यहां पर हम कर्मकांड सीखने की चर्चा करने जा रहे हैं। सम्पूर्ण पूजन विधि, हवन विधि, उपनयन विधि, विवाह विधि एवं अन्य संस्कार, यज्ञ विधि, जप विधि, व्रत उद्यापन विधि, अनुष्ठान विधि, वास्तु शांति विधि, नवग्रह शांति विधि, मूल शांति विधि, रुद्राभिषेक विधि, श्राद्ध विधि इत्यादि सभी कर्मकांडी बनने के लिये विशेष रूप से सीखने की आवश्यकता होती है।
यदि केवल रुद्राष्टाध्यायी का पाठ सीखकर रुद्राभिषेक विधि सीखने को कर्मकांड सीखना समझने की भूल कर रहे हैं तो सावधान हो जाएं कर्मकांड में केवल रुद्राभिषेक कराना नहीं आता है। कर्मकांड का बृहद आयाम है और सभी कर्म कराना सीखने के बाद ही कर्मकांडी कहला सकते हैं।
कर्मकांड सीखने से पूर्व ध्यान रखने के लिये आवश्यक बातें :
- कर्मकांडी का अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण होना चाहिए।
- कर्मकांडी को सत्यवादी होना चाहिए।
- कर्मकांड सीखने के लिये पुस्तकों का संग्रही होना चाहिये।
- सतत मंत्रों के शुद्ध उच्चारण करने का अभ्यासी बनना चाहिये।
- नित्यकर्म पारायण होना चाहिये।
- धर्म-कर्म में श्रद्धा, ईश्वर में भक्ति रखनी चाहिये।
- अध्ययनशील बनना चाहिये।
- समाज-देश-विश्व कल्याण की भावना रखनी चाहिये।
- शास्त्रविरुद्ध आडम्बरों से बाहर रहना चाहिये।
- वस्तुओं की, शरीर की, स्थान की शुद्धता के लिये सजग रहना चाहिये।
- यदि प्राम्भिक शिक्षा भिन्न रही हो तो भी कर्मकांड की शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये। अब ऑनलाइन भी कर्मकांड डिप्लोमा का कोर्स विभिन्न संस्थायें कराती हैं।

पूजा विधि मंत्र सहित – कर्मकांड सीखना
इसके अतिरिक्त भी और बहुत आवश्यक नियम हैं जिनका कर्मकांडियों को पालन करना होता है; जैसे अक्रोधी होना, निर्लोभी होना, मृदुभाषी बनना आदि।