इस आलेख में शुक्लयजुर्वेदोक्त ब्रह्मसूक्त जो कि बाइसवां अध्याय है दिया गया है। सूक्त को शुद्धतम रखने का प्रयास करते हुये सरलता पूर्वक पाठ करने योग्य भी बनाने का प्रयास किया गया है। ब्रह्मसूक्त का विशेष प्रयोग त्रिपिंडी श्राद्ध में पाया जाता है। क्योंकि अन्यत्र ब्रह्मा से सम्बंधित कर्मकाण्ड की अल्पता या अमंत्रक विधि का प्रयोग होता है।
ब्रह्म सूक्त
हरिः ॐ तेजोऽसि शुक्रममृतमायुष्पाऽआयुर्मेपाहि । देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्याम्पूष्णोहस्ताभ्यामाददे ॥१॥
इमामगृभ्णन्रशनामृतस्य पूर्व ऽआयुषिव्विदथेषुकव्या । सा नो ऽअस्मिन्सुत ऽआ बभूवऽऋतस्य सामन्त्सरमारपन्ती ॥२॥
अभिधा ऽअसि भुवनमसियन्तासि धर्त्ता । स त्त्वमग्निं व्वैश्वानर ᳪ सप्प्रथसङ्गच्छस्वाहाकृतः ॥३॥
स्वगा त्वा देवेभ्यः प्रजापतये ब्रह्मन्नश्वम्भन्त्स्यामि देवेभ्यः प्रजापतये तेन राध्यासम् । तम्बधानदेवेभ्यः प्रजापतये तेन राध्नुहि ॥४॥
प्रजापतये त्वा जुष्टं प्रोक्षामीन्द्राग्निभ्यान्त्वाजुष्टम्प्रोक्षामिव्वायवे त्वा जुष्टं प्रोक्षामि विश्वेब्भ्यस्त्वादेवेभ्योजुष्टं प्रोक्षामि सर्वेभ्यस्त्वादेवेभ्योजुष्टं प्रोक्षामि । यो अर्व्वन्तञ्जिघा ᳪ सतितमब्भ्यमीति-व्वरुणः परोमर्त्तः परः श्वा ॥५॥
अग्नये स्वाहा सोमाय स्वाहापाम्मोदाय स्वाहा सवित्रे स्वाहा व्वायवेस्वाहा व्विष्णवे स्वाहेन्द्राय स्वाहा बृहस्पतये स्वाहा मित्राय स्वाहा व्वरुणाय स्वाहा ॥६॥
हिङ्काराय स्वाहा हिङ्कृताय स्वाहा क्रन्दते स्वाहा वक्रन्दाय स्वाहा प्प्रोथते स्वाहा प्प्रप्रोथाय स्वाहा गन्धाय स्वाहा घ्राताय स्वाहा निविष्टायस्वाहोपविष्टाय स्वाहा सन्दिताय स्वाहा व्वल्गते स्वाहासीनाय स्वाहा शयानाय स्वाहा स्वपते स्वाहा जाग्रते स्वाहा कूजते स्वाहा प्रबुद्धाय स्वाहा विजृम्भमाणाय स्वाहा वित्ताय स्वाहा स ᳪ हानायस्वाहोपस्थितायस्वाहायनाय स्वाहा प्रायणाय स्वाहा ॥७॥
यते स्वाहा धावतेस्वाहोद्रावायस्वाहोद्द्रुताय स्वाहा शूकाराय स्वाहा शूकृताय स्वाहा निषण्णाय स्वाहोत्थिताय स्वाहा जवाय स्वाहा बलाय स्वाहा व्विवर्तमानाय स्वाहा विव्वृत्ताय स्वाहा विधून्वानाय स्वाहा विधूताय स्वाहा श्रुश्रूषमाणाय स्वाहा शृण्वतेस्वाहेक्षमाणायस्वाहेक्षिताय स्वाहा व्वीक्षिताय स्वाहा निमेषाय स्वाहा यदत्तित्तस्मै स्वाहा यत्पिबतितस्मै स्वाहा यन्मूत्रंकरोतितस्मै स्वाहा कुर्वते स्वाहा कृताय स्वाहा ॥८॥
तत्सवितुर्वरेण्यम्भर्गोदेवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥९॥
हिरण्यपाणिमूतयेसवितारमुपह्वये । स चेतादेवतापदम् ॥१०॥
देवस्य चेततोमहीम्प्प्रसवितुर्हवामहे । सुमति ᳪ सत्यराधसम् ॥११॥
सुष्टुति ᳪ सुमतीवृधोराति ᳪ सवितुरीमहे प्रदेवायमती विदे ॥१२॥
राति ᳪ सत्पतिम्महेसवितारमुपह्वये । आसवन्देववीतये ॥१३॥
देवस्यसवितुर्म्मतिमासवंव्विश्वदेव्यम् । धियाभगम्मनामहे ॥१४॥

