दीपावली का त्यौहार – Deepawali 2024

दीपावली कब है 2024 में, एक महत्वपूर्ण विश्लेषण

कार्तिक कृष्ण अमावास्या को दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है। दीपावली का दिन एक ऐसा त्यौहार है जिसमें कई पुजायें सम्मिलित होती है और आगे-पीछे के कई व्रत-त्यौहार भी इससे संबंधित होते हैं, जैसे : पितृ विसर्जन, कोजागरा, धनतेरस, यमचतुर्दशी, श्यामा पूजा, लघुदीपावली, देवदीपावली आदि। इस आलेख में 2024 की दीपावली से संबंधित चर्चा करते हुये अन्य संबंधित व्रत-पूजा की भी चर्चा की गयी है।

यह आलेख दीपावली से जुड़ी विस्तृत जानकारी देने वाली है एवं आगे दीपावली से संबद्ध विस्तृत चर्चा करेंगे किन्तु उससे पूर्व हम 2024 से लेकर 2030 तक दीपावली कब है इसे देखेंगे। किन्तु उससे भी पूर्व हम दीपावली का निर्णय कैसे किया जाता है उसे समझेंगे। दीपावली निर्णय के लिये शास्त्रों में उपलब्ध प्रमाणों को देखेंगे जिसके आधार पर दीपावली का निर्णय लिया जाना चाहिये।

दीपावली का निर्णय

किसी भी व्रत-पर्वादि का सही निर्णय लेने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है कर्मकाल ज्ञान । जब तक कर्मकाल का ज्ञान नहीं होगा तब तक उचित निर्णय लेना असंभव है, क्योंकि शास्त्रों के वचन परस्पर विरोधाभासी प्रतीत होंगे। दीपावली निर्धारण हेतु कर्मकाल क्या है? दीपावली निर्धारण हेतु प्रदोष कर्मकाल है।

  • भविष्य पुराण:- दिवातत्रनभोक्तव्यमृतेबा लातुराज्जनात् । प्रदोषसमयेलक्ष्मीं पूजयित्वाततः क्रमात् । दीपवृक्षाश्चदातव्याः शक्त्या देवगृहेषु च
  • पुनः दीपान्दत्वा प्रदोषे तु लक्ष्मीं पूज्य यथाविधि । स्वलङ्कृतेन भोक्तव्यं सितवस्त्रोपशोभिना
  • पुनः ब्रह्मपुराण से :- प्रदोषसमयेराजन् कर्तव्यादीपमालिका
  • भविष्योत्तर पुराण : प्रदोषे पूजयेद्देवीं पद्महस्तां हरिप्रियां ॥

यहां स्पष्टः कर्मकाल का निर्धारण हो रहा है कि लक्ष्मी पूजा व दीपावली का “कर्मकाल प्रदोषकाल है”। कर्मकाल निर्णय या ज्ञान होने के बाद निर्णय लेना सहज हो जाता है। जिस किसी दिन भी कर्मकाल में ग्राह्य तिथि व्याप्त हो व्रत पर्व उसी दिन होता है। यदि दो दिन कर्मकाल में तिथि व्याप्त हो (तिथिवृद्धि होने पर ऐसा होता है) तो कुछ अपवादों को छोड़कर सर्वत्र दूसरे दिन को ग्रहण करने की विधि होती है। और यदि दोनों में से एक दिन भी कर्मकाल में तिथि न मिले तो भी कुछ अपवादों के अतिरिक्त दूसरा दिन ही ग्राह्य होता है।

दिनद्वये सत्त्वे परः – अर्थात यदि दोनों दिन व्याप्ति हो तो परदिन (अगले दिन) करे। यदि दोनों में से किसी दिन भी प्रदोषकालीन अमावास्या प्राप्त न हो तो भी परदिन (अगले दिन) करे।

व्रत-पर्वादि का निर्णय करने के लिए यही मुख्य नियम है। दीपावली और लक्ष्मीपूजा का कर्मकाल प्रदोषकाल है और उपरोक्त नियमानुसार ही इसका निर्णय लेना चाहिए।

  • तिथितत्त्वचिन्तामणौ – कार्तिके कृष्णपक्षे च प्रदोषे भूतदर्शयोः । प्रदोषसमये दीपान् दद्यान्मनोरमान् ॥ ब्रह्मविष्णुशिवादीनां भवनेषु मठेषु च । उल्काहस्ता नराः कुर्युः पितॄणां मार्गदर्शनम्
  • राजमार्तण्ड – दण्डैकं रजनीं प्रदोषसमये दर्शे यदा संस्पृशेत् । कर्त्तव्या सुखरात्रिकात्र विधिना दर्शाद्यभावे तदा ॥
  • अन्यत्र से – अमावस्या यदा रात्रौ दिवाभागे चतुर्द्दशी । पूजनीया तदा लक्ष्मीर्विज्ञेया सुखरात्रिका ॥

