किसी भी वर-कन्या के विवाह से पूर्व वर और कन्या का वरण होता है। वर के लिये कन्या का वरण और कन्या के लिये वर का वरण जो दोनों के पिता/भ्राता आदि करते हैं। व्यवहार में कन्या वरण लुप्त सा है किन्तु वर वरण किया जाता है। इस आलेख में वाग्दान विधि सगुण सहित वरवरण विधि (हस्तग्रहण/तिलक) भी दिया गया है। इस विषय के कुछ अस्पष्ट तथ्यों को भी उजागर करने का प्रयास किया गया है जिससे यह आलेख विशेष उपयोगी सिद्ध हो जाता है।
वर वरण विधि | सगुन – sagun | हस्त ग्रहण
वाग्दान और वरवरण एवं कन्या वरण तीनों अलग-अलग कर्म है। कन्या वरण की पृथकता तो स्पष्टतः प्रतीत होती है किन्तु वाग्दान और वरवरण को उचित प्रकार से समझना कठिन प्रतीत होता है। एवं जब विषय को ही समझना कठिन हो तो विधि का ज्ञान और कठिन हो जाता है।
वाग्दान और वरवरण
व्यवहारतः विभिन्न जातियों में विभिन्न विधान से प्रचलन है, कुछ त्रुटियां स्वाभाविक है, कुछ जटिलता के कारण है तो कुछ जाति आदि के आधार पर भी है।
वाग्दान : पद्धतियों से वाग्दान वर के पिता को कन्या के पिता द्वारा प्राप्त होता है जो कन्या के घर वरपक्ष की उपस्थिति होने होने पर किया जाता है। वास्तविकता भी यही है याचक (वरपक्ष) दाता (कन्यापक्ष) के यहां याचना करने आता है और याचना करने पर दाता यथाकाल दान देने का वचन देता है। किन्तु इसका व्यावहारिक पक्ष यह है कि कन्यापक्ष योग्य वर को ढूंढता है अर्थात वर के घर पर कन्या पक्ष उपस्थित होता है। तो वाग्दान कहां हो, कैसे हो? जहां दोनों पक्ष का समागम हो रहा है वहीं हो, परन्तु विधिपूर्वक हो ।
तदपि प्रथम अवसर पर विधिवत नहीं होता है किन्तु अनौपचारिक रूप से किया जाता है जिसे फलदान, छेका आदि कहा जाता है। और विधिवत वाग्दान की तिथि/मुहूर्त निर्धारित करके पुनः व्यवस्था व बंधु-बांधवों सहित दुबारा कन्यापक्ष वर के घर जाकर ही प्राङ्गन वा निर्धारित स्थान पर विधिवत वाग्दान करते हैं। किन्तु एक त्रुटि पुनः देखी जाती है वह ये कि समझने की भूल हो जाती है और न ही वरपिता याचना करता है न ही कन्यापिता वाग्दान देते हैं अपितु वर से ही कलशपूजन कराकर वस्तु समर्पित कर लेते हैं ।
प्रश्न ये है कि वह क्या किया जाता है वाग्दान तो नहीं करते। इस सगुण भी कहा जाता है । यद्यपि यह वरवरण अथवा हस्तग्रहण अथवा तिलक नहीं सिद्ध होता तदपि सम्पन्न की जाने वाली विधि से वाग्दान अथवा सगुण भी सिद्ध नहीं होता। आगे वाग्दान (सगुण) की विधि भी दी गई है अतः अभी मात्र इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने का प्रयास करें ।
वरवरण : कन्या हेतु चयनित वर का विधिपूर्वक प्रतिग्रह हेतु वरण करना वरवरण अथवा हस्तग्रहण अथवा तिलक कहलाता है। यद्यपि तिलक से सामग्री प्रदान करने का भाव भी ग्रहण किया जाता है तथापि वरवरण कहें, हस्तग्रहण कहें या तिलक कहें वास्तव में यह कन्या का प्रतिग्रह करने हेतु वर का ग्रहण करना है।
जो एक बार ही वरवरण/हस्तग्रहण करते हैं उनका वाग्दान लोप होता है यह तो समझ में आता है किन्तु जो वर्ग एक बार घर के बाहर और एक बार घर के भीतर (प्रतिनिधि पुरोहित के माध्यम से वा स्वयं जैसे भी करें) दो कर्म करते हैं उनका घर के भीतर तो तिलक या हस्तग्रहण या वरवरण तो सिद्ध होता है किन्तु उससे पूर्व जो घर के बाहर क्रिया होती है वह क्या होती है और उसका वाग्दान क्यों लोप होता है?
