कार्तिक मास की विशेषता और मास के नियम – Kartik Mas

कार्तिक मास की विशेषता और मास के नियम - Kartik Mas

कार्तिक मास को सभी मासों में श्रेष्ठतम स्थान प्राप्त है। कार्तिक में पूरे माह प्रातः स्नान, पूजा-जप-कथा श्रवण आदि किया जाता है। विशेष तीर्थों आदि में कल्पवास भी किया जाता है। कार्तिक मास के माहात्म्य की कथा पद्मपुराण में वर्णित है। कार्तिक मास अत्यंत ही पुण्यप्रद मास कहा गया है और अन्य व्रत-पर्वों की चर्चा तो अलग है कार्तिक मास भी स्वयं में ही व्रत होता है। आस्थावान जन कार्तिक मास में कल्पवास करते हैं, संपूर्ण मास ही धर्म-कृत्यों में व्यतीत करते हैं। इस आलेख में कार्तिक मास करने से संबंधित चर्चा अर्थात कार्तिक मास के विधि और नियमों की जानकारी दी गयी है।

कार्त्तिके सकलं मासं प्रातः स्नायी जितेन्द्रियः।
जपन् हविष्यभुक् शान्तः सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥ 

संपूर्ण कार्तिक मास प्रातः स्नान, इन्द्रियों पर नियंत्रण, हविष्यान्न का भोजन करते हुये शान्तचित्त रहने वाला सभी पापों से मुक्त हो जाता है।

इसके साथ ही और भी अनेकों विशेष व्रत-पर्व होते हैं यथा : आकाश दीप दान, धनतेरस, यमचतुर्दशी, दीपावली, पितृविसर्जन, काली पूजन, अन्नकूट, भ्रातृद्वितीया, छठ व्रत, अक्षय नवमी, देवोत्थान एकादशी आदि।

यद्यपि मास तीन प्रकार के होते हैं : सौर, चांद्र और नाक्षत्र इसमें से नाक्षत्र मास का प्रयोग तो नहीं के बराबर ही होता है, किन्तु सौर एवं चांद्र मासों का प्रयोग होता ही रहता है। कार्तिक मास हेतु दोनों पक्ष है अर्थात सौर मान से तुला में सूर्य रहने पर भी कार्तिक मास किया जाता है एवं चांद्र मान से कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा से कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा तक का भी पक्ष ग्रहण किया जाता है।

कार्तिक मास की विशेषता

  • कार्तिक मास अर्थात तुला का सूर्य।
  • तुला का सूर्य अर्थात नीच सूर्य।
  • नीच सूर्य अर्थात ऊर्जा-आत्मबल-साहस की न्यूनता अर्थात आलस्य, शिथिलता आदि की वृद्धि।

नीच सूर्य कथन का तात्पर्य है ज्योतिष से सूर्य तुला राशि में नीच होता है और मेष में उच्च। सूर्य को आत्मा, साहस, धैर्य, आरोग्य आदि का कारक कहा गया है। इसके साथ-साथ संपूर्ण सृष्टि में जीवन शक्ति, उत्साह, क्रियाशीलता आदि का संचार सूर्य से ही होता है। इस प्रकार सूर्य के नीच होने से इन सभी विषयों के साथ सूर्य से संबंधित अन्य भी जो विषय हैं वो सभी प्रभावित होंगे, उनमें ह्रास होगा। इसलिये सूर्य के नीचत्व का निवारण करने हेतु यथासंभव प्रयास करना अपेक्षित हो जाता है।

कार्तिक मास के अन्य महत्व आदि जो पुराणों में वर्णित है उसकी चर्चा तो आगे करेंगे ही, लेकिन इस ज्योतिषीय कारण और उपाय की चर्चा पहले कर लेते हैं। ऐसा नहीं है कि वर्तमान में ही अत्यल्प आस्थावान नित्यकर्म करते हैं, प्राचीन काल में भी कहीं न कहीं इसी प्रकार की स्थिति थी। क्योंकि यदि सभी लोग प्रातः काल नित्यस्नान करके नित्यकर्म किया करते तो तीन मासों में पृथक से प्रातः स्नान करने का विधान ही नहीं होता। तीन मासों कार्तिक, माघ और वैशाख में प्रातः स्नान का जो विधान है उससे यह भी ज्ञात होता है कि प्राचीन काल में भी आंशिक स्तर पर ही नित्यकर्म किया करते थे।

