ठेति त्रिप्रवरस्य वसुदेव वर्मणः पुत्राय, श्रीगोपालाय तुलस्यार्थिने वराय, आलंवायन गोत्रस्यालंवायन दैवल गौतमेति त्रिप्रवरस्य विश्वकर्मणः प्रपौत्रीं, आलंवायन गोत्रस्यालंवायन दैवल गौतमेति त्रिप्रवरस्य प्रजापतेः पौत्रीं, आलंवायन गोत्रस्यालंवायन दैवल गौतमेति त्रिप्रवरस्य ईश्वरस्यपुत्रीं तुलसीनाम्नीं वरार्थिनीं॥

तीन बार पढ़कर प्रत्येक बार शंख में तिल, बदरीपत्र दे।

व्याघ्रपद्गोत्राय वैय्याघ्रपदगार्ग्यवसिष्ठेति त्रिप्रवराय गोपालरूपिणे वराय, आलंवायन गोत्रां आलंवायनदैवलगौतमेति त्रिप्रवरां मयाकन्यात्वेन संवर्धितां इमांतुलसीनाम्नीं कन्यां वरार्थिनीं यथा शक्त्यलंकृतां यथाशक्त्युपकल्पितयौतकयुतां प्रजापति दैवतां देवाग्निगुरुब्राह्मणसंन्निधौ अग्न्यादि साक्षिकतयासहधर्मा चरणाय भार्यात्वेन तुभ्यमहंसंप्रददे, प्रतिगृह्णातुभवान्

इस प्रकार पढ़कर शंखस्थ जलादि तुलसी के दक्षिण शाखा और गोपाल के दक्षिण हस्त में अर्पित करे। यदि पूर्व से तुलसी का गोपाल के दक्षिणहस्त से स्पर्श न किया हुआ हो तो इस समय स्पर्श करा दे अर्थात भगवान के दाहिने हाथ में तुलसी का दाहिना हाथ (दाहिनी शाखा) प्रदान करे।

तत्पश्चात गोपाल का प्रतिवचन वरपक्षीय आचार्य पढ़ें : ॐ द्यौस्त्वा ददातु पृथवी त्वा प्रतिगृह्णातु ॥ ॐ कोऽदात् कस्मा अदात् कामोऽदात् कामायाऽदात् । कामो दाता कामः प्रतिग्रहीता कामेतत्ते ॥

तत्पश्चात यजमान हाथ जोड़कर प्रार्थना करे :

वृन्देममाग्रतोभूया वृन्देमेदेवि पार्श्र्श्वयोः। वृन्देमे पृष्ठतो भूयास्त्वद्दानान्मोक्षमाप्नुयाम् ॥
वृन्दां कनकसम्पन्नां कनकाभरणैर्युताम् । दास्यामि विष्णवे तुभ्यं ब्रह्मलोकजिगीषया ॥
ममशुद्धगृहेजाता पालितावत्सर(मास) त्रयम् । तुभ्यंकृष्ण मयादत्ता धर्मज्ञानर्विवर्धिनी ॥

दक्षिणा : त्रिकुशा, तिल, जल, द्रव्यादि लेकर दक्षिणा करे – ॐ अद्येत्यादि …….. ऽहं कन्यात्वेन तुलसीदान प्रतिष्ठार्थमिदं हिरण्यमग्निदैवतं श्रीगोपालाय वराय तुभ्यंसम्प्रददे ॥ मंत्र पढ़कर भगवान को दक्षिणा समर्पित करे।

तत्पश्चात शिष्टाचारानुसार तुलसी को भगवान विष्णु के दाहिने भाग में रखे, आंचल की ग्रंथि बांध दे।

हवन

तदनन्तर वरपक्षीयाचार्य हवन करें। हवन हेतु पंचभूसंस्कार पूर्वक अग्निस्थापन पूर्व में ही किया जाता है अतः दान से पूर्व ही वर्णित है और आगे की विधियां यथा; ब्रह्मावरण, प्रणीतास्थापन, परिस्तरण, आसादन, पवित्री निर्माण, प्रोक्षणीस्थापन पर्युक्षण पर्यन्त क्रियायें करके आज्याहुति, प्रायश्चित्तसंज्ञक – पञ्चमहावारुणी होम, राष्ट्रभृद्धोम आदि हवन विधि के अनुसार करके आगे भगवान विष्णु के 24 नामों से हवन करें।

