शास्त्रों में तीन तिथियों की विशेष महत्ता बताई गई है जिनमें से एक अचला सप्तमी है।
- वैशाख शुक्ल तृतीया – अक्षय तृतीया
- कार्तिक शुक्ल नवमी – अक्षय नवमी
- माघ शुक्ल सप्तमी – अचला सप्तमी
इन तीनों तिथियों की विशेषता यह है कि इस दिन किया गया कर्म अनन्त काल तक प्राप्त होता है चाहे वह पुण्य कर्म हो या पाप कर्म!
अचला सप्तमी – अचला सप्तमी कब है – अचला का अर्थ – अचला सप्तमी 2025
अचला सप्तमी
- माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को अचला सप्तमी कहा जाता है।
- इसका अन्य नाम रथ सप्तमी, आरोग्य सप्तमी भी है।
- शास्त्रों के नियमानुसार इस दिन किया गया प्रत्येक कर्म चाहे पुण्य कर्म हो या पाप कर्म अनन्त काल तक फलित होता है।
- अचला सप्तमी को अरुणोदय काल में स्नान का विशेष महत्व बताया गया है।
- अचला सप्तमी के स्नान का ही विशेष महत्व होता है।
- अचला सप्तमी को नमक रहित भोजन करने की भी परम्परा है।
- अचला सप्तमी के लिए उदयव्यापिनी तिथि ग्राह्य कहा गया है जिसका प्रमाण आगे दिया गया है :
विष्णु – सूर्यग्रहणतुल्या हि शुक्ला माघस्य सप्तमी । अरुणोदयवेलायां तस्यां स्नानं महाफलम् ॥ माघ शुक्ल सप्तमी के अरुणोदय वेला में स्नान से सूर्यग्रहण में स्नानतुल्य फल की प्राप्ति होती है।
तथा – अरुणोदयवेलायां शुक्ला माघस्य सप्तमी । गङ्गायां यदि लभ्येत शतमूर्यग्रहैः समा । प्रयागे यदि लम्येत कोटिसूर्यग्रहैः समा ॥ यदि माघ शुक्ल सप्तमी अरुणोदय वेला में स्नान करे तो सौ सूर्यग्रहणतुल्य एवं प्रयाग लाभ मिले तो कोटि सूर्यग्रहणतुल्य पुण्य होता है।
अचला सप्तमी का अर्थ
अचला का अर्थ होता है जो चलायमान न हो अर्थात् स्थिर हो। अचला सप्तमी का अर्थ होता है इस दिन किये गये कर्म का फल स्थिर रहना । अचला सप्तमी माघ शुक्ल सप्तमी का ही नाम है।
अचला सप्तमी कब है 2024
- वर्ष 2024 में अचला सप्तमी 16 फरवरी शुक्रवार को है ।
- पंचांगों में अरुणोदयकालीन सप्तमी इसी दिन है।
- प्रातः काल 8 बजकर 54 मिनट तक सप्तमी तिथि है।
- किन्तु सूर्योदय से पूर्व ही स्नान करना चाहिये।
अचला सप्तमी कब है 2025
- वर्ष 2024 में अचला सप्तमी 4 फरवरी मंगलवार को है ।
- पंचांगों में अरुणोदयकालीन सप्तमी इसी दिन है।
- रात्रि 2 बजकर 30 मिनट तक सप्तमी तिथि है।
- किन्तु सूर्योदय से पूर्व ही स्नान करना चाहिये।
अचला सप्तमी क्या है
- अचला सप्तमी भगवान सूर्य की उपासना करने का महत्वपूर्ण व्रत है।
- यदि इस दिन रविवार हो तो इसे भानु सप्तमी भी कहा जाता है।
- अचला सप्तमी भगवान सूर्य का व्रत है इसलिए इस दिन पूर्ण निराहार रहकर व्रत नहीं किया जाता है।
- अचला सप्तमी भगवान सूर्य की उपासना का व्रत है इसलिए इस दिन नमक का निषेध होता है।
अचला सप्तमी कृत्य (स्नान विधि)
अचला सप्तमी को जहां कहीं भी स्नान करना हो तदनुसार संकल्प करके ७ अर्कपत्र (अकान) और ७ बदरी पत्र (बेर) शिर पर रखकर स्नान करना चाहिये। बेर का पत्ता पैर के नीचे रखने का भी व्यवहार मिलता है।
तिल, जल लेकर स्नान का संकल्प करे –
जलाशय में स्नान का संकल्प :- ॐ अद्य माघे मासि शुक्ले पक्षे सप्तम्यां तिथौ ………. गोत्रस्य मम ……… शर्मणः (वर्मणः/गुप्तः वर्णानुसार) आयुरारोग्य सम्पत्पूर्वक सूर्यग्रहणकालिक गङ्गास्नानजन्य फलसम फलकामोऽस्मिन् जलाशये स्नानमहङ्करिष्ये ॥
गङ्गातट पर इस प्रकार संकल्प करे :- ॐ अद्येत्यादि ……. सूर्यग्रहणकालिक गङ्गास्नानफल शतगुणाधिक फलकामो गङ्गायां स्नानमहं करिष्ये ॥
प्रयाग स्नान का संकल्प इस प्रकार करे :- ॐ अद्येत्यादि …… सूर्यग्रहणकालिक गङ्गास्नानजन्य फल कोटिगुणाधिक फलकामः प्रयागे त्रिवेण्यां स्नानमहं करिष्ये ॥
इस प्रकार संकल्प करके शिर पर ७-७ अर्क और बदरी (अकान और बैर) पर रखे – ॐ यद्यज्जन्मकृतं पापं मया सप्तसु जन्मसु । तन्मे रोगं च शोकं च माकरी हन्तु सप्तमी ॥ एतज्जन्मकृतं पापं यच्च जन्मान्तराजितम् । मनोवाक्कायजं यच्च ज्ञाताज्ञातं च यत् पुनः ॥ इति सप्तविधं पापं स्नानान्मे सप्तसप्तिके । सप्तव्याधिसमायुक्तं हर माकरि सप्तमि ॥ पढकर स्नान करे ।
स्नान करने के बाद सूर्यमण्डल में सप्तमी को अर्घ्य दे – ॐ जननी सर्वभूतानां सप्तमी सप्तसप्तिके। सप्तव्याहृतिके देवि नमस्ते रविमण्डले ॥
अचला सप्तमी व्रत का महत्व
- अचला सप्तमी भगवान सूर्य का व्रत है अतः इसके द्वारा भगवान सूर्य को प्रसन्न किया जाता है।
- भगवान सूर्य आरोग्य प्रदाता हैं अतः इस व्रत से प्राप्त होने वाला मुख्य लाभ है – आरोग्य।
- मंत्र में रोग और शोक दोनों हरने की प्रार्थना है – तन्मे रोगं च शोकं च माकरी हन्तु सप्तमी।
- अचला सप्तमी का स्नान करने से सातों प्रकार के पाप नष्ट होते हैं। सात प्रकार के पाप का वर्णन भी स्नान मंत्र में ही किया गया है, जो इस प्रकार है :- १. इस जन्म का, २. जन्मान्तर का, ३. मानसिक, ४. वाचा, ५. कायिक, ६. ज्ञात और ७. अज्ञात ।
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