शास्त्रों में तीर्थयात्रा करना एक विशेष पुण्य-कर्म कहा गया है। तीर्थयात्रा की विशेष विधि बताई गयी है और कुछ निषेध भी कहे गए हैं साथ ही तीर्थयात्रा करने पर पितरों के लिये श्राद्ध करने के लिये भी कहा गया है। इस आलेख में तीर्थ श्राद्ध की विधि बताई गयी है तदनुसार आवश्यकता को देखते हुये तीर्थ यात्रा प्रसङ्ग की भी चर्चा की गई है और तीर्थ यात्रा संबंधी महत्वपूर्ण बिंदुओं को संक्षिप्त रूप से बताया गया है।
तीर्थ श्राद्ध करने की विधि और मंत्र
वर्तमान समय में तीर्थयात्रा को टूरिज्म मात्र बना दिया गया है और तीर्थयात्रा से सम्बंधित विद्धियों व नियमों की अनदेखी की जाने लगी है, जिस कारण तीर्थयात्रा संबंधी पुण्य का अभाव और निषिद्ध आचरण से दोष/पाप के भागी बनते हैं। यदि पाप न करें तो भी विहित कर्म न करने पर दोष तो होता ही है। इसलिये यहां तीर्थयात्रा संबंधी नियमों की चर्चा करते हुये तीर्थश्राद्ध की विधि दी गयी है ताकि तीर्थयात्री व जनसामान्य लाभान्वित हो सकें।
तीर्थ यात्रा
मुण्डनं चोपवासञ्च सर्वतीर्थेष्वयं विधिः । वर्जयित्वा कुरुक्षेत्रं विशालां (उज्जैन) विरजां गयाम् ॥ – वा० पु०
तीर्थे गच्छन् त्यजेत्प्रातः परान्नं परभोजनम् । जितेन्द्रियो जितक्रोधो ब्रह्मचारी भवेच्छुचिः ॥
अन्यक्षेत्रे कृतं पापं पुण्यक्षेत्रे विनश्यति । पुण्यक्षेत्रे कृतं पापं वज्ज्रलेपो भविष्यति ॥ – स्कं० पु०
- तीर्थयात्रा पत्नी, पुरोहित और सेवक को छोड़कर न करे अर्थात इनको भी साथ ले जाये।
- तीर्थयात्रा पर्यटन आदि की भावना से न करे।
- वर्त्तमान में सम्पूर्ण तीर्थयात्रा पैदल नहीं चलते लेकिन प्राचीन काल में भी सभी पैदल चलने में समर्थ नहीं होते है इसलिये शास्त्रों द्वारा यह आज्ञा दी गयी कि तीर्थयात्री जितना पैदल चल सके कम-से-कम उतना पैदल चले।
- पादुका पहनकर तीर्थयात्रा निषिद्ध है अतः पैदल यात्रा पादुकारहित करे।
- जब तीर्थ का दर्शन हो तो प्रणाम करे और मुण्डन और उपवास करे।
- मुण्डन और उपवास करने का यह सामान्य तीर्थ नियम कुरुक्षेत्र, विशाला, विरजा और गया के अतिरिक्त है।
- मुण्डन के पश्चात् अन्य सामान्य जल से मलापकर्षण स्नान करे।
- फिर शुद्ध वस्त्रादि धारण कर तीर्थपूजा करने के लिये नारियल, पुष्पादि सामग्री सञ्चय करके तीर्थस्नान-पूजन करने तट पर जाये।
- तीर्थस्नान विधि के अनुसार स्नान, स्नानांग तर्पण करे।
- नारियल आदि से अर्घ्य प्रदान करके तीर्थ पूजा करे।
- भगवान विष्णु अथवा अपने इष्ट का विधि पूर्वक पूजन करे।
- तत्पश्चात तीर्थप्राप्ति निमित्तक पित्रादि श्राद्ध करे।

नचात्र श्येनगृध्रादीन् पक्षिणः प्रतिषेधयेत् । तद्रूपाः पितरस्तस्य समायान्तीति वैदिकम् ॥ ( देवलस्मृतिः ) ॥ देवल के कथनानुसार तीर्थक्षेत्र में चील-बाज-गिद्ध आदि का भी प्रतिषेध न करे। वेद का मानना है कि उन सभी रूपों में पितर ही आते हैं।
तीर्थ श्राद्ध विधि
नावाहनं न दिग्बन्धो न दोषो दृष्टिसम्भवः । सकारुण्येन कर्तव्यं तीर्थश्राद्धं विचक्षणः ॥ तीर्थ श्राद्ध में आवाहन, दिग्बंध आदि नहीं होता, दृष्टि सम्बन्धी दोष भी नहीं होता। तीर्थ श्राद्ध विचक्षण होता है इसलिये कारुण्यभाव से करे।
