व्रत पर्व विवेक : पंचांग की जानकारी व शुद्धता को जांचना – Part 1

व्रत-पर्व निर्णय से पूर्व पंचांग की शुद्धता को जांचना आवश्यक है

पंचांग का सनातन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। किसी भी व्रत पर्व का निर्णय करना हो, शुभाशुभ मुहूर्त का ज्ञान प्राप्त करना हो अथवा जन्म-मरण कोई भी विषय हो, सम्पूर्ण कर्मकांड में पंचांग की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पंचांग को कालज्ञान का शास्त्र कहा जाता है अर्थात पंचांग के द्वारा ही कालज्ञान संभव है, कालज्ञान के अभाव में कोई कर्मकांड-व्रत-पर्व संभव नहीं है। कर्मकांड में जितना महत्व पंचांग का है उससे अधिक महत्व उसकी शुद्धता का है, क्योंकि यदि पंचांग अशुद्ध होगा तो जो ज्ञान प्राप्त होगा वो भी अशुद्ध। इस आलेख में व्रत पर्व निर्णय हेतु पंचांग की शुद्धता जांचने संबंधी विस्तृत व प्रामाणिक चर्चा सोदाहरण की गयी है।

तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण इन पांचों अंगों का विवरण देने वाली पत्रिका पंचांग कहलाती है। यद्यपि पंचांग में अन्य ग्रहों के बारे में भी थोड़ी आवश्यक जानकारी अपेक्षित होती है और वो गुरु-शुक्र का उदित अस्त होना है, तथापि मुख्य रूप से पंचांग के जो पांचों अंग हैं वो मात्र सूर्य और चन्द्रमा पर ही आधारित हैं। गुरु-शुक्र के उदयास्त संबंधी निर्णय का उल्लेख होना एक अतिरिक्त विषय है तथापि यह भी अनिवार्य ही होता है। इसके अतिरिक्त अन्य ग्रहों की स्थिति का विवरण भी बहुत पंचांगों में दिया जाता है और बहुत में नहीं भी।

पंचांग की जानकारी

ऐसा प्राचीन काल से ही नियम रहा है कि पंचांगकर्ता कुछ विशेष व्यक्ति ही हुआ करते रहे हैं, क्योंकि ज्योतिष में भी तीन विभाग है सिद्धांत, संहिता व होरा। यद्यपि पंचांग में थोड़ा बहुत संहिता व होरा संबंधी विवरण भी रहता है तथापि पंचांग मुख्य रूप से सिद्धांत ग्रंथों द्वारा ही निर्मित होता है, एवं निर्मित पंचांग में संहिता व होरा संबंधी अतिरिक्त विवरण दिया जाता है। वर्त्तमान में सिद्धांत संबंधी यह कार्य कुछ ही लोग करते हैं व पंचांग प्रकाशित करते हैं जिसके आधार पर सामान्य जनों द्वारा कालज्ञान प्राप्त किया जाता है, व्रत-पर्वादि किया जाता है।

पंचांग हेतु एक विशेष तथ्य है पंचांग का शुद्ध होना जिसके लिये वेध का विधान शास्त्रों में बताया गया है और पंचांगकर्ताओं हेतु यह आज्ञा दी गयी है कि वो अपने पंचांग की शुद्धता/सत्यता का समय-समय पर वेध द्वारा ज्ञान करते रहें, क्योंकि यह सामान्यजन कर ही नहीं सकता अर्थात इसका पूर्ण उत्तरदायित्व सिद्धांत के ज्योतिषाचार्यों पर ही होता है और उनमें से भी उन पर जो पंचांग निर्माण करते हैं।

वेध द्वारा शुद्धता/सत्यता सिद्ध करने का यह विधान पंचांग की उन सूक्ष्म त्रुटियों के निवारण हेतु अनिवार्य होता है, जिनको सामान्य जन कभी जान भी नहीं सकते। प्राचीन काल से ऐसा होता भी रहा है तथापि वर्तमान में ऐसा देखा जा रहा है कि पंचांगकर्ता इस विषय को महत्वहीन समझने लगे हैं और व्यापार मात्र करने लगे। अनेकानेक ऐसे पंचांग हैं जिनका शुद्धता/सत्यता से कोई संबंध ही नहीं रहा है और ऊपर से ये लोग यह भी घोषित करने में लज्जित नहीं होते कि अदृश्य गणना द्वारा ही व्रत-पर्वादि निर्धारण करना चाहिये।

