अर्धोदय के शब्दार्थ पर यदि विचार करें तो अर्ध-उदित ज्ञात होता है। किन्तु यदि अर्ध-उदित अर्थ ग्रहण किया जाय तो उसमें रविवार के संयोग का क्या तात्पर्य है ? यदि अर्धोदय के शब्दार्थ को ग्रहण करेंगे तो; रविवार का संयोग हो अथवा न हो; कोई अंतर नहीं हो सकता। अर्थात अर्धोदय में बिम्ब (सूर्य-चंद्र) के अर्द्ध-उदित का कोई भाव सिद्ध नहीं होता। इस आलेख में अर्धोदय योग क्या है यह बताते हुये अर्धोदय पर्व पर कर्तव्य विधि एक वर्णन किया गया है।
करोड़ों सूर्य ग्रहण तुल्य फलदायक अर्धोदय योग क्या है ?
अर्धोदय के शब्दार्थ से अर्धोदय पर्व का कोई संबंध नहीं सिद्ध होता है। एक कारण तो पूर्व ही स्पष्ट कर चुके हैं कि यदि बिम्ब का अर्द्ध-उदित होना अर्थ लिया जाय तो रविवार का उसमें क्या योगदान सिद्ध होगा, क्योंकि यह स्थिति तो किसी भी दिन हो सकती है रविवार को ही हो ऐसा नहीं है।
दूसरी बात यदि सूर्य-चंद्र अर्द्ध-उदित हों तो उसका तात्पर्य ग्रहण होता है। अमावस्या को सूर्यग्रहण ही हो सकता है और यदि अर्द्ध-सूर्य ही उदित हों, दिखें तो उसे सूर्य ग्रहण कहा जायेगा। यदि चन्द्रमा का अर्द्ध-उदित होना ग्रहण किया जाय तो ये संभव ही नहीं, क्योंकि अर्द्ध-उदित की सिद्धि तब होगी जब पूर्णिमा हो और आधे ढंके हुये हों, अर्थात न दिखें, और जब कभी भी ऐसा होता है तो वह चंद्रग्रहण होता है।
तथापि पुनः गणकों द्वारा किसी प्रकार से अर्द्ध-उदित होने के भाव की सिद्धि की जा सकती है, क्योंकि जब ऐसा कहा जा रहा है कि कि किसी बिम्ब का अर्धोदय तात्पर्य नहीं है तो ऐसा सिद्ध करने का प्रयास हो सकता है। किन्तु यह प्रश्न तब भी अनुत्तरित ही रहेगा कि इसमें रविवार का क्या योगदान है ?
अर्धोदय योग क्या है
अमार्कपातश्रवणैर्युक्ता चेत् पौषमाघयोः। अर्धोदयः स विज्ञेयः कोटिसूर्यग्रहैः समः ॥
महाभारत में कहा गया है कि पौष-माघ की अमावास्या (मुख्य तात्पर्य माघ की अमावास्या ही है, किन्तु अमावास्यांत माह में वह पौष की अमावास्या होगी) के दिन श्रवण नक्षत्र हों, व्यतिपात योग हो और रविवार हो तो अर्धोदय योग होता है जो करोड़ों सूर्यग्रहण के समान (पुण्यकारक) होता है। पुनः महाभारत में ही अर्धोदय व महोदय की चर्चा भी की गई है :
श्रवणार्कव्यतीपातैरमा वे पौषमाघयोः । अर्धोदयः स विज्ञेयः किञ्चिन्न्यूने महोदयः ॥
उपरोक्त योग होने पर अर्धोदय पर्व होता है किन्तु योग में किञ्चित न्यूनता रहे तो महोदय योग होता है। अब किञ्चित न्यूनता का तात्पर्य स्पष्ट करना आवश्यक हो जाता है जिससे महोदय योग होता है। इसके लिये विशेष विमर्श की अपेक्षा है ।
माह | तिथि | वार | नक्षत्र | योग |
---|---|---|---|---|
पौष/माघ | अमावास्या | रविवार | श्रवण | व्यतिपात |
उपरोक्त स्थिति में अर्धोदय होता है, अर्धोदय से एक तात्पर्य यह भी ग्रहण किया जा सकता है कि उपरोक्त योग सूर्य बिम्ब के अर्धोदय काल में होना चाहिये। क्योंकि अर्धोदय नाम का कहीं न कहीं कुछ विशेषार्थ भी होना चाहिये अर्थात या तो पूर्व से योग हो और सूर्य बिम्ब के अर्धोदय होने तक रहे, अथवा सूर्य बिम्ब के अर्धोदित होने से आरंभ हो और आगे तक रहे। उपरोक्त सभी योग बहुत काल तक नहीं हो सकते अल्पकालिक ही हो सकते हैं।
अर्धोदय से एक तात्पर्य यह भी हो सकता है कि वार की प्रवृत्ति अर्धोदय से ही ली गयी हो, और सम्पूर्ण दिन में कभी भी उपरोक्त योग बने तो अर्धोदय योग माना जायेगा। किन्तु सूर्य बिम्ब के अर्धोदित होने से पूर्व वार का योग नहीं होगा, यदि अर्धोदय से वारप्रवृत्ति का पक्ष ग्रहण किया जाय तो।