पिण्डासनं पिण्डदानं पुनः प्रत्यवनेजनम् । दक्षिणा चान्नसङ्कल्पस्तीर्थश्राद्धेष्वयं विधिः ॥ वायु पुराण में बताया गया है कि पिण्डासन (वेदी, कुशा, अत्रावन), पिण्डदान और प्रत्यवनेजन करके दक्षिणा व संकल्प पूर्वक अन्न दान करे, तीर्थश्राद्ध की यही विधि होती है।
पिण्ड द्रव्य – तीर्थ श्राद्ध के लिये पायस, चरु, सक्तु, तण्डुल, तण्डुलपिष्ट, यव-गोधूम चूर्ण, तिल, गुड़, फल, मूल आदि द्रव्य अथवा तीर्थ विशेष पिण्ड द्रव्य कहा गया है एवं पिण्ड का आकार कच्चे आंवले फल के बराबर बताया गया है ।
श्राद्ध भूमि पर जाकर सभी आवश्यक श्राद्ध सामग्री आस्तरित करके पवित्री धारण करते हुए श्राद्धारम्भ करे।
- पवित्रीधारण : ॐ पवित्रेस्थो वैष्णव्यो सवितुर्वः प्रसवऽउत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः । तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुनेतच्छकेयम् ॥ इस मंत्र से पवित्रीधारण करे।
- आचमन : ॐ केशवाय नमः ॥ ॐ माधवाय नमः ॥ ॐ नारायणाय नमः ॥ मुख व हस्त मार्जन (२ बार) ॐ हृषिकेशाय नमः ॥
- पवित्रीकरण मंत्र : ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थाङ्गतोऽपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याऽभंतर: शुचि:॥ ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ॥ हाथ में गंगाजल/जल लेकर इस मंत्र से शरीर और सभी वस्तुओं पर छिड़के ।
- आसन पवित्रीकरण मंत्र : ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुनाधृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ इस मंत्र से आसन पर जल छिड़क कर आसनशुद्धि करें।
- शिखाबंधन : ॐ ब्रह्मवाक्य सहस्रेण शिववाक्य च । विष्णोर्नामसहस्रेण शिखाग्रन्थिं करोम्यहम् ॥ ॐ चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते । तिष्ठ देवि शिखाबद्धे तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे ॥
तीन बार प्राणायाम कर ले। प्रणाम करके भगवान विष्णु का ध्यान करे :
शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभांगम् ।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥
श्राद्धारम्भे गयां ध्यात्वा ध्यात्वा देवं गदाधरम् । स्वपितॄन् मनसा ध्यात्वा ततः श्राद्धं समाचरेत्॥ – ॐ तीर्थभूम्यै नमः ॥ ॐ तीर्थदेवताभ्यो नमः ॥ ओं भगवत्यै गयायै नमः ॥ ॐ भगवते गदाधराय नमः ॥
भूतोत्सारण : ॐ नमो नमस्ते गोविन्द पुराणपुरुषोत्तम । इदं श्राद्धं हृषिकेश रक्षत्वं सर्वतो दिशः ॥
तीर्थ श्राद्ध संकल्प : तदुत्तर त्रिकुशा, तिल, जल, द्रव्य आदि संकल्प द्रव्य लेकर संकल्प करे : ॐ अद्य …….. मासे …….. पक्षे …….. तिथौ …….. वासरे …….. गोत्रस्य …….. शर्माऽहं/(वर्माऽहं/गुप्तोऽहं) मम समस्तपितॄणामसद्गतीनां सद्गतिप्राप्तिपूर्वक अक्षयतृप्तिहेतवे सद्गतीनाञ्च श्रीविष्णुलोकाप्तये अमुक तीर्थप्राप्तिनिमित्तकं पिण्डदानमात्र श्राद्धमहं करिष्ये ॥