इस स्थिति में अब आवश्यक यह हो गया है कि सामान्य जन स्वयं ही शुद्धाशुद्ध का विचार करके ग्रहण करे, क्षेत्रीयता आदि संबंधी अनावश्यक नियमों का त्याग करे। ज्योतिष शास्त्र का साक्षी सूर्य और चन्द्रमा को कहा गया है : प्रत्यक्षं ज्योतिषं शास्त्रं चन्द्रार्कौ यत्र साक्षिणौ। अर्थात ज्योतिष शास्त्र प्रत्यक्ष हैं जिसके साक्षी सूर्य व चन्द्रमा होते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि यदि सूर्य-चंद्र साक्षी न हों तो क्या अर्थात यदि पंचांग द्वारा प्राप्त विवरण सूर्य-चंद्रमा की स्थिति द्वारा सत्यापित न हो तो क्या ?

इस संबंध में दो प्रकार के उत्तर होंगे :

  1. प्रथम तो यह कि यदि शुद्ध/सत्यापित पंचांग अनुपलब्ध हो तो, जो पंचांग उपलब्ध है उसे ही स्वीकारे।
  2. द्वितीय यह कि यदि शुद्ध/सत्यापित पंचांग उपलब्ध हो तो, अशुद्ध/असत्यापित पंचांग का त्याग करे और शुद्ध/सत्यापित पंचांग को ही स्वीकारे।

बहुत लोगों का कथन होता है कि पंचांग में त्रुटि है तो पंचांगकर्ताओं को सुधार हेतु बताया जाय, किन्तु तब क्या जब पंचांगकर्ता सुधार करने के लिये तैयार ही न हों अर्थात अशुद्ध/असत्यापित पंचांग ही देते रहें। वर्त्तमान में लगभग सभी क्षेत्रों में यही स्थिति है, अन्य क्षेत्रों में दृक्तुल्य पंचांग भी प्रकाशित होने लगे हैं किन्तु मिथिला में कोई दृक्तुल्य पंचांग प्रकाशित नहीं होता है, यदि होता भी हो तो उसकी कोई जानकारी नहीं है।

तथापि वर्त्तमान काल में लगभग सभी लोग मोबाईल/इंटरनेट आदि का प्रयोग करने लगे हैं और अनेकानेक ज्योतिषीय एप्लिकेशन उपलब्ध हैं जिसमें पंचांग दिया जाता है। समस्या मात्र यह होती है कि उसमें व्रत-पर्व-मुहूर्त आदि संबंधी विचार किसी विशेष क्षेत्र के नियमानुसार किया जाता है जिस कारण उसमें दिये गये व्रत-पर्व-मुहूर्तादि तो यथावत ग्राह्य नहीं होते, शास्त्रानुसार निर्णय करने का कार्य शेष रहता है, तथापि तिथि, नक्षत्र आदि विशेष रूप से शुद्ध होते हैं।

उपयोगकर्ताओं (पंडितों) का दायित्व

जिस प्रकार हम बाजार से कोई सामान क्रय करने जाते हैं तो उसे भली-भांति जांचना-परखना स्वयं का ही दायित्व होता है। यदि क्रेता अर्थात उपभोक्ता स्वयं के दायित्व का निर्वहन न करे तो सड़ी-गली सब्जियां-फल, कटे-फटे कपड़े भी आ जाते हैं। अर्थात बाजार में सड़ी-गली सब्जियां-फल भी होते हैं और ताजे भी, दायित्व क्रेता का ही होता है कि वह सड़ी-गली सब्जियां-फल न ले, ताजे-अच्छे ही ले। और जो ऐसा करने में असमर्थ होता है वह घोषित बुद्धू (घर-बाहर दोनों जगह) होता है।

