विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती हैं, विद्या प्राप्ति के लिये सरस्वती की ही आराधना करनी चाहिये। लेकिन विद्या के कारण इसे विद्यार्थियों मात्र से सम्बद्ध मानना अनुचित है, सरस्वती ज्ञान की भी देवी है और ज्ञान की आवश्यकता विद्यार्थियों मात्र को नहीं सभी को होती है। अतः वार्षिक रूप से वसंत पंचमी के दिन होने वाली सरस्वती पूजा सभी को करनी चाहिये, विद्यार्थी मात्र को नहीं। ब्राह्मणों को तो विशेष रूप से करना ही चाहिये। इस आलेख में वसंत पञ्चमी को की जाने वाली माता सरस्वती की पूजा विधि एवं मंत्रों की जानकारी दी गयी है जिससे माता सरस्वती की पूजा करने में लाभान्वित हुआ जा सके।
सरस्वती पूजा विधि मंत्र सहित ~ Saraswati Puja Vidhi
प्रथमतया सरस्वती पूजा से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण चर्चा की गयी है तदनन्तर द्वितीय पृष्ठ पर सरस्वती पूजा की विधि और मंत्र दिये गये हैं। वर्त्तमान में हमलोग नई पीढ़ी के लिये शिक्षण-प्रशिक्षण तक की ही व्यवस्था कर रहे हैं ज्ञान की नहीं जो दुर्भाग्यपूर्ण है। सरस्वती पूजा करते समय ज्ञान प्राप्ति की भी प्रार्थना करें।
सरस्वती वंदना श्लोक
प्रथमं भारती नाम द्वितीयं च सरस्वती। तृतीयं शारदा देवी चतुर्थं हंसवाहिनी ॥
पञ्चमं जगतीख्याता षष्ठं वागीश्वरी तथा। सप्तमं कुमुदी प्रोक्ता अष्टमे ब्रह्मचारिणी ॥
नवमं बुद्धिदात्री च दशमं वरदायिनी। एकादशं चन्द्रकान्ति द्वादशं भुवनेश्वरी ॥
द्वादशैतानि नामानी त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः। जिह्वाग्रे वसते नित्यं ब्रह्मरूपा सरस्वती ॥
ध्यातव्य :
- मंदिर में, मंडप में, विद्यालय में, या पंडाल आदि बनाकर माता सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की जाती है।
- माता सरस्वती के साथ ही जहां विशेष पूजा हो रही हो वहां भगवती लक्ष्मी और भगवान गणेश की प्रतिमा भी स्थापित की जाती है।
- यदि भगवती लक्ष्मी और भगवान गणेश की प्रतिमा न स्थापित की गयी हो तो भी पूजा की जाती है।
- सबसे अधिक प्रतिमा सरस्वती माता की ही बनाई जाती है क्योंकि सबसे अधिक जगह पर सरस्वती पूजा ही होती है।
- स्नानादि करके शुद्ध वस्त्र (उजला या पीला) धारण करें। चन्दन – तिलक लगा लें। शिखा बांध लें।
- नित्यकर्म संपन्न कर लें। यदि न आती हो तो – भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर १० बार गायत्री मन्त्र अथवा गुरु मन्त्र अवश्य जप लें।
- पूजन सामग्री व्यवस्थित कर लें।
- भगवती सरस्वती को श्वेत वर्ण प्रिय है अतः श्वेत वस्तुओं का विशेष महत्व दें, जैसे श्वेत वस्त्र-श्वेत पुष्प-श्वेत चन्दन (किन्तु सिंदूर आदि लाल ही होंगे)- श्वेत कॉपी – कलम आदि।
- खोंयछा की सामग्री भी रखें। देवी की पूजा में खोंयछा भी दिया जाता है।
- प्रसाद में गाजर का प्रयोग अनुचित है। मिश्रीकंद-बैर-केला-सेव इत्यादि फलों का चयन करें।
- पूजा करते समय जल-चन्दन-पुष्प-अबीर-सिंदूर आदि माता के चरणों में अर्पित करें। यदि मिट्टी की प्रतिमा की पूजा कर रहे हों तो जल चरण पर न देकर चरणों के पास कोई कटोरी या अन्य पात्र रख कर उसमें दें।
- पूजा पर बैठने से पहले सभी पूजन सामग्री व्यवस्थित कर लें; जैसे : जलपात्र में जल, किसी थाली में अक्षत-चन्दन-तिल-सिंदूर-पुष्प-माला, धूप-दीप-प्रसाद आदि, पंचदेवता-नवग्रहादि के पूजन हेतु केला के पत्ते पर या किसी छोटे चौकी-पीढ़िया पर कपड़ा देकर या किसी बड़े थाली में रंगे हुए अक्षत-चन्दन-अबीर आदि से अष्टदल बनाकर पान-सुपारी-नैवेद्य भाग आदि सजा लें।
- ये सारी व्यवस्था स्वयं करें इसके लिए पंडितजी पर दवाब न बनायें क्योकि ये यजमान की जिम्मेवारी होती है पंडितजी की जिम्मेवारी मात्र सविधि पूजनादि कराना, पसंद होने पर भोजन करना, दान/दक्षिणा लेना आदि होता है उसकी व्यवस्था करना नहीं।