तीन बार गायत्री जप करके पढ़ें – ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च । नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः ॥३॥
तत्पश्चात दक्षिणाभिमुख-अपसव्य-पातितवामजानु होकर बालुकामयी दक्षिणप्लव पिण्ड वेदी बनाये। पिण्डवेदी एक हाथ लम्बा-चौड़ा और 4 अंगुल ऊँचा बनाये। तीर्थ जल देते हुए समतल और सुंदर बना ले। फिर अगले मंत्र से पिण्डवेदी को पञ्चगव्य से सिक्त करे :
ॐ अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका । पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः ॥
उल्लेखन :- दर्भपिञ्जलि से पिण्डस्थान में प्रादेशमात्र, दक्षिणाग्र रेखा करे – ॐ अपहता ऽअसुरा रक्षा ᳪ सि वेदिषदः ॥ जितने वर्ग हेतु पिण्डदान करना हो उतनी रेखा करे। दर्भपिञ्जलि ईशान में त्याग दे।
अंगारभ्रमण :- प्रादेशप्रमाण रेखाओं पर थोड़ा अंगार रख कर कुश के मूल से भ्रमणपूर्वक चलाते हुए दक्षिण में गिरा दे – ॐ ये रूपाणि प्रतिमुञ्चमाना असुराः सन्तः स्वधया चरन्ति। परापुरो निपुरो ये भरंत्यग्निष्टांलोकात् प्रणुदात्यस्मात् ॥
फिर सभी रेखाओं पर छिन्नमूल कुशास्तरण कर जल से सिक्त कर दे। पूर्वा० सव्य होकर तीन बार ॐ देवताभ्यः मंत्र पढ़े – ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च । नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः ॥३॥
अवनेजन :- अपसव्य-दक्षिणाभिमुख हो देय पिण्ड संख्या के अनुसार पुटकों (दोनी) में तिल-जल-पुष्प-चंदन देकर क्रमशः एक-एक बायें हाथ में ले, दाहिने हाथ में मोड़ा, तिल जल लेकर आगे दिये गये मंत्रों से उत्सर्ग करके आसादित कुशाओं पर क्रमशः मूल, मध्य और अग्र भागों में पितृतीर्थ से दे :
प्रथम रेखा – पश्चिम वाली रेखा
- मूल (उत्तर) : ॐ अद्य ……….. गोत्र पितः ……….. शर्मन् वसुरूप अत्रावने निक्ष्व ते स्वधा ॥
- मध्य : ॐ अद्य ……….. गोत्र पितामह ……….. शर्मन् रुद्ररूप अत्रावने निक्ष्व ते स्वधा ॥
- अग्र (दक्षिण) : ॐ अद्य ……….. गोत्र प्रपितामह ……….. शर्मन् आदित्यरूप अत्रावने निक्ष्व ते स्वधा ॥
द्वितीय रेखा – पुनः उसी प्रकार द्वितीय रेखा (पश्चिम से) पर माता आदि के पिण्डस्थान में अवनेजन दे :
- मूल (उत्तर) : ॐ अद्य ……….. गोत्रे मातः ……….. देवी गायत्रीरूपा अत्रावने निक्ष्व ते स्वधा ॥
- मध्य : ॐ अद्य ……….. गोत्रे पितामही ……….. देवी सावित्रीरूपा अत्रावने निक्ष्व ते स्वधा ॥
- अग्र (दक्षिण) : ॐ अद्य ……….. गोत्रे प्रपितामही ……….. देवी सरस्वतीरूपा अत्रावने निक्ष्व ते स्वधा ॥
- इसी प्रकार तृतीय रेखा पर मातामह, प्रमातामह और वृद्धप्रमातामह पिण्ड निमित्त
- चतुर्थ रेखा पर मातामही, प्रमातामही और वृद्धप्रमातामही पिण्ड निमित्त तीन-तीन अवनेजन दे।
- पुनः पञ्चम रेखा पर आगे जो मृत हों उनके निमित्त – पत्नी, पितृव्य (चाचा), पितृव्यानि (चाची), भातृ, भ्रातृपत्नी, पितृष्वसृ (बुआ), पितृष्वसृपति (प्यूसा/फूफा), एवं अन्य किसी स्वकुल का उत्तराधिकार प्राप्त हुआ हो तो उसका दे।