उपरोक्त उदाहरण पूर्णरूपेण सटीक है कि बाजार में अशुद्ध/असत्यापित पंचांग भी उपलब्ध हैं और शुद्ध/सत्यापित पंचांग भी, निर्भर उपयोगकर्ता पर है कि वह कितना विवेकवान है।

ऐसे पंचांग भी हैं जिनमें अंकित चंद्रोदय काल से घंटे भर आगे-पीछे चंद्रोदय होता है, अर्थात चन्द्रमा उसके साक्षी नहीं हैं। चन्द्रमा के साक्षी होने का तो इससे अलग कोई प्रमाण नहीं हो सकता कि चंद्रोदय काल में उदित होकर पुष्टि करे। यदि चन्द्रमा किसी पंचांग में अंकित उदयकाल में उदित होकर उसकी पुष्टि नहीं करता तो इसका सीधा तात्पर्य यही है कि उस पंचांग में शुद्धता/सत्यता का अभाव है।

हम यहां किसी पंचांग विशेष का उल्लेख करके तथ्य नहीं रख सकते किन्तु आप जिस किसी भी पंचांग का उपयोग करते हैं उसमें कभी-कभी चंद्रोदय दिया जाता है। यदि आपके पंचांग में चंद्रोदय नहीं दिया गया है तो आप इसकी जाँच भी नहीं कर सकते। न्यूनतम इतना अनिवार्य है कि जिस पंचांग का उपयोग करें उसमें न्यूनतम प्रत्येक माह किसी एक दिन चंद्रोदय (गणितागत चंद्रोदय काल) दिया गया हो ताकि उसे सत्यापित कर सकें।

सभी क्षेत्रों के अदृश्य पंचांग लगभग एक-दूसरे की छायाप्रति ही होते हैं, अर्थात तिथि-नक्षत्र आदि का आरंभ-समापन समान ही होता है। अतः अपने क्षेत्र के किसी एक पंचांग में भी चंद्रोदय दिया गया हो तो उसके आधार पर ही अन्य पंचांगों के बारे में भी जाना जा सकता है।

स्वयं कैसे जांचें-परखें

जब यह स्पष्ट हो चुका है कि अनेकानेक पंचांग जिनमें बहुत सारे दशकों पूर्व से भी प्रकाशित हो रहे हैं, अधिकांशतः अशुद्ध व असत्यापित हैं एवं चन्द्रमा उसका साक्षी नहीं है एवं इसकी जांच-परख करना उपयोगकर्ता का ही दायित्व है। तो आगे यही प्रश्न है कि यह जांच-परख करें तो कैसे करें ?

इसके लिये सामान्य जनों; पंचांग उपयोगकर्ता भी सामान्य जन की श्रेणी में ही आते हैं क्योंकि उनके लिये पंचांग की शुद्धता-अशुद्धता का निश्चय करना भी दुष्कर कार्य है; यहां हम वो विधि बतायेंगे जिसके द्वारा इसकी जांच सरलता से की जा सकती है। आशा है कम-से-कम विद्वद्जन इतने पर सहमत होंगे कि हां हम जिस पंचांग का उपयोग करते हैं उसकी शुद्धता को जांचना भी आवश्यक है।

आगे की चर्चा से पूर्व यहां कुछ दिनों के चंद्रोदय दिये जा रहे हैं और उसकी छवि भी दी जा रही है :

19-09-2024

आगामी दिनों की छवियां अगले दिन जोड़ी जायेंगी, आज 19 सितंबर 2024, गुरुवार, आश्विन कृष्ण द्वितीया है। पंचागों में आज का चंद्रोदय अंकित नहीं किया गया है, तथापि मोबाइल में अनेकों ऐप हैं जिनके माध्यम में से ज्ञात किया जा सकता है और जो ज्ञात होता है वो है : 18:38 (6:38 pm) तदनुसार चंद्रोदय की जांच की गयी और संदर्भित छवि यहां दी गयी है जिसमें समय भी अंकित है। आंखों द्वारा चन्द्रमा को निर्धारित काल से 20 मिनट विलंब से देखा गया जो चन्द्रमा की कोणीय स्थिति से भी ज्ञात हो जाता है।

