देवताओं को भोजन कराने का दो प्रकार है एक हवन और दूसरा ब्राह्मण भोजन। हवन में देवताओं को भोजन दिया जाता है अतः हवन करने की विशेष विधि होती है और हवन करने के लिये शुभ काल का भी निर्धारण किया जाता है। हवन करने के लिये शुभकाल का निर्धारण जिस विचार से किया जाता है उसे अग्निवास विचार कहा जाता है। इस आलेख में हम जानेंगे की अग्निवास क्या है, अग्निवास कैसे निकाला जाता है, अग्नि वास का फल क्या होता है, अग्निवास का परिहार क्या है, कब अग्निवास का विचार करना चाहिये इत्यादि।
अग्निवास का क्या मतलब है ?
अग्निवास का मतलब है की कर्मकांड के परिप्रेक्ष्य में सूक्ष्म रूप से अग्नि पृथ्वी, पाताल और आकाश में वास किया करते हैं, जिसका निर्धारण विशेष ज्योतिषीय गणना द्वारा किया जाता है। अग्नि जब भूमिवास में हों तभी हवन करना चाहिये।
अग्निवास विचार
अग्निवास ज्ञात करने के लिये शास्त्रोक्त विधि का यह श्लोक है :
अग्निवास का श्लोक :
सैकातिथिर्वारयुताकृताप्ताः शेषे गुणेऽभ्रे भुविवह्निवासः ।
सौख्याय होमे शशियुग्मशेषे प्राणार्थनाशौ दिवि भूतले च ॥
तिथि और वार संख्या के योग में १ जोड़ें, फिर ४ से भाग दें। शेष के अनुसार अग्निवास जाने। 0 और ३ शेष होने पर अग्निवास भूमि में जिसका फल सुख प्राप्ति। १ शेष हो तो आकाश में अग्निवास जिसका फल प्राणनाश अर्थात जीवन/स्वास्थ्य आदि के लिये अहितकर। २ शेष बचने पर पाताल में अग्निवास जाने जिसका फल अर्थ नाश या धन नाश।
अग्नि वास देखने का तरीका
अग्निवास देखने के लिये ज्योतिष शास्त्र में एक विशेष विधि बताई गयी है जो इस प्रकार है :
- तिथि संख्या निर्धारण : ज्योतिषीय विचार के लिये शुक्लपक्ष की प्रतिपदा १, द्वितीया २, … क्रमशः पूर्णिमा १५, संख्यात्मक होती है और पुनः कृष्णपक्ष की प्रतिपदा १६, द्वितीया १७, … क्रमशः अमावास्या तक ३० संख्या की गणना होती है। अग्निवास हेतु इसका ज्ञान आवश्यक है।
- वार संख्या निर्धारण : ज्योतिषीय विचार हेतु वार (दिनों) का भी संख्यात्मक क्रम होता है जो इस प्रकार है : रविवार – १, सोमवार – २, …. क्रमशः शनिवार – ७।

अग्निवास विचार करने के लिये अर्थात किसी विशेष दिन का अर्थात जिस किसी दिन का अग्नि वास देखना हो सर्वप्रथम तिथि और दिन ज्ञात करें तत्पश्चात आगे की क्रिया करें :