देवस्नपनं उत्तरवेदी – प्राण प्रतिष्ठा विधि

देवस्नपनं उत्तरवेदी – प्राण प्रतिष्ठा विधि

प्राणप्रतिष्ठा में देवस्नपन के लिये स्नपन मंडप और वेदी की तैयारी, कलश स्थापन संबंधी जानकारी पूर्व आलेखों में दी जा चुकी है। इसके साथ ही दक्षिण वेदी स्नपन और मध्य वेदी स्नपन (नेत्रोन्मीलन सहित) विधि की जानकारी भी पूर्व आलेख में दी जा चुकी है जिसका लिंक यहां आगे दिया भी गया है। दक्षिण और मध्य वेदी स्नपन करने के उपरांत उत्तर वेदी स्नपन किया जाता है इस आलेख में उत्तर वेदी स्नपन विधि और मंत्र दिये गये हैं।

इससे पूर्व दक्षिण वेदी स्नपन और मध्य वेदी स्नपन प्रकाशित की जा चुकी है।

देवस्नपनं उत्तरवेदी – प्राण प्रतिष्ठा विधि

  1. आचार्य उत्तर वेदी पर भद्रपीठ स्थापित करे : ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः । स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा ᳪ सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः ॥
  2. फिर भद्रपीठ पर प्रागाग्र कुशा आस्तरण करे : ॐ स्तीर्णं बर्हि: सुष्टरीमा जुषाणोरुपृथु प्रथमानं पृथिव्याम्‌ । दवेर्भिर्युक्तमदिति: सजोषा: स्योनं कृण्वाना सुविते दधातु ॥
  3. फिर प्रणव से प्रतिमा को कुशा बिछाये हुये भद्रपीठ पर स्थापित करे।
  4. फिर कलशोदक (लौकिक कलश) से देव प्रतिमा को स्नान कराये – ॐ समुद्राय त्वा वाताय स्वाहा सरिराय त्वा वाताय स्वाहा । अनाधृष्याय त्वा वाताय स्वाहा प्रतिधृष्याय त्वा वाताय स्वाहा । अवस्यवे त्वा वाताय स्वाहा । शिमिदाय त्वा वाताय स्वाहा ॥
  5. फिर पुष्पाक्षत-दूर्वा से पूजन करे – ॐ शतंबो ऽअम्बधामनि सहस्रमुतवारुहः। अधाशत क्रतवो यूयम्मिम्मे ऽअगदङ्कृत ॥
देवस्नपनं
देवस्नपनं
  1. फिर प्रार्थना करे : ॐ नमस्तेऽर्चे सुरेशानि प्रकृते: विश्वकर्मण: । प्रभाविताशेषजगद्‌ धात्रि तुभ्यं नमो नम: ॥ त्वयि संपूजयामीशं नारायणमनामयम्‌ । रहिताशेषदोषैस्त्वं ऋद्धियुक्ता सदा भव ॥
  2. फिर देव के दक्षिणहस्त में वितस्तिमात्र उर्णासूत्र बंधन (कौतुकसूत्र बंधन अगर पहले न किया हो तो) करें – यदाबध्नन् दाक्षायणा हिरण्य ᳪ शतानिकाय सुमनस्यमानाः। तन्म ऽआबध्नामि शतशारदायायुष्माञ्जरदष्टिर्यथासम् ॥ (देवी के लिये बांये हाथ में बांधने का भी उल्लेख मिलता है)
  3. नमस्कार करे : ॐ सर्वसत्वमयं शान्तं परं ब्रह्मसनातनम्‌ । त्वामेवालंकरिष्यामि त्वं वंद्यो भवते नम: ॥

देव स्नपन उत्तरवेदी

पुनः अन्य चार कलशोदक (वेदी से द्वितीय पंक्ति के १४ कलशों में से प्रथम ४ कलश) से स्नान कराये :

  1. प्रथमकलश : ॐ इदमाप: प्रवहतावद्यञ्चमलञ्च यत्‌ । यच्चाभिदुद्रोहानृतं यच्च शेपे ऽअभीरुणम्‌ । आपो मा तस्मादेनमस: पवमानश्च मुञ्चतु ॥
  2. द्वितीयकलश : ॐ आपो देवी: प्रतिगृभ्णीत मस्मै तत्त्स्योने कृणुष्ट्व ᳪ सुरभा ऽउलोके । तस्मै नमन्ताञ्जनय: सुपत्नीर्मातेव पुत्रं बिभृताप्स्वेनत्‌ ॥
  3. तृतीयकलश : ॐ इमम्मे वरुणश्रुधी हवमद्या च मृडय। त्वामवस्युराचके॥
  4. चतुर्थकलश : ॐ तत्वायामि ब्रह्मणा वंदमानस्तदाशास्ते यजमानो हविर्भि:। अहेडमानो वरुणोहबोध्यु रुश ᳪ समानऽआयुः प्रमोषीः ॥

तत्पश्चात मृत्तिकादि पंक्ति वाले कलशों (वेदी से प्रथम पंक्ति) और शुद्धोदक कलशों (वेदी से द्वितीय पंक्ति) से क्रमशः स्नान कराये और प्रत्येक स्नान के बाद शुद्धोदक कलश से भी स्नान कराये।

देवस्नपनं उत्तरवेदी
देवस्नपनं उत्तरवेदी

Leave a Reply