व्रत पर्व विवेक : 19 सितंबर 2024, गुरुवार, आश्विन कृष्ण द्वितीया
चंद्रोदय : 19 सितंबर 2024, गुरुवार, 6:58 pm

इस प्रकार की पुष्टि मात्र एक दिन नहीं अनेकों दिन करने की आवश्यकता है और इसके लिये आगामी 3 दिनों तक के चंद्रोदय की छवि प्रस्तुत की जायेगी। इसकी आप स्वयं पुष्टि भी करते रहें। इस विषय की जानकारी आगे और दी जायेगी सर्वप्रथम आगामी दो दिनों के चंद्रोदय को देखते हैं, छवियां उस दिन यथाकाल जोड़ी जायेगी।

20-09-2024

दिनांक 20 सितंबर 2024, शुक्रवार, आश्विन कृष्ण तृतीया को मोबाइल में जो विभिन्न ऐप हैं उसके माध्यम से चंद्रोदय काल 19:17 (रात्रि 7:17 बजे) ज्ञात होता है। अनेकानेक प्रकाशित अदृश्य पंचांगों में चंद्रोदय नहीं दिया गया है अतः मात्र इतनी पुष्टि की जा सकती है कि यह चंद्रोदय काल शुद्ध है अथवा नहीं? चन्द्रमा इसके साक्षी हैं या नहीं ? ये कल जांचने का विषय है और कल का चंद्रोदय होने पर उसकी छवि भी यहां प्रस्तुत कर दी जायेगी एवं आप लोग स्वयं भी इसकी जाँच कर सकते हैं।

20 सितंबर 2024, शुक्रवार, आश्विन कृष्ण तृतीया
20 सितंबर 2024, शुक्रवार, आश्विन कृष्ण तृतीया

बादलादि के कारण किञ्चित विलम्ब से चन्द्रदर्शन हुआ, किन्तु चन्द्रमा की कोणीय स्थिति से यह समझा जा सकता है कि लगभग आधे घंटे पूर्व ही पूर्वी क्षितिज में चंद्रोदय हो गया था।

21-09-2024 : दूध का दूध और पानी का पानी

21 सितंबर 2024, शनिवार, आश्विन कृष्ण चतुर्थी का चंद्रोदय दूध का दूध और पानी का पानी करने वाला है, क्योंकि इस दिन कुछ पंचांगों में चंद्रोदय अंकित किया गया है। मोबाईल आदि ऐप के माध्यम से प्राप्त चंद्रोदय काल 19:58 (रात्रि 7:58 बजे) है जो सभी देख सकते हैं एवं शुद्ध है व इससे लगभग 20 – 30 मिनट के उपरांत चन्द्रमा देखे जायेंगे। 20 – 30 मिनट पूर्व उदय की पुष्टि उदयकालीन चन्द्रमा की आकाश में कोणीय स्थिति से भी ज्ञात की जा सकती है।

इसमें दूध का दूध और पानी का पानी कैसे हुआ ? दूध का दूध और पानी का पानी इस प्रकार हुआ कि अनेकों पंचांग जिसके आधार पर पंडित लोग व्रतादि का निर्देश करते हैं उनमें से कुछ पंचांगों में चंद्रोदय काल अंकित मिलता है और वो है रात्रि 9 बजकर 10 मिनट। अब ये मानक समय है अथवा स्थानीय यह भी ज्ञात नहीं तथापि स्थानीय मानना ही उचित होगा एवं तदनुसार देशांतर-वेलांतर संस्कार करके मानक समय बनाया जा सकता है।

21 सितम्बर का वेलांतर +07 मिनट है और देशांतर स्थानों के अनुसार होगा जैसे बेगूसराय का +14:32 मिनट है। दोनों को मिलाने से 22 मिनट होता है जो 9:10 में ऋण करने पर 8:48 ज्ञात होता है। अर्थात पंचांग द्वारा प्राप्त चंद्रोदय का मानक काल 8:48 बजे रात्रि है लगभग 20 – 30 मिनट उपरांत दृश्य होने पर पुनः 9:10 ही प्राप्त होता है। अर्थात् यदि मानक समय को ही माना जाय; व इन पंचांगों को शुद्ध माना जाय, चंद्रोदर्शन में जो विलंब होता है उसे भी अस्वीकार कर दिया जाय तो 21 सितम्बर 2024, शनिवार को रात्रि 8:48 से पूर्व चंद्रोदय नहीं हो सकता।