इस प्रकार लक्ष्मीपूजा व सुखरात्रि-दीपावली के संबंध में प्रदोषकाल व्यापिनी की ही सिद्धि होती है एवं दोनों दिन प्रदोषव्यापिनी हो तो भी परदिन और दोनों दिन प्रदोषकाल में अभाव हो तो भी परदिन ही कर्तव्य। तथापि एक अन्य प्रमाण “दंडैकरजनीयोगे” का अवलंबन लेते हुये कुछ विद्वान रजनी की पृथक व्याख्या करते हुये प्रदोषकाल संबंधी सभी प्रमाणों का समूल त्याग भी करते हैं। जबकि इसका खंडन राजमार्त्तण्डकार ने कर रखा है – “दण्डैकं रजनीं प्रदोषसमये”

दंडैकरजनीयोगे दर्शः स्यात्तु परेऽहनि। तदाविहायपूर्वेद्युः परेऽह्निसुखरात्रिका॥ – इसमें अमावास्या का दण्डमात्र रजनी में परदिन हो तो पर दिन, यदि दण्डमात्र न हो उससे न्यून हो तो पूर्वदिन ही करे, किन्तु सुखरात्रि परदिन ही करे ऐसा कहा गया है। इसकी चर्चा आगे और करेंगे, प्रथमतया रजनी के संबंध में जो बताये जा रहे हैं उसे समझते हैं।

रजनी का तात्पर्य प्रदोष काल के पश्चात् से है इस कथन को स्वीकार करने में कोई समस्या नहीं है उचित ही है। इसकी सिद्धि करते हुए तिथि निर्णय एवं पुरुषार्थ चिंतामणि आदि ग्रंथों में स्पष्ट रूप से वर्णित है कि सूर्यास्त के उपरांत तीन मुहूर्त तक प्रदोष एवं उसके बाद की रजनी संज्ञा होती है : “नक्षत्रदर्शनात्संध्या सायं तत्परतः स्थितम्। तत्परा रजनी ज्ञेया” – पुरुषार्थ चिंतामणि

उदयात् प्राक्तनी संध्या घटिकाद्वयमिष्यते। सायं सन्ध्या त्रिघटिका अस्तादुपरि भास्वतः॥
त्रिमुहूर्तः प्रदोषः स्याद् भानावस्तंगते सति। तत्परा रजनी प्रोक्ता तत्र कर्म परित्यजेत्॥
– तिथिनिर्णय

और भी – त्रियामां रजनीं प्राहुस्त्यक्त्वाद्यन्तचतुष्टयम्। नाडीनां तदुभे सन्ध्ये दिवसाद्यन्तसंज्ञके॥

प्रदोषकाल त्रिमुहूर्त के पश्चात् रजनी को स्वीकारने में कोई आपत्ति नहीं क्योंकि अनेकानेक प्रमाण हैं। अब पुनः “दंडैकरजनीयोगे” की चर्चा आवश्यक है क्योंकि 2024 में भी इसको आधार बनाते हुये प्रदोषव्यापिनी का खंडन किया जा रहा है। क्योंकि इस वचन का वास्तविक तात्पर्य क्या है उसे समझे बिना निर्णय करना अनुचित होगा एवं इसका वास्तविक तात्पर्य जो नहीं समझते उन्हें निर्णय नहीं करना चाहिये।

दंडैकरजनीयोगे दर्शः स्यात्तु परेऽहनि – अमावास्या का दण्डमात्र रजनी में परदिन हो तो पर दिन करे। तदाविहायपूर्वेद्युः – यदि ऐसा न हो अर्थात यदि रजनी में दण्डमात्र अनुपलब्ध हो, दण्डमात्र से न्यून हो तो पूर्वदिन ही करे। जितना अर्थ ग्रहण किया जा रहा है वो संपन्न हो गया किन्तु श्लोक में एक पाद शेष ही है जिसका अर्थ नहीं किया जा रहा है। चतुर्थ पाद – “परेऽह्निसुखरात्रिका” का क्या तात्पर्य है ?

