इस आलेख में हम सूर्य शांति के विभिन्न उपायों अर्थात मंत्र, यंत्र, रत्न, जड़ी, स्तोत्र, दान, जप संख्या, जप विधि आदि सभी पक्षों की विस्तृत चर्चा करते हुये समझेंगे कि यदि सूर्य ग्रह की शांति करनी हो तो सबसे उत्तम विकल्प क्या अपनाया जाना चाहिये। साथ ही साथ सूर्य के बारे में ज्योतिषीय दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करेंगे और उसके प्रभावों को भी समझेंगे। यहां दिया गया सूर्य शांति विधि इस कारण से अधिक उपयोगी सिद्ध होगा कि सामान्यतया ग्रह शांति विधि उपलब्ध नहीं होती।
सूर्य ग्रह शांति – surya shanti
ज्योतिष में सूर्य को काल पुरुष का आत्मा कहा गया है अर्थात सूर्य आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है। इस प्रकार सूर्य से विचारणीय मुख्य विषय आत्मा है। इस प्रकार सूर्य के बलवान होने का तात्पर्य होता है आत्मबल सम्पन्नता व सूर्य के निर्बल होने का तात्पर्य होता है आत्मबल की कमी होना। रत्नादि धारण का तात्पर्य निर्बल ग्रह को बलयुक्त करना। अर्थात रत्नादि धारण करने का तात्पर्य अनिष्टफलों का निवारण करना नहीं होता है, तथापि किञ्चित लाभ अवश्य प्राप्त होता है।
ग्रहों शुभफल दायक है अथवा अशुभफल दायक यह बलयुक्त अथवा निर्बलता मात्र से सिद्ध नहीं होता, बल के आधार पर फल की मात्रा समझनी चाहिये किन्तु शुभाशुभ फल का निर्धारण अन्य अनेकों स्थिति के आधार पर की जाती है। वर्तमान में ऐसा देखा जा रहा है कि ज्योतिषी ग्रहशांति के निमित्त भी रत्नादि धारण करने के लिये ही प्रेरित करते हैं। ग्रहशांति का तात्पर्य होता है ग्रह के अशुभत्व (अशुभफल) का निवारण और शुभत्व (शुभफल) की वृद्धि।
रत्न धारण करने से ग्रह संबधी फल की वृद्धि होती है चाहे वह शुभ फल हो अथवा अशुभ फल, अर्थात अशुभफल का निवारण नहीं होता है। इसी कारण अष्टमेश, मारक ग्रहों का रत्न धारण निषिद्ध होता है, एवं लग्नेश, पंचमेश, नवमेश आदि का रत्न धारण करना प्रशस्त होता है। इसके अतिरिक्त अन्य ग्रहों के रत्न उसकी दशाओं में धारण करने के लिये कहा जाता है।
संभवतः ऊपर दी गयी जानकारी से यह समझना सरल हो जाता है कि रत्नादि धारण करने से क्या लाभ होता है कब धारण करना चाहिये, एवं रत्नादि धारण करने का तात्पर्य ग्रह शांति नहीं होता, ग्रह शांति का तात्पर्य मंत्र जप, हवन, दान, स्नान आदि ही होता है। आशा है आंख मूंदकर रत्न धारण कराने वाले ज्योतिषी गण इस विषय की गंभीरता को समझते हुये ग्रह शांति के निमित्त रत्नधारण करने के लिये प्रेरित नहीं करेंगे।
सूर्य शांति के उपाय
सूर्य शांति के उपाय में दान सामग्री, रत्न, उपरत्न, जड़ी आदि को जानना आवश्यक होता है। नीचे सूर्य ग्रह की शांति हेतु महत्वपूर्ण उपायों की जानकारी दी गयी है।
सूर्य दान सामग्री : गोधूम, गुड़, ताम्र, सुवर्ण, केशर, सवत्सा गौ।
- रत्न : माणिक्य।
- उपरत्न : लालड़ी या गारनेट।
- जड़ी : बिल्वमूल।
- दिन : रविवार।
- समिधा : अर्क (अकान)

सूर्य शांति मंत्र – surya mantra
- वैदिक मंत्र (वाजसनेयी) : ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च । हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ॥
- वैदिक मंत्र (छन्दोगी) : ॐ उदुत्यञ्जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः । दृशे विश्वाय सूर्यम् ॥
- तांत्रिक मंत्र : ॐ ह्रां ह्रीं हौं सः सूर्याय नमः॥
- एकाक्षरी बीज मंत्र : ॐ घृणिः सूर्याय नमः॥
- जप संख्या : 7000
| ६ | १ | ८ |
| ७ | ५ | ३ |
| २ | ९ | ४ |
सूर्य शांति विधि : सूर्य ग्रह शांति की विधि अगले पृष्ठ पर दी गयी है। यदि आप अगले पृष्ठ पर जाना चाहते हैं तो नीचे दिये गये बटन “आगे पढ़ें ….” पर क्लिक करें।