नवग्रहों की अलग-अलग शांति विधि भी होती है जिसमें किसी विशेष ग्रह के दुष्टफल निवारण और शुभफल प्राप्ति की जाती है। नवग्रह शांति विधि का तात्पर्य सभी ग्रहों की शांति है किसी एक ग्रह की शांति नहीं। अर्थात एक साथ नवग्रहों की शांति करना नवग्रह शांति पूजा विधि है। इस आलेख में नवग्रह शांति करने की पूजा और हवन विधि दी गयी है जो विशेष उपयोगी है। नवग्रह शांति के उपाय की चर्चा पूर्व आलेख में की गई है यदि आप पढना चाहें तो आगे उसका लिंक दिया गया है : नवग्रह शांति उपाय
नवग्रह शांति पूजा विधि – navgrah shanti puja
नवग्रह शांति का तात्पर्य किसी एक अशुभ ग्रह की शांति नहीं है, अपितु सभी ग्रहों की शांति है। कोई भी ग्रह न तो सदा शुभ फल प्रदान करते हैं न ही सदा अशुभ फल प्रदान करते हैं अर्थात सभी ग्रहों के शुभाशुभ मिश्रित फल होते ही हैं। हां ऐसा अवश्य होता है कि किसी ग्रह के शुभफल अधिक होते हैं और अशुभ फल कम एवं किसी ग्रह के अशुभ फल अधिक और शुभफल कम होते हैं। नवग्रह शांति का तात्पर्य है सभी ग्रहों के अशुभ फलों की शांति करना।
इस तथ्य को इस प्रकार से भी समझा जा सकता है कि गुरु जिस भाव में स्थित हो उस भाव के फल की हानि करता है अर्थात उस भाव के सम्बन्ध में गुरु भी अशुभ फलकारक ही होता है और जिस भाव पर गुरु की दृष्टि हो उस भाव सम्बन्धी फलों की वृद्धि करता है अतः गुरु शुभ भी है। मौलिक रूप से गुरु शुभग्रह है किन्तु यदि दुःस्थानेश (6, 8, 12 भावेश) होने पर अशुभ फल भी प्रदान करेगा।
इसी प्रकार शनि जिस भाव में स्थित हो उस भाव सम्बन्धी फल के लिये शुभद कहा गया है किन्तु शनि की जिस भाव पर दृष्टि रहे उस भाव सम्बन्धी फलों के लिये अशुभ फल कारक होता है। अतः गुरु के शुभ होने पर भी कहीं-न-कहीं कुछ अशुभ फल भी होते हैं और शनि के अशुभ होने पर भी कहीं न कहीं कुछ शुभ फल भी होते हैं।
इसी प्रकार भाव मंजरी में कहा गया है कि शनि अष्टम में हो तो शुभद हो जाता है, बुध चौथे में, गुरु पंचम में और शुक्र यदि सप्तम में हो तो भाव सम्बन्धी फल के लिये अशुभ हो जाता है। अर्थात प्रत्येक ग्रह के कुछ न कुछ अशुभ फल भी अवश्य होते हैं।
नवग्रह शांति का यही प्रयोजन है कि सभी ग्रहों के अशुभ फलों का निवारण हो और शुभ फलों की वृद्धि हो। इसलिये सफलता-उन्नति-भाग्योदय-आजीविका-दाम्पत्य जीवन-संतान सुख आदि सभी शुभ फल ससमय प्राप्त हों और यदि किसी प्रकार का व्यवधान हो तो उस बाधाकारक ग्रह के अशुभ फलों का निवारण हो जाये इस उद्देश्य से नवग्रह शांति करनी चाहिये।
नवग्रह शांति विधि के लिये महत्वपूर्ण जानकारी
- यहां दिये गये नवग्रह मख हेतु “कर्मकाण्ड रत्नाकर” को आधार माना गया है।
- नवग्रह शान्ति 4 अथवा 2 अथवा 1 ऋत्विज ब्राह्मण द्वारा किया जा सकता है। आहुति संख्या के आधार पर निर्णय लेना चाहिये। ब्राह्मणों की संख्या कार्य के अनुसार और भी अधिक हो सकता है।
- मण्डप के मध्य में हस्त मात्र का मेखला, योनि आदि युक्त हवन कुण्ड बनाना चाहिये। यदि आहुति संख्या न्यून रहे तो वेदी पर भी हवन किया जा सकता है।
- यदि लक्षहोम करना हो तो 2 हाथ का हवन कुण्ड बनाये। इसी प्रकार कोटिहोम के लिये 4 हाथ का हवन कुंड बनाये।
- सामान्य रूप से अष्टोत्तरशत नवग्रहों की आहुति एवं उसका त्रिंशांश या दशांश (33 या 11) अधिप्रत्यधिदेवताओं की आहुति होती है।
- न्यूनतम नवग्रहों की 8 – 8 आहुति व अधिप्रत्यधिदेवताओं की 3, 2 अथवा 1 आहुति की जा सकती है।
- अन्य देवताओं की यथा लोकपालादि की एक-एक आहुति होती है।
- नवग्रह वेदी (न्यूनतम हस्तमात्र) हवनकुण्ड के पूर्व अथवा उत्तर दिशा में बनाना चाहिये।
- कलश नवग्रह वेदी के ईशानकोण में स्थापित करना चाहिये।
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