“परेऽह्निसुखरात्रिका” का क्या तात्पर्य बताये बिना यदि निर्णय कर रहे हैं तो निःसंदेह त्रुटिपूर्ण निर्णय कर रहे हैं।

“परेऽह्निसुखरात्रिका” का क्या तात्पर्य समझने के लिये हमें पुनः अन्य प्रकार से विचार करना होगा एवं यही नियम है कि अनेकानेक प्रकार से विचार-विमर्श किया जाये। इस वचन में दो विषयों का निर्णय दिया गया है एक काली-तारा आदि की पूजा और दूसरी दीपावली-सुखरात्रि-लक्ष्मीपूजा

दंडैकरजनीयोगे दर्शः स्यात्तु परेऽहनि कथन का तात्पर्य है कि यदि दण्डमात्र रजनी अमावास्या युक्त हो तो काली पूजा और सुखरात्रि दोनों ही परदिन कर्त्तव्य, क्योंकि काली पूजा मध्यरात्रि में ही होती है, लक्ष्मी पूजा भले ही बहुटी लोग सिंहलग्न में भी करते हैं किन्तु उसके लिये अनेकानेक प्रमाणों से प्रदोषकालीन ही ग्राह्य सिद्ध होता है।

तदाविहायपूर्वेद्युः से तात्पर्य काली-तारा आदि पूजा के लिये है कि यदि परदिन रजनी दण्डमात्र अमावास्यायोग रहित हो तो पूर्वदिन ही करे। “परेऽह्निसुखरात्रिका” का तात्पर्य है कि फिर भी सुखरात्रि-दीपावली-उल्काभ्रमण-लक्ष्मीपूजा आदि परदिन करे।

आशा की जाती है कि “दंडैकरजनीयोगे” वचन का पूर्ण अर्थ अब स्पष्ट हो गया है एवं इसके आधार पर दीपावली-सुखरात्रि-लक्ष्मीपूजा-उल्काभ्रमण आदि के निर्णय में त्रुटिपूर्ण अर्थ बताते हुये निर्णय को भी त्रुटियुक्त नहीं किया जायेगा। “परेऽह्निसुखरात्रिका” का तात्पर्य सुखरात्रि-दीपावली-उल्काभ्रमण-लक्ष्मीपूजा आदि ही है जिसके लिये “दंडैकरजनीयोगे” अनावश्यक/अयथार्थ है।

दीपावली अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और अज्ञान पर ज्ञान की जीत का उत्सव है।

दीपावली कब है – Dipawali kab hai

आगे वर्ष 2024 से 2030 तक के दीपावली का निर्णय दृश्य पंचांग के आधार पर दिया गया है। यहां यह भी स्पष्ट करना आवश्यक है कि अदृश्य पंचांगों को चन्द्रमा सत्यापित नहीं करते है यदि पंचांग को चन्द्रमा सत्यापित न करें तो वह ग्राह्य नहीं होता। वर्ष 2024 और 2025 में के दीपावली का निर्णय इन अदृश्य पंचांगों में क्या अंकित किया जायेगा यह महत्वपूर्ण नहीं है महत्वपूर्ण यह है कि दृश्य पंचागों के तिथि द्वारा किस दिन दीपावली होना चाहिये। इस विषय को समझना थोड़ा कठिन है किन्तु यदि यहां व्रत-पर्व निर्णय संबंधी आलेख को पढ़कर समझा जा सकता है : व्रत पर्व विवेक : पंचांग की जानकारी व शुद्धता को जांचना

व्रत-पर्व निर्णय से पूर्व पंचांग की शुद्धता को जांचना आवश्यक है, दीपावली
  • 2024
  • 2025
  • 2026
  • 2027
  • 2028
  • 2029
  • 2030

2024 में 31 अक्टूबर गुरुवार को चतुर्दशी 15:52 बजे तक है तत्पश्चात अमावास्या अगले दिन शुक्रवार 1 नवम्बर 2024 को 18:16 बजे तक है। स्पष्टतः दोनों दिन प्रदोषकाल में अमावास्या मिलेगी जहां तक सूर्यास्त 18:16 से पूर्व होता हो । स्पष्टतः नियमानुसार दूसरे दिन दीपावली होनी चाहिए, यदि मुख्य नियम का कोई अन्य बाधक नियम न हो अथवा अपवाद व्रतों वाला कोई अन्य विशेष नियम न हो तो।

ऐसी स्थिति में दीपावली हेतु दो और विशेष नियम हैं जो मुख्य नियम का बाधक है। यहां पर एक विशेष नियम तिथितत्व में वर्णित है कि यदि दोनों दिन अमावास्या प्रदोष व्यापिनी हो तो भी अगले दिन रात में अर्थात् सूर्यास्त के पश्चात् न्यूनतम 1 दण्ड अमावास्या हो तो ही पहले दिन का त्याग और अगले दिन को ग्रहण करना जाना चाहिए । अर्थात् यदि दूसरे दिन सूर्यास्त के पश्चात् एक दण्ड से कम अमावास्या रहे तो पहले दिन करना चाहिए।