वस्तुतः घर के बाहर जो कर्म होता है वह वाग्दान होना चाहिये किन्तु वाग्दान की विधि से नहीं किया जाता इसलिये वाग्दान नहीं सिद्ध होता।
यदि व्यवहारानुसार भी न हो तो क्या करे : यह प्रश्न उस स्थिति से सम्बंधित है जब सब-कुछ सुनिश्चित तो होता हैं किन्तु वाग्दान, हस्तग्रहण (सगुन/तिलक) से रहित होकर वरपक्ष वरयात्री सहित विवाह के दिन उपस्थित होते हैं। यदि ऐसा होता है तो इसमें भी कोई व्यवधान उत्पन्न नहीं होता कन्यापक्ष के यहाँ अर्थात उपस्थित वरपिता/वर होने पर वाग्दान और वरवरण की तो विधि ही है।
यद्यपि शुद्धं लोक विरुद्धं का क्या करे : कुछ न करें मात्र इतना करें की लोक विरुद्धं क्या है वो सिद्ध कर दें। ऊपर यह सिद्ध किया गया है कि लोकविरुद्धं कुछ नहीं है किन्तु शुद्ध के विरुद्ध है। यद्यपि शुद्धं लोक विरुद्धं का सही तात्पर्य समझने के लिये पूर्व में एक आलेख प्रकाशित की गयी है। यदि यद्यपि शुद्धं लोक विरुद्धं का सही तात्पर्य समझना चाहें तो इस आलेख को अवश्य पढ़ें : यद्यपि शुद्धं लोक विरुद्धम्। सही-सही कैसे समझें ?
वाग्दान विधि अर्थात् सगुन की विधि
कुलं च शील च वपुर्वयश्च वित्तं च विद्यां च सनाथतां च । एतान्गुणान्सप्त परीक्ष्य देया कन्या बुधैः शेपमचिन्तनीयम् ॥ यम का वचन है कि विवाह पूर्व 7 विचार करके योग्यता सुनिश्चित कर लें – कुल, शील, शरीर (आरोग्य), आयु, वित्त, विद्या और सनाथ होना।
परन्तु दुर्भाग्यवश ऐसा भ्रमजाल रचा गया है कि मात्र एक योग्यता ही लोगों की आवश्यकता रह गई और वो योग्यता है सरकारी नौकरी। तत्पश्चात् वह भले ही भ्रष्टाचारी हो, पतित/नास्तिक/अधर्मी हो, कन्या के लिये वय/ज्ञान आदि से भी सर्वथा अयोग्य हो, स्वेच्छाचारी हो जो भी हो योग्य प्रतीत होता है। तथापि कल्याण चाहने वाला सरकारी नौकरी को नहीं गुण और योग्यता का परीक्षण करे ।
यदि विनायक शांति, श्री शांति, गुरुशांति, कुम्भविवाह आदि अपेक्षित हो तो वाग्दान से पूर्व ही संपन्न कर लें।
- विवाह से 4, 5, 7, 11 दिन पूर्व शुभ मुहूर्त में वाग्दान करे।
- वाग्दाता पूर्वाभिमुख और वर पिता पश्चिमाभिमुख बैठे ।
- वर्तमान युग में संचार साधनों की सुलभता है अतः कन्या को औपचारिक रूप से फल, ताम्बूल आदि मंगलद्रव्य द्रव्य लेकर कुलदेवता के निकट बैठने की सूचना दे दे। और यदि होटल आदि में (रिंग सेरेमनी/इंगेजमेंट आदि कहकर) किया जा रहा हो व कन्या भी उपस्थित हो तो पिता के बांयी ओर पूर्वाभिमुख होकर बैठे।
- वाग्दान और कन्यानिरीक्षण या कन्यावरण दोनों दो अलग क्रिया है। यहाँ वाग्दान विधि दी जा रही है कन्यानिरीक्षण, कन्या वरण मंत्र आलेख के अंत में समाहित किया गया है। यहां जो वाग्दान विधी दी जा रही है उसका तात्पर्य ग्रामीण क्षेत्रों में जो व्यवहार/मर्यादा आदि निर्वहन किये जाते हैं तदनुकूल कन्या की अनुपस्थिति ध्यान में रखा गया है।

- दोनों पक्षों के विद्वान आचार्य भी विहित आसन पर अधिष्ठित रहें, यह आवश्यक समझना चाहिये।