कार्तिक मास में सूर्य नीच होते हैं और वैशाख मास में उच्च होते हैं इन दोनों ही मासों में विशेष रूप से प्रातः स्नान आदि कृत्य का विधान बताया गया है। इसके साथ ही दोनों के मध्य में माघ मास आता है और माघ मास में अयन परिवर्तन भी होता है। मध्य में आने वाले माघ मास को भी सम्मिलित किया गया है और माघ मास में भी प्रातः स्नान आदि कृत्य का निर्देश प्राप्त होता है।

कार्तिक मास में ही नीच सूर्य का निवारण करने के लिये भगवान सूर्य का सबसे बड़ा पर्व छठ जिसे महापर्व भी कहा जाता है होता है। एवं कार्तिक के पश्चात् मार्गशीर्ष से षाण्मासिक रविव्रत भी आरम्भ होता है।

स्पष्टीकरण : यहां कार्तिक मास में सूर्य से संबंधित चर्चा की गयी है जिसके प्रति कुछ स्पष्टीकरण अपेक्षित है –

  • सूर्य तुलाराशि में होने पर अर्थात कार्तिक मास में नीच होता है, यह ज्योतिष शास्त्र के प्रमाण से है।
  • कार्तिक मास में सूर्य की उपासना छठ महापर्व के रूप में की जाती है, यह भी शास्त्र प्रमाण से है।
  • कार्तिक मास में नीच सूर्य के अशुभ फलों का निवारण करने हेतु प्रातः स्नानादि का विधान है, यह तर्क मात्र है।
  • प्राचीन काल में भी अत्यल्प जन ही नित्यकर्म किया करते थे, यह कथन भी तर्क/अनुमान है।

कार्तिक मास निर्णय – कार्तिक मास कब से कब तक है

अगला प्रश्न यह आता है कि कार्तिक मास कब से कब तक होता है। इसका उत्तर तो सामान्य ही है कि यदि सौर माने तो तुला के सूर्य में और यदि चांद्र माने तो आश्विन व मार्गशीर्ष के मध्य में। किन्तु उपरोक्त प्रश्न का भाव कुछ अन्य है, वो यह है कि कार्तिक मास के यम-नियम-संयम आदि कब से कब तक करना चाहिये। इसके तीन पक्ष हैं :

  • प्रथम पक्ष
  • द्वितीय पक्ष
  • तृतीय पक्ष

तुला, मकर और मेष के सूर्य में प्रातः स्नान करना चाहिये। तीनों राशि में सूर्य की उपस्थिति का तात्पर्य सौर मास है। अर्थात इस प्रथम पक्ष के अनुसार सौर मास का ग्रहण करे। तुलामकरमेषेषु प्रातः स्नानं विधीयते । हविष्यं ब्रह्मचर्य्यञ्च महापातकनाशनम् ॥ विष्णुस्मृति, पद्मपुराण, वायुपुराण।

द्वितीय पक्ष चांद्र मास का है, किन्तु चांद्र मास में भी दो प्रकार है जिसमें से एक है आश्विन पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक। अर्थात यहां चांद्रमास का तात्पर्य कार्तिक कृष्णप्रतिपदा से कार्तिक पूर्णिमा तक का नहीं है, आश्विन शुक्ल पूर्णिमा से ही आरंभ करे।

चांद्र मास में दो प्रकार है जिसमें से दूसरा है आश्विन शुक्ल एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक। अर्थात यहां चांद्रमास का तात्पर्य कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा अथवा आश्विन शुक्ल पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक का नहीं है, आश्विन शुक्ल एकादशी से ही आरंभ करे।

