शिवरहस्य में मेधावी मुनि कृत मृत्युञ्जयमहादेवस्तवः मिलता है जो मृत्युंजय की उपासना में विशेष महत्वपूर्ण है। मेधावी मुनि भी मृत्युंजय के कृपापात्र थे इस कारण उनके द्वारा की गयी मृत्युंजय स्तवन अपना विशेष महत्व रखता है। यहां मेधावी मुनि कृत मृत्युञ्जय महादेव स्तवः (Mrityunjaya Stotra) संस्कृत में दिया गया है।
मृत्युञ्जय महादेव स्तवः – Mrityunjaya Stotra
मेधाव्युवाच
जय विश्वोत्तम श्रीमन् जय भक्तजनप्रिय ।
जय शैवोत्तमाराध्य जय पञ्चमुखानघ ॥
जय निष्कल कामारे जय निर्मल निर्गुण ।
जय शान्त महादेव जय शङ्कर शाश्वत ॥
जय भस्मोद्धूलिताङ्ग जय रुद्राक्षभूषण ।
जय शम्भो सुराधीश जय सर्वामरार्चित ॥
जय भानुगुणाकार जय चन्द्रकलाधर ।
जयानेकगुणाकार जयानेकगुणाश्रय ॥
जय पुण्यैकनिलय जय लिङ्गार्चनप्रिय ।
जय भक्तैकमन्दार जय बिल्वदलप्रिय ॥
जय यज्ञफलाकार जय यज्ञफलप्रद ।
जय श्रीमङ्गलाकार जय श्रीमंङ्गलप्रद ॥
जयोग्र जय पापारे जय भूतेश्वर प्रभो ।
जय भीम भवावेद्य भयवैद्याऽभयप्रद ॥
जय श्रीकण्ठ सर्वज्ञ जय सर्पविभूषण ।
जय मण्डितसर्वाङ्ग जय भक्तार्तिभञ्जन ॥
जय भर्ग महेशान जय सर्वशिवप्रिय ।
जय ब्रह्मादिवन्द्याङ्घ्रे जय ब्रह्मादिपूजित ॥
जय श्रीविष्णुनेत्राब्जपूजिताङ्घ्रिसरोरुह ।
जय मृत्युञ्जयानन्त जय मृत्युहराव्यय ॥
जय गौरीपते ब्रह्मन् जय शङ्कर शाश्वत ।
जय विश्वैकवन्द्याङ्घ्रे जय शूलवरप्रिय ॥
जय मन्मथकालाग्ने जय कालहरानघ ।
जय पिङ्गजटाजूट जय भस्मविभूषण ॥
जय त्रिलोचनामेय जयाहिकृतकङ्कण ।
जय कल्याणनिलय जय कल्याणदायक ॥
जय शैवजनाधार जय शैवजनप्रिय ।
जयोज्ज्वलल्ललाटाक्ष जय श्रीवृषभध्वज ॥
जय चिद्धन चिद्रूप जय देवशिखामणे ।
जय कर्पूरगौराङ्ग जय शाश्वत सर्वग ॥
जय सर्वकराशास्य जय स्थितिकराश्रय ।
जयाप्रधृष्य निर्लिप्त निरञ्जन निरामय ॥
जयाऽखण्डमयाकार जय श्रीचन्द्रशेखर ।
जय वेदान्तवेद्येश जय मङ्गलविग्रह ॥
जयामितप्रभावाढ्य जयागण्यगुणालय ।
जय सर्वागमस्तव्य जय सर्वागमप्रिय ॥
जय रुद्र जयोमेश जयोत्कृष्ट जयेश्वर ।
जयासङ्ग जयाराध्य जय सर्वोत्तमोत्तम ॥
जयानाथैकशरण शरण्यपदपङ्कज ।
जय पञ्चाक्षराकार जय पञ्चाक्षरप्रिय ॥
जय गौरीप्रियानन्त जयपूर्णमणोरथ ।
जयोङ्कारमयाकल्प जय सर्वात्मक प्रभो ॥
जय कुन्देन्दुधवल जय ब्रह्मपितामह ।
जय षण्मुखनन्दीशगणनाथादिसेवित ॥
जय चिन्मय चिन्मूर्ते जयानन्दमयादिम ।
जय निर्मम निर्द्वन्द्व निरीह निरुपाधिक ॥
प्रसीद प्रसीद प्रभो चन्द्रमौले
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारे ।
प्रसीद प्रसीद प्रभो शूलपाणे
प्रसीद प्रसीद प्रभो मृत्युमृत्यो ॥
प्रसीद प्रसीद प्रभोऽनाथबन्धो
प्रसीद प्रसीद प्रभो पुण्यसिन्धो ।
प्रसीद प्रसीद प्रभो दिव्यबन्धो
प्रसीद प्रसीद प्रभो विश्वहेतो ॥
॥ इति शिवरहस्यान्तर्गते मेधावीकृतं मृत्युञ्जयमहादेवस्तवः सम्पूर्णम् ॥
मृत्युञ्जय स्तोत्र
मृत्युञ्जयाय रुद्राय नीलकण्ठाय शम्भवे ।
अमृतेशाय शर्वाय महादेवाय ते नमः ॥१॥
कालेश्वर महाकालं कालञ्जरनिवासिनम् ।
कालकृत्कालवेत्तारं प्रणतोऽस्मि सदा शिवम् ॥२॥
नमस्ते बोधरूपाय कालान्तक नमोऽस्तु ते ।
कालाधिप नमस्तेऽस्तु सर्वकालप्रवर्तक ॥३॥
कलासकलरूपेण कलाभिर्विश्वरूपधृत् ।
विश्वेश्वर नमस्तेऽस्तु आदिकालप्रवर्तक ॥४॥
जय श्वेतनिमित्तोग्र मृत्युदेहनिपातन ।
जयाशेषसुरावास काममोहित शैलज ॥५॥
॥ इति श्रीमृत्युञ्जयस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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