नवग्रहों में केतु का नौवां क्रम आता है। जैसे सूर्य, चंद्र, मंगल आदि ग्रहों की शांति विधि मिलती है उसी प्रकार केतु के लिये भी शांति विधि प्राप्त होती है। केतु को क्रूर, पाप ग्रह कहा जाता है और जिससे संपर्क या दृष्टि आदि युति करे उसे भी अशुभ कर देता है। केतु को छायाग्रह भी कहा जाता है क्योंकि इसका कोई पिंड नहीं है यह वास्तव में एक बिंदु है, जिस प्रकार सूर्य और चंद्र मार्ग का एक संक्रमण बिंदु राहु है उसी प्रकार दूसरा संक्रमण बिंदु केतु है। इस आलेख में केतु शांति विधि दी गयी है। केतु शांति विधि का तात्पर्य शास्त्रोक्त विधान से केतु के अशुभ फलों की शांति करना है।
केतु शांति के उपाय | केतु शांति पूजा : ketu shanti ke upay
सूर्य, चंद्र, मंगल और बुध की शांति विधि पूर्व आलेखों में दी गयी है, यहां हम केतु शांति विधि देखेंगे और समझेंगे। केतु शांति का तात्पर्य है केतु के अशुभ फलों के निवारण की शास्त्रोक्त विधि। यदि केतु निर्बल हो तो सबल करने के लिये वैदूर्यमणि, लाजवर्त आदि धारण करना लाभकारी होता है। किन्तु यदि केतु के कोई अशुभ प्रभाव हों तो उसका निवारण रत्न धारण करना नहीं होता, ग्रहों के अशुभ प्रभाव का निवारण करने के लिये शांति ही करनी चाहिये।
केतु शांति के उपाय का तात्पर्य है केतु के अशुभत्व का निवारण करने वाला उपाय, अनिष्ट फलों का शमन करने वाला उपाय चाहे वह पूजा हो, हवन हो, जप हो, पाठ हो, दान हो, रत्न-जड़ी धारण करना हो, यंत्र धारण करना हो। अर्थात यदि केतु किसी प्रकार से अशुभ हों तो उनकी शांति के लिये इतने प्रकार के उपाय किये जा सकते हैं।
केतु शांति पूजा विधि
केतु यदि कमजोर अर्थात निर्बल हो तो उसे सबल करने हेतु निम्न उपाय (रत्नादि धारण) किये जा सकते हैं :
- रत्न : वैदूर्यमणि
- उपरत्न : लाजवर्त
- जड़ी : अश्वगंधामूल
- दिन : शनिवार
- समिधा : कुशा
- धातु : लौह
१४ | ९ | १६ |
१५ | १३ | ११ |
१० | १७ | १२ |
केतु शांति मंत्र – Ketu Shanti Mantra
- वैदिक मंत्र (वाजसनेयी) : ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे । समुषद्भिरजायथाः ॥
- वैदिक मंत्र (छन्दोगी) : ॐ केतु कृण्वन्न केतवे पेशोमर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथाः ॥
- तांत्रिक मंत्र : ॐ स्रां स्रीं स्रों सः केतवे नमः॥
- एकाक्षरी बीज मंत्र : ॐ कें केतवे नमः॥
- जप संख्या : 7000
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