अग्नि ᳪ स्तोमेन बोधयसमिधानो ऽअमर्त्यम्। हळ्यादेवेषु नो दधत् ॥१५॥
स हव्यवाडमर्त्य ऽउशिग्दूतश्चनोहितः। अग्निर्द्धिया समृण्वति ॥१६॥
अग्निन्दूतं पुरो दधेहव्यवाहमुपब्रुवे । देवाँ२आ सादयादिह ॥१७॥
अजीजनो हि पवमानसूर्य्यं विधारेशक्मनापयः। गोजीरयार ᳪ हमाणः पुरन्ध्या ॥१८॥
विभूर्मात्रा प्रभूः पित्राऽश्वोऽसि हयोऽस्यत्योऽसिमयोऽस्यर्वाऽसि सप्तिरसिव्वाज्यसिव्वृषाऽसिनृमणा ऽअसि। ययुर्नामसि शिशुर्न्नामास्याऽदित्यानाम्पत्वान्विहि देवा ऽआशापाला ऽएतन्देवेभ्योऽश्वं मेधायप्रोक्षित ᳪ रक्षते ह रन्तिरिह रमतामिह धृतिरिहस्वधृतिः स्वाहा ॥१९॥
काय स्वाह कस्मै स्वाहा कतमस्मै स्वाहा स्वाहाधिमाधीताय स्वाहा मनः प्रजापतये स्वाहा चित्तं विज्ञाता यादित्यै स्वाहादित्यै मह्यै स्वाहादित्यैसुमृडीकायै स्वाहा सरस्वत्यै स्वाहा सरस्वत्यै पावकायै स्वाहा सरस्वत्यै बृहत्यै स्वाहा पूष्णे स्वाहा पूष्णे प्रप्पथ्याय स्वाहा पूष्णेनरन्धिषाय स्वाहा त्वष्ट्रे स्वाहा त्वष्ट्रेतुरीपाय स्वाहा त्वष्ट्रे पुरुरूपाय स्वाहा विष्णवे स्वाहा विष्णवेनिभूयपाय स्वाहा व्विष्णवेशिपिविष्टाय स्वाहा ॥२०॥
विश्वोदेवस्य नेतुर्मर्तोवुरीतसख्यम् विश्वोराय ऽइषुध्यति द्युम्नं वृणीत पुष्यसे स्वाहा ॥२१॥
आ ब्रह्मन्ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रे राजन्यः शूर ऽइषव्योतिव्याधी महारथो जायतान्दोग्ध्री धेनुर्वोढानड्वानाशुः सप्तिः पुराधिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयोयुवास्य यजमानस्य व्वीरो जायतान्निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न ऽओषधयः पच्यन्तां य्योगक्षेमो नः कल्पताम् ॥२२॥
प्राणाय स्वाहाऽपानाय स्वाहा ळ्यानाय स्वाहा चक्षुषे स्वाहा श्रोत्राय स्वाहा वाचे स्वाहा मनसे स्वाहा ॥२३॥
प्राच्यै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यै दिशे स्वाहा दक्षिणायै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यैदिशे स्वाहा प्रतीच्यै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यै दिशेऽस्वाहोदीच्यै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यै दिशेस्वाहोऽर्ध्वायै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यैदिशे स्वाहाऽर्वाच्यै दिशे स्वाहाऽर्वाच्यैदिशे स्वाहा ॥२४॥
अद्भयः स्वाहा वार्भ्यः स्वाहोदकाय स्वाहा तिष्ठन्तीभ्यः स्वाहा स्रवन्तीभ्यः स्वाहा स्यन्दमानाब्भ्यः स्वाहा कूप्याभ्यः स्वाहा सूद्याभ्यः स्वाहा धार्याब्भ्यः स्वाहा ऽर्णवाय स्वाहा समुद्राय स्वाहा सरिराय स्वाहा ॥२५॥
वाताय स्वाहा धूमाय स्वाहाऽभ्राय स्वाहा मेघाय स्वाहा विद्योतमानाय स्वाहा स्तनयते स्वाहा नवस्फूर्जते स्वाहा वर्षते स्वाहाववर्षतेस्वाहोग्रम्वर्षते स्वाहा शीघ्रं वर्षते स्वाहोद्गृह्णते स्वाहोद्गृहीताय स्वाहा प्रुष्णते स्वाहा शीकायते स्वाहा प्रुष्वाभ्यः स्वाहाह्रादुनीभ्यः स्वाहा नीहाराय स्वाहा ॥२६॥
