प्राधानिक रहस्य

प्राधानिक रहस्य

॥ विनियोगः ॥

॥ राजोवाच ॥

प्रधानिक रहस्य हिन्दी में

  1. राजा बोले – भगवन् ! आपने चण्डिका के अवतारों की कथा मुझसे कही । ब्रह्मन् ! अब इन अवतारों की प्रधान प्रकृति का निरुपण कीजिये ॥१॥
  2. द्विजश्रेष्ठ ! मैं आपके चरणों में पड़ा हूँ । मुझे देवी के जिस स्वरूप की और जिस विधि से आराधना करनी है , वह सब यथार्थ रूप से बतलाइये ॥२॥
  3. ऋषि कहते हैं – राजन् ! यह रहस्य परम गोपनीय है । इसे किसी से कहने – योग्य नहीं बतलाया गया है ; किंतु तुम मेरे भक्त हो , इसलिये तुमसे न कहने – योग्य मेरे पास कुछ भी नहीं है ॥ ३॥
  4. त्रिगुणमयी परमेश्वरी महालक्ष्मी ही सबका आदि कारण हैं । वे ही दृश्य और अदृश्य रूप से सम्पूर्ण विश्व को व्याप्त करके स्थित हैं ॥४॥
brahman
प्रधानिक रहस्य हिन्दी में
  1. त्रिगुणमयी परमेश्वरी महालक्ष्मी ही सबका आदि कारण हैं । वे ही दृश्य और अदृश्य रूप से सम्पूर्ण विश्व को व्याप्त करके स्थित हैं ॥४॥
  2. राजन् ! वे अपनी चार भुजाओं में मातुलुंग (बिजौरे का फल ) ,गदा , खेट (ढ़ाल ) एवं पानपात्र और मस्तक पर नाग , लिंग तथा योनि – इन वस्तुओं को धारण करती हैं ॥५॥
  3. तपाये हुए सुवर्ण के समान उनकी कान्ति है , तपाये हुए सुवर्ण के ही उनके भूषण हैं । उन्होंने अपने तेज से इस शून्य जगत् को परिपूर्ण किया है ॥६॥
  4. परमेश्वरी महालक्ष्मी ने इस सम्पूर्ण जगत् को शून्य देखकर केवल तमोगुणरूपा उपाधि के द्वारा एक अन्य उत्कृष्ट रूप धारण किया ॥७॥
  5. वह रूप एक नारी के रूपमें प्रकट हुआ , जिसके शरीर की कान्ति निखरे हुए काजल की भाँति काले रंग की थी , उसका श्रेष्ठ मुख दाढ़ों से सुशोभित था । नेत्र बड़े – बड़े और कमर पतली थी ॥८॥
  6. उसकी चार भुजाएँ ढ़ाल , तलवार , प्याले और कटे हुए मस्तक से सुशोभित थीं । वह वक्ष:स्थल पर कबन्ध (धड़ ) – की तथा मस्तक पर मुण्डों की माला धारण किये हुए थी ॥९॥
  7. इस प्रकार प्रकट हुई स्त्रियों मे श्रेष्ठ तामसी देवीने महालक्ष्मी से कहा – ‘ माताजी ! आपको नमस्कार है । मुझे मेरा नाम और कर्म बताइये’ ॥१०॥
  8. तब महालक्ष्मीने स्त्रियों में श्रेष्ठ उस तामसी देवी से कहा-‘मैं तुम्हें नाम प्रदान करती हूँ और तुम्हारे जो – जो कर्म हैं , उनको भी बतलाती हूँ, ॥११॥
  9. महामाया , महाकाली , महामारी , क्षुधा , तृषा , निद्रा ,तृष्णा , एकवीरा , कालरात्रि तथा दुरत्यया – ॥१२॥
  10. ये तुम्हारे नाम हैं , जो कर्मों के द्वारा लोक में चरितार्थ होंगे । इन नामों के द्वारा तुम्हारे कर्मों को जानकर जो उनका पाठ करता है , वह सुख भोगता है ’ ॥१३॥
  11. राजन् ! महाकाली से यों कहकर महालक्ष्मी ने अत्यन्त शुद्ध सत्त्व गुण के द्वारा रूप धारण किया , जो चन्द्रमा के समान गौरवर्ण था ॥१४॥
  12. वह श्रेष्ठ नारी अपने हाथों में अक्षमाला , अंकुश , वीणातथा पुस्तक धारण किये हुए थी । महालक्ष्मी ने उसे भी नाम प्रदान किये ॥१५॥
  13. महाविद्या , महावाणी , भारती , वाक् , सरस्वती , आर्या , ब्राह्मी , कामधेनु , वेदगर्भा और धीश्वरी (बुद्धिकी स्वामिनी ) – ये तुम्हारे नाम होंगे ॥१६॥
  14. तदनन्तर महालक्ष्मी ने महाकाली और महासरस्वती से कहा-‘ देवियो ! तुम दोनों अपने – अपने गुणों के योग्य स्त्री – पुरुष के जोड़े उत्पन्न करो’ ॥१७॥