- पुनः छठी रेखा पर मातुल (मामा), मातुलानी (मामी), मातृतृष्वसृ (माँसी/मौसी), मातृष्वसृपति (मौसा), श्वसुर (ससुर), श्वश्रु (सासु), आचार्यादि के निमित्त दे।
- पुनः सातवीं रेखा पर अगले में से जो-जो मृत हो उसके निमित्त दे – पुत्र, स्नुषा (पुत्रवधू), पुत्री, जामातृ, भगिनी (बहन), भागिनेय (भांजा), पौत्र, दौहित्र (नाती), श्यालक (शाला), श्यालकपत्नी (शाले की पत्नी/सरहज), मित्र, मित्रपत्नी आदि।
अवनेजन देने के बाद तिल, घृत, मधु, शर्करा, दधि आदि मिश्रित करते हुये पिण्ड द्रव्य से निर्धारित संख्या में पिण्ड निर्माण कर ले। फिर मोटकहस्त होकर तिल-जल से क्रमशः एक-एक करके पिण्डदान करे और पितृ तीर्थ से तत्तत् अवनेजन स्थान पर दे :
पिंडदान संकल्प मंत्र :
आगे सभी प्रकार के पिंडदान करने हेतु उसके संकल्प मंत्र दिये गये हैं, क्रमशः इन पिंडदान संकल्प मंत्र को पढ़कर पिण्ड का उत्सर्ग करे :
प्रथम रेखा पिंडदान मंत्र :
- पिता – ॐ अद्य ……….. गोत्रस्य अस्मत् पितु: ……… नाम्नः तस्य अक्षय तृप्त्यर्थं इदं हविष्यान्नमयं अमृतरूपं मधुतिलजलादिप्रोक्षितं पिण्डं ते स्वधा नमः॥
- पितामह – ॐ अद्य ……….. गोत्रस्य अस्मत् पितामहस्य ……… नाम्नः अक्षय तृप्त्यर्थं इदं हविष्यान्नमयं अमृतरूपं मधुतिलजलादिप्रोक्षितं पिण्डं तस्मै स्वधा॥
- प्रपितामह – ॐ अद्य ……….. गोत्रस्य अस्मत् प्रपितामहस्य ……… नाम्नः अक्षय तृप्त्यर्थं इदं हविष्यान्नमयं अमृतरूपं मधुतिलजलादिप्रोक्षितं पिण्डं तस्मै स्वधा॥
द्वितीय रेखा पिंडदान मंत्र :
- माता – ॐ अद्य ……….. गोत्राया ……… देव्याः मम मातु: अक्षय तृप्त्यर्थं इदं हविष्यान्नमयं अमृतरूपं मधुतिलजलादिप्रोक्षितं पिण्डं तस्यै स्वधा ॥
- पितामही – ॐ अद्य ……….. गोत्राया ……… देव्याः मम पितामह्याः अक्षय तृप्त्यर्थं इदं हविष्यान्नमयं अमृतरूपं मधुतिलजलादिप्रोक्षितं पिण्डं तस्यै स्वधा॥
- प्रपितामही – ॐ अद्य ………..गोत्राया ……… देव्या मम प्रपितामह्याः अक्षय तृप्त्यर्थं इदं हविष्यान्नमयं अमृतरूपं मधुतिलजलादिप्रोक्षितं पिण्डं तस्यै स्वधा॥
तृतीय रेखा पिंडदान मंत्र :
- मातामह – ॐ अद्य ……….. द्वितीय गोत्रस्य अस्मत् मातामहस्य ……… नाम्नः अक्षय तृप्त्यर्थं इदं हविष्यान्नमयं अमृतरूपं मधुतिलजलादिप्रोक्षितं पिण्डं तस्मै स्वधा ॥
- प्रमातामह – ॐ अद्य ……….. द्वितीय गोत्रस्य अस्मत् प्रमातामहस्य ……… नाम्नः अक्षय तृप्त्यर्थं इदं हविष्यान्नमयं अमृतरूपं मधुतिलजलादिप्रोक्षितं पिण्डं तस्मै स्वधा॥
- वृद्धप्रमातामह – ॐ अद्य ………..द्वितीय गोत्रस्य अस्मत् वृद्धप्रमातामहस्य ……… नाम्नः अक्षय तृप्त्यर्थं इदं हविष्यान्नमयं अमृतरूपं मधुतिलजलादिप्रोक्षितं पिण्डं तस्मै स्वधा॥
चतुर्थ रेखा पिंडदान मंत्र :
- मातामही – ॐ अद्य ……….. द्वितीय गोत्राया अस्मत् मातामह्याः ……… देव्याः अक्षय तृप्त्यर्थं इदं हविष्यान्नमयं अमृतरूपं मधुतिलजलादिप्रोक्षितं पिण्डं तस्यै स्वधा ॥
- प्रमातामही – ॐ अद्य ……….. द्वितीय गोत्राया अस्मत् प्रमातामह्याः ……… देव्याः अक्षय तृप्त्यर्थं इदं हविष्यान्नमयं अमृतरूपं मधुतिलजलादिप्रोक्षितं पिण्डं तस्यै स्वधा॥
