गुरु स्वाभाविक रूप से शुभ और सौम्य ग्रह हैं, गुरु और बृहस्पति दो मुख्य नामों से प्रसिद्ध हैं। गुरु की शुभता दृष्टि-युति में बताई गयी है, किन्तु स्थिति में नहीं। अर्थात जिन-जिन ग्रहों-भावों को देखें तत्तत संबंधी फलों में शुभता की वृद्धि व अशुभता का निवारण करते हैं, किन्तु जिस भाव में उपस्थित हों उस भाव संबंधी फलों की हानि करते हैं। गुरु ग्रह के 108 नाम वाले स्तोत्र को गुरु / बृहस्पति अष्टोत्तरशत नामावली कहा जाता है। स्तोत्रों में देवताओं के 108 नाम अर्थात अष्टोत्तरशत नामों का भी विशेष होता है। यहां गुरु का अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र दिया गया है।
बृहस्पति अष्टोत्तर शतनामावली – Guru ashtottara shatanamavali
गुरुर्गुणवरो गोप्ता गोचरो गोपतिप्रियः ।
गुणी गुणवतांश्रेष्ठो गुरूणाङ्गुरुरव्ययः ॥१॥
जेता जयन्तो जयदो जीवोऽनन्तो जयावहः ।
आङ्गीरसोऽध्वरासक्तो विविक्तोऽध्वरकृत्परः ॥२॥
वाचस्पतिर्वशी वश्यो वरिष्ठो वाग्विचक्षणः ।
चित्तशुद्धिकरः श्रीमान् चैत्रः चित्रशिखण्डिजः ॥३॥
बृहद्रथो बृहद्भानुर्बृहस्पतिरभीष्टदः ।
सुराचार्यः सुराराध्यः सुरकार्यहितंकरः ॥४॥
गीर्वाणपोषको धन्यो गीष्पतिर्गिरिशोऽनघः ।
धीवरो धिषणो दिव्यभूषणो देवपूजितः ॥५॥
धनुर्धरो दैत्यहन्ता दयासारो दयाकरः ।
दारिद्र्यनाशको धन्यो दक्षिणायनसम्भवः ॥६॥
धनुर्मीनाधिपो देवो धनुर्बाणधरो हरिः ।
आङ्गीरसाब्दसञ्जातो आङ्गीरसकुलसम्भवः ॥७॥
सिन्धुदेशाधिपो धीमान् स्वर्णवर्णः चतुर्भुजः ।
हेमाङ्गदो हेमवपुर्हेमभूषणभूषितः ॥८॥
पुष्यनाथः पुष्परागमणिमण्डलमण्डितः ।
काशपुष्पसमानाभः कलिदोषनिवारकः ॥९॥
इन्द्रादिदेवदेवेषो देवताभीष्टदायकः ।
असमानबलः सत्त्वगुणसम्पद्विभासुरः ॥१०॥
भूसुराभीष्टदो भूरियशः पुण्यविवर्धनः ।
धर्मरूपो धनाध्यक्षो धनदो धर्मपालनः ॥११॥
सर्ववेदार्थतत्त्वज्ञः सर्वापद्विनिवारकः ।
सर्वपापप्रशमनः स्वमतानुगतामरः ॥१२॥
ऋग्वेदपारगो ऋक्षराशिमार्गप्रचारकः ।
सदानन्दः सत्यसन्धः सत्यसंकल्पमानसः ॥१३॥
सर्वागमज्ञः सर्वज्ञः सर्ववेदान्तविद्वरः ।
ब्रह्मपुत्रो ब्राह्मणेशो ब्रह्मविद्याविशारदः ॥१४॥
समानाधिकनिर्मुक्तः सर्वलोकवशंवदः ।
ससुरासुरगन्धर्ववन्दितः सत्यभाषणः ॥१५॥
नमः सुरेन्द्रवन्द्याय देवाचार्याय ते नमः ।
नमस्तेऽनन्तसामर्थ्य वेदसिद्धान्तपारगः ॥१६॥
सदानन्द नमस्तेऽस्तु नमः पीडाहराय च ।
नमो वाचस्पते तुभ्यं नमस्ते पीतवाससे ॥१७॥
नमोऽद्वितीयरूपाय लम्बकूर्चाय ते नमः ।
नमः प्रकृष्टनेत्राय विप्राणाम्पतये नमः ॥१८॥
नमो भार्गवशिष्याय विपन्नहितकारिणे ।
नमस्ते सुरसैन्यानांविपत्छिद्रानकेतवे ॥१९॥
बृहस्पतिः सुराचार्यो दयावान् शुभलक्षणः ।
लोकत्रयगुरुः श्रीमान् सर्वगः सर्वतोविभुः ॥२०॥
सर्वेशः सर्वदातुष्टः सर्वदः सर्वपूजितः ।
अक्रोधनो मुनिश्रेष्ठो दीप्तिकर्ता जगत्पिता ॥२१॥
विश्वात्मा विश्वकर्ता च विश्वयोनिरयोनिजः ।
भूर्भुवोधनदासाजभक्ताजीवो महाबलः ॥२२॥
बृहस्पतिः काष्यपेयो दयावान् शुभलक्षणः ।
अभीष्टफलदः श्रीमान् सुभद्गर नमोऽस्तु ते ॥२३॥
बृहस्पतिस्सुराचार्यो देवासुरसुपूजितः ।
आचार्योदानवारिष्ट सुरमन्त्री पुरोहितः ॥२४॥
कालज्ञः कालऋग्वेत्ता चित्तदश्च प्रजापतिः ।
विष्णुः कृष्णः सदासूक्ष्मः प्रतिदेवोज्ज्वलग्रहः ॥२५॥
॥ इति गुर्वाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
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