दिग्रक्षण : रक्षा विधान मंत्र या भूतोत्सारण, संक्षिप्त नित्यकर्म सहित, दिग्बंधन विधि

दिग्रक्षण-विधि

किसी भी पूजा-अनुष्ठान करते समय बहुत सारे असुरादि गण विघ्न करने हेतु तत्पर रहते हैं, क्योंकि पूजा-हवनादि से देवता बलवान होते हैं। देव-दानवों का प्राकृतिक वैर है एवं असुरादि गणों का नैसर्गिक स्वभाव भी शुभ कर्मों में विघ्नादि उपस्थित करना है। इस कारण किसी भी प्रकार के पूजा-पाठ आदि करने से पूर्व रक्षा विधान किया जाता है। रक्षा विधान को ही दिग्रक्षण या अपसारन आदि भी कहा जाता है। इस आलेख में संक्षिप्त अपसारण मंत्र के साथ ही वैदिक रक्षोघ्न सूक्त भी दिया गया है और साथ ही संक्षिप्त नित्यकर्म विधि भी दिया गया है।

दिग्रक्षण : रक्षा विधान मंत्र या भूतोत्सारण, संक्षिप्त नित्यकर्म सहित

दिग्रक्षण विधि किसी भी पूजा-पाठ-जप-हवन-श्राद्धादि में एक आवश्यक क्रिया है। किसी भी कर्म के समय असुर-दानवादि गण विघ्न उपस्थित कर भाग हरण करने के लिए सदा तत्पर रहते हैं। कर्म भंग न हो और असुरादिकों को भाग न मिले इसलिए रक्षाविधान एक विशेष प्रक्रिया है और सजगतापूर्वक इस क्रिया को वैदिक विधि से सम्पादित करने की आवश्यकता होती है। बांये हाथ में पिली सरसों, तिल, दूर्वा आदि लेकर दांये हाथ से ढंककर रक्षोघ्नसूक्त का पाठ करना चाहिए। तत्पश्चात दशों दिशाओं में छिड़काव करना चाहिए।

रक्षा विधान मंत्र या भूतोत्सारण

संक्षिप्त दिग्रक्षण मंत्र : ॐ अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूमिसंस्थिताः । ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया । अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतोदिशम्। सर्वेषामविरोधेन पूजाकर्म समारभे ॥

बृहद् दिग्रक्षण मंत्र

रक्षाबंधन मंत्र : ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः । तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥

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