इस विशेष नियम से जहां सूर्यास्त (18:16-00:24 =) 17:52 से पहले होगा वहां 1 नवम्बर 2024 को और जहां सूर्यास्त 17:52 बजे के बाद होगा वहां 31 अक्टूबर 2024 को दीपावली होनी चाहिए। ये दीपावली कब है 2024 के संदर्भ में है ।

महाराष्ट्र, गुजरात आदि पश्चिमी राज्यों में ऐसा देखा जायेगा कि सूर्यास्त 17:52 के पश्चात् होगा अतः वहां पूर्व दिन 31 अक्टूबर गुरुवार को ही दीपावली होगा। शेष समस्त भारत में सूर्यास्त 17:52 से पूर्व होगा और इसी कारण शेष पूरे भारत में दीपावली 1 नवम्बर, शुक्रवार को होगा। ये दृश्य पंचांग के तिथि मान से होने वाला निर्णय है। अन्य अदृश्य पंचांग जिसे चन्द्रमा सत्यापित नहीं करते उनमें किसी भी दिन अंकित किया जाय कोई महत्व नहीं रखता।

अब दीपावली कब है 2025 के संदर्भ में चर्चा करेंगे। 20 अक्टूबर 2025 सोमवार को चतुर्दशी 15:44 बजे तक है तत्पश्चात् अमावास्या 21 अक्टूबर 2025 मंगलवार को 17:54 बजे तक है। सामान्य नियम और 2024 में के दीपावली निर्णय में वर्णित नियमानुसार 21 अक्टूबर मंगलवार को (17:54-00:24=) 17:26 बजे से पूर्व जहां सूर्यास्त हो वहां 21 अक्टूबर को, और जहां 17:26 बजे के बाद सूर्यास्त हो वहां 20 अक्टूबर सोमवार को ही दीपावली होनी चाहिए।

21 अक्टूबर 2025 मंगलवार को वाराणसी में 17:24 बजे सूर्यास्त होगा अतः वाराणसी समेत पूर्वी भारत में 2025 की दीपावली 21 अक्टूबर, मंगलवार को ही होगा किन्तु वाराणसी से पश्चिमी भारत में वर्ष 2025 की दीपावली 20 अक्टूबर, सोमवार को ही होगा।

अब दीपावली कब है 2026 को जानेंगे। 8 नवम्बर 2026 रविवार को चतुर्दशी 11:27 दिन बजे तक है, तत्पश्चात् अमावास्या अगले दिन 12:31 बजे दिन तक है। निर्विवादित रूप से 2026 में 8 नवम्बर रविवार को ही दीपावली होनी चाहिए।

अब 2027 में दीपावली कब है इसको देखते हैं। 28 अक्टूबर 2027 गुरुवार को चतुर्दशी 20:47 बजे तक है तत्पश्चात् अमावास्या 29 अक्टूबर 2027 शुक्रवार को 19:05 बजे तक है। अतः निर्विवादित रूप से 2027 में दीपावली शुक्रवार 29 अक्टूबर 2027 को होनी चाहिए।

अब दीपावली कब है 2028 को देखते हैं। 17 अक्टूबर 2028 मंगलवार को चतुर्दशी 12:04 बजे तक है तत्पश्चात् अमावास्या अगले दिन 8:26 बजे प्रातः तक है। निर्विवादित रूप से 2028 की दीपावली 17 अक्टूबर मंगलवार को ही होनी चाहिए।

अब दीपावली कब है 2029 में, इसे जानेंगे। 5 नवम्बर 2029 सोमवार को चतुर्दशी 13:44 बजे तक है तत्पश्चात् अमावास्या अगले दिन 9:53 बजे तक है। स्पष्टतः 2029 की दीपावली 5 नवम्बर सोमवार को ही होनी चाहिए।

दीपावली कब है 2030 में ? अब इसका विचार करते हैं। 25 अक्टूबर 2030 शुक्रवार को क्षयी चतुर्दशी 28:40 बजे तक है तत्पश्चात् अमावास्या 26 अक्टूबर 2030 शनिवार को 25:46 बजे तक है। स्पष्टतः दीपावली कब है 2030 का निर्विवादित उत्तर होगा कि 2030 में दीपावली 26 अक्टूबर शनिवार को है ।

अब दीपावली से संबंधित अन्य चर्चा करने से पूर्व हम दीपावली से जुड़े व्रत-पूजा आदि की चर्चा करेंगे। आगे पढ़ें ……

Leave a Reply