- फिर दोनों पक्ष अर्थात कन्या पिता व वर पिता पवित्रीकरणादि करके गणेशाम्बिका पूजन, संकल्प व कलश स्थापन पूजन करे :
1: पवित्रीधारण : ॐ पवित्रेस्थो वैष्णव्यो सवितुर्वः प्रसवऽउत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः । तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुनेतच्छकेयम् ॥ इस मंत्र से पवित्रीधारण करे।
2. पवित्रीकरण मंत्र : ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थाङ्गतोऽपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याऽभंतर: शुचि:॥ ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ॥ हाथ में गंगाजल/जल लेकर इस मंत्र से शरीर और सभी वस्तुओं पर छिड़के ।
3. आचमन : ॐ केशवाय नमः। ॐ माधवाय नमः। ॐ नारायणाय नमः। मुख व हस्त मार्जन (२ बार) ॐ हृषिकेशाय नमः।
4. आसन पवित्रीकरण मंत्र : ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुनाधृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ इस मंत्र से आसन पर जल छिड़क कर आसनशुद्धि करें।
5. भूतोत्सारण : ॐ अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूमिसंस्थिताः । ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ॥
वर्तमान समय में नित्य कर्म करने वालों की संख्या अत्यल्प है अतः यही माना जाता है कि बिना नित्यकर्म किये हुये वाग्दान कर रहे हों। इस स्थिति में 10 बार गायत्री जप करके पञ्चदेवता और विष्णु पूजा कर लें।
- फिर वर का पिता कन्या पिता से याचना करे : मत्पुत्रार्थ प्रयच्छ त्वं स्वकन्यां स्नेहपालिताम् । भार्याद्यनुमतिं कृत्वा वाग्दानं देहि सत्वरम् ॥
- कन्या का पिता स्वीकारोक्ति प्रदान करे – भार्यानुद्यमतिसहितोऽहं दास्या ॥
फिर स्वस्तिवाचन करके कन्या का पिता त्रिकुशा, पान, सुपारी, तिल, जल, पुष्प, चंदन, दूर्वा, द्रव्य आदि लेकर वाग्दान का संकल्प करे :
संकल्प : ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्यैतस्य (रात मे : अस्यां रात्र्यां कहे) मासोतमे मासे ………. मासे ………… पक्षे ………… तिथौ ………… वासरे ………… गोत्रोत्पन्नः ………… शर्माऽहं (वर्माऽहं/गुप्तोऽहं) करिष्यमाण विवाहांगभूतं वाग्दानमहं करिष्ये तदंगं गणपत्यादि पूजनं च करिष्ये ॥
दोनों पक्ष अपने-अपने आचार्य का वरण कर लें। जहां अपेक्षित हो आचार्य अपने-अपने यजमान का प्रतिनिधित्व करें।
- फिर निर्विघ्नता हेतु गणेशाम्बिका पूजन करे – गणेशाम्बिका पूजन विधि
- फिर कन्या पिता कलश स्थापन-पूजन करे।

- फिर वर का पिता भी स्वयं वा प्रतिनिधि (पुरोहित द्वारा) गणेशाम्बिका, कलश आदि का पञ्चोपचार पूजन करे।
- फिर वर पिता वा प्रतिनिधि (पुरोहित द्वारा) एक मनोहर जलपात्र में शुद्ध जल भरे।
- एक स्थालि में चावल (धान) का पुञ्ज बनाकर उसपर पांच हरिद्रागांठ-पुंगीफल-यज्ञोपवीत-पान-द्रव्य आदि रखकर सुंदर वस्त्र से आच्छादित कर दे। अथवा सुन्दर वस्त्र में रखकर पांच ग्रंथि देकर स्थाली में रखकर जलपूर्ण कलश पर रखें।
- फिर उस पर सदासौभाग्यवती इन्द्राणी की पूजा करे।
इन्द्राणी पूजा
