धर्मशास्त्रों में दान की अत्यधिक महिमा बताई गयी है और मुक्ति के लिये दान को आवश्यक बताया गया है। जो व्यक्ति वस्तुओं और संसार के मोह में फंसा हो वह दान नहीं कर पाता और बंधन में फंसा रहता है। दान करने से वस्तु और संसार के मोह का भंग होता है जो मुक्ति प्राप्ति के लिये आवश्यक है। कदाचित दान करने के बाद भी मोह भंग न हो तो मुक्ति की प्राप्ति नहीं हो सकती पुनः देह धारण करना पड़ता है।
इस आलेख में एकादशाह और द्वादशाह श्राद्ध के दिन किये जाने वाले बहुत सारे दान यथा गोदान, शय्या दान आदि करने का मंत्र और विस्तृत विधि बताई गयी है। यहां बताई गयी दान विधि प्रेत श्राद्ध में विशेष उपयोगी सिद्ध होगी।
दान करने की विधि और मंत्र
कैसी वस्तु दान करे ? – उस स्थिति में दान कई गुणा बढ़कर पुनः प्राप्त होता है : पुराधीता च या विद्या पुरा दत्तं च यद्धनं। पुरा कृतानि कर्माणि ह्यग्रे धावति धावति ॥ इसलिये उचित अवसरों पर दान करते समय मोह नहीं करना चाहये। मोह होने से दान करते हुये भी अनुपयोगी वस्तु दान करने में प्रवृत्ति होती है और जो कालांतर से पुनः प्राप्त होने पर भी अनुपयोगी ही सिद्ध होता है इसलिये सदा उपयोगी और गुणवत्तापूर्ण वस्तु ही दान करे।
कब दान करे ? – यद्यपि दान करने के बहुत सारे अवसर भी बताये गये हैं – जैसे श्राद्ध, जन्म, उत्सव, पर्व, ग्रहण, व्रत–उद्यापन आदि। तथापि उचित पात्र जब कभी उपलब्ध हो, विद्वान ब्राह्मण को उचित पात्र कहा गया है, उस समय बिना किसी मुहूर्त के भी दान करना चाहिये।
श्राद्ध में दान : यहां श्राद्ध (प्रेत श्राद्ध) में दान करने की विधि दी गयी है। प्रेत श्राद्ध में दो प्रकार की दान विधि होती है – प्रथम महापात्र को श्राद्ध स्थला में दान करना और द्वितीय गृह-प्राङ्गण में पुरोहित को दान करना। दोनों में किञ्चित अंतर होता है।
महापात्र को नाम-गोत्र का उच्चारण करके हस्तदान दिया जाता है। लेकिन पुरोहित को अनाम-गोत्र से कुशा पर दान दिया जाता है।
महापात्र दान और दक्षिणा लेकर प्रतिग्रह स्वीकारोक्ति “ॐ स्वस्ति” प्रतिवचन प्रदान करते हैं, पुरोहित के लिये दर्भबटु पर दान दिया जाता है अतः “ॐ स्वस्ति” रूपी स्वीकारोक्ति का प्रतिवचन नहीं होता।
महापात्र दान के लिये पञ्चदान की विधि एकादशाह श्राद्ध विधि में दी गई है उसी प्रकार से अन्य वस्तुयें भी दान की जायेगी। तथापि उदहारण हेतु एक अन्य दान – “तण्डुल पाकपात्र दान” विधि यहाँ दी गयी है।

तण्डुल पाकपात्र दान
तण्डुल पाकपात्र (बड़ा टोकना) दान विधि (उदहारण हेतु) :
- पूर्वाभिमुख तण्डुल पाकपात्र (चावल सहित) पर तीन बार इस मंत्र से पुष्पाक्षत छिड़के : ॐ सतण्डुल पैत्तल तण्डुल पाकपात्राय नमः नमः ॥३॥