किन्तु जो मोबाइल ऐप आदि द्वारा ज्ञात चंद्रोदय काल है वो 7:58 है और दृश्य में 20 मिनट विलंब करने पर रात्रि 8:18 से 8:20 बजे तक चंद्रोदय हो जायेगा, जिसका तात्पर्य पंचागों में अंकित समय से 20 मिनट पूर्व ही चंद्रोदय होगा जो यह सिद्ध करता है कि पंचांग को चन्द्रमा सत्यापित नहीं करते हैं क्योंकि पंचांग में दिये गये चंद्रोदय काल के अनुसार चंद्रमा 8:48 से पूर्व तो देखे ही नहीं जा सकते, 20 – 30 मिनट का विलंब ही दिखते हैं। यदि दृश्य विलंब को भी लिया जाय तो पंचांगों के अनुसार रात्रि 9:08 बजे चंद्रमा दिखने चाहिये; जो कि 8:18 बजे रात्रि में ही दृश्य होगा और यह अंतर 50 मिनट का होता है।

21 सितम्बर शनिवार, रात्रि 8:25 बजे चंद्र दर्शन होने लगा, 8:29 बजे रात्रि की पहली छवि है, एवं दूसरी छवि रात्रि 8:35 बजे की है। पूर्वी क्षितिज से चन्द्रमा की कोणीय दूरी द्वारा यह समझा जा सकता है कि वास्तविक चंद्रोदय आधे घंटे पूर्व ही हुआ होगा, दर्शन भले ही आधे घंटे पश्चात् हो रहा हो।

चंद्र दर्शन 21 सितम्बर शनिवार, रात्रि 8:29 बजे
चंद्र दर्शन 21 सितम्बर शनिवार, रात्रि 8:29 बजे

इस ज्योतिष शास्त्र के साक्षी चंद्रमा ने स्वयं ही उन सभी पंचांगों को असत्यापित सिद्ध कर दिया जो 25 सितम्बर बुधवार को संध्या 5:05 मिनट तक अष्टमी दे रहे हैं और तत्पश्चात जितिया का पारण बता रहे हैं। जब पंचांग ही असत्यापित है उसके आधार पर व्रत-पर्व-मुहूर्त आदि का निर्णय करना विद्वता/पाण्डित्य भी सिद्ध नहीं हो सकता।

चंद्र दर्शन 21 सितम्बर शनिवार, रात्रि 8:35 बजे
चंद्र दर्शन 21 सितम्बर शनिवार, रात्रि 8:35 बजे

इस प्रकार से चंद्रोदय द्वारा पंचांग की शुद्धता/सत्यता को सरलता से जांचा-परखा जा सकता है। ये जांच-परख तभी संभव है जब मोबाईल ऐप से प्राप्त चंद्रोदय और पंचांग से प्राप्त चंद्रोदय काल में न्यूनतम आधे घंटे का अंतर हो।

चंद्रोदय काल सभी पंचांगों में नहीं दिये जाते हैं, कुछ ही पंचांगों में द्वितीया अथवा चतुर्थी आदि को दिया जाता है। तथापि शोध करने वाले किसी गणितज्ञ से पंचांग गणित द्वारा भी चंद्रोदय साधन कर सकते हैं एवं तत्पश्चात उसकी जांच-परख भी कर सकते हैं। यह कार्य जिला स्तर पर प्रत्येक जिला में किया जा सकता है क्योंकि प्रत्येक जिले में कोई न कोई चंद्रोदय साधन करने वाला गणितज्ञ मिल ही जायेंगे।

15 – 30 मिनट का अंतर क्यों ?