अर्धोदय से एक तात्पर्य यह भी हो सकता है कि वार की प्रवृत्ति अर्धोदय से ही ली गयी हो, और सम्पूर्ण दिन में कभी भी उपरोक्त योग बने तो अर्धोदय योग माना जायेगा। किन्तु सूर्य बिम्ब के अर्धोदित होने से पूर्व वार का योग नहीं होगा, यदि अर्धोदय से वारप्रवृत्ति का पक्ष ग्रहण किया जाय तो।
यद्यपि विद्वानों ने महोदय हेतु किञ्चिन्न्यून के लिये इस पक्ष की चर्चा नहीं किया है किन्तु इसका एक तात्पर्य यह भी हो सकता है कि सूर्य बिम्ब के अर्धोदय काल में ही तिथि-नक्षत्र-योग भी प्राप्त हों तो अर्धोदय और यदि सूर्योदय के पश्चात् कभी भी दिन में योग बने तो महोदय होगा। किञ्चिन्न्यून का यह तात्पर्य हो सकता है, सूर्य बिम्ब के अर्धोदय काल में नहीं बनना, सूर्योदय के पश्चात् बनना।
विद्वानों ने किञ्चिन्न्यून का तात्पर्य नक्षत्र का योग प्राप्त नहीं होना बताया है। अर्थात पौष/माघ मास के अमावास्या तिथि को यदि रविवार हो और व्यतिपात योग हो किन्तु श्रवण नक्षत्र न हो तो महोदय योग होगा।
अर्धोदय योग का महत्व
अर्धोदय योग का महत्व तो “कोटिसूर्यग्रहैः समः” से भी ज्ञात होता है कि बहुत ही पुण्यकारक होता है, करोड़ों सूर्यग्रहण के समान फल अर्धोदय में होता है। पुण्यकारक या फलकारक कथन का तात्पर्य है कि उपरोक्त योग में स्नान-दान-पूजा-जप-हवन आदि अत्यधिक फलकारक होते हैं। इसके साथ ही स्कंदपुराण में बताया गया है कि अर्धोदय योग में सभी जल गंगाजल के समान हो जाते हैं, सभी शुद्धात्मा ब्राह्मण ब्रह्म के समान हो जाते हैं। अर्धोदय योग में जो कुछ अल्प दान भी किया जाता है वह मेरु के समान हो जाता है।
अर्धोदये तु सम्प्राप्ते सर्वं गंगासमं जलं। शुद्धात्मनो द्विजाः सर्वे भवेयुर्ब्रह्मसन्निभम् ॥
यत्किञ्चिद्दीयते दानं तद्दानं मेरुसन्निभं ॥ – स्कंदपुराण
अर्धोदय स्नान संकल्प
अर्धोदय में स्नान के संकल्प को तीन प्रकार से समझा जा सकता है : प्रथम गंगा स्नान, द्वितीय अन्य नदियों या सामान्य जल से स्नान, एवं पुरुष व महिला के भेद से। नीचे अर्धोदय योग में तीनों प्रकार के स्नान का संकल्प मन्त्र दिये गये हैं :
गंगा स्नान संकल्प : ओमद्य पौषे/माघे मासि कृष्णे पक्षे अमावास्यायां तिथौ अर्धोदयपर्वणि ……… गोत्रस्य मम श्री ……… शर्मणः कायिकवाचिक मानसिक जन्मान्तरीय ज्ञाताऽज्ञातसकलपापक्षयकामनया श्रुतिस्मृतीतिहासपुराणोक्त फलसमफल प्राप्तिपूर्वक सूर्यग्रहणकालिक गङ्गास्नानजन्यफल कोटिगुणाधिक फलकामो गङ्गायां स्नानमहं करिष्ये ॥
गंगातिरिक्त नदी/सामान्य जल में स्नान करने का संकल्प : ओमद्य पौषे/माघे मासि कृष्णे पक्षे अमावास्यायां तिथौ अर्धोदयपर्वणि ……… गोत्रस्य मम श्री ……… शर्मणः कायिकवाचिक मानसिक जन्मान्तरीय ज्ञाताऽज्ञातसकलपापक्षयकामनया श्रुतिस्मृतीतिहासपुराणोक्त फलसमफल प्राप्तिपूर्वक सूर्यग्रहणकालिक गङ्गास्नानजन्यफल कोटिगुणाधिक फलकामो स्नानमहं करिष्ये ॥
स्त्री के लिये गंगा स्नान संकल्प : ओमद्य पौषे/माघे मासि कृष्णे पक्षे अमावास्यायां तिथौ अर्धोदयपर्वणि ……… गोत्रायाः मम ……… देव्याः कायिकवाचिक मानसिक जन्मान्तरीय ज्ञाताऽज्ञातसकलपापक्षयकामनया श्रुतिस्मृतीतिहासपुराणोक्त फलसमफल प्राप्तिपूर्वक सूर्यग्रहणकालिक गङ्गास्नानजन्यफल कोटिगुणाधिक फलकामो गङ्गायां स्नानमहं करिष्ये ॥
अर्धोदय योग को दुर्लभ योग कहा गया है और अगले 25 वर्षों में इसकी स्थिति नहीं बन रही है। अदृश्य पंचांगों की गणना में कदाचित बनती दिखें भी तो अदृश्य पंचांग अगले 25 वर्षों तक प्रचलन में रहेगा यह भी संशयापन्न है।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।