ब्रह्मांडपुराण में माता त्रिपुर भैरवी को गुप्त योगिनियों की अधिष्ठात्री देवी के रूप में चित्रित किया गया है। मत्स्यपुराण में इनके त्रिपुरभैरवी, रुद्रभैरवी, चैतन्यभैरवी तथा नित्या भैरवी आदि नाम-रूपों का वर्णन प्राप्त होता है। इंद्रियों पर विजय और सर्वत्र उत्कर्ष की प्राप्ति हेतु त्रिपुरभैरवी की उपासना का वर्णन शास्त्रों में मिलता है। यहां त्रिपुर भैरवी हृदय स्तोत्र (Tripura Bhairavi Hriday stotra) संस्कृत में दिया गया है।
यहां पढ़ें त्रिपुर भैरवी हृदय स्तोत्र संस्कृत में – Tripura Bhairavi Hriday stotra
मेरौ गिरिवरे गौरी शिवध्यान परायण ।
पार्वती परि पप्रच्छ परानुग्रह वांछय ॥
श्री पार्वत्युवाच
भगवान त्वत् मुखांभोजात् श्रुताधर्मान् अनेकशः ।
पुनः श्रोतुं समिच्छामि भैरवी स्तोत्रमुत्तमं ॥
श्री शंकर उवाच
शृणुदेवी प्रवक्ष्यामि भैरवी हृदयाह्वयं ।
स्तोत्रंतु परमं पुण्यं सर्व कल्याणकारकम् ॥
यस्य श्रवणमात्रेण सर्वाभीष्टं भवेत् ध्रुवं ।
विना ध्यानादिना वापि भैरवी परितुष्यति ॥
विनियोग : ॐ अस्य श्री भैरवी हृदय मंत्रस्य दक्षिणामूर्ति: ऋषिः पंक्तिः छंदः भयविध्वंसिनी भैरवी देवता हकारो बीजं रीं शक्तिः रैः कीलकं सर्व भयविध्वंसनार्थे पाठे विनियोगः ॥
॥ अथ करन्यासः ॥
ॐ ह्रीं अनुगुष्ठाभ्यां नमः ॥
ॐ श्रीं तर्जनीभ्यां नमः ॥
ॐ ऐं मध्यमाभ्यां नमः ॥
ॐ ह्रीं अनामिकाभ्यां नमः ॥
ॐ श्रीं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ॥
ॐ ऐं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ॥
॥ इति करन्यासः ॥
॥ अथ हृदयन्यासः ॥
ॐ ह्रीं हृदयाय नमः ॥
ॐ श्रीं शिरसे स्वाहा ॥
ॐ ऐं शिखायै वषट् ॥
ॐ ह्रीं कवचाय हुं ॥
ॐ श्रीं नेत्रत्रया वौषट् ॥
ॐ ऐं अस्त्राय फट् ॥
॥ इति हृदयन्यासः ॥
॥ अथ ध्यानं ॥
देवैः ध्येयां त्रिनेत्रामसुरभट घनारण्य घोराग्निरूपां
रौद्रीं रक्तां बराढ्यां रति घटघटित सरोजयुग्मोग्ररूपाम्।
चंद्रार्धब्राजि भव्याभरणकरलसत् बालबिंबां भवानीं
सिंदूरा पुरितांगीं त्रिभुवन जननीं भैरवीं भावयामि ॥
॥ पंचचामरवृत्तं ॥
भवभ्रमत समस्त भूत वेदमार्गदायिनीं
दुरंत दुःख दारिणीं विदारिणीं सुरद्रुहाम्
भवप्रदां भावांधकार भेदन प्रभाकरां
मितप्रभां भवच्छिदां भजामि भैरवीं सदा ॥
उरः प्रलंबिताहिमाल्य चंद्रबालभूषणां
नवांबुद प्रभां सरोज चारुलोचनत्रयां
सुपर्ववृंद वंदितां सुरापदंतकारकां
भवानुभावभाविनीं भजामि भैरवीं सदा ॥
अखंडभूमि मंडलैक भारधीर धारिणीं
सुभक्ति भावितात्मनां विभूतिभव्यदायिनीं
भवप्रपंच कारिणीं विहारिणीं भवांबुधौ
भवस्यहृद्यभाविनीं भजामि भैरवीं सदा ॥
शरच्चमत् कृतार्ध चंद्र चंद्रिकाविरोधिकां
प्रभावतीमुखाब्जा मंजुमाधुरी मिलद्गिरां
भुजंगमालया नृमुंडमालया च मंडितां
सुभक्ति मुक्ति भूतिदां भजामि भैरवीं सदा ॥
सुधांशु सूर्यवह्नि लोचनत्रयान् विताननां
नरांतकांतक प्रभूति सर्वदत्तदक्षिणां
समुंड चंड खंडन प्रचंड चंद्रहासिनीं
तमोमति प्रकाशिनीं भजामि भैरवीं सदा ॥
त्रिशूलिनीं त्रिपुंड्रिनीं त्रिखंडिनीं त्रिदंडिनीं
गुणत्रयातिरिक्तमप्यचिन्त्य चित् स्वरूपिणीं
सुवासवाऽदितेयवैरि वृंदवंशभेदिनीं
भवप्रभाव भाविनीं भजामि भैरवीं सदा ॥
सुदीप्तकोटि बालभानु मंडल प्रभांगभां
दिगंतदारि तांधकार भूरिपुंज पद्धतिं
द्विजन्म नित्यधर्मनीति वृद्धिलग्न मानसां
सरोज रोचिराननां भजामि भैरवीं सदा ॥
चलत् सुवर्णकुंडल प्रभोल्लसत्कपोलरुक्
समाकुलाननांबुजस्थ शुभ्रकीरनासिकां
सचंद्र बालभैरवास्य दर्शनस्प्रुहच्चकोर
नीलकंज दर्शनां भजामि भैरवीं सदा ॥
इदं हृदाख्यसंगतस्तवं पठंतियोऽनिशं
पतंति ते कदापि नांधकूप रूपवद्भवे
भवंति च प्रभूतभक्ति मुक्तिरूप उज्ज्वलाः
स्तुताप्रसीदति प्रमोद मानसा च भैरवी सदा ॥
यशोजो जगत्यजस्रं उज्वलं जयत्यलंसमो
न तस्य जायते पराजयोंजसा जगत्रये
सदास्तुतिं शुभामिमां पठत्यनन्य मानसो
भवंतितस्य संपदोऽपि सततं शुभप्रदाः ॥
जप पूजादिकाः सर्वाः स्तोत्र पाठादिकाः चयाः।
भैरवीहृदयस्यास्य कलां नार्हंति षोडशीम् ॥
किमत्रबहुनोक्तेन शृणुदेवि महेश्वरी।
नातः परतरं किंचित् पुण्यमस्ति जगत्त्रये ॥
॥ इति श्री भैरवीकुल सर्वस्वे श्री भैरवी हृदयस्तोत्र संपूर्णम् ॥
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