नवग्रहों में शनि का सातवां क्रम आता है। जैसे सूर्य, चंद्र, मंगल आदि ग्रहों की शांति विधि मिलती है उसी प्रकार शनि के लिये भी शांति विधि प्राप्त होती है। शनि को क्रूर, पाप ग्रह कहा जाता है और जिससे संपर्क या दृष्टि आदि युति करे उसे भी अशुभ कर देता है। तथापि शनि की जिस भाव में स्थिति होती है उस भाव संबंधी फल के लिये शुभद माना जाता है। शनि की दृष्टि में ही वास्तविक अशुभ फल का प्रभाव बताया गया है। इस आलेख में शनि शांति विधि दी गयी है। शनि शांति विधि का तात्पर्य शास्त्रोक्त विधान से शनि के अशुभ फलों की शांति करना है।
शनि शांति के उपाय | शनि शांति मंत्र : Shani shanti ke upay
सूर्य, चंद्र, मंगल और बुध की शांति विधि पूर्व आलेखों में दी गयी है, यहां हम शनि शांति विधि देखेंगे और समझेंगे। शनि शांति का तात्पर्य है शनि के अशुभ फलों के निवारण की शास्त्रोक्त विधि। यदि शनि निर्बल हो तो सबल करने के लिये नीलम, नीली आदि धारण करना लाभकारी होता है। किन्तु यदि शनि के कोई अशुभ प्रभाव हों तो उसका निवारण रत्न धारण करना नहीं होता, ग्रहों के अशुभ प्रभाव का निवारण करने के लिये शांति ही करनी चाहिये।
शनि शांति के उपाय का तात्पर्य है शनि के अशुभत्व का निवारण करने वाला उपाय, अनिष्ट फलों का शमन करने वाला उपाय चाहे वह पूजा हो, हवन हो, जप हो, पाठ हो, दान हो, रत्न-जड़ी धारण करना हो, यंत्र धारण करना हो। अर्थात यदि शनि किसी प्रकार से अशुभ हों तो उनकी शांति के लिये इतने प्रकार के उपाय किये जा सकते हैं।
कमजोर (निर्बल) शनि के उपाय
शनि यदि कमजोर अर्थात निर्बल हो तो उसे सबल करने हेतु निम्न उपाय (रत्नादि धारण) किये जा सकते हैं :
- रत्न : नीलम।
- उपरत्न : नीली।
- जड़ी : बिच्छूबूटी
- दिन : शनिवार।
- समिधा : शमी
- धातु : लौह
१२ | ७ | १४ |
१३ | ११ | ९ |
८ | १५ | १० |
शनि शांति मंत्र – Shani Grah Mantra
- वैदिक मंत्र (वाजसनेयी) : ॐ शं नो देवीरभिष्ट्य आपो भवन्तु पीतये । शं योरभि स्रवन्तु नः ॥
- वैदिक मंत्र (छन्दोगी) : ॐ शन्नो देवीरभिष्टये शन्नो भवन्तु पीतये संयोरभिस्रवन्तु नः ॥
- तांत्रिक मंत्र : ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः॥
- एकाक्षरी बीज मंत्र : ॐ शं शनैश्चेराय नमः॥
- जप संख्या : 23000
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