  15. उन दोनों से यों कह कर महालक्ष्मी ने पहले स्वयं ही स्त्री – पुरुष का एक जोड़ा उत्पन्न किया। वे दोनों हिरण्यगर्भ (निर्मल ज्ञानसे सम्पन्न ) सुन्दर तथा कमल के आसनपर विराजमान थे । उनमें से एक स्त्री थी और दूसरा पुरुष ॥१८॥
  16. तत्पश्चात् माता महालक्ष्मी ने पुरुष को ब्रह्मन ! विधे ! विरिंच! तथा धात: ! इस प्रकार सम्बोधित किया और स्त्री को श्री ! पद्मा ! कमला ! लक्ष्मी ! इत्यादि नामों से पुकारा ॥१९॥
  17. इसके बाद महाकाली और महासरस्वती ने भी एक – एक जोड़ा उत्पन्न किया । इनके भी रूप और नाम मैं तुम्हें बतलाता हूँ ॥२०॥
  18. महाकाली ने कण्ठ में नील चिह्न से युक्त , लाल भुजा , श्वेत शरीर और मस्तक पर चन्द्रमा धारण करने वाले पुरुष को तथा गोरे रंग की स्त्री को जन्म दिया ॥२१॥
  19. वह पुरुष रुद्र , शंकर , स्थाणु , कपर्दी और त्रिलोचन के नाम से प्रसिद्ध हुआ तथा स्त्री के त्रयी , विद्या , कामधेनु , भाषा , अक्षरा और स्वरा – ये नाम हुए ॥२२॥
  20. राजन् ! महासरस्वती ने गोरे रंग की स्त्री और श्याम रंग के पुरुषको प्रकट किया । उन दोनों के नाम भी मैं तुम्हें बतलाता हूँ ॥२३॥
  21. उनमें पुरुष के नाम विष्णु , कृष्ण , ह्रषीकेश , वासुदेव और जनार्दन हुए तथा स्त्री उमा , गौरी , सती , चण्डी , सुंदरी , सुभगा और शिवा – इन नामों से प्रसिद्ध हुई ॥२४॥
  22. इस प्रकार तीनों युवतियाँ ही तत्काल पुरुष को प्राप्त हुईं । इस बात को ज्ञान नेत्रवाले लोग ही समझ सकते हैं । दूसरे अज्ञानीजन इस रहस्य को नहीं जान सकते ॥२५॥
  23. राजन् ! महालक्ष्मी ने त्रयीविद्यारूपा सरस्वती को ब्रह्मा के लिये पत्नीरूप में समर्पित किया , रुद्र को वरदायिनी गौरी तथा भगवान् वासुदेव को लक्ष्मी दे दी ॥२६॥
  24. इस प्रकार सरस्वती के साथ संयुक्त होकर ब्रह्माजी ने ब्रह्माण्ड को उत्पन्न किया और परम पराक्रमी भगवान् रुद्र ने गौरी के साथ मिलकर उसका भेदन किया ॥२७॥
  25. राजन् ! उस ब्रह्माण्ड में प्रधान (महत्तत्त्व) आदि कार्यसमूह – पंचमहाभूतात्मक समस्त स्थावर – जंगमरूप जगत् की उत्पत्ति हुई ॥२८॥
  26. फिर लक्ष्मी के साथ भगवान् विष्णु ने उस जगत् का पालन – पोषण किया और प्रलयकाल में गौरी के साथ महेश्वर ने उस सम्पूर्ण जगत् का संहार किया ॥२९॥
  27. महाराज ! महालक्ष्मी ही सर्वसत्त्वमयी तथा सब सत्त्वों की अधीश्वरी हैं । वे ही निराकार और साकार रूप में रहकर नाना प्रकार के नाम धारण करती हैं ॥३०॥ सगुणवाचक सत्य , ज्ञान , चित् , महामाया आदि नामान्तरों से इन महालक्ष्मी का निरुपण करना चाहिये । केवल एक नाम (महालक्ष्मीमात्र ) – से अथवा अन्य प्रत्यक्ष आदि प्रमाण से उनका वर्णन नहीं हो सकता ॥३१॥

॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः सुशांतिर्भवतु सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु

आगे सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती के अनुगमन कड़ी दिये गये हैं जहां से अनुसरण पूर्वक कोई भी अध्याय पढ़ सकते है :

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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