इस प्रकार से चंद्रोदय द्वारा पंचांग की शुद्धता/सत्यता को सरलता से जांचा-परखा जा सकता है। ये जांच-परख तभी संभव है जब मोबाईल ऐप से प्राप्त चंद्रोदय और पंचांग से प्राप्त चंद्रोदय काल में न्यूनतम आधे घंटे का अंतर हो। चंद्रोदय काल सभी पंचांगों में नहीं दिये जाते हैं, कुछ ही पंचांगों में द्वितीया अथवा चतुर्थी आदि को दिया जाता है। तथापि शोध करने वाले किसी गणितज्ञ से पंचांग गणित द्वारा भी चंद्रोदय साधन कर सकते हैं एवं तत्पश्चात उसकी जांच-परख भी कर सकते हैं। यह कार्य जिला स्तर पर प्रत्येक जिला में किया जा सकता है क्योंकि प्रत्येक जिले में कोई न कोई चंद्रोदय साधन करने वाला गणितज्ञ मिल ही जायेंगे।

अब इस प्रश्न का उत्तर जानना भी आवश्यक है कि अंततः 15 – 30 मिनट का अंतर होता क्यों है। सूर्योदय हो अथवा चंद्रोदय जो उदयकाल होता है उससे 15 – 30 मिनट के उपरांत ही देखे जाते हैं। वास्तव में यह अंतर होता नहीं है, उदय यथाकाल ही होता है तथापि वास्तविक काल में अनेकानेक व्यवधानों के कारण दृश्य नहीं होते, जब क्षितिज से थोड़ा ऊपर आते हैं तब लगभग 15 – 30 मिनट के उपरांत ही दृश्य होते हैं। अस्त में इसका विपरीत होता है अर्थात 15 – 30 मिनट पूर्व ही अस्त होते दृश्य होते हैं, क्योंकि क्षितिज से ऊपर ही देखे जा सकते हैं, तत्पश्चात व्यवधानों के कारण नहीं दिखते।

इस विलंब को उदय या अस्त होने के कोणीय स्थिति से समझा जा सकता है। उदय हों या अस्त क्षितिज से कुछ ऊपर ही दृश्य होता है जो अवास्तविक होता है और वास्तविक काल में दृश्य नहीं होता।

इस प्रकार दूध का दूध व पानी का पानी होने के पश्चात् भी यदि कोई यह गांठ बांध ले कि हम उसी पंचांग के आधार पर निर्णय करेंगे जिसके साक्षी चन्द्रमा नहीं हैं तो इस दुराग्रह का कोई हल नहीं हो सकता। ये ठीक उसी प्रकार है जैसे को क्रेता बाजार से जान-बूझकर उचित मूल्य पर सड़ी-गली सब्जी, फल इत्यादि क्रय करने का हठी/बुद्धू हो।

आगामी व्रत पर्वों में कब त्रुटि है ?

उपरोक्त शुद्धाशुद्ध का विचार करने के पश्चात् यह सिद्ध होता है कि विभिन्न मोबाइल ऐप आदि के माध्यम से जो पंचांग प्राप्य है वही शुद्ध है और सारणी आदि के आधार पर जो पंचांग प्रकाशित करके पंडितों को उपलब्ध कराये जाते हैं वही अशुद्ध है क्योंकि चंद्रोदय से वह असत्यापित हो जाता है। अब यह विचार करना है कि आगामी किन-किन व्रत-पर्वों में त्रुटि है।

जितिया पारण संबंधी त्रुटि

प्रथम त्रुटि तो जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत के संबंध में है। शुद्ध पंचांगों के अनुसार जो चंद्रोदय से सत्यापित होता है उसमें आश्विन कृष्ण अष्टमी 25 सितंबर 2024, बुधवार को मध्याह्न 12:10 बजे तक ही अर्थात जितिया का पारण 25 सितम्बर, बुधवार को 12:10 मध्याह्न के उपरांत किया जाना चाहिये। जबकि इन अदृश्य/असत्यापित पंचांगों में अष्टमी सायाह्न 5 बजे के लगभग होगी और उसके उपरांत पारण दिया गया है।