- ध्यान – इन्द्राणीमिन्द्रगृहिणीं सदासौभाग्यवर्द्धिनीम् । ध्यायामि मनसादेवीं कन्या सौभाग्य हेतवे ॥
- आवाहन – ॐ अदित्यैरास्नासीन्द्राण्याऽउष्णीषः पूषासि धर्मायदीष्व ॥ आगच्छागच्छ कल्याणि देवेन्द्रप्राणवल्लभे । यावत्पूजां करिष्यामि तावत्वं सुस्थिराभव ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः इन्द्राणीहागच्छ इह तिष्ठ ॥
- फिर “ईं इन्द्राण्यै नमः” मंत्र से पाद्यादि अर्पण करके पूजा करे।
- प्रार्थणा – देवींद्राणि नमस्तुभ्यं देवेन्द्र प्रियभामिनि । सौभाग्यमायुरारोग्यं मत्कन्यायै प्रयच्छवै ॥ धनधान्यं पशून्देहि जयन्त सम सन्ततिम् । यशोदेहि सुखंदेहि सर्वसिद्धि प्रदाभव ॥
- फिर दोनों पक्ष के आचार्य स्व-स्व पक्ष का उच्च स्वर से 3 बार गोत्रोच्चारण करें।
- फिर वर पिता कन्यापक्ष के आचार्य का पूजन करे और कन्या पिता वरपक्ष के आचार्य का पूजन करे। चन्दन, माला, पाग, द्रव्यादि प्रदान करे।
फिर कन्या का पिता पूजित स्थाली दोनों हाथों में ग्रहण करके (कन्या का स्मरण करते हुये) यह मंत्र पढ़े :
वाचा दत्ता मया कन्या पुत्रार्थं स्वीकृता त्वया । कन्यावलोकनविधौ निश्चितत्वं सुखीभव ॥
पंडो व्यंगः पंक्तिवर्ज्यो रोगी चेद्वित्तवर्जितः । दत्तामिमां न दास्यामि तव पुत्राय कन्यकाम् ॥
अव्यंगेऽपतितेऽक्लीवे दशदोष विवर्जिते । इमां कन्यां प्रदास्यामि देवाग्नि द्विज सन्निधौ ॥
- मंत्रों को पढ़कर स्थाली वरपिता को दोनों हाथों से प्रदान करे।
- वरपिता ग्रहण करके “ॐ स्वस्ति” कहकर अगला वचन कहे :
आविवाहाच्चते कन्यां रोगिणीं च कुचारिणीम् । दत्तामपिच त्यक्ष्यामि कन्याते निश्चयादहम् ॥
फिर आचार्य लग्नपत्रिका लिखे अथवा पूर्वलिखित लग्नपत्रिका कन्यापिता वरपिता को प्रदान करे। गणपति, कलश आदि का विसर्जन करके दक्षिणा, यथासंभव भूयसी आदि करे। यदि होटल आदि में आयोजन किया जा रहा हो और कन्या उपस्थित हो एवं वरपक्ष को कन्या निरिक्षण करना हो तो निरीक्षण करके स्त्रियों के माध्यम से कन्या को वस्त्राभूषणादि प्रदान करे।
वरवरण विधि | हस्त ग्रहण | तिलक
कन्यापिता/भ्राता/पुरोहित जिनके माध्यम से वरवरण करना हो वर के घर अथवा होटल आदि जो स्थान सुनिश्चित हो वरवरण की व्यवस्था करके वर पूर्वाभिमुख व कन्यापक्ष के पुरोहित वा अन्य उत्तराभिमुख बैठें। आचमन हेतु उत्तराभिमुख बैठना आवश्यक, आचमनोपरांत पश्चिमाभिमुख हो सकते हैं।
पुरोहित ही करे यह भी अनिवार्य नहीं कन्यादाता, कन्या का भाई आदि भी कर सकते हैं, पुरोहित प्रतिनिधि रूप से करते हैं अर्थात अधिकृत तो होते हैं किन्तु अधिकार अपहृत नहीं करते अर्थात् कन्यादाता/भ्राता आदि का अधिकार सुरक्षित ही रहता है। यदि पुरोहित करें तो पाद्य प्रदान न करे, कन्यादाता/भ्राता आदि करे तो पाद्य भी प्रदान किया जा सकता है।