  1. ॐ नमो भगवते केशवाय नमः स्वाहा ॥
  2. ॐ नमो भगवते नारायणाय नमः स्वाहा ॥
  3. ॐ नमो भगवते माधवाय नमः स्वाहा ॥
  4. ॐ नमो भगवते गोविन्दाय नमः स्वाहा ॥
  5. ॐ नमो भगवते विष्णवे नमः स्वाहा ॥
  6. ॐ नमो भगवते मधुसूदनाय नमः स्वाहा ॥
  7. ॐ नमो भगवते त्रिविक्रमाय नमः स्वाहा ॥
  8. ॐ नमो भगवते वामनाय नमः स्वाहा ॥
  9. ॐ नमो भगवते श्रीधराय नमः स्वाहा ॥
  10. ॐ नमो भगवते हृषीकेशाय नमः स्वाहा ॥
  11. ॐ नमो भगवते पद्मनाभाय नमः स्वाहा ॥
  12. ॐ नमो भगवते दामोदराय नमः स्वाहा ॥
  13. ॐ नमो भगवते संकर्षणाय नमः स्वाहा ॥
  14. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः स्वाहा ॥
  15. नमो भगवते प्रद्युम्नाय नमः स्वाहा ॥
  16. ॐ नमो भगवते अनिरुद्धाय नमः स्वाहा ॥
  17. ॐ नमो भगवते पुरुषोत्तमाय नमः स्वाहा ॥
  18. ॐ नमो भगवते अधोक्षजाय नमः स्वाहा ॥
  19. ॐ नमो भगवते नारसिंहाय नमः स्वाहा ॥
  20. ॐ नमो भगवते अच्युताय नमः स्वाहा ॥
  21. ॐ नमो भगवते जनार्दनाय नमः स्वाहा ॥
  22. ॐ नमो भगवते उपेन्द्राय नमः स्वाहा ॥
  23. ॐ नमो भगवते हरये नमः स्वाहा ॥
  24. ॐ नमो भगवते कृष्णाय नमः स्वाहा ॥

तदनन्तर जयाहोम, आभ्यातान होम, लाजा होम भी चतुर्विंशति नाम से ही करे। अश्मारोहण, सप्तपदी के निमित्त शांतिपाठ करे। तत्पश्चात पत्नी, पुत्र, भाई, गोत्रज आदि के साथ यजमान भगवान विष्णु को लेकर और यजमान पत्नी तुलसी को लेकर चार बार प्रदक्षिणा करे।

  • तत्पश्चात पुनः हवन विधि के अनुसार आज्याहुति, स्विष्टकृद्धोम, संसव प्राशन, ब्रह्म दक्षिणा, प्रणीताविमोक, बर्हिहोम, पूर्णाहुति, भस्म धारण आदि करे।
  • तदनंदर गोदान, भूयसी आदि करे।
  • आचार्य, ऋत्विक आदि को पर्याप्त दक्षिणा प्रदान करे।
  • आशीर्वाद ग्रहण करके ब्राह्मणों को भोजन कराये। स्वयं भी सपरिवार, बंधु-बांधवों सहित भोजन करे।
  • तत्पश्चात पुनः शिष्टाचारवश पालकी में तुलसी और विष्णु प्रतिमा/शालिग्राम/कृष्ण प्रतिमा को स्थापित करके प्रचुर द्रव्य, वस्तु आदि देकर विदा करे।

तत्पश्चात आचार्य मंगलघोष, मंगलवाद्य आदि पूर्वक अपने गृह में प्रवेश करे। भगवान विष्णु और तुलसी की पूजा करें। ब्राह्मणभोजन करायें। ब्राह्मणों का आशीर्वाद ग्रहण करें।

॥ इति तुलसी विवाह पद्धतिः ॥

उपरोक्त तुलसी विवाह विधि में जो कुछ भी त्रुटि हो उसके संबंध में हम सुझाव आमंत्रित करते हैं अथवा अन्य विशेष विधान आदि के संबंध में भी। इसके साथ ही तुलसी विवाह की विधि को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि शास्त्रसम्मत विधि क्या है और जितने भी आलेख-विडियो आदि के माध्यम से अंतर्जाल पर तुलसी विवाह की विधि बताई जा रही है वह निर्मूल व भ्रामक है।

अस्तु यदि आप धर्म-कर्मकांड में आस्था रखते हैं तो आपके लिये भी यह आवश्यक हो जाता है कि शास्त्रसम्मत विधि को अधिकतम प्रचारित-प्रसारित करें। इसी प्रकार संपूर्ण कर्मकांड विधि पर शास्त्रसम्मत पूजा, व्रत आदि की विधि प्रकाशित किये जाते हैं, सूचना प्राप्त करने के लिये सब्स्क्राइब कर लें।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

Leave a Reply