- वृद्धप्रमातामही – ॐ अद्य ………..द्वितीय गोत्राया अस्मत् वृद्धप्रमातामह्याः ……… देव्याः अक्षय तृप्त्यर्थं इदं हविष्यान्नमयं अमृतरूपं मधुतिलजलादिप्रोक्षितं पिण्डं तस्यै स्वधा॥
पंचम रेखा पिंडदान मंत्र :
- पत्नी – ॐ अद्य ……….. गोत्रे अस्मत् पत्नी ……… देवी श्रीरूपिणी एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- पितृव्य – ॐ अद्य ……….. गोत्र पितृव्य ……… शर्मन् एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- पितृव्यपत्नी – ॐ अद्य ………..गोत्रे पितृव्यपत्नी ……… देवी एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- भ्राता – ॐ अद्य ……….. गोत्र भ्रातः ..…… शर्मन् एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- भ्रातृपत्नी – ॐ अद्य ………..गोत्रे भ्रातुःपत्नी ……… देवी एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- पितृष्वसृ – ॐ अद्य ………..गोत्रे पितृष्वसः ……… देवी एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- पितृष्वसृपति – ॐ अद्य ……….. गोत्र पितृष्वसुर्भर्तुः ……… शर्मन् एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
छठी रेखा पिंडदान मंत्र :
- मातुल – ॐ अद्य ……….. गोत्र मातुल ……… शर्मन् एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- मातुलानी – ॐ अद्य ………..गोत्रे मातुलानि ……… देवी एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- मातृष्वसृ – ॐ अद्य ………..गोत्रे मातृष्वसः ……… देवी एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- मातृष्वसृपति – ॐ अद्य ……….. गोत्र मातृष्वसुर्भर्तुः ……… शर्मन् एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- श्वसुर – ॐ अद्य ……….. गोत्र अस्मत् श्वशुर ……… शर्मन् एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- श्वश्रु – ॐ अद्य ………..गोत्रे अस्मत् श्वश्रु ……… देवी एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- आचार्य – ॐ अद्य ……….. गोत्र आचार्य ……… शर्मन् एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- आचार्यानि – ॐ अद्य ………..गोत्रे आचार्यानि ……… देवी एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- उपाध्याय – ॐ अद्य ……….. गोत्र उपाध्यायगुरो ……… शर्मन् एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
सप्तम रेखा पिंडदान मंत्र :
- पुत्र – ॐ अद्य ……….. पुत्र मातुल ……… शर्मन् एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- स्नुषा – ॐ अद्य ………..गोत्रे स्नुषे ……… देवी एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- पुत्री – ॐ अद्य ………..गोत्रे पुत्री ……… देवी एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- जामातृ – ॐ अद्य ……….. गोत्र जमातः ……… शर्मन् एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- भगिनी – ॐ अद्य ………..