नवग्रहों में मंगल का तीसरा क्रम आता है। जैसे सूर्य और चंद्र की शांति विधि मिलती है उसी प्रकार मंगल के लिये भी शांति विधि प्राप्त होती है। इस आलेख में मंगल शांति विधि दी गयी है। मंगल शांति विधि का तात्पर्य शास्त्रोक्त विधान से मंगल के अशुभ फलों की शांति करना है।
मंगल शांति के उपाय | मंगल शांति पूजा
सूर्य और चंद्र की शांति विधि पूर्व आलेखों में दी गयी है, यहां हम मंगल शांति विधि समझेंगे। मंगल शांति का तात्पर्य है मंगल के अशुभ फलों के निवारण की शास्त्रोक्त विधि। यदि मंगल निर्बल हो तो सबल करने के लिये मूंगा आदि धारण करना लाभकारी होता है। किन्तु यदि मंगल के कोई अशुभ प्रभाव हों तो उसका निवारण रत्न धारण करना नहीं होता, अशुभ प्रभाव का निवारण करने के लिये शांति ही करनी चाहिये।
इसके साथ मंगल के विषय में एक और महत्वपूर्ण तथ्य भी है और वो है मंगली दोष।
मंगली दोष क्या है
मंगल यदि लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में स्थित हो तो उसे मंगली दोष कहा जाता है।
- मंगली दोष के अशुभ फल में दाम्पत्य सुख का बाधित होना है।
- मंगली दोष पुरुष और स्त्री दोनों की कुंडली में हो सकते हैं।
- मंगली दोष जिसकी कुंडली में हो उसके जीवन साथी के लिये आयु, आरोग्य आदि का हानिकारक होता है।

यदि कन्या के कुंडली में मंगली दोष हों तो उसके निवारण हेतु कुम्भ विवाह, विष्णु प्रतिमा विवाह आदि उपाय शास्त्रों में बताये गये हैं। लेकिन यदि पुरुष की कुंडली में मंगली दोष हो तो दुविधा की स्थिति देखी जाती है और यहां ब्राह्मण वचन का महत्व स्थापित होते हुये जो उपाय बताया गया हो उससे शांति होती है। किन्तु वर्तमान में कुछ ज्योतिषी वर की कुंडली में मंगली दोष होने पर उसके दोष का निवारण करने हेतु अर्क विवाह का परामर्श देने लगे हैं जो कदापि उचित नहीं माना जा सकता है।
कुम्भ विवाह की विधि अर्क विवाह विधि
इस सम्बन्ध में हमें प्रथमतया तो यह समझना होगा कि अर्क विवाह का निमित्त क्या है ? अर्क विवाह का निमित्त तृतीय (मानुषी) विवाह दोष निवारण करना है। अर्क विवाह का सम्बन्ध कहीं दूर-दूर तक भी वर के मंगली दोष निवारण से नहीं है। यदि अर्क विवाह का वर के मंगली दोष निवारण से सम्बन्ध ही नहीं है तो मंगली दोष निवारण हेतु अर्क विवाह का परामर्श देने वाले ज्योतिषी को पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। शास्त्रों का अध्ययन करते हुये ही उचित-अनुचित का निर्णय करना चाहिये मनमाने तरीके से नहीं।
इस संबंध में एक पंक्ति ही सर्वथा उपर्युक्त है शास्त्र वचन का अनुसरण करते हुये भोग करना भी दुखदायी नहीं होगा, पतनकारक नहीं होगा, किन्तु शास्त्र की अवज्ञा करके यदि धार्मिक कृत्य भी किये जायें तो वह पतन का कारक ही होगा। क्योंकि मूल में ही शास्त्र की अवज्ञा अर्थात अधर्म हो रहा है। ऐसे व्यावसायिक ज्योतिषियों से पूर्ण रूप से बचने की आवश्यकता है जो वर की कुंडली में मंगली दोष होने पर अर्क विवाह का आदेश करते हैं।
फिर प्रश्न उठता है कि यदि वर की कुंडली में मंगली दोष हो तो उसकी शांति किस विधि से करे। चूंकि ये स्पष्ट है कि अर्क विवाह का विधान मंगली दोष के निमित्त नहीं किया जा सकता तो और क्या किया जा सकता है ? वर की कुंडली में मंगली दोष निवारण हेतु कोई विशेष विधि अलग से प्राप्त नहीं होती अतः मंगल शांति विधि का ही आश्रय लेना चाहये।
कमजोर (निर्बल) मंगल के उपाय
मंगल यदि कमजोर अर्थात निर्बल हो तो उसे सबल करने हेतु निम्न उपाय (रत्नादि धारण) किये जा सकते हैं :
- रत्न : मूंगा।
- उपरत्न : गारनेट।
- जड़ी : अनंतमूल।
- दिन : मंगलवार।
- समिधा : खैर
- धातु : ताम्र
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मंगल शांति मंत्र – surya mantra
- वैदिक मंत्र (वाजसनेयी) : ॐ अग्निर्मूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम् । अपा ᳪ रेता ᳪ सि जिन्वति ॥
- वैदिक मंत्र (छन्दोगी) : ॐ अग्निर्मूर्द्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम् । अपां रेतांसि जिन्वति ॥
- तांत्रिक मंत्र : ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः॥
- एकाक्षरी बीज मंत्र : ॐ अं अंगारकाय नमः अथवा ॐ कुं कुजाय नमः॥
- जप संख्या : 10000
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