
होली कब है 14 या 15 मार्च को – Holi 2025
होली कब है 14 या 15 मार्च को – Holi 2025 : इस आलेख में हम होली निर्णय को शास्त्रीय प्रमाणों के साथ समझते हुये होली 2025 में कब है इसे जानेंगे। साथ ही होली से सम्बंधित और भी महत्वपूर्ण तथ्यों को समझेंगे।
सनातन में सांसारिक सुख की अपेक्षा आत्मकल्याण को अधिक महत्व दिया गया है और यहां तक कहा गया है कि आत्मकल्याण हेतु यदि सम्पूर्ण संसार का भी त्याग करना पड़े तो कर दे। आत्मकल्याण हेतु मनुष्य को निरंतर आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर रहने की आवश्यकता होती है और इसी लिये वर्ष पर्यन्त अनेकानेक व्रत-पर्व (Vrat-Parv) होते हैं। इस श्रेणी में वर्ष पर्यन्त होने वाले व्रत-पर्वों की जानकारी एवं उसकी पूजा विधि, मंत्र, कथा आदि संग्रहित किये गये हैं।
होली कब है 14 या 15 मार्च को – Holi 2025 : इस आलेख में हम होली निर्णय को शास्त्रीय प्रमाणों के साथ समझते हुये होली 2025 में कब है इसे जानेंगे। साथ ही होली से सम्बंधित और भी महत्वपूर्ण तथ्यों को समझेंगे।
नवरात्रि कब है – navratri kab hai 2025 : वर्ष में चार नवरात्रायें होती हैं जो आश्विन, माघ, चैत्र और आषाढ मासों के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी दिन तक का होता है। इस आलेख में नवरात्रा 2025 के विषय में पूरी जानकारी दी गयी है, इसके साथ ही नवरात्रा के महत्व, नवरात्रा व्रत के नियम, नवरात्रा की कथा आदि के बारे में भी चर्चा की गयी है।
गणेश अष्टोत्तर शतनामावली | गणेश पूजा मंत्र | ganesha ashtottara shatanamavali : भगवान गणपति की पूजा में 21 नामों से पूजा करने का महत्व तो है ही इसके साथ विशेष पूजन में गणेश अष्टोत्तर शतनामावली से भी दूर्वा, मोदक, विविध फल आदि द्रव्यों द्वारा पूजन किया जाता है। सिद्धिविनायक पूजा विधि और संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि पूर्व से प्रकाशित है और उन पुजनों में 21 नामों से अतिरिक्त यदि अष्टोत्तर शतनाम से भी पूजा करनी हो तो यहां दिया गया है।
संकष्टहर या संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत विधि – sankashti ganesh chaturthi : यहां संकष्टहर गणेश चतुर्थी व्रत की पूजा विधि व कथा दी गयी है। संकष्टी गणेश चतुर्थी का विशेष महत्व है और विशेष पूजा विधि भी है जिसके मंत्रों का भी ऊपर वर्णन किया गया है। व्रत कथा में चमत्कारिक प्रभाव भी देखने को मिलता है विशेष रूप से पुत्र प्राप्ति व पुत्र रक्षा हेतु यह व्रत अधिक महत्वपूर्ण है।
तुलसी विवाह विधि : Tulsi vivah vidhi – व्याघ्रपदगोत्रोत्पन्नाय वैयाघ्रपदगार्ग्यवशिष्ठेति त्रिप्रवराय, देवमीढ़वर्मणः प्रपौत्राय, सूरसेनवर्मणः पौत्राय, वसुदेववर्मणः पुत्राय, अनेककोटिब्रह्माण्डनायकाय श्रीकृष्णाय (गोपालाय, श्रीधराय) वराय, आलंबायनदेवलगौतमेति त्रिप्रवरां, विश्वकर्मणः प्रपौत्रीं, प्रजापतेः पौत्रीं, ईश्वरस्यपुत्रीं तुलसींकन्यां ज्योतिर्विदादिष्टे सुमहूर्ते दास्ये॥
Tulsi vivah kab hai : जानिये तुलसी विवाह कैसे किया जाता है – तुलसी विवाह भी एक विस्तृत कर्मकांड है जिसकी विधि का शास्त्र में वर्णन मिलता है और ऊपर शास्त्रोक्त प्रमाण सहित तुलसी विवाह की विधियों का विस्तृत विश्लेषण किया गया है जिससे यह भी सिद्ध होता है कि मूर्ख-मंडली द्वारा अंतर्जाल पर जो ढेरों सामग्रियां प्रचारित-प्रसारित की गयी है वो शास्त्र-सम्मत नहीं है और भ्रामक है। क्योंकि शास्त्रसम्मत का तात्पर्य होता है जो शास्त्र में बताया गया हो। श्रद्धालु जनों को शास्त्रोक्त विधि से ही किसी भी धर्म-कृत्य को संपन्न करना चाहिये।
करोड़ों सूर्य ग्रहण तुल्य फलदायक अर्धोदय योग क्या है – अर्धोदय के शब्दार्थ पर यदि विचार करें तो अर्ध-उदित ज्ञात होता है। किन्तु यदि अर्ध-उदित अर्थ ग्रहण किया जाय तो उसमें रविवार के संयोग का क्या तात्पर्य है ? यदि अर्धोदय के शब्दार्थ को ग्रहण करेंगे तो; रविवार का संयोग हो अथवा न हो; कोई अंतर नहीं हो सकता। अर्थात अर्धोदय में बिम्ब (सूर्य-चंद्र) के अर्द्ध-उदित का कोई भाव सिद्ध नहीं होता।
महाकुंभ कब लगता है – mahakumbh kab lagta hai : भारत साधना भूमि है और भारतीय सदैव देवताओं की आराधना, पूजा, साधना आदि में संलिप्त रहते हैं। वर्ष पर्यन्त कोई न कोई व्रत-पर्व आदि करते ही रहते हैं और इसका कारण है आत्मकल्याण की चाह। सामान्य व्रत-पर्वों के अतिरिक्त विशेष स्थितियों में कुछ विशेष व्रत-पर्व भी होते हैं जैसे मलमास, कुम्भ, अर्द्धकुम्भ। इस आलेख में कुम्भ अर्थात महाकुम्भ विषयक चर्चा की गयी है जो महाकुम्भ कब लगता है, कहां लगता है, कब है आदि जानकारी प्रदान करता है।
माघ मास में क्या करें – नियम और विधि-विधान | magh maas ke niyam : माघ मास का बड़ा ही महत्व है और विशेष नियमों के साथ इसका पालन किया जाता है। जब सूर्य मकर में होता है, तब माघ मास आरंभ होता है। माघ मास में स्नान करना आवश्यक है, विशेषरूप से प्रातः काल। माघ मास की शीत के कारण लोग स्नान को लेकर चिंतित रहते हैं, लेकिन प्रयाग में सहस्रों श्रद्धालु इसे श्रद्धा से मनाते हैं।
धन्वंतरि पूजन विधि – Dhanvantari Puja Vidhi : सबसे बड़ा धन कहें अथवा पहला सुख कहें आरोग्य को ही कहा गया है। यदि उत्तम स्वास्थ्य हो तभी कोई कर्म किया जा सकता है चाहे वह उद्यम हो अथवा धर्म। इसलिये आरोग्य के देवता धन्वन्तरि की पूजा विशेष श्रद्धा-भक्ति से करनी चाहिये। धन्वंतरि भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से ही एक अवतार हैं।