गोत्रे भगिनी ……… देवी एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- आवुत्त – ॐ अद्य ……….. गोत्र आवुत्तः ……… शर्मन् एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- भागिनेय – ॐ अद्य ……….. गोत्र भागिनेय ……… शर्मन् एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- पौत्र – ॐ अद्य ……….. गोत्र पौत्र …….. शर्मन् एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- दौहित्र – ॐ अद्य ……….. गोत्र दौहित्र ……… शर्मन् एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- शिष्य – ॐ अद्य ……….. गोत्र शिष्य ……… शर्मन् एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- श्याल – ॐ अद्य ……….. गोत्र श्यालक ……… शर्मन् एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- मित्र – ॐ अद्य ……….. गोत्र मित्र ……… शर्मन् एतत्ते पिण्डं स्वधा नमः ॥
- अज्ञात – ॐ अद्य अज्ञात गोत्राः समस्ताश्रित पितरः तीर्थश्राद्धेएष वः पिण्डः स्वधा॥
आब्रह्मणो ये पितृवंशजाता मातुस्तथा वंशभवा मदीयाः ।
वंशद्वये ये मम दासभूता भृत्यास्तथैवाश्रितसेवकाश्च ॥
मित्राणि शिष्याः पशवश्च वृक्षा दृष्टाश्च स्पृष्टाश्च कृतोपकाराः ।
जन्मान्तरे ये मम संगताश्च तेषां स्वधा पिण्डमहं ददामि ॥१॥
ये केचित्प्रेतरूपेण वर्तन्ते पितरो मम । ते सर्वे तृप्तिमायान्तु पिण्डदानेन शाश्वतीम् ॥२॥
येऽबान्धवा बान्धवा वा येऽन्यजन्मनि बान्धवाः । तेषां पिण्डो मया दत्तं अक्षय्यमुपतिष्ठतु ॥३॥
पितृवंशे मृता ये च मातृवंशे तथैव च । गुरुश्वशुरबंधूनां ये चान्ये बान्धवाः स्मृताः ॥४॥
ये मे कुले लुप्तपिण्डाः पुत्रदारविवर्जिताः । तेषां पिण्डो मया दत्तं अक्षय्यमुपतिष्ठतु ॥५॥
विरूपा आमगर्भाश्च ज्ञाताज्ञाताः कुले मम । तेषां पिंडो मया दत्तो ह्यक्षय्यमुपतिष्ठताम् ॥६॥
उच्छिन्नकुलवंशानां येषां दाता कुले नहि । धर्मपिंडो मया दत्तो ह्यक्षय्यमुपतिष्ठतु ॥७॥
तत्पश्चात पिण्डाधार कुशाओं में हाथ पोंछे – ॐ लेपभाग भुजस्तृप्यन्तु ॥
फिर हस्तप्रक्षालन करे। पूर्वाभिमुख सव्य होकर आचमन करे। भगवान विष्णु का स्मरण करे।
फिर अपसव्य-दक्षिणाभिमुख होकर वामावर्त्त क्रम से मुख घुमाते हुये उत्तर तक श्वास (लम्बी सांस) ले – “ॐ तत्र पितरो मादयध्वं यथा भागमावृषायध्वम्” पुनः मुख वापस घुमाते हुये पश्चिम भाग तक ले जाये और श्वास त्याग दे – “ॐ अमीमदन्त पितरो यथाभागमावृषायिषत” ॥
तत्पश्चात क्रमशः अवनेजन के 3 पुटक बनाकर क्रमशः मोटक-तिल-जल लेकर अग्रांकित मंत्रों से उत्सर्ग करके तत्तत् पिण्डों पर पितृतीर्थ से दे :
- ॐ अद्य ……….. गोत्राः अस्मत् पितृपितमहादयः ……….. तीर्थश्राद्ध पिण्डेषु अत्रप्रत्यवनेनिग्ध्वं वः स्वधा ॥
- ॐ अद्य ……….. गोत्राः अस्मत् मातामहादयः ……….. तीर्थश्राद्ध पिण्डेषु अत्रप्रत्यवनेनिग्ध्वं वः स्वधा ॥
- ॐ अद्य ……….. गोत्राः समस्ताश्रितपितरः ……….. तीर्थश्राद्धे अत्रप्रत्यवनेनिग्ध्वं वः स्वधा ॥
नींवी विसर्जन करके करबद्ध प्रार्थना करे :- ॐ नमो वः पितरो रसाय नमो वः पितरो शोषाय नमो वः पितरो जीवाय नमो वः पितरः स्वधायै नमो वः पितरो घोराय नमो वः पितरो मन्यवे नमो वः पितरः पितरो नमो वो गृहान्नः पितरो दत्त सतो वः पितरो द्वेष्म ॥