- ब्राह्मण के दाहिने पैर की पुष्पाक्षत से तीन बार पूजा करे : ॐ ब्राह्मणाय नमः ॥३॥
- ब्राह्मण को तिल-जल दे : ॐ इदं सतण्डुल पैत्तल तण्डुल पाकपात्रं ददानि ॥
- ब्राह्मण दाहिने हाथ से ग्रहण करके “ॐ स्वस्ति” कहे।
- सतण्डुल तण्डुल पाकपात्र को कुशोदक से अभिसिक्त करे ।
- पुनः तिल, जल लेकर इस मंत्र से त्रिकुशा व तिल-जल ब्राह्मण को दे : ॐ अद्य ……… गोत्रस्य पितुः ……… प्रेतस्य (…… गोत्रायाः मातुः ………. प्रेतायाः) स्वर्गप्राप्तिकाम इदं सतण्डुल पैत्तल तण्डुल पाकपात्रं विष्णु दैवतम् ……… गोत्राय ……… शर्मणे ब्राह्मणाय तुभ्यमहं सम्प्रददे ॥
- ब्राह्मण कुशजलादि ग्रहण कर ‘ॐ स्वस्ति’ कहें।
- पुनः त्रिकुश, तिल, जल, दक्षिणा लेकर दक्षिणा करे : ॐ अद्य कृतैतत् सतण्डुल पैत्तल तण्डुल पाकपात्र दान प्रतिष्ठार्थं एतावत् द्रव्यमूल्यकं हिरण्यं अग्नि दैवतं …….. गोत्राय …….. शर्मणे ब्राह्मणाय दक्षिणां तुभ्यमहं सम्प्रददे ॥
- ब्राह्मण ‘ॐ स्वस्ति’ कहकर दक्षिणा ले ले और सतण्डुल पैत्तल तण्डुल पाकपात्रं स्पर्श करे।
एकादशाह के दिन महापात्र को दिये जाने वाले दान की यही विधि होगी। वस्तु देवता के लिये आगे दिये प्राङ्गण दान विधि को देखें।
प्राङ्गण दान विधि
प्राङ्गण को गोबर से लीपकर पवित्र कर लें। पूर्वदिशा में शय्या लगाकर बिछावन आदि बिछा दे एवं मसहरी लगा दे। अन्य शय्या के उपकरण लगा दें। एक लोटे व गिलास में जल भरकर सिरहाने में रखकर अन्य पात्र से ढंक दें।
उसके आगे केला का पत्ता या अन्य उपलब्ध पवित्र पत्ता बिछाकर उसपर उजला वस्त्र बिछायें, फिर उसपर चावल, चूड़ा आदि अन्न, फल, विष्णु प्रतिमा, पूजोपकरण आदि अलग-अलग रखें। दान के अन्य सभी पात्र भी आसन (पत्ते/कपड़े का) देकर ही रखें भूमि पर नहीं। सभी पात्रों में पात्र से सम्बंधित वस्तु भी दें जैसे :-
- बड़े टोकने और थाली में चावल
- छोटे टोकने में दाल और डब्बु, कटोरी में दाल
- कटाही में छोलनी और सब्जी
- गमला में पूरी-मिठाई
- बाल्टी-कलशी-लोटा-ग्लास-जग में जल
- चौकला पर आटा और बेलना
- सस्पेन में चायपत्ती-चीनी-छन्ना-कप
- डाला में चूड़ा-चीनी, बगल में दही से भरा हांड़ी या कोहा
- टेबल पर अखबार, धूप चश्मा, रेडियो, मोबाइल, लेपटॉप आदि, बगल में कुर्सी और छड़ी
- इसके साथ ही बाल्टी में रस्सी बांधें, विष्णु प्रतिमा को वस्त्र भी दें, पुस्तक को वस्त्र में लपेट कर रखें।
स्नानादि करके यजमान पूर्वाभिमुख बैठकर पवित्रीकरण, चंदन धारण करके धूप-दीप जला ले, एक पत्ते पर ब्राह्मण (दर्भबटु) निमित्तक उत्तराग्र त्रिकुशा रखे, एक अन्य पत्ते पर दूसरा पूर्वाग्र त्रिकुशा रखे। पूर्वाग्र त्रिकुशा कल्पित वस्तुओं या बाद में देने वाले वस्तुओं के निमित्त होता है जैसे – भूमि, वृक्ष आदि।