कार्तिक मास के नियम

विशेष क्षेत्र : कार्तिक मास हेतु मथुरा को दुर्लभ बताया गया है अर्थात मथुरा में कार्तिक मास का विशेष महत्व होता है – दुर्लभः कार्त्तिको विप्र मथुरायां नृणामिह । यत्रार्चितः स्वकं रूपं भक्तेभ्यः संप्रयच्छति ॥ पद्मपुराण पद्मपुराण और वायुपुराण में कहा गया है कि मनुष्यों के लिये कार्तिक मास में मथुरा की प्राप्ति दुर्लभ है, जहां अर्चित होने पर भगवान विष्णु भक्तों को स्वयं का स्वरूप प्रदान कर देते हैं।

स्कंदपुराण के इस वचन में बताया गया है कि तुला के सूर्य अर्थात कार्तिक मास में प्रतिदिन सायंकाल तिलतेल का दीपक जलाना चाहिये, एक और विशेषता यह भी कही गयी है कि आकाशदीप देना चाहिये अर्थात यज्ञीयकाष्ठ के स्तंभ पर आकाश में दीपदान करना चाहिये। ऐसा करने से इस लोक में महती श्री, रूप, सौभाग्य, सम्पदा आदि की प्राप्ति होती है एवं परलोक में सभी कुलों का उद्धार करते हुये व्रती को भी विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।

धात्रीच्छायां समाश्रित्य भुंक्ते योऽन्नं हि मानवः। ब्राह्मणान् भोजयित्वा तु वार्षिकं किल्विषं हरेत् ॥ – कार्तिकमाहात्म्य (पद्मपुराण) के इस वचन में धात्रीछाया (आंवले वृक्ष के नीचे भोजन का विशेष महत्व बताया गया है। जो मनुष्य कार्तिक मास में धात्रीछाया में ब्राह्मण भोजन कराता है और स्वयं भोजन करता है उसके वर्षपर्यंत कृत पापों का नाश हो जाता है।

धात्रीछायासु यः कुर्यात्पिण्डदानम् महामुने । मुक्तिम्प्रयान्ति पितरः प्रसादान्माधवस्य च ॥
धात्रीफलविलिप्ताङ्गो धात्रीफलविभूषितः । धात्रीफलकृताहारो नरो नारायणो भवेत् ॥
धात्रीच्छायां समाश्रित्य योऽर्चयेच्चक्रपाणिकम् । पुष्पे पुष्पेऽश्वमेधस्य फलं प्राप्नोति मानवः ॥

पद्मपुराण में धात्री का विशेष महत्व बताया गया है, धात्रीछाया में पिंडदान करना भगवान विष्णु की कृपाप्रदायक और पितरों के लिये मुक्तिदायी होता है।

धात्रीफल (चूर्ण) अंगों में लेप करना, धात्रीफल धारण करना, धात्रीफल भक्षण करना नर को नारायण तुल्य बनाने वाला बताया गया है। धात्रीछाया में चक्रपाणि अर्थात विष्णु भगवान का पूजन करने का भी विशेष महत्व बताते हुये कहा गया है प्रत्येक पुष्प अर्पित करने से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

तुलसी का तो विशेष महत्व सर्वत्र वर्णित ही है, कार्तिक मास में भी तुलसी सेवा, तुलसी पत्र और माला से भगवान विष्णु की पूजा एवं भगवान विष्णु को अर्पित किया गया तुलसी माला धारण करना बहुत ही फलदायक बताया गया है। तुलसी व धात्री के महत्व की विशेष चर्चा कार्तिक माहात्म्य में भी की गयी है।

एकान्तरोपवासी वा त्रिरात्रोपोषितोऽपिवा । षड्वा द्वादश पक्षं वा मासं वा वरवर्णिनि ॥
एकभुक्तेन नक्तेन तथैवायाचितेन च । उपवासेन भैक्ष्येण ब्रजते परमं पदम् ॥

नारद पुराण में कार्तिकमास हेतु आहार का अनेक विकल्प बताया गया है; यथा एक दिन के अनंतर उपवास करना अर्थात एक दिन उपवास अगले दिन भोजन पुनः उपवास पुनः भोजन के क्रम से, अथवा सक्षमतानुसार त्रिरात्र, षड्रात्र, द्वादश, पक्ष, मास पर्यन्त करे। यदि उपवास न कर सके तो एकभुक्त, नक्त अथवा अयाचित अथवा भिक्षान्नभक्षण करते हुये मास करने से परमपद की प्राप्ति होती है।