पवित्रीकरण, आचमन, स्वस्तिवाचनादि पूर्वक संकल्प द्रव्य लेकर पश्चिमाभिमुख होकर संकल्प करे : ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्यैतस्य (रात मे : अस्यां रात्र्यां कहे) मासोतमे मासे ………. मासे ………… पक्षे ………… तिथौ ………… वासरे ………… गोत्रायाः ..……. नाम्न्याः कन्यायाः (भगिन्याः) करिष्यमाण विवाहकमर्णि तिलकाक्षतोपचारैः वरपूजनपूर्वकं वरवरणं करिष्ये ॥ तत्रादौ निर्विघ्नता सिद्ध्यर्थं गोमयगौरी पूजनं करिष्ये ॥
फिर वर संकल्प करे : ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्यैतस्य (रात मे : अस्यां रात्र्यां कहे) मासोतमे मासे ………. मासे ………… पक्षे ………… तिथौ ………… वासरे ………… गोत्रोत्पन्नः ………… शर्माऽहं (वर्माऽहं/गुप्तोऽहं) भविष्योद्वाहकमर्णि वरवृत्तिग्रहणं करिष्ये ॥ तत्रादौ निर्विघ्नता सिद्ध्यर्थं गणेशाम्बिकयोः पूजनं करिष्ये ॥ तत्रादौ निर्विघ्नता सिद्ध्यर्थं गणेश पूजनं करिष्ये ॥
- फिर कन्यापक्ष गोमय गौरी पूजन, कलश पूजन करे। वर गणेश पूजन, कलश पूजन करे।
- फिर एक पान पर दधिहरिद्रा लेकर गंधद्वारा मंत्र से वर को तिलक लगाये । अक्षत, माला आदि भी दे ।
तत्पश्चात् पूर्वोक्त विधि से कन्या पुरोहित वा प्रतिनिधि इन्द्राणी पूजन करे। इन्द्राणी पूजन के उपरांत पुरोहित/भ्राता स्थालि (जाम) सहित सभी सामग्री एवं वरवरण सामग्री – ताम्बूल, पुंगीफल, हरिद्रादूर्वापुष्पाक्षत, चंदन, वस्त्राभूषण, यज्ञोपवीत, नारिकेल, द्रव्यादि लेकर (जो स्थालि में न समाये वो सम्मुख रखे) अगले संकल्प वाक्य द्वारा वर का वरण करे :-
ॐ गोत्रोच्चार ……… गोत्रायाः ………. नाम्न्याः कन्यायाः (भगिन्याः) करिष्यमाण विवाहकमर्णि एभिः वरणद्रव्यैः ………. गोत्रं ………. शर्माणं (यथायोग्य) वरं कन्या प्रतिगृहीतृत्वेन त्वामहं वृणे॥ गोत्रोच्चार पूर्वक पढ़कर वर को प्रदान करे। वर ग्रहण करके ॐ स्वस्ति कहे।
वर सभी सामग्री लेकर कुलदेवता को अर्पित करके प्रणाम करे और वस्त्रादि धारण करके पुनः पूजास्थल पर बैठकर दो बार आचमन करे। फिर आचारवश एक वस्त्र में अंजलि से 5 – 7 अञ्जलि मङ्गलद्रव्यादि युक्त धान देकर 5 ग्रंथि देकर पुरोहित वा उपस्थित भ्राता आदि को प्रदान करे। फिर पूजित देवता का विसर्जन करके दोनों पक्ष दक्षिणा व भूयसी करें।
तत्पश्चात वर के हाथ में पान, सुपारी, द्रव्य, हरिद्रायुक्त दधिपात्र, आदि देकर 5 – 7 वा अधिक ब्राह्मण-श्रेष्ठजन दूर्वाक्षत प्रदान करें। फिर वर सभी बड़ों को प्रणाम करके आशीर्वाद ग्रहण करे।
दूर्वाक्षत मंत्र : ॐ आब्रह्मन ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्यौऽतिव्याधि महारथो जायताम दोघ्री धेनुर्वोढा नड्वानाशुः सप्ति पुरन्ध्रिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो युवाऽस्य यजमानस्य वीरोजायाताम। निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न औषधयः पच्यन्ताम योगक्षेमोनः कल्पताम् ॥ मंत्रार्था: सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रुणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव ॥
विवाह के बारे में जानने योग्य महत्वपूर्ण जानकारी इस आलेख में दी गयी है – विवाह के बारे में जानें
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।