फिर प्रक्षालित सूत्र पिण्डों पर दे : ॐ एतद् वः पितरो वासः ॥ ॐ एतद् वः मातरो वासः ॥ ॐ एतद् वः मातामहादयो वासः ॥ ॐ एतद् वः पिव्यादयो वासः ॥
फिर पिण्डों पर पान-सुपारी-पुष्प-चन्दन-अक्षत-द्रव्यादि अर्पित करे। पिण्डशेषान्न पिण्डों के चारों और बिखेड़ दे। फिर पिण्डों पर दक्षिणाग्र वारिधारा दे : ॐ ऊर्जं वहन्तीरमृतं घृतं पयः कीलालं परिश्रुतम् । स्वधास्थ तर्पयत् मे पितॄन् ॥
तत्पश्चात पितृ-तर्पण करे। पितृतर्पण करने के बाद पूर्वाभिमुख-सव्य होकर त्रिकुश-दक्षिणाद्रव्य-तिल-जल लेकर तीर्थश्राद्ध की दक्षिणा करे : ॐ अद्य ……… गोत्राणां मम समस्त पितृणां असद्गतीनां स्वर्गतये सद्गतीनां विष्णुलोकप्राप्तये ……… तीर्थप्राप्तिनिमित्तक पित्रादीनां-पितृव्यादीनां च कृतैतत् श्राद्ध प्रतिष्ठार्थं एतावत् द्रव्यमूल्यकं रजतं चन्द्रदैवतं यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहं ददे॥
तत्पश्चात पिण्डों को थाली में उठाकर सूंघे। फिर दक्षिणाभिमुख होकर तीर्थजल में विसर्जन कर दे अथवा गाय को दे। श्राद्ध भूमि का मार्जन कर दे। फिर ब्राह्मणभोजन और दक्षिणा का सकल्प करे : ॐ अद्य ……. गोत्रोत्पन्नः शर्माहं कृतैतत् …….. तीर्थनिमित्तक अस्मत् पित्रादीनां-पितृव्यादीनां च श्राद्ध कर्मणः न्यूनातिरिक्तदोष परिहारपूर्वक साङ्गतासिद्ध्यर्थं …….. संख्याकान् ब्राह्मणान् भोजयिष्ये, दक्षिणाञ्च दास्ये॥
फिर तीर्थब्राह्मणों से श्राद्ध परिपूर्णता की प्रार्थना करे – ॐ ……… तीर्थप्राप्ति निमित्तं पिण्डदानं परिपूर्णमस्तु ॥ तीर्थब्राह्मण कहें – ॐ अस्तु परिपूर्णं ॥
फिर कर्मार्पण करे : ॐ अनेन पिण्डदानाख्येन कर्मणा श्रीभगवान् पितृस्वरूपी जनार्दनः प्रीयताम्॥
तीन बार ॐ देवताभ्यः मंत्र पढ़े – ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च । नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः ॥३॥
विष्णुस्मरण
ॐ यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु। न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम् ॥
प्रमादात्कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत्। स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्णं स्यादितिश्रुतिः ॥
ॐ विष्णुर्विष्णुर्हरिर्हरिः हाथ-पैर धो ले। ब्राह्मणों को भोजन कराये।
मातृऋण की प्रबलता के कारण तीर्थक्षेत्रों में मातृश्राद्ध की भी विशेष विधि बताई गई है जिसे मातृ षोडशी कहा जाता है। मातृ षोडशी विधि के लिये यहां क्लिक करें।
॥ इति पं० दिगम्बर झा सुसम्पादितं “करुणामयीटीकाऽलंकृतं” तीर्थ श्राद्ध विधिः ॥
आशा है तीर्थ श्राद्ध विधि आपके लिये उपयोगी सिद्ध होगा। यदि किसी प्रकार की त्रुटि दिखे अथवा कोई सुझाव प्रदान करना चाहें तो व्हाट्सअप पर सन्देश के माध्यम से अवश्य प्रदान करें – 7992328206
श्राद्ध कर्म और विधि से सम्बंधित महत्वपूर्ण आलेख जो श्राद्ध सीखने हेतु उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं :
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।