सरल पूजा विधि या दैनिक पूजा विधि

सरल पूजा विधि

जब हम सरल पूजा विधि की बात करते हैं तो इसका तात्पर्य होता है एक ऐसी सामान्य विधि जिसके लिये न ब्राह्मणों की आवश्यकता हो और मंत्र भी अनिवार्य न हो। यह पूजा विधि विशेष रूप से उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो धार्मिक आस्था रखते हैं और नित्य पूजा में जटिल पूजा पद्धतियों का पालन नहीं कर सकते। यद्यपि एक ये अर्थ भी हो सकता है जो विशेष पूजा के सन्दर्भ में है कि आर्थिक रूप से सम्पन्न व्यक्ति विशेष पूजा करते हों और आर्थिक रूप से अक्षम व्यक्ति सरल पूजा करता हो, लेकिन इस प्रकार की व्याख्या यथार्थ से परे है।

सरल पूजा विधि या दैनिक पूजा विधि

सरल पूजा विधि वित्तीय स्थिति से संबंधित नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति की आस्था, सहजता और समय की कमी से अधिक जुड़ी हुई है। ऐसे में, हर कोई अपनी सुविधा के अनुसार सरल पूजा विधि अपना सकता है, जिससे भगवान की आराधना में कोई रुकावट न आए, किन्तु यह भी ध्यान रखना आवश्यक होता है कि कर्मकांड अपनी सुविधा के अनुसार नहीं संपन्न किया जा सकता है अपितु कर्मकांड की पद्धति के अनुसार व्यवस्था करके ही संपन्न किया जा सकता है जिसमें विधियों का पालन भी अनिवार्य होता है।

सरल पूजा विधि का मतलब क्या है ?

  • जिस पूजा में मंत्र अनिवार्य हो और ब्राह्मणों की आवश्यकता हो वह सरल पूजा विधि नहीं कही जा सकती।
  • अर्थात पूजा के लिये जो भी सामग्री उपलब्ध हो पायी हो उनसे स्वयं ही मंत्र पढ़कर अथवा बिना मंत्र पढ़े भी पूजा करने की जो विधि है वह सरल पूजा विधि कहलाती है इसे दैनिक पूजा विधि भी कहा जाता है।
  • इसके लिये पूजा की विशेष विधि या नियमों का पालन अनिवार्य नहीं होता है फिर भी कुछ सामान्य नियम हैं जिनका पालन अवश्य करना चाहिये।
सरल पूजा विधि

पूजा करने के कुछ नियम ये हैं जिनका ध्यान अवश्य रखना चाहिये :

  • पूजा से पहले पूजा स्थान को स्वच्छ कर लेना चाहिये।
  • पूजा हमेशा धुले वस्त्रों को पहनकर करनी चाहिये।
  • पूजा सदा पवित्र और प्रसन्नचित्त ही करनी चाहिये।
  • दैनिक पूजा एक सुनिश्चित समय और एक ही स्थान पर करनी चाहिये।
  • पूजा करते समय पुरुषों को भूलकर भी सिर नहीं ढंकना चाहिये।
  • पूजा हमेशा घर के ईशान कोण में पूर्वाभिमुख या उत्तरभिमुख होकर करनी चाहिये।
  • पूजा करते समय अपना ध्यान संसार से अलग करके भगवान में लगाना चाहिये।
  • यदि देवताओं की छोटी प्रतिमा या मूर्ति हो तो प्रतिदिन स्नान करना चाहिये।
  • देवताओं के चित्र को भींगे कपड़े से पोछना चाहिये।
  • पूजा करते समय देवताओं के दाहिने दीप और बांयें धूप जलाना चाहिये।
  • दीप बिना आसन के नीचे नहीं रखना चाहिये, यदि दीप का आसन न हो तो अक्षत पर रखना चाहिये।
  • जब तक मंत्रों का शुद्ध उच्चारण करना न सीख लें तब तक बिना मंत्र के ही पूजा करनी चाहिये।

घर में पूजा करने की विधि क्या है ?

  • पूजा करने की कई विधि होती है – पञ्चोपचार, दशोपचार, षोडशोपचार, द्वात्रिंशोपचार … लेकिन सरल पूजा विधि किस शास्त्र में वर्णित है हमें ज्ञात नहीं। घर में जो प्रतिदिन पूजा करते हैं वह भी नित्यपूजा कहलाती है और उसके लिये दैनिक पूजा विधि का प्रयोग किया जा सकता है।
  • नित्य पूजा भी यदि मंत्रों को सीखकर सविधि षोडशोपचार करते हैं तो उत्तम है अथवा पञ्चोपचार भी कर सकते हैं। पञ्चोपचार पूजा गंध (चन्दन), पुष्प (फूल, तुलसी, बेलपत्र, शमीपत्र, माला), धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करके की जाती है।
  • गंधः पुष्पं च धूपश्च दीपो नैवेद्यमेव च। पञ्चोपचाराः कथिताः देवानां प्रीतिहेतवः।। शास्त्र मर्यादा के अनुसार सरल पूजा विधि का तात्पर्य पञ्चोपचार पूजा विधि ही ग्राह्य हो सकता है। यहाँ हम समंत्र पञ्चोपचार पूजा विधि को समझेंगे।
नवपत्रिका पूजा

समंत्र पञ्चोपचार पूजा विधि

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