देवी अथर्वशीर्ष संस्कृत

देवी अथर्वशीर्ष संस्कृत

देव्यथर्वशीर्ष का सायंकाल में पाठ करने वाला दिन में किये हुए पापों का नाश करता है,
प्रातः काल में पाठ करने वाला रात्री में किये हुए पापों का नाश करता है।
दोनों समय पाठ करने वाला निष्पाप होता है।
मध्यरात्रि में तुरीय संध्या के समय पाठ करने से वाकसिद्धि प्राप्त होती है।

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रात्रि सूक्त – श्री दुर्गा सप्तशती पाठ

रात्रि सूक्त – श्री दुर्गा सप्तशती पाठ

वास्तविक सृजन रात्रि की अधिष्ठात्री देवी भुवनेश्वरी के ही हाथों में होता है और जब प्रलय के बाद भगवान भी सो जाते हैं तब भी रात्रि की अधिष्ठात्री देवी जाग्रत रहती है और सृजन कार्य को सम्पादित करती रहती है। ये सृजन सामान्य जीवों में स्पष्टतः दृष्टिगत होता है और विज्ञानसिद्ध भी होता है। कोई भी जीव जब सो रहा होता है तब यही अधिष्ठात्री देवी उसके शरीर का निर्माण (विकास, क्षतिपूर्ति आदि) करती हैं।

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कीलक स्तोत्र मंत्र – श्री दुर्गा सप्तशती पाठ

कीलक स्तोत्र मंत्र – श्री दुर्गा सप्तशती पाठ

जैसे कोई भी फाइल लॉक है तो उसे पढ़ने के लिये अनलॉक करने की आवश्यकता होती और अनलॉक करने के लिये पासवर्ड की आवश्यकता होती है। यदि पासवर्ड (उत्कीलन विधा) नहीं पता हो तो उस फाइल को खोला नहीं जा सकता।
कीलक स्तोत्र का महत्व समझाने के लिये ये वैकल्पिक उदहारण है जो पूर्ण सटीक कदापि नहीं हो सकता किन्तु समझने में सहयोग अवश्य कर सकता।

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अर्गला स्तोत्र संस्कृत में

अर्गला स्तोत्र संस्कृत में

जिनके जीवन में असफलता, विवादादि में पराजय, अपयश की प्राप्ति, शत्रुओं से परेशानी, विवाह में विलम्ब इत्यादि अनेक प्रकार की समस्यायें होती हैं उनके लिये नित्य अर्गला स्तोत्र का पाठ करना विशेष लाभकारी होता है। अर्गला स्तोत्र के पाठ से पहले यदि कवच का पाठ भी किया जाय तो विशेष फल की प्राप्ति होती है।

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दुर्गा कवच स्तोत्र

दुर्गा कवच स्तोत्र – दुर्गा कवच संस्कृत

दुर्गा कवच स्तोत्र – दुर्गा कवच संस्कृत : ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्ध देवतास्तत्त्वम्, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ॥

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नारायण सूक्त अर्थ सहित – शुक्ल यजुर्वेदोक्त

नारायण सूक्त अर्थ सहित – शुक्ल यजुर्वेदोक्त

नारायण सूक्त में ब्रह्मज्ञान विषयक गूढ़ार्थ सन्निहित है।
इसे पुरुष सूक्त का परभाग भी कहा जा सकता है।
यह ब्रह्म ज्ञान के महत्व को भी बताता है।
देवता ब्रह्मज्ञानियों के वश में होते हैं इसमें ऐसा भी बताया गया है।
इसमें परमात्मा के विषय में यह बताया गया है की वह सर्वव्यापी तो है ही अर्थात उसे बाहर भी देखा जा सकता है किन्तु वह सबके भीतर भी है और उसे भीतर भी पाया या जाना जा सकता है।
इसमें यह भी बताया गया है कि परमात्मा को जाने बिना कल्याण अर्थात मोक्ष का कोई अन्य उपाय नहीं है।

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पुरुष सूक्तं – सामवेदीय

पुरुष सूक्तं – सामवेदीय

प्रायः ऐसा देखा जाता है कि सामवेदीय सूक्तों के पाठ क्रम में शुक्ल यजुर्वेदी मात्र ᳪ (ग्गूं) का उच्चारण अनुस्वार कर देते हैं। परन्तु बात इतनी नहीं है; सामवेदीय सूक्तों में अन्य परिवर्तन भी होते हैं जो यहाँ दिये गये सामवेदीय पुरुष सूक्त से स्पष्ट हो जाता है।

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पुरुष सूक्तं – कृष्ण यजुर्वेदीय

पुरुष सूक्तं – कृष्ण यजुर्वेदीय

जहां शुक्लयजुर्वेद के पुरुषसूक्त में १६ ऋचायें मिलती है वहीं कृष्ण यजुर्वेद में १८ ऋचायें प्राप्त होती हैं।

कृष्ण यजुर्वेदियों को कृष्णयजुर्वेद के मंत्रों का ही उपयोग करना चाहिये।

सर्वत्र शुक्ल यजुर्वेद की ऋचायें इसलिये उपलब्ध होती है क्योंकि अधिकांश लोग शुक्ल यजुर्वेद के ही माध्यन्दिन शाखा का पालन करने वाले हैं।

किन्तु अन्य वेदों व शाखा वाले लोग भी हैं।

सबको अपने वेद व शाखा का ही पालन करना श्रेयस्कर कहा गया है।

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पितृ सूक्त

पितृ सूक्त

जिस तरह से विभिन्न देवताओं के सूक्त होते हैं उसी तरह पितरों के लिये भी विभिन्न वेदों में सूक्त हैं जिसे पितृसूक्त कहा जाता है। जिसमें से अन्य सभी सूक्तों की तरह ही शुक्ल यजुर्वेदोक्त पितृसूक्त ही मुख्य रूप से प्रयुक्त होता है।

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