अग्नये स्वाहा सोमाय स्वाहेन्द्राय स्वाहा पृथिव्यै स्वाहाऽन्तरिक्षाय स्वाहा दिवे स्वाहा दिग्भ्यः स्वाहाशाब्भ्यः स्वाहोर्व्यैदिशे स्वाहाऽर्वाच्च्यैदिशे स्वाहा ॥२७॥
नक्षत्रेभ्यः स्वाहा नक्षत्रियेब्भ्यः स्वाहाऽहोरात्रेभ्यः स्वाहाऽर्द्धमासेभ्यः स्वाहा मासेभ्यः स्वाहाऽऋतुभ्यः स्वाहाऽऽर्तवेभ्यः स्वाहा संवत्सराय स्वाहा द्यावापृथिवीभ्या ᳪ स्वाहा चन्द्राय स्वाहा सूर्याय स्वाहा रश्मिभ्यः स्वाहा वसुभ्यः स्वाहा रुद्रेभ्यः स्वाहादित्येभ्यः स्वाहा मरुद्भ्यः स्वाहा विश्वेभ्यो देवेभ्यः स्वाहा मूलेभ्यः स्वाहा शाखाभ्यः स्वाहा वनस्पतिभ्यः स्वाहा पुष्पेभ्यः स्वाहा फलेभ्यः स्वाहौषधीभ्यः स्वाहा ॥२८॥
पृथिव्यै स्वाहान्तरिक्षाय स्वाहा दिवे स्वाहा सूर्याय स्वाहा चन्द्राय स्वाहा नक्षत्रेभ्यः स्वाहाऽद्भ्यः स्वाहौषधीभ्यः स्वाहा वनस्पतिभ्यः स्वाहा परिप्लवेभ्यः स्वाहा चराचरेभ्यः स्वाहा सरीसृपेभ्यः स्वाहा ॥२९॥
असवे स्वाहा वसवे स्वाहा विभुवे स्वाहा विवस्वते स्वाहा गणश्रिये स्वाहा गणपतये स्वाहाभिभुवे स्वाहाधिपतये स्वाहा शूषाय स्वाहा स ᳪ सर्पाय स्वाहा चन्द्राय स्वाहा ज्योतिषे स्वाहा मलिम्लुचाय स्वाहा दिवापतये स्वाहा ॥३०॥
मधवे स्वाहा माधवाय स्वाहा शुक्राय स्वाहा शुचये स्वाहा नभसे स्वाहा नभस्याय स्वाहेषाय स्वाहोर्जाय स्वाहा सहसे स्वाहा सहस्याय स्वाहा तपसे स्वाहा तपस्याय स्वाहा ᳪ हस्पतये स्वाहा ॥३१॥
वाजाय स्वाहा प्रसवाय स्वाहा पिजाय स्वाहा क्रतवे स्वाहा स्वः स्वाहा मूर्ध्ने स्वाहा व्यश्नुविने स्वाहान्त्याय स्वाहान्त्याय भौवनाय स्वाहा भुवनस्य पतये स्वाहाधिपतये स्वाहा प्रजापतये स्वाहा ॥३२॥
आयुर्यज्ञेन कल्पता ᳪ स्वाहा प्राणो यज्ञेन कल्पता ᳪ स्वाहापानो यज्ञेन कल्पता ᳪ स्वाहा व्यानो यज्ञेन कल्पता ᳪ स्वाहोदानो यज्ञेन कल्पता ᳪ स्वाहा समानो यज्ञेन कल्पता ᳪ स्वाहा चक्षुर्यज्ञेनकल्पता ᳪ स्वाहा श्रोत्रं यज्ञेन कल्पता ᳪ स्वाहा वाग्यज्ञेन कल्पता ᳪ स्वाहा मनो यज्ञेन कल्पता ᳪ स्वाहात्मा यज्ञेनकल्पता ᳪ स्वाहा ब्रह्मा यज्ञेन कल्पता ᳪ स्वाहाज्ज्योतिर्यज्ञेन कल्पता ᳪ स्वाहा स्वर्यज्ञेनकल्पता ᳪ स्वाहा पृष्ठं यज्ञेन कल्पता ᳪ स्वाहा यज्ञो यज्ञेनकल्पता ᳪ स्वाहा ॥३३॥
एकस्मै स्वाहा द्वाभ्या ᳪ स्वाहा शताय स्वाहैकशताय स्वाहा व्यष्ट्यै स्वाहा स्वर्गाय स्वाहा ॥३४॥
॥ इति श्रीशुक्लयजुर्वेदवाजसनेयसंहितायां द्वाविंशोऽध्यायोक्तं ब्रह्मसूत्रं समाप्तम् ॥
इस प्रकार यहां सम्पूर्ण स्वस्तिवाचन मंत्र (यजुर्वेदीय) के साथ-साथ ऋग्वेद स्वस्तिवाचन, सामवेद का स्वस्तिवाचन और अथर्ववेद का स्वस्तिवाचन भी संकलित किया गया जो बहुत सारे लोगों के लिये उपयोगी सिद्ध होगा।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।