कृत्यशिरोमणि का वचन जो कि कृत्यसारसमुच्चय में उद्धृत किया गया है; के अनुसार, पत्र में भोजन करने का भी विशेष प्रावधान मिलता है। इसमें बताया गया है कि जो मनुष्य कार्तिक मास में पत्रभोजन (पत्ते पर भोजन) करता है उसकी दुर्गति चौदह इन्द्रों के रहने तक भी नहीं होती। पद्मपत्र (कमल के पत्ते) पर भोजन करने से महापातकों का नाश होता है एवं ब्रह्मपत्र (पलाश के पत्ते) पर भोजन करना मुक्तिदायक है।

वर्जना

कार्तिके वर्जयेत्तैलं कार्त्तिके वर्जयेन्मधु । कार्त्तिके वर्जयेन्मांसं कार्त्तिके शुक्तसन्धितम् ॥ कार्तिक मास वर्ज्य का उल्लेख करते हुये नारद पुराण में बताया गया है कि तैल, मधु, मांस, बासी, लवण, शाक आदि की वर्जना करे।

इसके साथ ही हविष्यान्नभोजन प्रशस्त होने से संबंधित चर्चा तो पूर्व में ही हो गयी है, व्रतादि में सर्वत्र आमिष के निषेध का भी उल्लेख मिलता है, पद्मपुराण में आमिष से संबंधित प्रमाण आगे दिया गया है :

प्राण्यङ्गचूर्ण चर्माम्बु जम्बीरं बीजपूरकम् । अयज्ञशिष्टं माषादि यद्विष्णोरनिवेदितम् ॥
दग्धमन्नं मसूरं च मांसं चेत्यष्टधाऽऽमिषम् । गोछागीमहिषीदुग्धादन्यदुग्धं तथाऽऽमिषम् ॥
धान्ये मसूरिका प्रोक्ता अन्नं पर्युषितं तथा । द्विजक्रीता रसाः सर्वे लवणं भूमिजं तथा ॥
ताम्रपात्रस्थितं गव्यं जलं पल्वलसंस्थितम् । आत्मार्थं पाचितं चान्नमामिषं तत्स्मृतं बुधैः ॥

महाभारत में मांस वर्जना का भी विशेष महत्व बताया गया है :

मासि मास्यश्वमेधेन यो यजेत्तु शतं समाः । न खादति च यो मांसं सममेतद्युधिष्ठिर ॥
यस्तु वर्षशतं पूर्णं तपस्तप्येत्सुदारुणम् । यश्च वै वर्जयेन्मांसं समौ तौ न च संशयः ॥

हविष्यान्न

भविष्यपुराण में हविष्यान्न का वर्णन इस प्रकार मिलता है :

हैमन्तिकं सितास्विन्नं धान्यं मुद्ङ्गास्तिला यवाः । कलायं कङ्गुनीवारा वास्तूकं हिलमोचिका ॥
षष्टिका कालशाकं च मूलकं केमुकेतरत् । कन्दं सेन्धवसामुद्रे गव्ये च दधिसर्पिषी ॥
पयोऽनुद्धृतसारं च पनसाम्रहरीतकी । पिप्पली जीरकं चैव नागरं कञ्चु तिन्तिली ॥
कदलीलवलीधात्री फलान्यगुडमैक्षवम् । अतैलपक्वं मुनयो हविष्यान्नं प्रचक्षते ॥

उपरोक्त विश्लेषण के उपरांत हमें कार्तिक मास के संबंध में जो नियम-विधि इत्यादि ज्ञात होती है उसे इस प्रकार से समझा जा सकता है : प्रातः स्नान, भगवान विष्णु की पूजा, जप, हवन, ब्राह्मण भोजन, धात्री सेवन, हविष्यान्नभोजन एवं आकाशदीप दान। इसके साथ ही विशेष प्रकार की वर्जनायें, आत्मसंयम, चित्त की शांति आदि का भी पालन करना चाहिये।