शारदीय नवरात्रि 2024 में त्रुटि

2024 के शारदीय नवरात्रि में दृश्य/सत्यापित और अदृश्य/असत्यापित पंचांगों के आधार पर बहुत अंतर प्राप्त हो रहा है और ये अंतर एक दिन तक का हो जाता है। जहां दृक पंचांगों के अनुसार शारदीय नवरात्रि 2024 गुरुवार 3 अक्टूबर से रविवार 13 अक्टूबर तक है वहीं अदृश्य/असत्यापित पंचांगों द्वारा प्राप्त तिथ्यादि मानों के आधार पर 12 अक्टूबर शनिवार को ही विजया दशमी होना सिद्ध होता है।

स्थूल गणना करने वाले अदृश्य/असत्यापित पंचांगों में चतुर्थी तिथि की वृद्धि होती है और नवमी तिथि का ह्रास होता है। किन्तु दृक पञ्चाङ्गों अर्थात वेधसिद्ध/सत्यापित पंचांगों में तृतीया तिथि की वृद्धि होती है एवं किसी भी तिथि का क्षय नहीं होता है इस कारण नवरात्रा निर्णय में इस प्रकार का भेद मिल रहा है। शुद्धता और ग्राह्यता का निर्णय जनमानस को स्वयं ही करना होगा और इसके लिये एक विशेष उपाय भी ऊपर दिया गया है।

चंद्र के उदय-अस्त होने का व्रत से क्या संबंध है

यद्यपि ऊपर दी गयी जानकारी से यह स्पष्ट हो जाता है कि चंद्रोदय का क्या तात्पर्य है, तथापि कुछ लोगों को जब तक यह स्पष्ट रूप से न बताया जाय कि चंद्रोदय परीक्षण का क्या तात्पर्य है तब तक उनके मन में यह प्रश्न बना ही रहेगा कि जितिया हो या नवरात्र चंद्र के उदय-अस्त का क्या संबंध है, इससे क्या लेना-देना है। इसमें चंद्र के उदय-अस्त का तो कोई विचार ही नहीं किया जाता है फिर इस आलेख का प्रयोजन क्या है ?

चंद्र के उदयास्त का व्रत से कोई संबंध हो न हो इस आलेख का यह विषय है ही नहीं। इस आलेख का विषय है कि आप जिस पंचांग का उपयोग करते हैं, जिस पंचांग के आधार पर व्रत-पर्व-मुहूर्त आदि का निर्णय करते हैं वह पंचांग शुद्ध है अथवा नहीं। सामान्य जन एक ही प्रकार से पंचांग के शुद्ध या अशुद्ध होने का परीक्षण कर सकते हैं और वो है चंद्र का उदय और अस्त।

सूर्य के उदयास्त से परीक्षण नहीं हो सकता क्योंकि उसमें मात्र 1-2 मिनट का ही अंतर होता है। पुनः ग्रहण आदि से हो सकता है किन्तु गणितागत ग्रहण पंचांग में अंकित ही नहीं किया जाता है, ग्रहण में शुद्ध/सत्यापित पंचांगों द्वारा प्राप्त काल ही अंकित किया जाता है, जो किसी वेधशाला से लिया जाता है।

अतः दो साक्षी सूर्य और चंद्र में से एक साक्षी का ही साक्ष्य पंचांग के सत्यापन हेतु लिया जा सकता है और वो साक्षी हैं चंद्र। चंद्र के उदय-अस्त से पंचांग सत्यापित हो तो शुद्ध न हो तो अशुद्ध। आशा है जिन लोगों के मन में यह प्रश्न रहा होगा कि चंद्र के उदय और अस्त का क्या प्रयोजन है उनको भी उत्तर प्राप्त हो गया है।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है। कर्मकांड विधि पर कर्मकांड, धर्म, अध्यात्म, व्रत-पर्व आदि से संबंधित आलेख निरंतर प्रकाशित किये जाते हैं। यहां सभी नवीनतम आलेखों को साझा किया जाता है, सब्सक्राइब करे :  Telegram  Whatsapp  Youtube

3 thoughts on “व्रत पर्व विवेक : पंचांग की जानकारी व शुद्धता को जांचना – Part 1

  1. Varanasi panchang me udya asat ko nahi manta he , 24 ko nahay khai. 25 ko jitiya hai. 26 ko paran he

    1. प्रश्न उदय अस्त का नहीं पंचांग के शुद्धाशुद्ध का है।

Leave a Reply