अग्न्युत्तारण विधि अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है। यज्ञ हों अथवा प्राणप्रतिष्ठा, सामान्य पूजन में भी यदि धातु अथवा प्रस्तारादि की प्रतिमा हो तो प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है। प्राण-प्रतिष्ठा से पूर्व मृण्मय प्रतिमा के अतिरिक्त सर्वत्र अग्न्युत्तारण की आवश्यकता होती ही है। सामान्य पूजन में भी यदि धातु प्रतिमा अत्यंत छोटी हो तो भी अग्न्युत्तारण आवश्यक होता ही है।
किसी भी प्रतिमा में प्राणप्रतिष्ठा से पूर्व एक विशेष संस्कार किया जाता है जिसे अग्न्युत्तारण कहते हैं। यहाँ अग्न्युत्तारण के मंत्र दिये गये हैं जो प्राण प्रतिष्ठा हेतु उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।
प्रतिमा की प्राणप्रतिष्ठा से पहले अग्न्युत्तारण संस्कार किया जाता है। यह मंत्र प्राण प्रतिष्ठा के लिए उपयोगी हैं। अग्न्युत्तारण के महत्वपूर्ण बिंदु और विधि तत्व बताए गए हैं। मंत्र पाठ और आहुति द्वारा इसे पूर्ण करने के लिए विस्तृत जानकारी दी गई है।
अग्न्युत्तारण विधि से सम्बंधित महत्वपूर्ण बातें :
- अग्न्युत्तारण प्रतिमा का एक संस्कार है जो छोटी-बड़ी सभी प्रकार की प्रतिमा में आवश्यक होती है।
- अग्न्युत्तारण का तात्पर्य है प्रतिमा निर्माण हेतु हुये चोट, अग्निज ताप, रसायन प्रयोग आदि दोषों की शांति करना। किसी भी प्रतिमा को निर्माण के लिये उस पर चोट, घर्षण, अग्नि में तपाया ही जाता है। यदि पत्थर की प्रतिमा हो तो भी घर्षणमय अग्नि संसर्ग, चोट, रसायन प्रयोग होता ही है। घृत लेप करके वैदिक ऋचाओं का पाठ करते हुये अविच्छिन्न जलधारा (दुग्धमिश्रित) देना अग्न्युत्तारण कहलाता है।
- कुछ लोग कर्पूरादि से अग्नि बनाकर प्रतिमा का स्पर्श कराना समझते हैं जो उचित नहीं है।
- इसी कारण प्रतिमा अत्यंत छोटी हो तो भी अग्न्युत्तारण करके ही प्राण-प्रतिष्ठा करनी चाहिये।
अग्न्युत्तारण विधि
- किसी धातु पात्र में अष्टदल बनायें।
- मध्य में पान, अक्षत, पुष्प, दूर्वा, कुश, चंदन आदि दें।
- फिर उसपर प्रतिमा स्थापित करें।
- प्रतिमा पर घृत देकर लेप करे ।
- तत्पश्चात् अगले 12 मंत्रों को पढ़ते हुये प्रतिमा पर दुग्धमिश्रित जलधारा दें।
अग्न्युत्तारण मंत्र
- ॐ समुद्रस्य त्वावकयाग्ग्ने परि व्ययामसि । पावकोऽअस्मभ्यᳪ शिवो भव॥१॥
- ॐ हिमस्य त्वा जरायुणाग्ने परि व्यययामसि । पावकोऽअस्मभ्य ᳪ शिवो भव॥२॥
- ॐ उपज्मन्नुप वेतसेऽवतर नदीष्ष्वा। अग्ने पित्तमपामसि मण्ण्डूकि ताभि रागहि । सेमं नोयज्ञं पावकवर्ण ᳪ शिवं कृधि ॥३॥
- ॐ अपामिदं न्ययन ᳪ समुद्रस्य निवेशनम् । अन्न्याँस्तेऽअस्मत्तपन्न्तु हेतयः पावको ऽअस्मभ्य ᳪ शिवो भव ॥४॥
- ॐ अग्ग्ने पावक रोचिषा मन्द्रयादेव जिह्वया । आ देवान्नवक्षि यक्षि च ॥५॥
- ॐ स नः पावक दीदिवोऽग्ने देवाँ२ ऽइहावह । उप यज्ञ ᳪ हविश्च्य नः॥६॥
- ॐ पावकया पश्चितयन्त्या कृपा क्षामन् रुरुचऽउषसौ न भानुना । तूर्वन्न यामन्नेतशस्य नू रणऽआयो घृणे न ततृषाणोऽअजरः ॥७॥
- ॐ नमस्ते हरसे शोचिषे नमस्तेऽअस्त्वर्चिषे अन्न्याँस्ते । अस्म्मत्तपन्न्तु हेतयः पावकोऽअस्म्मभ्य ᳪ शिवो भव ॥८॥
- ॐ नृषदे व्वेड्सुषदे व्वेड् व्वर्हिषदे व्वेड् । व्वनसदे व्वेट् स्वर्व्विदे व्वेट् ॥९॥
- ॐ ये देवा देवानां य्यज्ञिया यज्ञियाना ᳪ संवत्सरीणमुपभागमासते । आहुतादो हविषो यज्ञेऽअस्म्मिन्त्स्वयं पिबन्तु मधुनो घृतस्य ॥१०॥
- ॐ ये देवा देवेष्वधि देवत्वमायन्न्ये ब्रह्मणः पुरऽएतारो ऽअस्य । येब्भ्यो नऽऋते पवते धाम किञ्चन न ते दिवो न पृथिव्याऽअधिस्नुषु ॥११॥
- ॐ प्राणदाऽअपानदा व्यानदा व्वर्चोदा व्वरिवोदाः । अन्याँस्तेऽअस्म्मत्त पन्तु हेतयः पावकोऽअस्म्मभ्य ᳪ शिवो भव ॥१२॥
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
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