प्रातः स्नान मंत्र

कार्तिकेऽहं करिष्यामि प्रातः स्नानं जनार्दन । प्रीत्यर्थं तव देवेश दामोदर मया सह॥

  • भगवान विष्णु की पूजा का मंत्र : द्वादशाक्षर, अष्टाक्षर आदि। वैदिक मंत्रों का ज्ञाता वेद मंत्रों से भी पूजा कर सकता है।
  • विष्णु पूजा के विशेष नियम : धात्री छाया/तुलसी छाया में भगवान विष्णु की पूजा करे। तुलसी और धात्री के पत्ते, माला आदि विशेष रूप से अर्पित करे। एवं भगवान विष्णु को अर्घ्य भी प्रदान करे। शंख में सुवर्ण, पुष्प, रत्न, जल आदि लेकर अर्घ्य प्रदान करे।

अर्घ्यदान मंत्र :

व्रतिनः कार्तिकेमासि स्नातस्यविधिवन्मम । गृहाणार्घ्यं मयादत्तं दनुजेंद्रनिषूदन ॥
नित्यनैमित्तिकेकृष्ण कार्तिकेपापनाशने । गृहाणार्घ्यं मयादत्तं राधयासहितो हरे ॥

तुलसी माला धारण मंत्र

इसी प्रकार भगवान विष्णु को अर्पित किये गये तुलसी माला, धात्री माला को धारण करने का भी कथन है। तुलसी माला धारण का मंत्र भी प्राप्त होता है जो आगे दिया गया है :

तुलसीकाष्ठ सम्भूते माले कृष्णजनप्रिये। बिभर्मित्वामहं कण्ठे कुरु मां कृष्णवल्लभवं

हवन करने का मंत्र : हवन सभी लोग नहीं कर सकते किन्तु जो करने वाले हैं उनके लिये मूलमंत्र का विधान किया गया है। मूलमंत्र के रूप में जो भी ग्रहण किया गया हो द्वादशाक्षर अथवा अष्टाक्षर उसी से हवन भी करे।

आकाश दीपदान

यद्यपि बांस सहारे आकाशदीप देने का भी व्यवहार प्राप्त होता है किन्तु इसके लिये निर्णयसिंधु में जो आदित्यपुराण, हेमाद्रि का प्रमाण दिया गया है उसके अनुसार घर से कुछ दूरी पर यज्ञीयकाष्ठ (लकड़ी) का यूप स्थापित करे, उस पर दो हाथ की पीठ स्थापित करके उसपर चतुस्र और अष्टदलाकृति बनाये, जिससे आठों दिशाओं का बोध हो। जब सूर्य अस्ताचल को हों, अर्थात अस्त होने ही वाले हों उस समय अष्टदल के मध्य में एक बड़ा दीपक और अष्टदल की आठों कर्णिकाओं पर आठ दीप जलाये।

आकाशदीपदान मंत्र : दामोदराय नभसि तुलायां लोलयासह। प्रदीपं ते प्रयच्छामि नमोनन्ताय वेधसे ॥

सारांश : कार्तिक मास को सबसे पवित्र माना जाता है, ये व्रत-पर्व और धार्मिक क्रियाओं से भरा है। इस महीने लोग प्रातः स्नान, पूजा और जप करते हैं। इसका माहात्म्य पद्मपुराण में मिलता है। अनेकों विशेष व्रत-पर्व जैसे दीपावली, छठ, अक्षयनवमी भी इसी महीने में होते हैं। कार्तिक का समय सूर्य के नीच होने से जुड़ा है, जो हमारी ऊर्जा, जीवन, आत्मबल आदि को प्रभावित करता है। मथुरा में कार्तिक मास करने का विशेष महत्व है, जहां भगवान विष्णु की विशेष कृपाप्राप्त होती है। इस महीने विशेष नियम हैं जैसे प्रातः स्नान करना, भगवान विष्णु की पूजा करना, इंद्रियों पर नियंत्रण रखना, हविष्यान्न का सेवन करना इत्यादि। कार्तिक मास अत्यधिक पुण्यदायक कहा गया है।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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